Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 72180 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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exactly right Umesh ji.

स्वरोजगार ,छोटे उद्योग , रोजगार परक शिक्षा , फायदे जनक खेती और उसकी सही पहचान जेसे मसरूम ......

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Migration can not be stopped, it is a going process, but migration from the hills to plain is a issue to be taken in to the account.  One side people are leaving hill areas and Property Dealers and Land Mafias occipying such places mostly around the hill areas of Tourist interest in Dehradun, Nainital, Almora, Tehri, Pauri and Uttarkashi Districts.  Mostly people migrate due to unemployment that may be acceptable reason untill we can not create jobs in the hill areas.  But the second type of migration where Hill farmers selling there land to Mafias, Builders and Property Dealers is more dangerous.  Such type of activities increased after the Uttarakhand formed.  In such cases the people of hills losing their land and home both and since they can not do a business the money they get in exchange of their land may spent in ill habits and the coming generation will suffer due to no land, employment or business.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Josh ij,

I believe if development takes place hill areas, there would definitely be decrease in migration rate.




Migration can not be stopped, it is a going process, but migration from the hills to plain is a issue to be taken in to the account.  One side people are leaving hill areas and Property Dealers and Land Mafias occipying such places mostly around the hill areas of Tourist interest in Dehradun, Nainital, Almora, Tehri, Pauri and Uttarkashi Districts.  Mostly people migrate due to unemployment that may be acceptable reason untill we can not create jobs in the hill areas.  But the second type of migration where Hill farmers selling there land to Mafias, Builders and Property Dealers is more dangerous.  Such type of activities increased after the Uttarakhand formed.  In such cases the people of hills losing their land and home both and since they can not do a business the money they get in exchange of their land may spent in ill habits and the coming generation will suffer due to no land, employment or business.

पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड में जारी है पलायन
« Reply #63 on: January 27, 2009, 11:16:38 AM »
सहारा न्यूज ब्यूरो
देहरादून। राज्य बनने के बावजूद रोजी-रोटी की तलाश में पहाड़ से होने वाला पलायन बदस्तूर जारी है। पिछले चार महीनों के भीतर ही पहाड़ से सात जनपदों से 32025 मतदाता कम हो चुके हैं। निर्वाचन कार्यालय द्वारा पुनरीक्षित सूची में प्रदेश में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 57 लाख 32 हजार 146 हो गयी है, जो पहले से 1716 अधिक है। बागेश्वर, नैनीताल व अल्मोड़ा को अपवाद मान लिया जाए तो अन्य पहाड़ी जिलों की स्थिति चिंताजनक हैं। इन तीन पहाड़ी व तीन मैदानी जनपदों में 33741 वोटर बढ़ गये हैं। पहाड़ से हो रहे पलायन की भयावह स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के गृह जनपद पौड़ी में सबसे अधिक 11913 मतदाता कम हो गये हैं। पलायन का यह रूझान अस्थायी राजधानी देहरादून की आ॓र ज्यादा दिख रहा है।
आसन्न लोकसभा चुनावों को देखते हुए निवार्चन कार्यालय द्वारा प्रकाशन के भेजी गयी सूची के अनुसार पहाड़ छोड़ने वालों में पुरूषों की तुलना में महिलाएं अधिक हैं। उत्तरकाशी, चमोली, रूद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, पिथौरागढ़ व चंपावत जनपदों में कम हुए 32 हजार मतदाताओं में से 19207 महिलाएं हैं। पौड़ी में 7585 महिलाएं और 4328 पुरूष मतदाता कम हुए हैं। इसी तरह उत्तरकाशी में 1094, चमोली में 11284, रूद्रप्रयाग में 2843, टिहरी में 2665, पौड़ी में 11913, पिथौरागढ़ में 1689 व चंपावत में 1689 मतदाता कम हुए हैं। सूची के अनुसार सबसे अधिक मतदाता 972943 देहरादून में व सबसे कम रूद्रप्रयाग में 144512 हैं।
इसके विपरीत पहाड़ के तीन जनपद अल्मोड़ा, नैनीताल व बागेश्वर में स्थिति अगल है। बागेश्वर में 2366, अल्मोड़ा में 6257 व नैनीताल में 3848 मतदाता बढ़े हैं। शेष तीन मैदानी जनपदों में सबसे अधिक मतदाता देहरादून में 9706 बढ़े हैं, यहां पुरूषों की संख्या 6226 व महिलाओं की संख्या 3480 है। जबकि हरिद्वार में 4114 व उधमसिंहनगर में 7450 वोटर अधिक हो गये हैं। राज्य निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार आसन्न लोकसभा चुनावों को देखते हुए मतदाता सूची का पुनरीक्षण कर दिया गया है।
अब तक 96 फीसद पहचान पत्र जारी कर दिये हैं तथा सूची में 95 फीसद लोगों के नाम के साथ उनका फोटो चस्पा कर दिया गया है। हरिद्वार, टिहरी व रूद्रप्रयाग में 99 फीसद पहचान पत्र बना दिये गये हैं।
पहाड़ के आकलन के लिए भले ही अभी 2001 की जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया जाता हो लेकिन चुनाव तैयारियों के ये आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं। पलायन व रोजगार जैसी विकराल समस्याएं ही अलग राज्य की मांग के बड़े कारण थे जो राज्य बनने के इन आठ सालों में भी अनुत्तरित ही हैं। शायद यही वजह है कि रोजगार की तलाश में देहरादून आकर बसने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।

