Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 54930 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भीमताल में फल फूल रहा जापानी क्वीन्स

Feb 02, 09:04 pm

राकेश सनवाल, भीमताल : जापान में अचार चटनी और जैम के लिए प्रसिद्ध जापानी क्विन्स पौधा भीमताल के वातावरण में फल फूल रहा है। इससे भारत में जापानी अचार, जैम और चटनी के व्यापार की संभावनाओं को भी बल मिला है। फ्लोरीवेल स्वामी अखिलेश त्यागी इसे बड़े पैमाने पर उगाकर व्यावसायिक उपयोग में लाने की योजना बना रहे हैं।

जापान में जापानी क्विन्स (क्विन्स काइमोमिलिस) का पौधा पाया जाता है। इसके फलों से निर्मित आचार, जैम जैली स्कैवस आदि की जापान में अत्याधिक मांग है। इसके फल को विटामिन सी की मात्रा अधिक होने की वजह से सीधे नहीं खाया जा सकता है। फ्लोरीवैल के स्वामी और फूल विशेषज्ञ अखिलेश त्यागी ने बताया कि आमतौर पर इस पौधे पर बसंत में फूल आते हैं और शरद ऋतु में फल पकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में यदि भविष्य में न्यूट्रसल गार्डन को विकसित करने की योजना बनती है, तो यह पौधा एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। त्यागी बताते हैं कि पुष्प प्रेमियों को यह पौधा भाया तो भीमताल सहित अनेक क्षेत्रों में इस पौधे को व्यावसायिक उपयोग के लिए लगाया जा सकता है। जापानी क्विन्स पौधे के फल से निर्मित होने वाली चटनी अब तक किसी भी ब्रांडेड नाम से भारत के मार्केट में उपलब्ध नहीं है

इनसेट

फूलों के विशेषज्ञ अखिलेश त्यागी बताते हैं कि जापानी क्विन्स के पौध को यदि भूस्खलन के क्षेत्र में रोपित किया जाए तो क्षेत्र को भूस्खलन होने से रोका जा सकता ह। इस पौध की जड़ काफी कम समय में काफी अधिक क्षेत्र में फैल जाती है।

फोटो 2 बीटीएल 01

परिचय जपानी क्विन्स में उगे फूल
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8846430.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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वनों को आग से बचाने का ग्रामीणों ने लिया संकल्प
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जखोली : वनों की अग्नि से सुरक्षा करने के लिए उत्तरी जखोली रेंज जाखणी ने विभिन्न गांवों में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें ग्रामीणों ने वनों की सुरक्षा संकल्प लिया।

जखोली क्षेत्र के जखवाडी, रणधार, सन, कोट, थापला, सिरवाडी, बधाणी में आयोजित गोष्ठी में ग्रामीणों ने वनों के संरक्षण एवं संव‌र्द्धन का संकल्प लिया। वन पंचायत सरपंच बालकृष्ण सेमवाल ने ग्रामीणों को प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति समर्पण भाव से जगाने का उल्लेख किया।

गोष्ठी में वन क्षेत्राधिकारी धीरज रावत ने क्षेत्र के संवेदनशील एवं अतिसंवेदनशील वनों को अग्नि से बचाने के लिए आग्रह किया गया। कहा कि जन सहभागिता एवं सहयोग के बिना वनों की सुरक्षा अधूरी है। वन सभी लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों से ही शुद्ध एवं प्राणदायी वायु मिलती है। इसके साथ ही जंगलों से इमारती लकड़ियां एवं चारा पत्ती भी मुहैया कराती हैं। इस अवसर पर वन दारोगा श्रीकृष्ण सकलानी, बादर बुटोला, देवेन्द्र नेगी, प्रेम लाल, प्यारे लाल उनियाल उपस्थित थे। गोष्ठी का समापन प्रधान सिरवाडी पिंकी देवी ने किया।


Source Dainik Jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासुती मौलेखाल,सल्ट (अल्मोड़ा) : जनपद के दूरस्थ विकास खंड सल्ट के आधा दर्जन से अधिक जंगल भीषण आग की चपेट में हैं। जंगलों में लगी आग के कारण जहां लाखों रुपये के वन संपदा जलकर खाक हो गई है। वहीं वन विभाग सूचना के बाद भी इसकी कोई सुध नही ले रहा है।
 
