Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 50242 times)

पंकज सिंह महर

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पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: २ मई, २००९


जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर गगवाड़स्यूं पट्टी के गगवाड़ा गांव के वन पंचायत क्षेत्र में लगी आग को बुझाने के प्रयास में पांच लोगों की जलकर मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सात लोग बुरी तरह झुलस गए। झुलसे लोगों को जिला चिकित्सालय पौड़ी में भर्ती कराया गया है। वहां से तीन की गंभीर स्थिति को देख उन्हें बेस चिकित्सालय श्रीकोट के लिए रेफर कर दिया गया है। उधर चमोली जिले के थराली ब्लाक में पैनगढ़ के जंगल में लगी आग से एक 18 वर्षीय युवक आग की चपेट में आ गया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। आज शुक्रवार सुबह छह बजे गगवाड़ा गांव के सौ से अधिक लोग आग बुझाने जंगल की ओर गए। दोपहर के समय आग ने प्रचंड रूप लिया। ग्रामीण आग की चपेट में आ गए। इनमें पांच लोगों की जलकर मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सात लोग झुलस गए। मृतकों में गगवाड़ा गांव निवासी सूरीदास (53 वर्ष) पुत्र ख्याली दास, तेजेन्द्रपाल (44 वर्ष) पुत्र पूरण सिंह सजवाण, मोहन सिंह (45 वर्ष) पुत्र उम्मेद सिंह, सुनील (18 वर्ष) पुत्र जयकृत सिंह व सुनील (21 वर्ष) पुत्र पदमराम शामिल हैं। झुलसे लोगों में गगवाड़ा गांव के अनिल सजवाण (32 वर्ष) पुत्र मदन सिंह, महेन्द्र (19 वर्ष) पुत्र राजकुमार, युद्धवीर सिंह (30 वर्ष) पुत्र हुकम सिंह, महावीर सिंह (62 वर्ष) पुत्र साबर सिंह, जगदीश (27 वर्ष) पुत्र महावीर सिंह, जगमोहन व पदम सिंह शामिल हैं। महावीर सिंह 90 प्रतिशत, युद्धवीर सिंह 55 प्रतिशत, अनिल सजवाण 45 प्रतिशत जले हैं, इनकी नाजुक स्थिति को देखते उन्हें श्रीकोट बेस चिकित्सालय के लिए रेफर कर दिया गया है। जिला चिकित्सालय के सीएमएस डा. ललित गुसांई ने बताया कि आग में गंभीर रूप से झुलसे लोगों की स्थिति चिंताजनक है। घटना के कई घंटे बाद जिला प्रशासन ने घटनास्थल पर जाने की जहमत उठाई। सूचना पर जिलाधिकारी डी. सैंथिल पांडियन मौके पर पहुंचे। राजस्व पुलिस ने मृतकों के शवों का पंचनामा भर दिया गया। उधर चमोली जिले के थराली ब्लाक के पैनगढ़ गांव का दीपू पुरोहित (18) साल पुत्र महेशानंद गांव के जंगल में गाय चराने गया था कि जंगल में लगी आग की लपटों से वह घिर गया और आग को बुझाते समय उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दिया गया है। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने जंगल में लगी आग की चपेट में आने से मरे लोगों के प्रति गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।


यह घटना बहुत ही हृदय विदारक है, मेरा पहाड़ परिवार इनके जज्बे को नमन करता है और इन सभी वन शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
     यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि जंगल में लगी आग से जहां एक ओर पूरा उत्तराखण्ड बेहाल है, आदमी के साथ जानवर भी इस आग से पीडित हैं और वहीं दूसरी ओर वन विभाग धरातल पर काम करने के बजाय, गोष्ठियों में व्यस्त है। इस विभाग से हमें और अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिये, अगर यह महकमा अपने कर्तव्य और दायित्व के प्रति थोडा भी जागरुक होता तो १००० हेक्टेयर जंगल में आग नहीं धधक रही होती। हम इन्द्रदेव से प्रार्थना करेंगे कि वे थोड़ी बारिश करानी की कृपा कर दें, ताकि इस दावानल से उत्तराखण्ड को मुक्ति मिल सके।

हेम पन्त

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वन बचाने की कोशिश में जान गंवाकर शहीद होने की इस घटना से पूरा उत्तराखण्ड स्तब्ध है.. पूरी सरकारी मशीनरी इस समय चुनावों से पूर्व की तैयारियों में व्यस्त है, और उत्तराखण्ड के लगभग 10% जंगल भीषण आग से नष्ट होने के कगार पर हैं.

