-- On Mon, 8/30/10, anil gwadi <anilgwadi@yahoo.co.in>
लैमनग्रास रोकेगी पहाड़ से पलायन!
देवभूमि में एक हजार पैंसठ गांवों पर पलायन की मार। नतीजा गांव खाली और 3.86 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर में तब्दील। वजह वही, सुदूरवर्ती क्षेत्रों की उपेक्षा, सुविधाओं का घोर अभाव, कृषि पर मौसम व वन्य जीवों की मार, पानी की किल्लत। ऐसे में लोग तो गांव छोड़ेंगे ही। अगर, गांव में कुछ ऐसा हो जाए, जिससे जमीन हरी-भरी रहने के साथ ही दो पैसे का जुगाड़ भी हो तो भला कोई अपनी माटी क्यों छोड़ेगा? कुछ ऐसी ही कोशिश है सगंध पौधा केंद्र की, जो लैमनग्रास के जरिए हरियाली के साथ-साथ रोजगार भी मुहैया कराएगा और पहाड़ों को दरकने से भी रोकेगा।
पलायन की मार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंजर भूमि का दायरा लगातार बढ़ रहा है। सूबे में साढ़े सात लाख हेक्टेयर कृषि भूमि है, जबकि बंजर श्रेणी की भूमि का आंकड़ा साढ़े आठ लाख हेक्टयेर। पलायन का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों से। गांवों का खाली होना और कृषि भूमि का बंजर में तब्दील होना भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं, विशेषकर सीमांत इलाकों के लिए। ऐसे में जरूरी है कि गांवों में सुविधाएं जुटाने के साथ ही वहां रोजगार के अवसर भी मुहैया कराए जाएं। इसी कड़ी में सगंध पौधा केंद्र (कैप) सेलाकुई की कोशिशें रंग लाई तो आने वाले दिनों में बंजर होती जमीन न सिर्फ हरी-भरी रहेगी, बल्कि वहां उगाई जाने वाली लैमनग्रास आय का जरिया भी बनेगी। कैप के प्रभारी वैज्ञानिक नृपेंद्र चौहान के मुताबिक बंजर होती जमीन को लाभकारी बनाने की दिशा में लैमनग्रास बेहद उपयोगी है। जहां पानी का अभाव है, जंगली जानवरों की समस्या है और क्षेत्र दूरस्थ है, वहां के लिए तो यह वरदान है। लैमनग्रास से रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। साथ ही इसके रोपण से हरियाली तो रहेगी ही भू-क्षरण भी रुकेगा और जलस्रोत भी रिचार्ज होंगे।
इस मर्तबा कलस्टर बेस पर लैमनग्रास का रोपण कराया जा रहा है। अब तक लैमनग्रास की करीब 19 लाख पौध चार जनपदों में रोपित की जा चुकी है। इसके अलावा तेजपात के भी 23 हजार से ज्यादा पौधे रोपे गए हैं। श्री चौहान ने बताया कि गांवों में लैमनग्रास का रोपण होने के बाद इससे ऑयल निकालने के लिए तकनीकी ज्ञान और ऑयल निकालने को संयत्र स्थापित लगाने के साथ ही विपणन की व्यवस्था भी खुद कैप करेगा। किसान को यदि बाहर अच्छे रेट मिलते हैं तो वह इसके लिए भी स्वतंत्र है। कुल मिलाकर मकसद यह है कि गांवों से पलायन रुके और जमीन बेकार होने से बची रहे।
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