 विकास खंड के मोहान से लगे मछोड़, टोटाम व सौराल के पास बीते दो दिनों से जंगल धू-धू कर जल रहे हैं। वनों में लगी आग के कारण लाखों रुपये की वन संपदा जलकर खाक हो गई है। ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा है कि वनों में आग की सूचना विभाग को देने के बाद भी दो दिन बाद भी वन विभाग ने कोई सुध नहीं ली। वनों में लगी आग के कारण पूरे इलाके में धुंध फैल गई है। साथ ही सड़क मार्गो में भी यातायात प्रभावित हो रहा है। ग्रामीणों ने वन विभाग पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाते हुए कहा है कि आग के कारण अकसर वनों में रहने वाले जंगली जानवर आबादी वाले इलाकों की ओर रुख करते हैं। जिस कारण ग्रामीण भयभीत है। उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वन विभाग के आला अधिकारियों से इस संबंध में कई बार शिकायत करने के बाद भी विभाग जंगलों में लगने वाली आग को रोकने की दिशा में कोई कारगर कदम नही उठा रहा है। जिससे ग्रामीणों में रोष है।
 
 
     खाम्बी के जंगलों में लगी आग
     शेखवापुर के जंगलों में लगी आग
     पीपलकोटी के जंगलों में लगी आग
     शिवालिक के जंगलों में लगी आग
     राजाजी पार्क के जंगलों में लगी आग
     लासी रांगतोली के जंगलों में लगी आग
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    • Narendra Gauniyal yahi haal uttarakhand ke sabhi parvateey ilakon ke junglon me fire season me hote hain.na to van mahakma kuchh kar pata hai,na hi aam log ise gambhirta se lete hain.har saal barsaat me aane wali baadg,toot ti sadken,band hote margon ke tarah har garmiyon me is tarah ki aag lagti rahti hai.har saal van=paryavaran ko hone wali kshati ko najrandaj karna ghatak hai.na to sarkare chet rahi hain ,na hi,vibhag, na hi aam log.about an hour ago · Like

Mahi Mehta

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Save forest.  Please come forward.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Save forest from wild fire...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Go through the news by - Prayag Pandey from Nainital.
जंगलों के जलने का सिलसिला शुरू है उत्तराखंड में
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नैनीताल से प्रयाग पाण्डे


गर्मी का मौसम आते ही उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है। अप्रैल महीने के पहले पखवाडे़ में कुमाऊँ मण्डल के जंगलो में आग लगने के दर्जनों हादसे हो चुके है। इस आग में कई जंगल जलकर राख हो गये है। उत्तराखंड में मौजूद जंगलो के एवज में “ग्रीन बोनस“ की मॉग करने वाली प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार ने पहाड़ के जंगलों की आग से हिफाजत के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है।


कुमाऊँ मण्डल में पिछले सात सालों के दौरान वन महकमे ने जंगलों में आग लगने के 1686 मामले दर्ज किये। इन हादसो में 4399.25 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर राख हो गया था। कुमाऊँ में 2005 में आरक्षित वन क्षेत्र, सिविल वन तथा पंचायती वन क्षेत्रों में आग लगने की 403 घटनाएॅ हुई। इसमें 1196.25 हेक्टेयर वन क्षेत्र जला। 2006 में आग लगने के 37 हादसों में 76.35 हेक्टेयर जंगल जले। 2007 में वनों में आग लगने की 96 घटनाएं हुई और 196.75 हेक्टेयर जंगल आग के हवाले हुए। 2008 में आग लगने की 305 घटनाओं में 824.95 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ। 2009 में आग लगने के 485 हादसों में 1314.17 हेक्टेयर वन क्षेत्र जला। साल 2010 में आग लगने की 313 घटनाएं हुई, जिनमें 691.60 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग के हवाले हो गया था। पिछले साल 2011 में जंगलो में आग लगने के 47 मामले दर्ज हुए, इसमें 78.65 हेक्टेयर वन क्षेत्र जला। एक हेक्टेयर वन क्षेत्र में वृक्षारोपण नष्ट हो गया था। जबकि इस साल अपै्रल के पहले पखवाडे़ में ही कुमाऊँ मण्डल के जंगलों में आग लगने के 17 मामले सामने आ चुके है। इनमें 26.60 हेक्टेयर वन क्षेत्र स्वाहा हो गया है। साढे़ तीन हेक्टेयर वन क्षेत्र का वृक्षारोपण आग की भेंट चढ़ चुका है। वनों में आग लगने के सबसे ज्यादा हादसे सीधे वन विभाग के नियंत्रण वाले आरक्षित वन क्षेत्रों में हुई। इस दरम्यान आरक्षित वन क्षेत्रों में आग लगने की 1040 घटनाएं दर्ज हुई। इन हादसों में 2474.70 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र आग के सुपुर्द हो गया। आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएॅ चीड़ बाहुल्य वाले वन क्षेत्रों में हुई।


