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उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट वरदान या अभिशाप ?

अभिशाप
21 (56.8%)
वरदान
10 (27%)
कह नहीं सकते
6 (16.2%)

Total Members Voted: 37

Voting closes: October 10, 2037, 04:59:09 PM

Author Topic: Hydro Projects In Uttarakhand - उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट  (Read 47591 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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परियोजनाएं बुझा रही कई घरों के चिराग

SOURCE DAINIK JAGRAN

नई टिहरी गढ़वाल। देश-दुनिया को रोशन करने की गरज से बनाई जा रही विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं के बाबत भले ही राज्य व केंद्र सरकार गौरवान्वित महसूस करती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि यह परियोजनाएं निर्माण के दौरान ही कई घरों के चिराग बुझा रही हैं।

 दरअसल, सुरक्षा मानकों का ध्यान न रखने से इन परियोजनाओं में कार्यरत मजदूरों पर जान का खतरा हर समय बना रहता है। खास बात यह है कि ठेकेदारी पर होने के कारण इनमें से अधिकांश मजदूरों का कोई ब्योरा श्रम विभाग के पास भी नहीं रहता। ऐसे में किसी दुर्घटना की स्थिति में इन मजदूरों को मुआवजा तो दूर, कोई पूछने तक की जहमत नहीं उठाता।

टिहरी बांध आज भले ही देश के नौ राज्यों को रोशन कर रहा हो, लेकिन इसकी कीमत कई लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। परियोजनाओं के निर्माण में लगे मजदूरों की जिंदगी हमेशा दांव पर रही है। खुद आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। केवल टिहरी बांध की ही बात की जाए, तो इस परियोजना के निर्माण के दौरान करीब पचास लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। ये मामले तो वे हैं, जो सामने आए, कई मामले तो अंदर ही निपटा लिए गए।

टिहरी बांध में सबसे दर्दनाक हादसा दो अगस्त 2004 को हुआ, जब टनल संख्या-तीन में निर्माण के दौरान रात को कार्य करते हुए मलबे के नीचे दबने से 29 मजदूरों की मौत हो गई, जबकि आठ लोग घायल हुए। हादसे के बाद यह भी आरोप लगाए गए कि मृतकों की संख्या कहीं अधिक थी, लेकिन कार्यदायी संस्थाओं ने इसे छुपा लिया। इससे स्थानीय लोगों को भी खास फर्क नहीं पड़ा, वजह कि अधिकतर मजदूर नेपाल व बिहार के रहने वाले थे।

Devbhoomi,Uttarakhand

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चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात

भले ही आज उत्तराखंड सरकार इस बात पर गौरवान्वित महसूस कर रही हो कि टिहरी बांध व ऐसी ही अन्य परियोजनाओं की बदौलत राज्य देश के बड़े हिस्से की विद्युत आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है कि यह खुशी लंबे समय तक टिकने वाली नहीं है। चौंकिए नहीं, सच्चाई यही है कि उत्तराखंड में बन चुके और बन रहे बांधों के भविष्य पर जन्म के साथ ही संकट के बादल भी मंडराने लगे हैं। दरअसल, ग्लोबल वार्मिग व पर्यावरणीय असंतुलन के चलते ग्लेशियर लगातार घटते जा रहे हैं।

 इसके अलावा वर्षा चक्र में आए परिवर्तन के कारण भूमिगत जलस्रोत भी रिचार्ज नहीं हो पा रहे हैं। इस सबके चलते हिमालय से निकलने वाली सदानीरा नदियों हिमालय से निकलने वाली नदियों के जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही है। चिंता की बात यह है कि जलस्तर में गिरावट की यह दर प्रतिवर्ष 10 क्यूमेक्स है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि सूबे में बन रहे बांध आखिर कब तक रोशनी देंगे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5919200.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We all know that if we have get something, we have to scarify something but it does not mean that we endanger life of our villagers just sake these Hydro Project.

Secondly, each ever of Uttarakhand has great mythological relation, if the water comes through these Dam Tunnel, it is a polluted water and would have less significance, spirituality point of view.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the news of electricity breakdown in Uttarakhand. Even during my recent visit to my native, there was electricity cut in evenging from 6 to 8 pm at the right time.

Surprise, this power cut in winter season ???

