Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 57039 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I have just returned from my village. What i observe, the migration rate has just become double after formation of our State Uttarakhand.

Govt which claims of mitigating migration rate, is false. In my presence, atleast 10 families have moved in other state.

The scene is almost the same in all over area of UK.

I daily watch ETV Uttarakhand and see half an hour advertizement of UK Govt highlighting many achivements.

But the condition at ground level is different.

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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साथियों दुःख तो हर दिन होता है और होता आएगा.. तब तक जब तक की पहाड़ में पहाड़ के लोगो को रोजगार  ना मिल जाता ... मुख्य कारण  ही ये ही है पलायन का.. ये पलायन कैसे रोका जाय ये हम भी सोच रहे है और सरकार और हर एक उत्तराखण्ड के पहाड़ो में रह रहा वाहा का एक-एक निवासी.. इसके जिमेदार हम भी खुद है काफी हद तक.. ओ क्यों सायेद भली भाति जानते है..

इस पलायन के शिकार हम हुए है .. हम सरकार के धरातल पर हुए कार्य और किये जाने वाले कार्यो के बारे में बात करते है.. और जब भी सरकारे अपने द्वारा किये गए कार्यो को गिनती है तो .. हमे ओ सब हवाई लगती है.. एसे ही जैसे हम इस इन्टरनेट की दुनिया में हर वक़त करते रहते है और सायेद हमेशा करते ही रहेंगे... हम खुद की बात करे तो कितनी बार हम ने इसकी पहल की.. सायेद एक बार भी नहीं..

कल 29th nov 09 को हमने एक गोष्ठी.. की थी गढ़वाल भवन में और बाते हुए थी उत्तराखण्ड के ९ साल दशा और दिशा ..
दशा केसी  है हम भली भाति  जानते है.. लेकिन दिशा कैसी  हो ये भी जानते है .. अब ये दिशा कौन तय करेगा.. हम हमेशा.. सरकारों को ही रोकते और टोकते है.. लेकिन इसमें हमारा भी उतना ही हाथ है .. जितना राजनैतिक पार्टियों का.. लेकिन इस दिशा को भी हमें तय करना होगा.. ओ कैसे.. सायेद काफी कुछ चीज़े हमें अपने आप से सुरु करनी होगी.. और हमारा सोचने और करने का नजरिया बदलना होगा.. अब हमारा नजरिया कैसा हो ये भी हमें तय करना होगा.. ओ हो सकता है एक राजनेता के नजरिये से सोचे या करे.. या फिर.. एक मजदुर, एक business man, farmar, कोए और भी ..

लेकिन ये सबके लिए हमें खुद आगे आना होगा.. और हमें अपनी खुद की मानसिकता को बदलना  होगा..  सायेद बहुत कम लोग जानते है.. उतराखंड में N.G.O. राज सबसे ज्यादा चल रहा है. करीब ४२००० N.G.O. उत्तराखण्ड मे काम कर रही है.. लेकिन काम क्या हो रहा है हम भली भाति जानते है और उत्तराखण्ड के गाँव करीब १६००० है.. ये N.G.O. सरे के सरे किसके है ये भी हम भली बात जानते है.. N.G.O. की आड़ मे सारा का सारा पैसे का गमन हो रहा ही.. इसलिए अब इन हवाई बातो से कुछ नहीं होने वाला है..
अब एक ही  नारा एक काम.. होना चाहिए..

हिटो पहाड़ो की ओर,

और कुछ नहीं...

पंकज सिंह महर

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अब एक ही  नारा एक काम.. होना चाहिए..