पौङी जिले में गगवाड़स्यूं पट्टी के गगवाड़ा गांव के इन 6 लोगों का बलिदान अविस्मरणीय है... वनान्दोलनों की इस धरती की परम्परा को इन लोगों ने शहीद होकर आगे बढाने का काम किया है... अश्रूपूर्ण श्रद्धांजली...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Merapahd Team salute these real HEROS who sacrified their lives for saving forest.

(53 वर्ष) पुत्र ख्याली दास, तेजेन्द्रपाल (44 वर्ष) पुत्र पूरण सिंह सजवाण, मोहन सिंह (45 वर्ष) पुत्र उम्मेद सिंह, सुनील (18 वर्ष) पुत्र जयकृत सिंह व सुनील (21 वर्ष) पुत्र पदमराम शामिल हैं। झुलसे लोगों में गगवाड़ा गांव के अनिल सजवाण (32 वर्ष) पुत्र मदन सिंह, महेन्द्र (19 वर्ष) पुत्र राजकुमार, युद्धवीर सिंह (30 वर्ष) पुत्र हुकम सिंह, महावीर सिंह (62 वर्ष) पुत्र साबर सिंह, जगदीश (27 वर्ष) पुत्र महावीर सिंह, जगमोहन व पदम सिंह शामिल हैं। महावीर सिंह 90 प्रतिशत, युद्धवीर सिंह 55 प्रतिशत, अनिल सजवाण 45 प्रतिशत जले हैं

पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: २ मई, २००९


जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर गगवाड़स्यूं पट्टी के गगवाड़ा गांव के वन पंचायत क्षेत्र में लगी आग को बुझाने के प्रयास में पांच लोगों की जलकर मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सात लोग बुरी तरह झुलस गए। झुलसे लोगों को जिला चिकित्सालय पौड़ी में भर्ती कराया गया है। वहां से तीन की गंभीर स्थिति को देख उन्हें बेस चिकित्सालय श्रीकोट के लिए रेफर कर दिया गया है। उधर चमोली जिले के थराली ब्लाक में पैनगढ़ के जंगल में लगी आग से एक 18 वर्षीय युवक आग की चपेट में आ गया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। आज शुक्रवार सुबह छह बजे गगवाड़ा गांव के सौ से अधिक लोग आग बुझाने जंगल की ओर गए। दोपहर के समय आग ने प्रचंड रूप लिया। ग्रामीण आग की चपेट में आ गए। इनमें पांच लोगों की जलकर मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सात लोग झुलस गए। मृतकों में गगवाड़ा गांव निवासी सूरीदास (53 वर्ष) पुत्र ख्याली दास, तेजेन्द्रपाल (44 वर्ष) पुत्र पूरण सिंह सजवाण, मोहन सिंह (45 वर्ष) पुत्र उम्मेद सिंह, सुनील (18 वर्ष) पुत्र जयकृत सिंह व सुनील (21 वर्ष) पुत्र पदमराम शामिल हैं। झुलसे लोगों में गगवाड़ा गांव के अनिल सजवाण (32 वर्ष) पुत्र मदन सिंह, महेन्द्र (19 वर्ष) पुत्र राजकुमार, युद्धवीर सिंह (30 वर्ष) पुत्र हुकम सिंह, महावीर सिंह (62 वर्ष) पुत्र साबर सिंह, जगदीश (27 वर्ष) पुत्र महावीर सिंह, जगमोहन व पदम सिंह शामिल हैं। महावीर सिंह 90 प्रतिशत, युद्धवीर सिंह 55 प्रतिशत, अनिल सजवाण 45 प्रतिशत जले हैं, इनकी नाजुक स्थिति को देखते उन्हें श्रीकोट बेस चिकित्सालय के लिए रेफर कर दिया गया है। जिला चिकित्सालय के सीएमएस डा. ललित गुसांई ने बताया कि आग में गंभीर रूप से झुलसे लोगों की स्थिति चिंताजनक है। घटना के कई घंटे बाद जिला प्रशासन ने घटनास्थल पर जाने की जहमत उठाई। सूचना पर जिलाधिकारी डी. सैंथिल पांडियन मौके पर पहुंचे। राजस्व पुलिस ने मृतकों के शवों का पंचनामा भर दिया गया। उधर चमोली जिले के थराली ब्लाक के पैनगढ़ गांव का दीपू पुरोहित (18) साल पुत्र महेशानंद गांव के जंगल में गाय चराने गया था कि जंगल में लगी आग की लपटों से वह घिर गया और आग को बुझाते समय उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दिया गया है। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने जंगल में लगी आग की चपेट में आने से मरे लोगों के प्रति गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।


