Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 79191 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Migration from hills disturbs poll pattern, voter turnout in Uttarakhand
Neha Pant  Dehradun, March 26, 2014

The assembly elections 2012 data provided by the Election Commission of Uttarakhand clearly indicates the gap in the poll percentage between the hills and plain districts. The highest poll percentage was reported 76.84% in Rudrapur, while the lowest of 55.42% was recorded in Almora. According to the experts, out-hill migration is one of the key explanations behind the massive gap of 21.42% between the two extreme percentages in the hill and plain districts. Consequently, politicians are often known to indulge in a race to contest elections from relatively ‘safer’ constituencies in the plain areas of the state, where approachability and population density are both stronger.


Sameer Raturi, an activist associated with Save Himalaya Movement which has been working on the issue of migration, feels that mass departure of people from the hilly areas has led to decrement in number of voters. “People are moving down from the hills, primarily for livelihood opportunities, which are ultimately skewing the number of voters. In fact, many politicos give preference to plain areas for contesting elections as canvassing and reaching out to people is much more convenient there,” says Raturi.

An expert says that migration, a grim reality in the state, is increasingly disturbing poll patterns. Migration is caused by varied factors like relative regional backwardness, lack of economic opportunities, small size of landholdings and lack employment options in the geographically treacherous hilly terrains.

Renowned environmentalist and founder of Himalayan Environmental Studies and Conservation Organisation (HESCO) Anil Joshi said that subsequent state governments in Uttarakhand had failed to check the exodus of people from the hills. “Around 1100 villages in the state are bearing the brunt of migration. However, the issue has never been on priority for political parties or their candidates,” Joshi said.

According to a survey conducted by the Uttarakhand Directorate of Economics and Statistics, 863.684 people out of every 1,000 of them have migrated from the rural areas, while 136.61 people have migrated from urban areas. The survey was conducted in 2011-12 in 390 villages and 65 census towns in the state.

http://www.hindustantimes.com/india-news/dehradun/migration-from-hills-disturbs-poll-pattern-voter-turnout-in-uttarakhand/article1-1200754.aspx

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यहां जान हथेली पर लेकर स्‍कूल पहुंचते हैं बच्‍चे - पौड़ी उत्तराखंड

हम भले ही 21वीं सदी के भारत की बात करते हों, लेकिन उत्तराखंड के पौड़ी जिले से जो तस्वीर सामने आई है उसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कहीं पीछे चल रहे हैं।

आज भी देश में ऐसे इलाके हैं जहां पढ़ाई-लिखाई के लिए बच्चों को इतनी दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं। बच्चे रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचते हैं और फिर घर लौटने के लिए भी इसी तरह जूझते हैं। शरीर पर भारी स्कूल बैग लादकर लहरों से लड़ते हुए लड़के-लड़कियां एक-दूसरे का सहारा बन गिरते-पड़ते नदी पार करते हैं और फिर स्कूल तक का सफर तय करते हैं।

ऐसी तस्वीरें उत्तराखंड में पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में रोजाना देखने को मिलती हैं, जहां सिनोल नदी पर पुल नहीं होने की वजह से बच्चे रोज इसी तरह खतरों से खेलते हुए मोहन चट्टी में मौजूद राजकीय इंटर कॉलेज पहुंचते हैं और फिर पढ़ाई खत्म होने पर उसी तरह लौटने के लिए मजबूर होते हैं।

यहां बच्चों का जीवन रोज दांव पर होता है, उनके माता-पिता को भी इसका अहसास है। लेकिन मजबूरी ऐसी कि दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है। टीचर भी अपने छात्रों को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं, लेकिन सवाल जब भविष्य संवारने का हो तो सभी इस मोर्चे पर खुद को लाचार पाते हैं।

जाहिर है सरकार भी इससे शायद ही अंजान होगी कि मोहनचट्टी के इस राजकीय इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों की जिंदगी रोज दांव पर लगी होती है। लेकिन न जाने क्यों वो नींद से जगने का नाम नहीं ले रही। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या वो किसी अनहोनी का इंतजार तो नहीं कर रही है?