वनों में आग की इन घटनाओं में करोड़ों रूपये मूल्य की वन सम्पदा जलकर नष्ट हो गयी। अनेक प्रजाति के नवजात पौधे, दुलर्भ जडी़-बूटी और वनस्पति आग में भस्म हो गयी। अनेकानेक वन्य जीव और पशु-पक्षी जल मरे थे। आग बुझाने की कोशिशों में कई लोग जख्मी हो गये थे। पहाड़ के जंगलों में हर साल लगने वाली आग की तपिश भी वन विभाग की नींद नहीं तोड़ पाई। प्रदेश सरकार ने जंगलो में आग लगने की घटनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया। पहाड़ के जंगलों में हर साल लगने वाली आग के बाद वन महकमा आग लगने के कारणों की सतही जॉच के बाद आग में हुए नुकसान का मामूली आकलन कर मामले को दाखिल-दफ्तर कर देता है। दुर्भाग्य से जंगलों में आग लगने का मुद्दा पहाड़ में राजनीतिक चिंता का विषय भी नहीं बन सका।


उत्तराखंड के जंगलों के प्रति केन्द्र और प्रदेश सरकार का रवैया शुरू से ही विवेकपूर्ण नहीं रहा है। दरअसल यहॉ के जंगलों के साथ बिट्रिश हुकूमत के दिनांे से ही दोहनपूर्ण सलूक होता रहा है। तब उत्तराखंड की वन संपदा को हरा सोना मानकर यहॉ के जंगलों का जमकर विदोहन हुआ। तब यहॉ पहाड़ में ज्यादातर मोटर लायक सड़के, यहॉ के लोगों की सहुलियत के लिए नहीं बल्कि इस हरे सोने की लूट और सामरिक नजरिये से बनी। पर आजाद भारत की सरकार ने भी यहॉ के वन और जल संपदा के व्यवसायिक विदोहन को ही ज्यादा तरजीह दी। वनों की सुरक्षा और विकास के पुख्ता इंतजाम करने के बजाय अव्यहारिक वन कानूनों के जरिये यहॉ की जनता और जंगलों की दूरी पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा बढा़ दी।


उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 64.79 फीसदी यानी 34651.014 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। 24414.408 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र जंगलात महकमे के नियंत्रण में है, जिसमें 24260 वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन क्षेत्र है। 139.653 वर्ग किलोमीटर वन पंचायतों के नियंत्रणाधीन है। यहॉ सबसे ज्यादा चीड़ के वन है। वन विभाग के आकडे़ बताते है कि वन विभाग के नियंत्रण वाले 24260.783 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से 3,94,383,84 हेक्टेयर में चीड़ के वन है। दूसरे नम्बर में बॉज के वन आते है। 3,83,088,12 हेक्टेयर में बाज के जंगल है। देवदार, फर, साइप्रेस, टीक, खैर, शीशम, यूकेलिप्टस के वनों के अलावा 6,14,361 हेक्टेयर क्षेत्र में मिश्रित वन है। जबकि 541299.43 हेक्टेयर यानी 22.17 फीसदी क्षेत्र अनुत्पादक और रिक्त है।


