Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 50237 times)

मदन मोहन भट्ट

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एक बार हमारे गाँव के दो शरारती लड़कों ने गाँव के ऊपर जंगल मैं जलती हुयी माचिस की तिल्ली फेंक दी. बस फिर क्या था आग जंगल मे फैल गयी.  सारा गाँव आग बुझाने के लिए निकल पड़ा.  हवा चल रही थी दोपहर बाद का समय था. आग पूरे वेग से फैल गयी.  हम सबने पहले नज्दीक के दूसरे गाओं को आवाज लगाई और फिर चारों तरफ से जाकर लाइन काटी मतलब १०-२० फीट का एक गलियारा बनाते चले गए और पहाड़ के ऊपर जाने तक हमने आग को रोका ही था की जंगल का गार्ड (पत्रौव) आ गया.  उसने देखा कि इन गाँव वालों ने तो आग बुझा दी तो मौका पाकर गिरने का बहाना करते हुए एक जलता हुआ ठिठ (चीड का फल) उसने पहाड़ के दूसरी ओर फेंक दिया.  देखते ही देखते सारे जंगल मैं आग फैल गयी.  पत्रौव कि पिटाई तो हुई लेकिन उससे क्या जंगल बचने वाला था. पूरे चार पांच दिन तक जंगल आग कि भेंट रहा और स्वाहा हो गया. 

यह उस पत्रौव ने क्यों किया - क्योंकि जंगल आग से बच जाता तो उसे चौकीदारी करनी पड़ती, जंगल को आग से बचाना पड़ता. आग लगने का स्पस्टीकरण देना पड़ता.  अब यदि जंगल आग से ही जल जायेगा तो फिर उसकी तो मौज आ गयी ना. ड्यूटी भी नहीं करनी पड़ेगी और आग लगने का blame तो हमारे गाँव पर आना था.   

अब भी यदि इस तरह का काम होता होगा तो आग तो लगेगी ही और फैलेगी भी.

jagmohan singh jayara

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"जंगल जलते हैं"

जल रहे हैं जंगल, 
क्योंकि, ठहरे जो सरकारी,
कभी बचाते थे ग्रामवासी,
अब नहीं है भागीदारी.

हक्क हकूक उनके नहीं रहे,
अतीत का गवाह है तिलाड़ी,
ढंडक ने जन्म लिया था,
वन अधिकारी थे खिलाड़ी.

रैणी, चमोली में जंगल को,
स्व. गौरा देवी ने कटने से बचाया,
पेड़ों से चिपक कर,
वन ठेकेदार को दूर भगाया.

सीमाओं की रक्षा करके,
जो रिटायर हो जाते,
वन सरंक्षण व आग से रक्षा में,
उन्हें क्यों नहीं लगाते?

जमीन पर जो वृक्ष नहीं लगे थे,
आग लगने पर जल जाते,
नुकसान हो गया है दुगना,
वे तो यही बताते.

अन्तोगत्वा मन में,
ख्याल यही है आता,
हर साल "जंगल जलते हैं",
कौन है उनको बचाता.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(23.4.2009 को रचित)

umeshbani

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पंकज दा ने क्या सही तरकीब बताई है ..................

जंगलों में आग लगना पर्यावरण के लिहाज से ठीक नहीं है, पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और आजकल गेहूं की कटाई के बाद खेत भी खाली होते है, लोग घास-फूस, कांटे इकट्ठे करके उसे भी खेतों में जला रहे हैं, अच्छा यह होता कि इस कूड़े को वे लोग कहीं पर इकट्ठा कर लेते तो अच्छी खाद बन जाती, इसके प्रति जनता को समझाने और बताने की जरुरत है।

 बांज, बुरांस, उतीस, देवदार आदि इको फेन्डली पेडों के घने जंगल जहां से शुरु होते हैं, उसे आग से बचाने के लिये वन विभाग एक काम कर सकता है कि जहां से डेंस फारेस्ट शुरु होता है, उसकी परिधि में एक मीटर चौड़ाई और आधे मीटर गहराई की खाई खोद दी जाय और साल में एक बार उसकी साफ सफाई भी करा दे। इससे होगा ये कि जब आग यहां तक पहुचेगी तो इससे आगे नहीं बढ़ पायेगी, बरसात के दिनों में इस खाई में पानी भी भर जायेगा, इतनी छोटी खाई वन्य जीवों के लिये भी घातक नहीं होगी।

पंकज सिंह महर

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"जंगल जलते हैं"
सीमाओं की रक्षा करके,
जो रिटायर हो जाते,
वन सरंक्षण व आग से रक्षा में,
उन्हें क्यों नहीं लगाते?