हिटो पहाड़ो की ओर,

और कुछ नहीं...[/b]


लेकिन वहां पर खाओगे क्या? सरकार ने तुम्हारे लायक वहां पर क्या रख छोड़ा है, हल-बैल-खेती के लायक अब हम-आप रहे नहीं, शहर की हवा, बच्चों के भविष्य की फिक्र, बुजुर्गों की सेहत की फिक्र.......और भी न जाने क्या-क्या, संशाधन विहीन, सुविधाहीन पहाड में कैसे रह पाओगे? या तो तुम भी पहाड ही बन जाओ.....शांत...चुप्प, जैसा हो रहा है, उसे एकटक देखते रहो, उन्हीं चीजों की आदत डाल लो.....नहीं तो नहीं रह पाओगे पहाड़ में।

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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maharaz tabhi to kah raha hoon ki pahad mai rozgaar ke kya sadhan hai nahi to to phir kaise jutaye jar bahar ke logo ke liye waha per kafi kuch hai hamare liye kyon nahi..

jo log khaiti bhi kare to ek dhang ho ..

sawal yehi hai maharaz ki pahad ke logo ko chahe o engg ho ya dr.. ya phir sadaran pade likhe log ya phir..anpad unhe wahi kaise kaam milega...



अब एक ही  नारा एक काम.. होना चाहिए..

हिटो पहाड़ो की ओर,

और कुछ नहीं...[/b]


लेकिन वहां पर खाओगे क्या? सरकार ने तुम्हारे लायक वहां पर क्या रख छोड़ा है, हल-बैल-खेती के लायक अब हम-आप रहे नहीं, शहर की हवा, बच्चों के भविष्य की फिक्र, बुजुर्गों की सेहत की फिक्र.......और भी न जाने क्या-क्या, संशाधन विहीन, सुविधाहीन पहाड में कैसे रह पाओगे? या तो तुम भी पहाड ही बन जाओ.....शांत...चुप्प, जैसा हो रहा है, उसे एकटक देखते रहो, उन्हीं चीजों की आदत डाल लो.....नहीं तो नहीं रह पाओगे पहाड़ में।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think most of the people are migrating from hills are due to job and for better education of their children.

In bageshwar Distt, i saw a school where only one student was and the school has been now closed. This is due to migration.

This is a big challenge for UK Govt.

पंकज सिंह महर

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हमें एक बात अब समझ लेनी चाहिये कि सरकार के बस का कुछ नहीं है। पलायन अब पहाड़ की नियति बन रहा है, आंकड़ों को देखें तो गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। इसके मुख्य कारण हैं-
१- अच्छी शिक्षा की सुविधा न होना
२- अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
३- रोजगार के अवसर सुलभ न होना
मुख्य कारण रोजगार ही है, भारत सरकार और राज्य सरकारों की इस हेतु कई योजनायें हैं, लेकिन हमें इन योजनाओं के बारे में पता ही नहीं है। हमारे युवाओं को चाहिये सरकारी नौकरी या बाहर जाकर रोजी-रोटी की जुगाड़ के बजाय अपने स्तर पर स्थानीय संसाधनों के आधार पर स्वरोजगार को अपनायें।
जूस, जैम, अचार, नमकीन, मसाले आदि लघु गृह उद्योगों की स्थापना करें। अनेक योजनाओं में इसके लिये ऋण की सुविधा है, जिसमें सब्सिडी आदि की भी व्यवस्था है। अगर हम स्वरोजगार को अपनायेंगे तो निश्चित ही पहाड की नियति बन चुका पलायन रुकेगा।

यदि कोई युवा छोटा-मोटा गृह उद्योग लगाना चाहे तो वह अकेले इस काम को कर सकता है, मुर्गी पालन, मछली पालन, मौन पालन, दरी-चटाई, रस्सी आदि जैसे उद्योग आसानी से किये जा सकते हैं और इसके विपणन के लिये बहुत कुछ भी नहीं करना पड़ता है। यह सब चीजें आसानी से स्थानीय बाजारों में बिक सकती हैं।

जहां तक मंझले और बड़े उद्योग लगाने की बात है तो ८-१० युवाओं का समूह बनाकर सहकारिता के माध्यम से कार्य किया जा सकता है।