प्रदेश के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा
[/font][/size]उत्तराखंड[/size][/color] की वनोपज से आता है। लेकिन यहॉ के बनों की आमदनी का एक छोटा हिस्सा ही यहॉ के वनों की हिफाजत में खर्च हो रहा है। वन महकमें के हिस्से आने वाली रकम का ज्यादातर हिस्सा वन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों की तनख्वाह वगैरहा में खर्च हो जाता है। प्रदेश का जंगलात महकमा यहॉ के जंगलों की आमदनी के मुकाबले वनों की हिफाजत, पौधा-रोपण और विकास के काम में नाम मात्र की रकम खर्चता है। यह रकम भी ईमानदारी के साथ जमीन तक नहीं पंहुच पाती है। [/font]
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वन विभाग के अपर मुख्य वन संरक्षक एम.सी. पंत बताते है कि जंगलों की आग से निपटने के लिए हालॉकि अभी तक बजट नहीं मिला है। बावजूद इसके जंगलों को आग से बचाने के लिए वन महकमे ने प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया है। बर्निग कन्ट्रोल का काम किया जा चुका है। अग्नि सुरक्षा पट्टियॉ बनाई गई है। वन विभाग वनों को आग से बचाने के लिए जन-जागरूकता अभियान चला रहा है। बकौल एम.सी. पंत फायर वॉच टावरों और वायरलैस सेट उपलब्ध कराये गये है। सीजनल फायर वॉचर तैनात किये जा रहे है। अग्नि सुरक्षा दल बनाये जा रहे है। उन्हें नये उपकरणों से लैस किये जाने का प्रस्ताव है। नियंत्रित फूकान का काम जोरों से चल रहा है। पंत मानते है कि इन सारे उपायों के बावजूद जंगलों में आग के हादसों को रोका जाना नामुमकिन है। इससे आग की घटनाओं और आग लगने पर वनोपज के नुकसान को अवश्य कम किया जा सकता है। पर यहॉ के बाशिन्दों के वनों के प्रति दिनों-दिन कम होते लगाव को जानने-समझने की ईमानदार कोशिश और जंगलों से आम आदमी का पुराना रिश्ता कायम किये बिना जंगलों को आग और इससे होने वाले नुकसान से कैसे बचाया जा सकता है, इस बात का जवाब फिलहाल जंगलात महकमे के किसी अफसर के पास नहीं है।
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source - http://journalistcommunity.com

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जंगलों की आग फिर सुलगी

घाट/थराली। क्षेत्र में लांखी और दुर्मा कुंडी के जंगलों में ठंडी हो चुकी आग शनिवार को दोपहर बाद चली आंधी से फिर सुलग उठे हैं जिससे क्षेत्र में चारों ओर धुंध फैल गई है।

ग्रामीणों और वन विभाग के कर्मियों द्वारा शुक्रवार को आग पर काबू पाया गया, लेकिन आंधी-तूफान से जंगलों की आग फिर सुलग उठी है। जिला पंचायत सदस्य कलावती मैंदुली ने वन विभाग से जंगलों में फैली आग पर काबू करने की मांग की है। उधर, बदरीनाथ वन प्रभाग के मध्य पिंडर रेंज के अंतर्गत मेन, सुनाऊं, देवलग्वाड़ सहित कई गांवों में जंगल पिछले तीन दिन से जल रहे हैं। ग्रामीणों एवं विभागीय कर्मचारियों ने आग बुझाने के प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली।
Amarujal


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भीषण आग से फिर धधक उठे सोनला के जंगल

गोपेश्वर। जिला मुख्यालय से सटे गोपेश्वर-पोखरी मोटर पर सोनला-बछेर के जंगल शनिवार को फिर वनाग्नि से धधक उठे। वनों में लगी भीषण आग से दिन भर भारी उमस रही। एक सप्ताह पूर्व इंद्रदेव खूब बरसे तो जिले के विभिन्न क्षेत्रों के जंगलों में धधक रही आग पर  काबू पाया जा सका।

