Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 76887 times)

हेम पन्त

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अगस्त्यमुनि (रुद्रप्रयाग)। दो सप्ताह से ग्राम पंचायत मयकोटी व आस-पास के गांवों में पानी की आपूर्ति ठप पड़ी हुई है। इसके चलते लोगों को कई किमी दूर स्थित प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। वहीं पेयजल की कमी के चलते कई परिवार यहां से पलायन कर चुके है और यह अभी भी जारी है।

अगस्त्यमुनि ब्लाक की ग्राम पंचायत मयकोटी, बौंरा व भैंसगांव समेत कई गांवों में दो सप्ताह से पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है। जल निगम की तल्लानागपुर पेयजल योजना से शुरुआती दौर में ही गांवों को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं हो पाता था, अब स्थिति और भी बदतर हो गई है। योजना पर कई दिन से सप्लाई ठप है। इसके चलते अब ग्रामीणों को पानी के लिए कई किमी दूर प्राकृतिक स्रोतों पर जाना पड़ रहा है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता शंभू प्रसाद वशिष्ठ व मदन मोहन वशिष्ठ का कहना है कि क्षेत्र में पेयजल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है और विभाग समस्या को हल करने की बजाय इसे अनदेखा कर रहा है। उनका कहना है कि कई बार इसकी जानकारी संबंधित अधिकारियों को दी जा चुकी है, लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी क्षेत्र में निरीक्षण के लिए नहीं आया है। बताया कि क्षेत्र में पेयजल की कमी को देखते हुए कई परिवार यहां से पलायन कर चुके है और अभी भी पलायन जारी है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Joshi JI,

During my recent visit. I observed that the pace of migration has increased has increased very rapidly whereas it should have been dropped consequent to Uttarakhand being a separate state. People of UK who are in armed forces are taking their families either with them or keeping away from village on rent just for better education etc pretence. It is obvious in some our Govt has not been able to provide basic amenities due to which people are flying from pahad at the same pace.



पलायन एक ऐसी समस्या जो पुरी तरह से नही रुक सकती कभी कभी यह लाभदायक भी रहता है, क्या अगर धोनी का परिवार उत्तराखंड इमं रहता तो हमें एक अच्छा क्रिकेटर मिल पाता? पर यह केवल कुछ हद तक ही होना चाहिए तथा क्षेत्र का विकास वहाँ रहने वाले लोगों के द्वारा ही सम्भव है| 
पहाडों से पलायन का एक मुख्य कारण पहाड़ के लोगों महानगरों और मैदानी क्षेत्र में अधिक सुविधा होने का लालच भी है| चाहे वह महानगरों और प्रदेश से बाहर अन्य स्थानों पर अपने प्रदेश से भी बदतर स्थति में रह रहे हों|  यह सही है की पहाडों का जीवन शारीरिक रूप से कठिन है पर फ़िर भी अगर लोगों को कुछ सुविधाएं उपलब्ध हों तो वह महानगरों के प्रदुषण तथा अपराध और अन्य बुराइयों से अपने आपको बचा सकता है|
मुख्य रूप से उच्च शिक्षा का असमान वितरण, सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तथा रोज़गार की अनुपलब्धता पहाड़ से पलायन का मुख्य कारण है|   इसके साथ ही पहाड़ के छोटे छूते कस्बों में युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए|  जिसके ITIs में पुराने पारंपरिक पाठ्यक्रमों के अलावा नए Job oriented professional कोर्स भी शुरू किए जाने चाहिए|
पर्यटन एक बहुत prospective field है हमारे प्रदेश के लिए पर इसको इस तरह से विकसित करना होगा की स्थानीय लोगों को सीधा इसका लाभ मिले|  इसके लिए स्थानीय निकायों द्वारा बैंक, व्यावसायिक संस्थानों और स्थानीय व्यवसायियों द्वारा नौजवानों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए|  बड़े उद्योग पहाड़ के लिए सम्भव नही हैं इसलिए नौकरी की बजे युवाओं को स्वरोजगार के लिए तैयार करना होगा|  जिसके लिए जनता, सरकार और अन्य संगठनों को एक साथ प्रदेश के विकास के लिए सोचना होगा|


Risky Pathak

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Same Here with My Village....

Now only those people are remaining Village who have no Resources to go Outside.

However Some elderly people are  also there who dont want to live in air of Town and City(Personal Experience)

In Total, 80% Youth(20yr-40yr) are  Absent from Village... 