यह घटना बहुत ही हृदय विदारक है, मेरा पहाड़ परिवार इनके जज्बे को नमन करता है और इन सभी वन शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
     यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि जंगल में लगी आग से जहां एक ओर पूरा उत्तराखण्ड बेहाल है, आदमी के साथ जानवर भी इस आग से पीडित हैं और वहीं दूसरी ओर वन विभाग धरातल पर काम करने के बजाय, गोष्ठियों में व्यस्त है। इस विभाग से हमें और अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिये, अगर यह महकमा अपने कर्तव्य और दायित्व के प्रति थोडा भी जागरुक होता तो १००० हेक्टेयर जंगल में आग नहीं धधक रही होती। हम इन्द्रदेव से प्रार्थना करेंगे कि वे थोड़ी बारिश करानी की कृपा कर दें, ताकि इस दावानल से उत्तराखण्ड को मुक्ति मिल सके।


पंकज सिंह महर

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Woman charred to death in forest fire
« Reply #73 on: May 12, 2009, 01:04:46 PM »
Tehri (Uttarakhand), May 8 : An old woman was today charred to death when she tried to douse forest fire near Manjyari village in the district, taking the total number of those killed in such accidents to 8, official sources said here.

Vishala Devi (60) was on her way to her house when she noticed fire in the jungles. She rushed to douse it with water but the fire took her into its grip, killing her on the spot.
On May 2, five people were killed and several others injured when they tried to control the fire in the jungles of Gagwara in Pauri district.

Two injured, who were taken to Safdarjung Hospital in New Delhi with critical condition, succumbed to their injuries two days later.

पंकज सिंह महर

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धधकते जंगलों के लिए सरकार की वन नीति जिम्मेदार: डा.बिष्ट
May 02, 01:47 am jagran news

अल्मोड़ा। उत्तराखण्ड लोकवाहिनी के केन्द्रीय अध्यक्ष डा.शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा है कि उत्तराखण्ड में आग से धधकते जंगलों के लिए सरकार की जनविरोधी वन नीति जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड का लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि में आता है। जिसमें 41 प्रतिशत क्षेत्र में वन है। अंग्रेजों के शासनकाल से जो जनविरोधी वन नीति थी, उसको देश की आजादी के बाद भी जारी रखा गया।

डा.बिष्ट ने कहा है कि जंगलों को सरकार ने अपनी आय बढ़ाने का मुख्य साधन माना। इसलिए नेता, नौकरशाह व ठेकेदारों के गठजोड़ ने मनमाने धन से जंगलों का सफाया किया। उन्होंने कहा कि स्थानीय जनता के हितों को न पहले ध्यान में रखा गया, न आजादी के बाद ही उनकी चिंता की गई। ठेकेदार को जंगल लूटने की खुली आजादी दी गई। लेकिन स्थानीय व्यक्ति को जर्जर मकान सुधारने के लिए एक पेड़ की टहनी काटने की भी अनुमति नहीं दी गई। जिसके कारण स्थानीय लोगों का जंगलों से लगाव ही टूट गया।

डा.बिष्ट ने कहा कि आम जनता की आक्रोश की अभिव्यक्ति चिपको आंदोलन के रूप में मुखर हुई। परंतु कुछ कथित नेताओं ने इस चिपको आंदोलन को सिर्फ पर्यावरण का आंदोलन बनाने का प्रयास किया। जिसके चलते पर्यावरण बचाने के नाम से जनता के अधिकारों पर चोट ही हो गई। डा.बिष्ट ने कहा है कि जब तक आम आदमी को जंगलों में अधिकार नहीं मिलते, तब तक स्थानीय ग्रामीण वनों से दूर ही रहेगे।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड में इस वर्ष वनाग्नि ने १० ( पौडी के एक गांव में आग बुझाने गए ५ लोग स्पाट पर ही शहीद हो गए और २ की अस्पताल में मृत्यु हो गयी, टिहरी की एक वृद्ध महिला की आग बुझाते समय मृत्यु हो गयी और अल्मोडा/नैनीताल के ज्म्गालोम में लगी आग से एक गर्भवती महिला के साथ उसकी सगी बहन की भी मौत हो गयी )जाने ले ली और लगभग ३५०० हैक्टेयर वन जला कर ख़ाक हो गया| सरकारे न जाने कब चेतेगी? आज के सूचना क्रांति के दौर में यह हास्यास्पद ही लगता है कि राज्य सरकार का अंतरिक्ष सूचना केंद्र से कोइ संपर्क ही नहीं है, उपग्रह से इसकी तस्वीरें ली जा सकती है और आग को बुझाया जा सकता है, आग बुझाने के लिए नई टेक्नोलाजी के उपकरण लिए जा सकते है, सरकार पहल तो करे..........!