umeshbani

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विकास पूरे उत्तरांचल मे हर श्रेत्रा मे बराबर होना चाहिय  भेदभाव या बोट बैंक की राजनीती   के तहत नही   होनी किया जाना चाहिय .
.आज़ादी के ६२ वर्षा के बाद भी देवभूमि उत्तरांचल के दुर्लभ पहाडी गाँवो मे आजतक बिजली पानी जेसी मूलभूत आवश्यकता  की पूर्ति नही  हुई है
उत्तरपदेश के  साथ रहते हुई तो शायद  उम्मीद  करनी भी बेमानी थी परन्तु  जब आज हमरा एक नया अलग राज्य बन गया है तब भी हम अगर इन मुलभुत आवश्कता से वंचित रह जाना तो ये गाँवो के साथ  ही उत्तरांचल का भी दुर्भाग्य होगा .
वोट  बैंक की राजनिति करने वालों का सही आयना होगा उत्तराखंड के कुमाओं  मे कई ऐसे गांव है जिन्होना अभी तक बिजली का बलब भी नही देखा होगा जहा मानव चाँद मे चला गया है   वह्नी  पानी के लिये  कई किमी पैदल चलाना पड़ता है
मै यह जानता हों की ये सब एकदम नही हो सकता परन्तु जब आज उत्तराखंड को असित्व मै आये ९ वरसा हो गए है विकास के नाम मै बस वोट मागते आरहे है
मै यह नही कहता की विकास नही हुआ मगर जो विकास की गति होनी चाहिय उतनी  नही है ,मै उन लोगों की बात कर रहा हूँ जिन्होना आज़ादी के ६२ वर्षों बाद भी बिजली और टीवी का मुह नही देखा है वहां कब होगा विकास ....?????
सरकारी विद्याला तो खोल दिया है सरकार नए मगर कब पुरा स्टाफ होगा वाहों ...???
कभी सरकार ने देखा की अच्छे शहर मे  या जहाँ  रोड बिजली तेल्फोने सब कुछ है वहां सरकारी  स्कुल इतने कम छात्र क्यों  है ....?
उत्तर है सिक्षा का स्तर .........
 परायमरी   खोल दिए रासन खीलाने का लोभ दे दिया फ़िर भी छात्र गायब है क्यों ..............
क्यों एक गरीब ब्यक्ति भी अपने बचे  का दाखिला सरकारी स्कुल मै नही कराना चाहता  क्यों.........?
जबाब है राशन  है अध्यापक नही ........... जहाँ अध्यापक नही होंगे वहां  शिक्षा का क्या  स्तर होगा ????..............
उत्तराखंड की जवानी बाद मै रोके पहले वहां  दुरलभ स्थानों तक अच्छी शिक्षा पहुंचानी होगी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Yesterday, I was watching a news on ETV Uttarakhand. There was flashing news. As per the new electoral list, the migration rate has increased in each hilly District of Uttarakhand. It is apparent that Govt of BJP and Congress have been failed to make the development there.

If I quote a example of own village, there is increase on this front.