Risky Pathak

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पलायन  उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है|
पलायन का मुख्य  कारण पर्याप्त रोजगार ना होने के साथ साथ लोगो की मानसिकता भी है| लोगो को लगता है कि बाहर का कार्य  पहाड़ के कार्य से अधिक  कष्टकर  है|  लोग कृषि व अन्य स्थानीय कार्यो को छोड़कर बाहर का रुख करते है| बाहर चाहे उन्हें चतुर्थ श्रेणी के कार्य ही क्यों ना करने पड़े| यहा मेरा कहने का मतलब ये है कि, जब आपको वही काम बाहर करना पड़ रहा है तो अपने ग्रह नगर के पास क्यों नही| और इसी का फायदा उठाकर दुत्याव(नेपाली ), बिहारी, व अन्य जगह के लोगो हमारे वहा आकर वही काम करते है|

दूसरा खेती-बाडी व  पशु पालन से लोगो का विश्वास उठ सा गया है| हालांकि पहाडो कि भोगोलिक स्थिति  ऐसी नही  है वहा अनाज का भरपूर उत्पादन हो सके| परन्तु खेती मे नई तकनीक को अपनाकर उत्पादन मी बदोद्तरी  कि जा सकती है| अनाज के लिए ना सही, पर साग-सब्जियों के लिए सीडी-नुमा खेत होने पर भी कोई परेशानी नही पड़ती| तो अगर साग-सब्जियों, फलो के बारे मे सोचा जाए तो कुछ हद तक लोगो को किसी और का मुंह ना ताकना पड़े|

कुछ अन्य लघु उद्योग(कार्य ): सालु के पेडो से लिसा निकालना, बाँझ के पेडो से बुक निकलना जिससे अबीर  व गुलाल बनता है, भांग के डंडो से  ज्योड़ बनता है|


पशु-पालन के बारे मे लोगो विचार करे तो अच्छा है| आज ताज़ा  घी ५० रूपये प्रति पौ(२०० रूपये  प्रति किलो  )   व दूध २५ रूपये प्रति किलो है|

मुझे पता है कि, यहा कंप्यूटर के सामने बैठकर बोल देना या लिख देना बडा आसान होता है और करना उतना ही मुश्किल| फ़िर भी ये मेरे अपने विचार थे| जो मेने देखा है उस के आधार पर चिंतन करके यहा लिख दिया|


धन्यवाद|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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pathak ji agree with your views.

पलायन  उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है|
पलायन का मुख्य  कारण पर्याप्त रोजगार ना होने के साथ साथ लोगो की मानसिकता भी है| लोगो को लगता है कि बाहर का कार्य  पहाड़ के कार्य से अधिक  कष्टकर  है|  लोग कृषि व अन्य स्थानीय कार्यो को छोड़कर बाहर का रुख करते है| बाहर चाहे उन्हें चतुर्थ श्रेणी के कार्य ही क्यों ना करने पड़े| यहा मेरा कहने का मतलब ये है कि, जब आपको वही काम बाहर करना पड़ रहा है तो अपने ग्रह नगर के पास क्यों नही| और इसी का फायदा उठाकर दुत्याव(नेपाली ), बिहारी, व अन्य जगह के लोगो हमारे वहा आकर वही काम करते है|

दूसरा खेती-बाडी व  पशु पालन से लोगो का विश्वास उठ सा गया है| हालांकि पहाडो कि भोगोलिक स्थिति  ऐसी नही  है वहा अनाज का भरपूर उत्पादन हो सके| परन्तु खेती मे नई तकनीक को अपनाकर उत्पादन मी बदोद्तरी  कि जा सकती है| अनाज के लिए ना सही, पर साग-सब्जियों के लिए सीडी-नुमा खेत होने पर भी कोई परेशानी नही पड़ती| तो अगर साग-सब्जियों, फलो के बारे मे सोचा जाए तो कुछ हद तक लोगो को किसी और का मुंह ना ताकना पड़े|

कुछ अन्य लघु उद्योग(कार्य ): सालु के पेडो से लिसा निकालना, बाँझ के पेडो से बुक निकलना जिससे अबीर  व गुलाल बनता है, भांग के डंडो से  ज्योड़ बनता है|


पशु-पालन के बारे मे लोगो विचार करे तो अच्छा है| आज ताज़ा  घी ५० रूपये प्रति पौ(२०० रूपये  प्रति किलो  )   व दूध २५ रूपये प्रति किलो है|

मुझे पता है कि, यहा कंप्यूटर के सामने बैठकर बोल देना या लिख देना बडा आसान होता है और करना उतना ही मुश्किल| फ़िर भी ये मेरे अपने विचार थे| जो मेने देखा है उस के आधार पर चिंतन करके यहा लिख दिया|


धन्यवाद|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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In the Silver Jubilee Prog of Pahad. We heard that a lot of NGOs are donig thier work for pahad. Even Govt is putting its effort but when we visit our respective village areas, we find the problem standstill.