हेम पन्त

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हेम पन्त

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Source : Dainik Jagran
चम्बा (नई टिहरी गढ़वाल)। सुरकंडा क्षेत्र में थुनेर व राई मुरेंडा का जंगल अब समाप्ति की कगार पर है। थुनेर के पुराने पेड़ यहां धीरे-धीरे सूखते जा रहे है, जबकि राई मुरेडा के पेड़ यहां करीब समाप्त हो गए।

एक समय था जब सुरकुड पर्वत स्थित सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर के आसपास थुनेर व राई मुरेडा का घना जंगल था, जहां तीर्थ यात्री अपनी थकान मिटाने के लिए घंटों विश्राम करते थे। आज यह यह जंगल समाप्ति की कगार पर हैं। इस क्षेत्र में दो सौ से अधिक थुनेर के बड़े पेड़ सूख गए हैं और जो पेड़ बचे हैं उनकी भी टहनियां लोगों द्वारा तोड़ी जा रही हैं। इससे यह पेड़ भी सूखते जा रहे हैं। राई मुरेडा के पेड़ तो यहां अब दर्जनभर भी नहीं हैं। वन विभाग अभी तक जंगल के लगातार कम होने को लेकर चिंतित नहीं दिख रहा है। चिपको नेता विजय जड़धारी का कहना है कि वन विभाग वृक्षारोपण के नाम पर लाखों रुपये की अनुपयोगी पौधों की नर्सरी तैयार करवाते है, जबकि विभाग ने इस तरह के उपयोगी पौधों की नर्सरी अभी तक तैयार नहीं की है। रेंजर यशवंत लाल का कहना है कि सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते है जो प्रसाद के रूप में थुनेर और राई मुरेडा के पेड़ तोड़कर ले जाते है, इससे पेड़ों का लगातार नुकसान हो रहा है। धार्मिक भावनाएं जुड़ी होने से लोगों को इस कार्य से रोका भी नहीं जा सकता है। बीज देने वाले पडे़ कम होने से जंगल में प्राकृतिक रूप से नई पौध तैयार नहीं हो पा रही है। थुनेर के पेड़ तो अज्ञात बीमारी के कारण भी सूखते जा रहे है। उनका कहना है कि वन विभाग के पास इन पेड़ों की नर्सरी निकालना कठिन काम है।

पंकज सिंह महर

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source-dainik jagran
देहरादून। आम आदमी के जीवन में जंगलों की अहमियत जाननी हो तो उत्तराखंड आदर्श जगह हो सकती है। वनों को बचाने के लिए यहां लोग जिंदगी तक दांव पर लगा देते हैं। हाल ही में पौड़ी गढ़वाल जिले में कुछ लोग वनाग्नि को बुझाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। कहने की जरूरत नहीं कि वन प्रबंधन का जैसा जज्बा ग्रामीणों में है, वैसा वन महकमे में नहीं।