और भी... http://www.p7news.tv/state/26046-children-cross-sinol-river-everyday-to-reached-school.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"किलै मांग यु उत्तराखंड"

टुटदी तिबरी,उजड्यू खंड
क्या इलै ही मांग उत्तराखंड?
लोग परदेशों मा बस्या,
रयु क्या वे उत्तराखंड?
खाणी-सीणी परदेशों मा,
पिकनिक खुणि उत्तराखंड?
धुरपालि की पाल टुटी,
देली मा कंडली जमी
फेसबुक मा स्टेट्स द्यखणु,
की आई लव उत्तराखंड।
पलायन पहाड़ कु हुयु
क्या इलै ही मांग उत्तराखंड?
नेता मस्तमौला हुया,
डेरा डल्यु दून मा,
शहीद आंदोलनकारी ह्वेगी,
उत्तराखंड की लड़ै मा,
स्वच्दा होला वु भी आज,
की किलै मांग यु उत्तराखंड?
कुछ त सोचो भाइयो तुम भी,
की किलै मांग यु उत्तराखंड,
आओ फिर से बसोंला पहाड़ मा,
सपनों कु बुण्यु उत्तराखंड,

फोटो साभार-नवीन भट्ट
विकास ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Migration leaves behind ‘ghost villages’ in Uttarakhand

After issues related to rebuilding the State in the wake of the June 2013 natural calamity, migration from villages due to lack of development has emerged as a major concern.

Chief Minister Harish Rawat, speaking at a function to mark the 14th foundation day on Sunday, said people were migrating in search of work, leaving in their wake “ghost villages.”

Endorsing this view, Governor Aziz Qureshi said: “The villages in the State, where 70 percent of the [1.01 crore] population resides, are devoid of basic necessities like healthcare and education. This is causing large-scale migration.”

Dr. Qureshi said job opportunities must be created to stop this. Considering this trend, the State’s 12th Five Year Plan document says: ‘This [migration] reflects the absence of livelihood opportunities in the hills and yearning for a better quality of life. Dissatisfaction with jobs/lack of opportunities [is] creating demographic substitution in the hill region.’

Speaking to the media, recently, Mr. Rawat had said that the State had formulated new policies to address the issue of healthcare and education in the remote areas. These measures would stem migration from the hill districts and encourage migrants to return, he had said.

Reviving agricultural practices, fencing villages, and development of meadows would be done, Mr. Rawat had said.

“[In the years to come] there will be a drastic change in the agronomy of the hill areas. This is the Congress government’s action plan against migration and it will be executed on a war footing.”

http://www.thehindu.com/…/migration-leav…/article6580917.ece

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahi Singh Mehta
9 hrs

This is the standard of education in Uttarakhand.

उत्तराखंड के छात्र नहीं जानते, किस देश के वासी हैं!
उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ाई का यह आलम है क‌ि बीरोंखाल ब्लाक के बेसिक स्कूल देवकंडई में पढ़ रहे विद्यार्थियों को अपने देश का नाम तक पता नहीं है। थलीसैण ब्लाक के बेसिक स्कूल चाकीसैण के विद्यार्थी अपना नाम सही तरीके नहीं लिख पा रहे हैं।

जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक केएस रावत ने बेसिक स्कूल देवकंडई के दोनों शिक्षकों और बेसिक स्कूल चाकीसैण के प्रधानाध्यापक के वेतन अनिश्चितकाल के लिए रोकने के निर्देश दिए हैं।

जिला शिक्षा अधिकारी केएस रावत ने बताया कि उन्होंने बुधवार को जीआईसी थलीसैण, पोखड़ा, हाईस्कूल जिवई, फरसाड़ी, प्राथमिक विद्यालय थली, देवकंडई, पंचधार समेत कई विद्यालयों का निरीक्षण किया। इस दौरान बीरोंखाल ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय देवकंडई में व्यवस्थाएं काफी खराब मिली।