So what it the use of making dams in each and every river.

कहाँ का उर्जा प्रदेश, बिजली कट से हाय हाय 


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जी का जंजाल बनीं विद्युत कटौती
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चम्पावत: जनपद की विद्युत व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए जी का जंजाल बन चुकी है। बिना पूर्व सूचना के हर रोज हो रही कटौती के चलते व्यापारी वर्ग आर्थिक नुकसान झेलने को मजबूर है। विद्युत विभाग के अधिकारियों पर लोगों के विरोध प्रदर्शनों का भी असर नहीं पड़ रहा है।

कटौती की तगड़ी मार झेल रहे लोगों का कहना है कि जब मुख्यालय में ही ये हाल है तो दूरस्थ क्षेत्रों की स्थिति का स्वयं ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मंगलवार को दिन में चार घंटे बिजली गुल रही। लोगों की चेतावनी का भी विभागीय अधिकारियों पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी एडवोकेट जगदीश वर्मा ने कटौती के लिए सूबे की भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि नागरिकों को अपने ही राज्य में जरूरी सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार नदियों का जलस्तर कम होने के कारण विद्युत उत्पादन में कमी की बात कहकर लोगों को बहला रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार ने ऊर्जा प्रदेश को अंधेरा प्रदेश बना दिया है।

इधर विद्युत विभाग के अधिशासी अभियंता नवीन मिश्रा ने बताया कि पोलों में मरम्मत कार्य के चलते कुछ स्थानों पर शटडाउन लेना पड़ा। अलबत्ता कटौती ग्रिड से हो रही है।

Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5985806.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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देवसारी डैम: निर्माण कार्य रुकवाने पहुंचे ग्रामीण

देवाल (चमोली)। 252 मेगावाट देवसारी जलविद्युत परियोजना के विरोध में ब्लाक स्तरीय भू:स्वामी संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं ने कार्यदायी संस्था सतलुज पर ग्रामीणों को विश्वास में लिए बिना कार्य करने का आरोप लगाया है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि कंपनी मनमानी करेगी तो वृहद आंदोलन किया जाएगा।

संघर्ष समिति के संरक्षक मदन मिश्रा, राजेन्द्र कठैत, केडी मिश्रा, गणेश मिश्रा के नेतृत्व में मंगलवार सुबह भूस्वामी शिव मंदिर तून्यूडा में एकत्र हुए और जुलूस की शक्ल में सोडिंग गांव पहुंचे। यहां पर उन्होंने कंपनी की मनमर्जी से हो रहे सर्वे, ड्रीलिंग व सीमांकन को गलत ठहराते हुए कार्य रोकने की मांग की। डैम स्थल पर पहुंचे ग्रामीणों का कहना था कि कंपनी व प्रशासन की कथनी व करनी में फर्क स्पष्ट दिखायी देने लगा है और ग्रामीणों को बिना सूचना के कार्य प्रारंभ करना सरासर तानाशाही रवैये को जाहिर करता है।

ग्रामीणों ने मौके पर पहुंचे सतलुज प्रबंधक इंद्रजीत गुहा, परियोजना प्रमुख शंकर नारायण को जनप्रतिनिधियों ने बताया समय रहते कंपनी निर्माण कार्य में ग्रामीणों को जरूरी जानकारी नहीं देगी तो इसके भविष्य में गंभीर परिणाम होंगे। सोडिंग गांव के मोहन सिंह रावत ने बताया कि ग्रामीण लंबे समय से परियोजना का विरोध कर रहे हैं।

इसके बावजूद कंपनी ग्रामीणों को अंधेरे में रखे है। इस मौके पर पूर्व प्रमुख नंदा देवी, भाजपा के बृजमोहन शाह, केडी मिश्रा, पुष्कर बिष्ट, पूर्व प्रधान नरेन्द्र बिष्ट, व्यापार संघ के हरीश पांडे, हरीश मिश्रा, गणेश मिश्रा, राजेन्द्र प्रसाद, त्रिलोक सिंह, मोहन सिंह रावत, गोविन्द प्रसाद, नवीन चंद्र सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5985830.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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'Himalayan rivers are crucial for hill villages and plains'
« Reply #75 on: December 11, 2009, 10:27:52 AM »


Read the views of Social Activist "Sarala Behan" on Construction of Dams, who is also activist of Nandi Bachao Aandolan
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Radha Behan , a senior Gandhian social activist and chairperson of the Gandhi Peace Foundation, has been coordinating several recent efforts to protect Himalayan rivers. Here she speaks to Reshma Bharti about these efforts as well as how these are linked to villagers' survival struggle:


How were you drawn to the movements for protection of Himalayan rivers?