Untill unless we do not have the employment and other basic amenities, people will continue to fly from pahad.

पलायन  उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है|
पलायन का मुख्य  कारण पर्याप्त रोजगार ना होने के साथ साथ लोगो की मानसिकता भी है| लोगो को लगता है कि बाहर का कार्य  पहाड़ के कार्य से अधिक  कष्टकर  है|  लोग कृषि व अन्य स्थानीय कार्यो को छोड़कर बाहर का रुख करते है| बाहर चाहे उन्हें चतुर्थ श्रेणी के कार्य ही क्यों ना करने पड़े| यहा मेरा कहने का मतलब ये है कि, जब आपको वही काम बाहर करना पड़ रहा है तो अपने ग्रह नगर के पास क्यों नही| और इसी का फायदा उठाकर दुत्याव(नेपाली ), बिहारी, व अन्य जगह के लोगो हमारे वहा आकर वही काम करते है|

दूसरा खेती-बाडी व  पशु पालन से लोगो का विश्वास उठ सा गया है| हालांकि पहाडो कि भोगोलिक स्थिति  ऐसी नही  है वहा अनाज का भरपूर उत्पादन हो सके| परन्तु खेती मे नई तकनीक को अपनाकर उत्पादन मी बदोद्तरी  कि जा सकती है| अनाज के लिए ना सही, पर साग-सब्जियों के लिए सीडी-नुमा खेत होने पर भी कोई परेशानी नही पड़ती| तो अगर साग-सब्जियों, फलो के बारे मे सोचा जाए तो कुछ हद तक लोगो को किसी और का मुंह ना ताकना पड़े|

कुछ अन्य लघु उद्योग(कार्य ): सालु के पेडो से लिसा निकालना, बाँझ के पेडो से बुक निकलना जिससे अबीर  व गुलाल बनता है, भांग के डंडो से  ज्योड़ बनता है|


पशु-पालन के बारे मे लोगो विचार करे तो अच्छा है| आज ताज़ा  घी ५० रूपये प्रति पौ(२०० रूपये  प्रति किलो  )   व दूध २५ रूपये प्रति किलो है|

मुझे पता है कि, यहा कंप्यूटर के सामने बैठकर बोल देना या लिख देना बडा आसान होता है और करना उतना ही मुश्किल| फ़िर भी ये मेरे अपने विचार थे| जो मेने देखा है उस के आधार पर चिंतन करके यहा लिख दिया|


धन्यवाद|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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one of the reasons.

सौंरा-जवाड़ी: पेयजल संकट के कारण पलायन जारीMay 17, 11:30 pm

रुद्रप्रयाग। दो दर्जन से अधिक ग्राम पंचायत वाले जिला पंचायत क्षेत्र सौंरा-जवाड़ी में प्रतिदिन पेयजल संकट गहराता जा रहा है। इस कारण लोगों का पलायन शुरू हो गया है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने इसके लिए विभागीय लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए शीघ्र समस्या का निराकरण न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।

दर्जनों ग्राम पंचायतों वाले जिला पंचायत क्षेत्र सौंरा-जवाड़ी में वर्षो से पेयजल की समस्या चली आ रही है। इस वजह से क्षेत्र में पलायन बदस्तूर जारी है। वर्ष 2006 में लस्तर गाढ़ से सौंरा जवाड़ी क्षेत्र के लिए स्वीकृत पेयजल योजना भी अधर में लटकी हुई है। योजना स्वीकृत होन के दो वर्ष बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। जिला पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत जवाड़ी, दरमोला, तरवाड़ी, कालापहाड़, स्वीली, सेम, डुंगरी रौठिया, गागड़, गवाणा, डुंगरा, घेघड़, सौंदा, तिमली, कफना, सौंरा, सतनी, बांसी, पपड़ासू, रतनुपर, मेदनपुर, पिनगढ़ी, कांडा तथा क्वीला गांव पड़ते है। हजारों की आबादी के बीच अब तक ऐसी पेयजल योजना का निर्माण नहीं हो पाया है जिससे ग्रामीणों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सके। इसके विपरीत इन गांव के लिए स्वीकृत योजना विभागीय लापरवाही की भेंट चढ़ी हुई है। जिला पंचायत सदस्य श्रीमती आशा डिमरी ने सूबे के मुख्यमंत्री को समस्या का ज्ञापन देते हुए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की मांग की है। साथ ही कहा कि यदि समय रहते समस्या का निराकरण नहीं होता तो समस्त क्षेत्रीय जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर होगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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It may be difficult for Govt to provie Govt job at a large scale but alternatively some ways must be explored promoting "Sawarojgar" kind of job.



one of the reasons.