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: पहाड़ से अभी भी पलायन हो रहा है। जी हां, इस बात की पुष्टि निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची कर रही है। एक बात और, इस पलायन पर अल्मोड़ा तथा बागेश्र्वर जिलों ने ब्रेक लगाया है। सूबे के पहाड़ी जिलों से लगातार पलायन हो रहा है। निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार मतदाता सूची इसकी गवाह है। सिर्फ तीन माह और दस दिन में मतदाताओं की संख्या में कई जिलों में कमी आई है। 20 सितंबर 08 से एक जनवरी-09 के बीच उत्तरकाशी जिले में 1054 वोटर कम हुए। चमोली में कम होने वाले वोटरों की संख्या 11284 है। रुद्रप्रयाग जिले में इस दौरान 2843 वोटर घटे। टिहरी जिले में भी इस दौरान 2665 और पौड़ी जिले में इस दौरान 11913 वोटर कम हो गए। पिथौरागढ़ जिले में कम होने वाले वोटरों की संख्या 1689 है। चंपावत जिले में भी इस दौरान 577 वोटर कम हो गए। पर्वतीय जिलों में अल्मोड़ा और बागेश्र्वर जिले ऐसे हैं, जहां वोटरों की संख्या बढ़ी है। अल्मोड़ा जिले में 6257 और बागेश्र्वर जिले में 2366 वोटर बढे़। इन दोनों जिलों की कोई विधानसभा सीट ऐसी नहंी है, जिसमें वोटर कम हुए हों। नैनीताल जिला भी आंशिक पर्वतीय और आंशिक मैदानी है। इस जिले में कुल वोटर 3848 बढ़े। नैनीताल की हल्द्वानी विधानसभा में 113 वोटर कम हुए हैं। जिले के अन्य सभी विधानसभा क्षेत्रों में वोटर बढ़े हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ तीन माह दस दिन में हरिद्वार की चार तथा देहरादून जिले की तीन विधानसभाओं में मतदाताओं की संख्या कम हुई है। हरिद्वार के भगवानपुर सीट पर 41, पिरानकलियर में 670, रुड़की में 183 और मंगलौर में 31 मतदाता कम हुए हैं। देहरादून जिले के चकराता में 471, राजपुर रोड में 1363 और देहरादून कैंट में 611 मतदाता कम हुए। कुल मिलाकर गढ़वाल के पर्वतीय जिलों में मतदाताओं की संख्या कम होने का स्तर काफी ऊंचा है। कुमाऊं के दो पर्वतीय और एक मैदानी जिले में मतदाता कम होने के स्थान पर बढे़ हैं। इस तरह पलायन के मामले में गढ़वाल मंडल सर्वाधिक प्रभावित है।
 

मदन मोहन भट्ट

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Though this post is continuing for last two years, I was fortunate to read this today only as I am a new member on this forum. 

I feel that road connectivity is the first and foremost factor.  As Uttarakhand is a HILL state, it requires roads for connecting each and every village/hamlet. 

Fellow members are concerned about the job oriented courses and small industries for people.  In fact, small co-operative societies should be formed by a group of villages for marketing of their agricultural/herbal products.  Suppose 10-15 nearby villages form a group, another 15-20 can form another. There can be a forum of these groups of societies. These societies can act like pressure groups on the political parties in future.  Since, people at the grass-root level will form these societies, each and every demand can be raised through them. Once the output from the jungles and cultivatory land is accummulated at certain places with the help of road connectivity, these societies can think on producing the end products out of them.  So, industries are obviously set up.  But, people have to come forward.  Even people living in plains (migrated ones) may suggest this to their native villagers.  Retired people may visit the villages and do necessary ground work for that.  Why do'nt we at Merapahad start convincing people.  Once we are socially united, development will be under our feet irrespective of the party in power. So, dear fellow members we have got our 'house' (state), we have to build our 'home'. 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhatt Ji,

I fully endorse your views on this crucial issue.

When BJP formed Govt second time in Uttarakhand and Mr B C Khanduri became the CM, everybody exepcted there will a big network of roads in whole uttarakhand as during NDA Govt, it is said that Khanduri Ji had done remarkable job in constructing the national highways etc.

But so far, i would Khanduri ji could not anything much in this regard as expected. Due to poor road connectivity and bad condition of road, it is not only discouraging the tourist to come in Uttarakhand but also mirgation has increased.

Whosoever posted in UK in Govt services wants to get his / her posting done in urban areas.

Election for LOk Sabha is in progress. Nobody Leader has these things in list. The same is condition of railway track also.


Though this post is continuing for last two years, I was fortunate to read this today only as I am a new member on this forum. 

I feel that road connectivity is the first and foremost factor.  As Uttarakhand is a HILL state, it requires roads for connecting each and every village/hamlet. 

Fellow members are concerned about the job oriented courses and small industries for people.  In fact, small co-operative societies should be formed by a group of villages for marketing of their agricultural/herbal products.  Suppose 10-15 nearby villages form a group, another 15-20 can form another. There can be a forum of these groups of societies. These societies can act like pressure groups on the political parties in future.  Since, people at the grass-root level will form these societies, each and every demand can be raised through them. Once the output from the jungles and cultivatory land is accummulated at certain places with the help of road connectivity, these societies can think on producing the end products out of them.  So, industries are obviously set up.  But, people have to come forward.  Even people living in plains (migrated ones) may suggest this to their native villagers.  Retired people may visit the villages and do necessary ground work for that.  Why do'nt we at Merapahad start convincing people.  Once we are socially united, development will be under our feet irrespective of the party in power. So, dear fellow members we have got our 'house' (state), we have to build our 'home'. 

Rajen

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समय आ गया है कि उत्तराखंड की सरकार पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए गंभीरता से सोचे और कुछ ठोस नीति तैयार करे जिससे कि युवाओं को वहीं पर रोजगार उपलब्ध हो सके. 

 

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