आठ स्टूडेंट, दो टीचर
इस विद्यालय में आठ विद्यार्थी हैं, जबकि शिक्षक दो हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अपने देश का नाम पूछा तो कोई नहीं बता पाया। शिक्षकों ने बच्चों की अभ्यास पुस्तिकाओं में कोई काम नहीं कराया है। स्कूल ड्रेस का वितरण भी नहीं किया है।

स्कूल की स्थिति को देखकर उन्होंने बीईओ इन दोनों शिक्षकों का वेतन अनिश्चितकाल तक रोकने को निर्देश दिए हैं। स्कूल में पठन-पाठन और अन्य व्यवस्थाएं सुधरने के बाद ही इनका वेतन आहरित किया जाएगा।

डीईओ बेसिक ने बताया कि निरीक्षण कार्यक्रम के तहत उन्होंने मंगलवार को इंटर कॉलेज चिपलघाट, साकरसैण, चौरा, चाकीसैण, प्राथमिक विद्यालय चिपलघाट, गाड़, चाकीसैण स्कूलों में जाकर निरीक्षण किया। बेसिक स्कूल चाकीसैण में काफी अव्यवस्थाएं पाई गई।

इस विद्यालय में पांच कक्षाएं एक ही कक्ष में संचालित हो रही थी। उसी कक्ष में मध्याह्न भोजन योजना का सामान रखा हुआ था। विद्यालय में पढ़ रहे विद्यार्थी अपना नाम तक सही तरीके से नहीं लिख पाए।

विद्यालय की स्थिति को देखते हुए उन्होंने यहां कार्यरत प्रधानाध्यापक के वेतन को अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया है। प्रधानाध्यापक को व्यवस्था सुधारने के लिए कुछ मानक दिए हैं। व्यवस्था में सुधार होने के बाद ही इनका वेतन आहरित किया जाएगा। (amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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CM के क्षेत्र में सबसे ज्यादा स्कूल बदहाल - उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र के जनपद पिथौरागढ़ में सबसे अधिक स्कूल जीर्ण शीर्ण है। 155 स्कूलों में से 30 स्कूल क्षतिग्रस्त मिले हैं।

चंपावत और बागेश्वर में एक भी स्कूल क्षतिग्रस्त नहीं
मंगलवार प्रदेश भर में स्कूलों के औचक निरीक्षण में यह स्थिति सामने आयी है। वही अफसरों को चंपावत और बागेश्वर में एक भी स्कूल क्षतिग्रस्त नहीं मिला।

शिक्षा महानिदेशक राधिका झा के निर्देश पर मंगलवार प्रदेश भर के 1389 स्कूलों का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान अफसरों को एक कॉलम विद्यालय भवन की स्थिति का दिया गया था। इसमें पिथौरागढ़ में शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने 150 और शिक्षा महानिदेशालय के अधिकारियों ने पांच स्कूलों का निरीक्षण किया।

जिसमें अफसरों को 30 स्कूल जीर्ण शीर्ण मिले हैं। दूसरे नंबर पर पौड़ी जनपद है। यहां 250 स्कूलों में से 21 और चमोली में 106 स्कूलों में से 17 स्कूल जीर्ण शीर्ण मिले। इसके अलावा अल्मोड़ा में पांच, देहरादून में चार, नैनीताल में दो और रुद्रप्रयाग में सात स्कूल जीर्ण शीर्ण मिले।

क्षतिग्रस्त कुछ स्कूल भवन तो गिरने की स्थिति में हैं। जहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। इसके बावजूद बच्चे इन जर्जरहाल स्कूल भवनों में पढ़ने को मजबूर हैं।

1389 में से 90 मिले जर्जर
प्रदेश भर में 1389 स्कूलों में से 90 स्कूल जर्जरहाल मिले हैं। इसमें 81 स्कूल जिला स्तरीय अधिकारियों के निरीक्षण एवं नौ स्कूल शिक्षा महानिदेशालय के अधिकारियों को क्षतिग्रस्त मिले।