सौंरा-जवाड़ी: पेयजल संकट के कारण पलायन जारीMay 17, 11:30 pm

रुद्रप्रयाग। दो दर्जन से अधिक ग्राम पंचायत वाले जिला पंचायत क्षेत्र सौंरा-जवाड़ी में प्रतिदिन पेयजल संकट गहराता जा रहा है। इस कारण लोगों का पलायन शुरू हो गया है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने इसके लिए विभागीय लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए शीघ्र समस्या का निराकरण न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।

दर्जनों ग्राम पंचायतों वाले जिला पंचायत क्षेत्र सौंरा-जवाड़ी में वर्षो से पेयजल की समस्या चली आ रही है। इस वजह से क्षेत्र में पलायन बदस्तूर जारी है। वर्ष 2006 में लस्तर गाढ़ से सौंरा जवाड़ी क्षेत्र के लिए स्वीकृत पेयजल योजना भी अधर में लटकी हुई है। योजना स्वीकृत होन के दो वर्ष बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। जिला पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत जवाड़ी, दरमोला, तरवाड़ी, कालापहाड़, स्वीली, सेम, डुंगरी रौठिया, गागड़, गवाणा, डुंगरा, घेघड़, सौंदा, तिमली, कफना, सौंरा, सतनी, बांसी, पपड़ासू, रतनुपर, मेदनपुर, पिनगढ़ी, कांडा तथा क्वीला गांव पड़ते है। हजारों की आबादी के बीच अब तक ऐसी पेयजल योजना का निर्माण नहीं हो पाया है जिससे ग्रामीणों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सके। इसके विपरीत इन गांव के लिए स्वीकृत योजना विभागीय लापरवाही की भेंट चढ़ी हुई है। जिला पंचायत सदस्य श्रीमती आशा डिमरी ने सूबे के मुख्यमंत्री को समस्या का ज्ञापन देते हुए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की मांग की है। साथ ही कहा कि यदि समय रहते समस्या का निराकरण नहीं होता तो समस्त क्षेत्रीय जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर होगी।


Mayank Chand Rajbar

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Mehta Da,

since idonot know how to reply on this topic i am putting the same as Quote.

The only reason i feel that people are shifting/migrating out of Pahad is to find a better future.Better future could be in terms of good job/education/lifestyle etc.

Other reason could be that before we got Uttarakandh there was no deveplomnet in our Pahad,,i think Since 2000 there have been lot of progress in Uttarakand as compared to the pre making of uttarakand.
In old days lot of people from Uttarakandh used to join Army,moreover every family in uttarakand has one person in Army which has moved people out of Pahad and they are setteled out (as my case)

In my view to stop imigration it is manadtory for Govt to provide basic amenities toour people.Pukka road,infrastrucure,water,light,employment etc.

We are generating electricity and distributing to other states but our own people are not able to get this facilty.
In Himachal electricty is generated and transferred to other states only after fulfilling there needs,i mean all the remote areas of himachal are well equiped with the electricty.

we should encourage tourism which has a huge scope in Uttaranchal,cultivation,subsidy to farmers could be a better option to stop the immigration.

rgds

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Da,

I fully endorse your views on this. Untill unless we do not have basic amenites in UK, people will similary fly from hill.

Astonishing fact is that our Govts have been fail to put a break on this issue.


Mehta Da,

since idonot know how to reply on this topic i am putting the same as Quote.

The only reason i feel that people are shifting/migrating out of Pahad is to find a better future.Better future could be in terms of good job/education/lifestyle etc.

Other reason could be that before we got Uttarakandh there was no deveplomnet in our Pahad,,i think Since 2000 there have been lot of progress in Uttarakand as compared to the pre making of uttarakand.
In old days lot of people from Uttarakandh used to join Army,moreover every family in uttarakand has one person in Army which has moved people out of Pahad and they are setteled out (as my case)

In my view to stop imigration it is manadtory for Govt to provide basic amenities toour people.Pukka road,infrastrucure,water,light,employment etc.

We are generating electricity and distributing to other states but our own people are not able to get this facilty.
In Himachal electricty is generated and transferred to other states only after fulfilling there needs,i mean all the remote areas of himachal are well equiped with the electricty.

we should encourage tourism which has a huge scope in Uttaranchal,cultivation,subsidy to farmers could be a better option to stop the immigration.

rgds

 

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