सरकार को भी चाहिये कि इन योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाये, न्याय पंचायत स्तर पर लोगों को जागरुक करे। ब्लाक विकास अधिकारी (BDO) और ग्राम सेवक और ग्राम प्रधान को भी टारगेट दिया जाय कि आपके गांव में कितने बेरोजगार हैं और उसमें से कितनों को आपने स्वरोजगार के लिये प्रेरित कर सहायता की तथा कितने उद्योग लगे।
जिन योजनाओं में भारी-भरकम फारमेल्टी की जरुरत है, उसे व्यवहारिक बनाया जाय। एक बेरोजगार आदमी से यदि हैसियत प्रमाण पत्र मांगा जायेगा, तो वह कहां से लायेगा। कई योजनाओं में जितना ऋण मांगा जाता है, उसके सापेक्ष हैसियत प्रमाण पत्र मांगा जाता है, जो कि बिल्कुल अव्यवहारिक है।

सुधीर चतुर्वेदी

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दिल मे एक दर्द बार - बार उठता रहता है की पहाड़ छुट गया | पहाड़ छुटने की सिर्फ एक वजह रोजगार हमारे पहाड़ो मे रोजगार ना के बराबर है | हमारे पहाड़ो मे रोजगार का साधन अभी तक जो है वो फ़ौज, कोई छोटी - मोटी दुकान , मास्टर, बाकि जो बचे वो चलो देल्ही या कोई और बड़ा शहर | ये तो संभव है नहीं की हर कोई सरकारी नौकरी ही करे और इतनी मात्र मे vacancy  भी नहीं होती है | उत्तराखंड मे रोजगार सिर्फ हरिद्वार (जो उत्तराखंड मे आना भी नहीं चाहता था और जिनको उत्तराखंड के राज्य आन्दोलन से कोई मतलब नहीं था ), रुद्रपुर और देहरादून बाकि उन जिलो का क्या होगा जिन्होने वास्तव मे पहाड़ के लिये, अपने बच्चो के लिये , आने वाली पीडी के लिये संघर्ष किया उस संघर्ष का फायदा क्या हुआ | उस समय भी लोग पहाड़ छोड़कर रोजगार के लिये जाते थे और आज भी बदला क्या ........... फायदा किसको हुआ सभी जानते है सिर्फ नेताओ को जो कभी विधायक भी नहीं बन सकते आज वो मंत्री है | राज्य के ९ साल बाद भी राजधानी का मुद्दा नहीं सुलझा पहाड़ की जनता पहाड़ की राजधानी पहाड़ मे चाहती है ( गैरसैण) लेकिन आज तक नहीं बनी क्यों ? बार - बार इस मामले को लटकाया जा रहा है क्यों ? हमारे पहाड़ का दुर्भाग्य ये है की वहा  कोई रोजगार नहीं लगाना नहीं चाहता सिर्फ सरकारी उदासीनता के कारन बहुत सारे रोजगार ऐशे होते है जो पहाड़ो मे जा सकते है | आज भी वहा कई गाँव ऐशे है जहा ना बिजली है ना शिक्षा कई गाँव तो ऐशे जो आज भी सडको के लिये तरश रहे है अगर वो लोग पलायन नहीं करंगे तो कौन  करेगा जो दून जैशे सहरों  मे रहते  है वो नहीं, पिस्ता है वो जो रहता है पहाड़ो मे क्योकी उसको अपने बच्चो के लिये एक अच्छा कल चाहिये जहा शिक्षा हो बिजली, पानी जैशी जरुरी चीजे हो, सही सडको का जाल हो , आने वाले कल के लिये रोजगार हो |
                जब उत्तराखंड आन्दोलन चला था तो सबकी आँखों  मे एक सपना था की हमारा अपना एक प्रदेश होगा जहा रोजगार, शिक्षा , स्वास्थ के अनुकूल साधन होंगे हमारे भावी पीडी को रोजगार के लिये बाहर नहीं जाना होगा लेकिन हुआ क्या , आज भी पहाड़ो के लोग को पहाड़  छोड़ना पड़ता है क्यों सिर्फ रोजी - रोटी के लिये अपने लिये और अपनों के लिये आखिर कब होगा पहाड़ो का विकाश ..............