जर्जर हाल स्कूलों को ठीक किए जाने के लिए हम लगातार दो साल से इसे एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) में प्रस्ताव रखते आ रहे हैं, लेकिन इसके लिए हमें बजट नहीं मिल पाया। नाबार्ड से भी बजट नहीं मिल पाया। अब हम फिर से इसके लिए शासन में प्रस्ताव भेज रहे हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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खाली पाड़ी पाड़ी पलायन पलायन बोलीक कुछ नि होंद
रड़दा ढुंगों मूं तिलयोंण पड़दन अंगुळा
अर रड़कदा गारों मां घरयोंण पड़दंन खोटियों की फिफिन्डि
अहा मेरु पाड़ बोलिक कुछ नि होंद
बिंवारी की पिड़ा बतौली कि क्य होंदी जलम भूमि

हमुन बी अर तुमुन बी छोडिल्या हाथ खुट्टा
गों छोड़ि सब एग्या बज़ार तुम बी अर हम बी
पाड़ मां रैक तें बी पाड़ी कख छन

पाड़ खाली देखिक कुछ नि होंद
मनखि बटी गूणी बांदर जन दिखेण पड़द
पाड़ रैण पड़द सैण पड़द खाण पड़द पेण पड़द
सौ बार मरण पड़द सौ बार ज्यूण पड़द
तब असली पाड़ी बणद

@ उमा भट्ट @

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is true.

खाली पाड़ी पाड़ी पलायन पलायन बोलीक कुछ नि होंद
रड़दा ढुंगों मूं तिलयोंण पड़दन अंगुळा
अर रड़कदा गारों मां घरयोंण पड़दंन खोटियों की फिफिन्डि
अहा मेरु पाड़ बोलिक कुछ नि होंद
बिंवारी की पिड़ा बतौली कि क्य होंदी जलम भूमि

हमुन बी अर तुमुन बी छोडिल्या हाथ खुट्टा
गों छोड़ि सब एग्या बज़ार तुम बी अर हम बी
पाड़ मां रैक तें बी पाड़ी कख छन

पाड़ खाली देखिक कुछ नि होंद
मनखि बटी गूणी बांदर जन दिखेण पड़द
पाड़ रैण पड़द सैण पड़द खाण पड़द पेण पड़द
सौ बार मरण पड़द सौ बार ज्यूण पड़द
तब असली पाड़ी बणद

@ उमा भट्ट @

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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As the sun dips beyond the hills and twilight bathes Bandul village in Uttarakhand’s Pauri district, Vimla Devi hurries to finish off her household chores to retire for the night.
 
Nightfall will bring out the leopards from the nearby bushes and there is none Vimla Devi, 65, can call for help if the big cats attack her. The other person in the village – around 250 km from state capital Dehradun – is Pushpa Devi, also in her sixties.
 
The two *agenarians are the only people left now in what was once a bustling village of over 65 families; this is Bandul’s tragedy and Uttarakhand’s peculiar predicament.
 
But Bandul is not an isolated case.
 
In Uttarakhand’s hilly interiors, far removed from the development taking place elsewhere, rural settlements are fast turning to ghost villages with people migrating to the plains in search of employment and for education.
 
Official statistics confirm the spurt in migration from the hills in the past one decade.
 
A study conducted by the directorate of economics and statistics in 2011-12 revealed that nearly 1,100 villages do not have a single person left. Officials said that in the past three years, the number of such ‘ghost villages’ is bound to have gone up.
 
Nestled in the lap of the Himalayas, Uttarakhand was carved out of Uttar Pradesh in 2000 with the aim of ensuring development in the hills, which comprise 88% of the state’s geographical area.
 
Nine of the state’s 13 districts are completely in the hills while two are partially hilly. According to official data, around 35 lakh out of the 1.1-crore population live in the hills.
 
“Successive state governments have failed to make policies focusing on the hills. Other Himalayan states have similar issues then why cannot Uttarakhand adopt good points from other hill states?” questions Anil Joshi, chairperson of the Himalayan Environmental Studies and Conservation Organisation, a non-governmental organisation.
 
