Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 82751 times)

lpsemwal

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“APPROACH TO RURAL DEVELOPMENT IN INDIA BY FOSTERING FARMER’S ORGANIZATIONS WITH BUSINESS RIGOUR”
 



RISHIKESH,
UTTARAKHAND





एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dear Deepak Ji,
 
Not necessary to write in hindi only. There are many users who don't still not know how to type in hindi.
 
We should express our views on the subject and give the reasonable comments on the topic. Language no issue. We respect our national language and now u will see many people are using this on net also.
 
As regards the migration issue, i have already expressed my views in detail that how to stop the migration.
 
May i request you also to share some views that what kind of steps to be taken to mitigate mirgation from hills. 
 
मैं सभी फोरम उपयोग कर्ताओं और सदस्यों से अनुरोध करता हूँ.........कृपया अगर हो सकता है तो आम आदमी तक अपनी बात पहुचाने के लिए......आप अपनी मात्र भाषा या फिर राष्ट्रीय भाषा हिंदी का प्रयोग नितान्त आवश्यक समझे.......अपनी संस्कृति के बारे मैं आप ही भूल रहे हो तो और लोग क्या करेंगे....ये फोरम उन लोगो के लिए बना है जो अपनी संस्कृति को सहेज कर रख सके....मैं अंग्रेजी भाषा का प्रयोग इस फोरम के लिए उचित नहीं समझता.......गलती के लिए क्षमा चाहूँगा...........


hello Mehta ji, i am an uttaranchali, are you in delhi, if yes, can you let me know something about uttaranchali, those who are in delhi..............i mean what would you like to say about uttaranchali...............

विनोद सिंह गढ़िया

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आदरणीय मेहता जी मैं भी नहीं मानता कि हिंदी, कुमांऊनी एवं गढ़वाली भाषा से उत्तराखंड से विस्थापन {पलायन} रोका जा सकता है|"विस्थापन"एक अलग विषय है और भाषा का प्रयोग एक अलग विषय | मैं मानता हूँ कि हमें अपनी भाषा को भी आगे बढाना आवश्यक है |

मेरा पहाड़ एक ऐसा  पोर्टल है जिसमें कुमांऊ या गढ़वाल के लोग ही नहीं, बल्कि बहुत सारे ऐसे लोग देखते हैं, जो उत्तराखंड से नहीं हैं पर वे उत्तराखंड के बारे में जानना चाहते हैं, हमें थोडा कुछ अंग्रेजी में भी जानकारी देना आवश्यक है, ताकि हमारे मेहमान उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू हो सकें |


Dear Deepak Ji,
 
Not necessary to write in hindi only. There are many users who don't still not know how to type in hindi.
 
We should express our views on the subject and give the reasonable comments on the topic. Language no issue. We respect our national language and now u will see many people are using this on net also.
 
As regards the migration issue, i have already expressed my views in detail that how to stop the migration.
 
May i request you also to share some views that what kind of steps to be taken to mitigate mirgation from hills. 
 
मैं सभी फोरम उपयोग कर्ताओं और सदस्यों से अनुरोध करता हूँ.........कृपया अगर हो सकता है तो आम आदमी तक अपनी बात पहुचाने के लिए......आप अपनी मात्र भाषा या फिर राष्ट्रीय भाषा हिंदी का प्रयोग नितान्त आवश्यक समझे.......अपनी संस्कृति के बारे मैं आप ही भूल रहे हो तो और लोग क्या करेंगे....ये फोरम उन लोगो के लिए बना है जो अपनी संस्कृति को सहेज कर रख सके....मैं अंग्रेजी भाषा का प्रयोग इस फोरम के लिए उचित नहीं समझता.......गलती के लिए क्षमा चाहूँगा...........


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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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-- On Mon, 8/30/10, anil gwadi <anilgwadi@yahoo.co.in>

लैमनग्रास रोकेगी पहाड़ से पलायन!