बहुत अच्छे, जयाड़ा जी, काश आपकी यह सुझाव भरी कविता को हमारे उत्तराखण्ड के नीति नियंता भी पढ़ें और समझें।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jayara JI,

Thanks a lot for sharing this beautiful poem with us.

You have very well described the situation through this poem.

Every year several crs loss incur due to fire in forest of Uttarakhand. Pine threes leaves (peerul) are considered to be main factor these fire as Uttarkhand has larger part forest of Pines tree. (Cheed ke paid).

It is always that Govt do not make any plan in advance for this. Summer has already set-in and jungle of Uttarakhand are burning and Govt is just sleeping at the corner of State (Dehradoon).

Forest Dept - Only for name..

i remember my childhood days when we used to put off the fire in forest without seeking any help from Govt.

Now it is the villagers that they should come forward to save their property (forest) without waiting any aid from Govt.


"जंगल जलते हैं"

जल रहे हैं जंगल, 
क्योंकि, ठहरे जो सरकारी,
कभी बचाते थे ग्रामवासी,
अब नहीं है भागीदारी.

हक्क हकूक उनके नहीं रहे,
अतीत का गवाह है तिलाड़ी,
ढंडक ने जन्म लिया था,
वन अधिकारी थे खिलाड़ी.

रैणी, चमोली में जंगल को,
स्व. गौरा देवी ने कटने से बचाया,
पेड़ों से चिपक कर,
वन ठेकेदार को दूर भगाया.

सीमाओं की रक्षा करके,
जो रिटायर हो जाते,
वन सरंक्षण व आग से रक्षा में,
उन्हें क्यों नहीं लगाते?

जमीन पर जो वृक्ष नहीं लगे थे,
आग लगने पर जल जाते,
नुकसान हो गया है दुगना,
वे तो यही बताते.

अन्तोगत्वा मन में,
ख्याल यही है आता,
हर साल "जंगल जलते हैं",
कौन है उनको बचाता.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(23.4.2009 को रचित)


umeshbani

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सरकार और पढे लिखे ग्रामीण नव युवक मिलकर वनों को आग से बचाने के लिए अनपद और नासमज आदमी को जाग्रत करना चाहिय . जितना हो सके उतना वनों को बचाने के लिया तत्पर होना चाहिय कम से कम हम लोग गलती ना करने ........ और कुछ श्रम दान भी करें तो निश्चित ही हम लोग वनों को आग से बचा सकते है या नुकसान को कम कर सकते है .........
बचपन में मेने एक गाना सुना था नि काटो नि काटो हमरा जंगला ...............जंगल हो ......... आगे तो मुझे याद नहीं है ....
ये बोल कभी कभी में गुनगुना लेता था आज जब ये टोपिक पढ़ा तो फिर मन करा कि फिर गुनगुना लूं वो गाना मगर जितना लिका उससे ज्यादा याद भी नही है ................... लकिन जो भी हो हम सब को  मिलकर जंगल को जलने से बचाने में सरकार का सहयोग करना चाहिय और सरकार तब भी जंगल कि रक्षया करनी चाहिय  पहाडों के सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये जंगल ............गर्मिओं में जब कभी कोई पहाडो में गुमने जाता है तो निश्चित ही उसे एहसास होता होगा कि वनों  का मह्त्व

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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My friend Pratap who is also member of this portal has just returned from trip of Pahad and he told me that there is fire everywhere in forest and Forest Officials are just not bothered.

There is loss to forest from every side. One way there is heavy deforstation every year due to increasing population and day-today requiremets of people and in another way during summer such fire is another big loss.

We should not leave everything on Govt, there is need to generate awarenss amongst people towards the important of forest.


सरकार और पढे लिखे ग्रामीण नव युवक मिलकर वनों को आग से बचाने के लिए अनपद और नासमज आदमी को जाग्रत करना चाहिय . जितना हो सके उतना वनों को बचाने के लिया तत्पर होना चाहिय कम से कम हम लोग गलती ना करने ........ और कुछ श्रम दान भी करें तो निश्चित ही हम लोग वनों को आग से बचा सकते है या नुकसान को कम कर सकते है .........
बचपन में मेने एक गाना सुना था नि काटो नि काटो हमरा जंगला ...............जंगल हो ......... आगे तो मुझे याद नहीं है ....
ये बोल कभी कभी में गुनगुना लेता था आज जब ये टोपिक पढ़ा तो फिर मन करा कि फिर गुनगुना लूं वो गाना मगर जितना लिका उससे ज्यादा याद भी नही है ................... लकिन जो भी हो हम सब को  मिलकर जंगल को जलने से बचाने में सरकार का सहयोग करना चाहिय और सरकार तब भी जंगल कि रक्षया करनी चाहिय  पहाडों के सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये जंगल ............गर्मिओं में जब कभी कोई पहाडो में गुमने जाता है तो निश्चित ही उसे एहसास होता होगा कि वनों  का मह्त्व