Government data shows that out of 664 villages with negligible population in the Garhwal region, 341 are in Pauri district alone.
 
According to officials, the problem of migration is acute in Almora, Pithoragarh, Chamoli, Rudraprayag, Bageshwar and Tehri districts, which are also some of the state’s most underdeveloped areas.
 
Former bureaucrat SS Pangti feels Uttarakhand needs to adopt an economic model like that of Himachal Pradesh.
 
“Tourism in the state has not gone beyond Nainital and Mussoorie and the government is talking about having industries in the hills. Migration could only be checked if horticulture and small-scale fruit production units are supported in a big way in the hills,” Pangti adds.
 
To stem migration from the hills, the state government recently unveiled a plan to throw open some of its hill villages to domestic and foreign visitors to create a niche tourism circuit in the scenic state.
 
Tourism is main revenue earner of the state with lakhs of people visiting the state every year. However, most of the visitors are pilgrims who travel to the fabled four shrines collectively known as the ‘char dham’.
 
Vijay Jardhari, a green activist from Tehri Garhwal, says migration has become rampant since agriculture is no longer beneficial in the hills where farmers have to depend on the monsoons.
 
Tappar Singh, 52, resident of village Kunja in Chamoli district left farming a few years ago and now runs a sweetmeat shop. Heading a family of four, Singh says he can no longer feed his wife and children from farming.
 
The issue has already taken political colours with the Rastriya Swayamsewak Sangh (RSS), the ideological mentor of the opposition BJP, chalking out plans to link people of hills origin with their roots.
 
The hill-plain divide is stark in the estimates of the economics and statistics department, which found that per capita income is very high in the plains and nearly half in the hills.
 
Surender Kumar, the spokesperson for chief minister Harish Rawat, said the government was seized of the matter and taking steps to stop the migration.
 
“We realise that lack of job opportunities is leading to migration. Therefore, the government has introduced a separate industrial policy for hills. This policy will accelerate pace of development and create jobs in the time to come,” Kumar told HT.
 
Back in Bandul, Vimla Devi and Pushpa Devi point to houses which have not “heard children cry and adults talk” for a long time.
 
“We want to die in our ancestral village… anyway, what options do we have?” Vimla Devi says.
 
She was merely echoing the sentiments of many other people, too old and rooted to their places of birth. For them, there is just that bit of life left in Uttarakhand’s ghost villages.

http://www.hindustantimes.com/india-news/as-the-young-migrate-to-cities-the-elderly-guard-uttarakhand-s-ghost-villages/article1-1344642.aspx

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम लगा पलायन का गीत
मैं अबेर च होणी
तुम बिचारा दिल्ली बम्बे वाळा
ह्वेगी होली खाणि पेणी
तुम लगा पलायन का गीत
मैं अबेर च होणी

सुबेर उठिक साळी जाण
मुण्ड मां गागर पाणी ल्योंण
झट रोट्टि कल्यो की बणाण
नितर नोनूं न भूखि इस्कूल चलि जाण
फोन मां बि बच्याणे बगत नी च होणी
तुमलगा पलायन का गीत
मैं अबेर च होणी

फोटु डाला रांजी बांझी पुंगड़यूँ की
फोटु डाला रीता पाणि पन्देरों की
फोटु डाला खन्द्वार कुड़ीयों की
मि तें त सोंचणे बि कख बगत
अभि हकौण बाँदर गूणी
तुम लगा पलायन का गीत
मैं अबेर च होणी

मि त तब भि यकुली छौ
आज बि यकुली छौं
सुबेर बिटि रात तक सदानि
मैं अबेरे रै होणी
तुम भगयान् बोलला पलायन पलायन
मैं त द्वि रोट्टी चपोणे बि बगत नी च होणी
तुम लगा पलायन का गीत
जों कि कोठि भैर छन चीणी
जु गैन यख बि बोग मारी
तों पलायने पिड़ा च होणी
थूका आँसू लगे कना सुदी
रोणी धोणी
तुम लगा पलायन का गीत
मैं अबेर च होणी

@उमा भट्ट

 

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