देवभूमि में एक हजार पैंसठ गांवों पर पलायन की मार। नतीजा गांव खाली और 3.86 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर में तब्दील। वजह वही, सुदूरवर्ती क्षेत्रों की उपेक्षा, सुविधाओं का घोर अभाव, कृषि पर मौसम व वन्य जीवों की मार, पानी की किल्लत। ऐसे में लोग तो गांव छोड़ेंगे ही। अगर, गांव में कुछ ऐसा हो जाए, जिससे जमीन हरी-भरी रहने के साथ ही दो पैसे का जुगाड़ भी हो तो भला कोई अपनी माटी क्यों छोड़ेगा? कुछ ऐसी ही कोशिश है सगंध पौधा केंद्र की, जो लैमनग्रास के जरिए हरियाली के साथ-साथ रोजगार भी मुहैया कराएगा और पहाड़ों को दरकने से भी रोकेगा।
पलायन की मार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंजर भूमि का दायरा लगातार बढ़ रहा है। सूबे में साढ़े सात लाख हेक्टेयर कृषि भूमि है, जबकि बंजर श्रेणी की भूमि का आंकड़ा साढ़े आठ लाख हेक्टयेर। पलायन का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों से। गांवों का खाली होना और कृषि भूमि का बंजर में तब्दील होना भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं, विशेषकर सीमांत इलाकों के लिए। ऐसे में जरूरी है कि गांवों में सुविधाएं जुटाने के साथ ही वहां रोजगार के अवसर भी मुहैया कराए जाएं। इसी कड़ी में सगंध पौधा केंद्र (कैप) सेलाकुई की कोशिशें रंग लाई तो आने वाले दिनों में बंजर होती जमीन न सिर्फ हरी-भरी रहेगी, बल्कि वहां उगाई जाने वाली लैमनग्रास आय का जरिया भी बनेगी। कैप के प्रभारी वैज्ञानिक नृपेंद्र चौहान के मुताबिक बंजर होती जमीन को लाभकारी बनाने की दिशा में लैमनग्रास बेहद उपयोगी है। जहां पानी का अभाव है, जंगली जानवरों की समस्या है और क्षेत्र दूरस्थ है, वहां के लिए तो यह वरदान है। लैमनग्रास से रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। साथ ही इसके रोपण से हरियाली तो रहेगी ही भू-क्षरण भी रुकेगा और जलस्रोत भी रिचार्ज होंगे।
इस मर्तबा कलस्टर बेस पर लैमनग्रास का रोपण कराया जा रहा है। अब तक लैमनग्रास की करीब 19 लाख पौध चार जनपदों में रोपित की जा चुकी है। इसके अलावा तेजपात के भी 23 हजार से ज्यादा पौधे रोपे गए हैं। श्री चौहान ने बताया कि गांवों में लैमनग्रास का रोपण होने के बाद इससे ऑयल निकालने के लिए तकनीकी ज्ञान और ऑयल निकालने को संयत्र स्थापित लगाने के साथ ही विपणन की व्यवस्था भी खुद कैप करेगा। किसान को यदि बाहर अच्छे रेट मिलते हैं तो वह इसके लिए भी स्वतंत्र है। कुल मिलाकर मकसद यह है कि गांवों से पलायन रुके और जमीन बेकार होने से बची रहे।
 
www.anilgwadi.blogspot.com

lpsemwal

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कार्यकुशल पहाड़ी क्चेत्र के युबौं के लिए एक अवसर देने की पहल है "Fostering FARMER organisation with business Rigour"  कृपया सम्पर्क करें:

श्री जगदम्बा समिति
१, विनोद मार्केट देहरादून रोड rISHIKESH

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is a good step Semwal Ji.

Uttarakhand need its people to start some business in hill areas so that employment opportunities arises there and migration can be stopped.

कार्यकुशल पहाड़ी क्चेत्र के युबौं के लिए एक अवसर देने की पहल है "Fostering FARMER organisation with business Rigour"  कृपया सम्पर्क करें:

श्री जगदम्बा समिति
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   रोजी रोटी की तलाश में गांव से पलायन का दंश पहाड़ों में साफ दिखता है। पुरुषों के शहरों का रुख करने से घर और खेतीबारी की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर आ गई है। पौड़ी ब्लाक के परसुंडाखाल क्षेत्र का यह दृश्य यही हकीकत बयां कर रहा है। कठुड़ की गीता के पति दिल्ली में नौकरी करते हैं। ऐसे में सुबह-सबेरे खेत में हल चलाने के बाद वह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती है। जागरण पलायन का दंश     http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2010-10-22&pageno=6#   

 

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