सेटेलाइट से मिले चित्रों ने भी उत्तराखंड के ग्रामीणों के वनों के प्रति लगाव को पुष्ट किया है। इन चित्रों के माध्यम से यह साफ हो गया कि जितनी बेहतरीन स्थिति वन पंचायत के अधीन आने वाले जंगलों की ही, उतनी ही बदतर हालत वन महकमे के इलाकों की है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान और एक गैर सरकारी संस्था अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी ऐंड एनवायरमेंट ने संयुक्त रूप से उत्तराखंड के 271 गांवों में वन पंचायतों के अधीन जंगलों का तुलनात्मक अध्ययन किया है। अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि उत्तराखंड सरकार वनों पर स्थानीय वन पंचायतों की तुलना में सात से नौ गुना अधिक खर्च करती है। यह अध्ययन अमेरिका की शोध पत्रिका 'प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज' के ताजा अंक में भी प्रकाशित हुआ है। मालूम हो कि उत्तराखंड में 6,069 वन पंचायतें 405,426 हेक्टेयर वन क्षेत्र का प्रबंधन करती हैं, जो प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का 13.63 प्रतिशत है। रिपोर्ट के मुताबिक सेटेलाइट चित्रों की तुलना से यह तथ्य भी सामने आया कि स्थानीय समुदायों के वन घनत्व के हिसाब से भी सरकारी वनों की तुलना में ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। यही नहींउनमें गिरावट भी सरकारी वनों की तुलना में कम आई है। रिपोर्ट के लेखक व भारतीय सांख्यिकी संस्थान के वैज्ञानिक ई. सोमनाथन के मुताबिक सरकार वनों की सुरक्षा के लिए फॉरेस्ट गार्ड और लंबा चौड़ा सरकारी अमला रखती है, उनकी तनख्वाह पर खर्च करती है। वन सुरक्षा के नाम पर वाहनों का अंधाधुंध इस्तेमाल होता है। वहींवन पंचायतों जैसे स्थानीय समुदाय जरूरत के मुताबिक एक वन चौकीदार रख लेती हैं। जरूरत होने पर वन पंचायत का सदस्य भी चौकीदारी कर सकता है। इस तरह से वन पंचायतों का वन सुरक्षा पर खर्च न्यूनतम स्तर पर आ जाता है।

पंकज सिंह महर

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केदार दत्त, जागरण देहरादून:

 उत्तराखंड के जंगलों में इस बार बड़े पैमाने पर लगी आग से वन संपदा को तो भारी नुकसान पहंुचा ही, ग्रामीणों का रोजगार का जरिया भी छिन गया। यहां बात हो रही है सूबे में चार से पांच हजार फुट की ऊंचाई वाले इलाकों में बांज (ओक) के पेड़ों पर उगने वाले लाईकेन (झूला और मुक्कू घास) की, जिसे निकालकर लोग ठीक-ठाक पैसा कमा लेते हैं। इस बार ग्रामीणों की आय का यह साधन चौपट हो गया है और इससे उनकी चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है। झूला घास का उपयोग सभी प्रकार के मसालों में रंग और फ्लेवर बढ़ाने में होता है। दक्षिण भारत में इसे कुकिंग फ्लेवर के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यूरोप में परफ्यूमरी कंपाउंड बनाने में। उत्तराखंड में बांज की बहुतायत देखते हुए यहां भी लोगों ने भी झूला घास को आय का माध्यम बनाया है। वन पंचायतों के अलावा ग्रामीणों को इसके दोहन के लिए अनुमति दी जाती है और फिर जिला भेषज संघ, कुमाऊं मंडल विकास निगम व वन विकास निगम इसे ग्रामीणों से खरीदते हैं। झूला घास करीब चालीस रुपए प्रति किग्रा तक बिकती है, जबकि मुक्कू पांच-छह रुपए प्रति किग्रा। बांज का वृक्ष चार से पांच हजार फुट की ऊंचाई पर मिलता है और राज्य में पौड़ी, चमोली व नैनीताल जिलों में इसकी संख्या बहुत ज्यादा है। अन्य पहाड़ी जिलों में भी बांज ठीक-ठाक तादाद में है, लेकिन इस बार दावानल ने बांज को भी भारी नुकसान पहंुचाया है। सूबे में शायद ही कोई ऐसा वन क्षेत्र होगा, जहां आग ने पैर न पसारे हों। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में इस मर्तबा आग लगने की 1450 घटनाएं हुईं, जिससे करीब 3500 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ। दावानल से बांज के साथ ही उस पर उगने वाली झूला घास को भी क्षति पहंुची है। इससे ग्रामीणों का रोजगार छिन गया। आली-बेदनी-बगजी बुग्याल संरक्षण समिति लोहाजंग के अध्यक्ष दयाल सिंह पटवाल के मुताबिक आग लगने से लोगों को झूला घास से होने वाली आय से इस मर्तबा महरूम रहना पड़ा है। इससे संबंधित क्षेत्रों के लोग खासे चिंतित हैं। उधर, वन विभाग के उप वन संरक्षक (मुख्यालय) प्रेम कुमार ने भी माना कि दावानल से कलेक्शन प्रभावित हुआ है।

 

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