 बीते तीन दिनों से बिना बारिश के यहां उमस भरी गर्मी पड़नी शुरु हो गई है तो जंगलों में भी आग ने धधकना शुरु कर दिया। सोनला-बछेर के जंगलों में शनिवार को धधकी आग से देखते ही देखते लाखों की वन संपदा खाक हो गई जिससे दिन भर उमस भरी गर्मी से लोग काफी परेशान रहे।

अमर उजाला

गोपेश्वर-पोखरी मोटर मार्ग पर सोनला-बछेर के समीप आग से धधकता जंगल।       फोटो- सुरेंद्र गड़िया

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Gud news..
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 वनों की पूजा के बाद  काटी जंगल की घास



 जागरण प्रतिनिधि, गोपेश्वर: वन पूजा के बाद जंगल से घास काटने की अनूठी परंपरा पपड़ियाणा के ग्रामीणों ने शुरू की है। पर्यावरण कार्यकर्ता मुरारी लाल के नेतृत्व में यह नई पहल की गई। इसमें पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट ने भी हिस्सा लिया।
 दरअसल, मुख्यालय के निकटवर्ती पपड़ियाणा के पर्यावरण कार्यकर्ता 75 वर्षीय मुरारी लाल की मेहनत से आज गांव के दो हेक्टेयर क्षेत्रफल में मिश्रित वन लहलहा रहा है। अब तक ग्रामीण घास काटने से पहले पेड़ों पर राखियां बांधते थे, लेकिन इस वर्ष से गांव वालों ने इस जंगल में घास काटने से पूर्व वन पूजा व पौधारोपण किया गया।
 गुरुवार को पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट, पर्यावरण कार्यकर्ता मुरारी लाल के अलावा पपड़ियाणा के ग्रामीणों ने पोखरी बैंड के निकट पपड़ियाणा के जंगल में वन पूजा की। इस पूजा में गांव की महिलाओं ने भी भाग लिया। पूजा के बाद प्रत्येक व्यक्ति ने एक-एक पौध रोपी तथा उसके बाद जंगल में घास काटी। इस अवसर पर यह भी निर्णय लिया गया कि जंगल में जितने वृक्ष कम हो रहे हैं उनकी संख्या बराबर करने के लिए ग्रामीण समय समय पर इस जंगल में पौधारोपण करते रहेंगे।
 वन पंचायत सरपंच बीएस पंवार ने ग्रामीणों का आह्वान करते हुए कहा कि मुरारी लाल ने जिस जंगल का निर्माण किया है, उस वन को हरा भरा रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। कार्यक्रम में रंजना देवी, दुर्गा देवी, सीता देवी, जयंती देवी सहित कई ग्रामीण शामिल थे।

(source http://www.jagran.com/)

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An example for others to follow. This should be added in our culture to save environment.

दूल्हा-दुल्हन ने दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश
जाका, चम्पावत: वर्तमान में वैश्रि्वक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कई प्रयास हो रहे हैं। ऐसे में नई परंपराओं के साथ पहाड़ में भी लोग इसके लिए आगे आने लगे हैं। बीते दो वर्षो से जिले में नराई अभियान चल रहा है। जिसमें बाबुल के घर से विदाई के वक्त दुल्हन अपने जीवन साथी के साथ पौधरोपण करती है। इसी अभियान के तहत जनपद के तल्ली चौकी गांव में नवविवाहित दंपति ने पौधरोपण किया।
2010 में सामाजिक कार्यकर्ता मदन सिंह महर ने टनकपुर से इस अनूठे अभियान का शुभारंभ किया था। जो अब जिले में फैल चुका है। बताया गया कि नराई के साथ ही जंगलों के संरक्षण के लिए भी अभियान चलाया जा रहा है। इसी अभियान के तहत दो रोज पहले तल्ली चौकी गांव में दुल्हन रेखा ने अपने जीवन साथी दिनेश भंडारी के साथ बाबुल के घर से विदाई के समय फलदार पौध रोपा। अभियान के संचालक महर ने बताया कि अब तक पांच दर्जन से अधिक नव दंपति नराई पौंध रोप चुके हैं। अभियान में उनके साथ सुरेश चंद्र कालौनी, बिंदु सिंह मौनी, नवीन देउपा, जीवन पांडे आदि ग्रामीण शामिल!
 Source Dainik Jagran


 

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