सुधीर चतुर्वेदी

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How to Stop Migration From Uttarakhand - Join Uttarakhand Politics

Lalit Mohan Pandey

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यह एक गंभीर समस्या है, लगभग सभी members का ये मत है  की, this is because of lack of job opportunities. Lekin mujhe nahi lagta ki is samasya ko rok pana possible hai, dekhiye agar aap education qualities badate hai to jayada log engineer, MCA,MBA etc kar payenge, ab batao inko aap pahad mai kya job de payenge.
Jyada qualification means jyada expectation..jyada expecation means jo need more money, for more money you will have to go out... So its a chain...
Waise bhi is samasya se sirf uttarakhand hi nahi, or states yaha tak ki khud hamare desh paresan hai.. hamare yaha se jyada pade likhe log bahar deshu mai job kar rahe hai.
So what i think that we need to look into this problem differently...
Migration is of two kind.. 1) Migrating for job and 2) Migrating parmanently with whole family.
I think as far as migration for job is concern we should be ok with it,  क्युकी ये आज का सच है to explore the world, one has to take feet out of his home. Or success ke liye ye jaruri bhi hai. Agar koe capable hai to use ghar se बाध ke nahi rakha ja sakta hai. Lekin jo hamare yaha ki main problem hai wo hai migrating parmanently, Villages are empty, people are migrating from villages to district headquarts, from district headquarters to Haldwani/ Dehradoon or delhi or any other places. We can stop this/goverment can stop this by providing facilities like "Healthcare, Education, Water, Electricity etc", Iske liye jaruri hai ki pahad ka vikas ho, pahad tak pahuchna शुगम ho, connectivity asan ho. Aap example ke liye dekh lijiye--   Kerla se sabse jyada log almost 90% log dubai jate hai jobs ke liye, lekin wo sab ek age ke bad wapas ate hai, .... waha se laye paise ko apne state mai lagate hai, or aaj kerla indian states mai sabse Aage है..वो इसी लिए वापस आते है क्युकी वह पे education  की सुविधा है, healthcare की सुविधा है. "मेरा मानना है की Parmanent migration ko rokne ke liye sarkar ne jaldi hi koe kadam nahi utaye to aane wale time mai "uttarakhand sirf  kumaun mai haldwani ke bad or garwal mai dehradoon ke bad hi rah jayega" or hamara pyara pahad निर्जन ho jayega.

jagmohan singh jayara

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"पहाड़ से पलायन"

आजादी से पहले से जारी है,
आज भी वही लाचारी है,
क्योंकि, रोजगार की तलाश में,
भागते लोगों के लिए,
संपर्क सड़कों का बनना,
अपने उत्तराखंड में जारी है.

अतीत में कोसों  पैदल चलकर,
जाते थे प्रवासी,
 बाल बच्चों सहित,
अपने पैत्रिक गाँव,
बदल गए हैं  मन सभी के,
अब नहीं बढ़ते हैं पाँव.

कसूर उन अध्यापकों का भी है,
जिन्होंने हमें पहाड़ में पढाया,
पढ़े लिखे युवकों ने पहाड़ से,
पलायन का मन बनाया.

आज पहाड़ में  पढाई के लिए,
खुल गए हैं कई संस्थान,
पढेंगे, तकनिकी शिक्षा लेंगे,
फिर भागेंगे वे  भगवान.

अपने ही उसे छोड़कर,
दूर भाग रहे हैं भगवान,
देखो कितना मतलबी है,
आज हर इंसान.

जख नाक छ, सोनू निछ,
जख सोनू छ, निछ नाक,
शिक्षित छन पहाड़ मा,
पूँजी, उद्योग  की बस बात .


Poet: Jagmohan Singh Jayara "zigyansu"
(Right Reserved)
E-mail: j_jayara@yahoo.com

 

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