Pratap Mehta

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आग से पहाडो की वन सम्प्दा को हो रहा है इसका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड रहा है कभी हमारे गाव से आस पास के कई गाव, पहार और जगल दिखाई देते थे पर इस बार जब मै गाव गया तो चारो ओर जगलो मे आग, धुआ दिखाई दिया। कई साल पहले जब जगलो मे आग लगती थी तो सभी गाव वाले एकत्र होकर जगल मे आग बुझाने जाते थे पर इस  बार किसी को कोई मतलब नही। वन, पहार हमारी शान, पहचान है, इनको बचाने के लिए हमे केवल सरकार पर निर्भर नही रहना चाहिए बल्कि मिलकर लोगो आम लोगो मे जागरूकता लानी होगी। (चारो तरफ धुआ होने के कारण मै इस बार पहार की प्राक्रतिक सॊन्दर्यता को अपने कैमरे मे कैद नही कर पाया)

sorry for delay  :(

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 Very true Pratap Ji.

I feel some villagers should also voluntarily come forward in such cases if they totally bank on Govt officials to come, by then it will be loss.

However, I would like emphasis that since Govt has a Dept for safeguard our forests, they would definitely be very pro-active in such situation. 



आग से पहाडो की वन सम्प्दा को हो रहा है इसका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड रहा है कभी हमारे गाव से आस पास के कई गाव, पहार और जगल दिखाई देते थे पर इस बार जब मै गाव गया तो चारो ओर जगलो मे आग, धुआ दिखाई दिया। कई साल पहले जब जगलो मे आग लगती थी तो सभी गाव वाले एकत्र होकर जगल मे आग बुझाने जाते थे पर इस  बार किसी को कोई मतलब नही। वन, पहार हमारी शान, पहचान है, इनको बचाने के लिए हमे केवल सरकार पर निर्भर नही रहना चाहिए बल्कि मिलकर लोगो आम लोगो मे जागरूकता लानी होगी। (चारो तरफ धुआ होने के कारण मै इस बार पहार की प्राक्रतिक सॊन्दर्यता को अपने कैमरे मे कैद नही कर पाया)

sorry for delay  :(

पंकज सिंह महर

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जागरण कार्यालय, पिथौरागढ़: उत्तराखण्ड के जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं ने वन विभाग की परेशानी बढ़ा दी है। इस बार तराई के जंगल भी आग की चपेट में आ जाने से विभाग की नींद उड़ गई है। राज्य के प्रमुख वन संरक्षक ने रविवार को पिथौरागढ़ में धधकते जंगलों का हवाई सर्वेक्षण किया और अधिकारियों को आग पर काबू पाने को प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए। प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत ने वनाग्नि को रोकने के लिए जनसहयोग को जरूरी बताया। हवाई सर्वे के बाद पिथौरागढ़ में पत्रकारों से बातचीत में प्रमुख वन संरक्षक ने कहा तापमान बढ़ने से उत्तराखण्ड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। इस फायर सीजन में अब तक पूरे प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 500 घटनाएं हो चुकी हैं। इसके चलते 1000 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया है। जंगलों में आग लगने की रविवार को ही 27 घटनाएं कुमाऊं और 17 गढ़वाल क्षेत्र में हुयीं। इस बार तराई के जंगलों में भी आग धधक रही है, जो चिन्ता का विषय है। उन्होंने बताया कि जंगलों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण पिरूल है। नब्बे प्रतिशत पिरूल आज भी जंगलों में ही छूट जाता है और यही आग लगने का सबसे कारण बनता है। ग्रामीणों में पिरूल जलाकर अच्छी घास पैदा होने की भ्रांति भी समस्या खड़ी करती है। जंगलों को आग से बचाने के लिए जनसहयोग को जरूरी बताया और कहा वन विभाग इसके लिए लगातार जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है। पत्रकारों से वार्ता के दौरान वन निगम के प्रबंध निदेशक केएल आर्या, प्रभागीय वनाधिकारी रामगोपाल वर्मा भी मौजूद थे।

 

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