Kumaon region has been the main area of my work for several years. More recently we have been hearing complaints from women in these villages about how they can't obtain water for sheer survival needs. On the one hand, water in the Kosi river has reduced considerably and recent research has warned that if the present trend continues then the river could dry up. On the other hand, village women told us that hotels were taking away such huge quantities of water that the basic needs of villagers could not be met. Similarly, police were sent in to ensure that urban needs would be prioritised. For us the protection of rivers is also tied up with the water rights of villagers as we feel that their essential supplies should be protected as a priority. Protection of Himalayan rivers is crucial not just for the hill villages but also for the vast plains below.

What steps have villagers taken to protect rivers?

Protection of Himalayan rivers is closely related to the protection of forests. Our mahila mandals in the Kosi river basin have been active in protecting forests. Starting with themselves, they are now careful that collection of fuel and fodder do not damage the forests. They are determined to protect forests from fires. At the same time forest officials have to change their management practices so that broad leaf species of trees get their due place in the Himalayas. Those tree species that are better for soil and water conservation and also provide more and better fodder to villagers should be planted.

How did such local struggles evolve into a wider movement to save Himalayan rivers?

Villagers in Uttarakhand have suffered greatly due to the dam-construction work. You can't imagine the enormous scale of the construction of dams, tunnel-dams and other hydel projects in remote villages. These have been undertaken without any prior consultation with the affected people. Villagers and their environment have been devastated by the blasting of the hills, takeover of their farmland, pastures and forests as well as disruption of community life. When villagers and activists from various parts of Uttarakhand met and exchanged notes on the situation of their area, a fuller picture of the devastation emerged and it was to check this devastation that we started a statewide campaign for protection of rivers.

This Nadi Bachao Abhiyan (campaign to protect rivers) has taken the form of yatras in affected areas and also led to a high-level dialogue with government representatives. But it appears that very powerful vested interests - and a lot of corruption - are involved in these deals.

Source : http://timesofindia.indiatimes.com/articlelist/articleshow/5324661.cms

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Now situation has come to this extent .

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पंजाब से मिलेगी 75 मेगावाट बिजली
Dec 14, 02:28 am

देहरादून। उत्तराखंड पावर कारपोरेशन अगले तीन-चार महीनों में बिजली संकट से निपटने के पुख्ता इंतजाम करने में जुटा है। इस कड़ी में पंजाब को जनवरी माह में 75 मेगावाट बैंकिंग के लिए राजी करके निगम ने एक सफल प्रयास किया है। पंजाब से यह बिजली प्रदेश को मार्निग पीक-आवर्स को छोड़कर बाकी पूरे दिन मिलेगी। इससे अत्यधिक ठंड के कारण पैदा होने वाली बिजली किल्लत से राज्य को काफी राहत मिलने की उम्मीद जगी है।

बीती गर्मियों में नदियों का जलस्तर कम होने से पर्याप्त बिजली उत्पादन नहीं हो पाया। यही कारण है कि हर साल गर्मियों में अन्य राज्यों को बिजली देने वाले उत्तराखंड को इस साल खुद ही बिजली के लाले पड़े रहे। गर्मियों में अन्य राज्य को की जाने वाली बैंकिंग सर्दियों में किल्लत के वक्त प्रदेश के काम आती थी। लेकिन इस बार सर्दियों में रिटर्न बैंकिंग का विकल्प न होने से ऊर्जा निगम के माथे पर चिंता की लकीरें भी साफ नजर आ रही हैं। बहरहाल, निगम आने वाले तीन-चार महीने में बिजली की बढ़ी हुई डिमांड को पूरा करने के इंतजाम में जुटा है। फिलहाल, जहां दिल्ली, गुजरात व पश्चिम बंगाल से बैंकिंग की जा रही है, वहीं जनवरी माह के लिए भी निगम ने पंजाब को बैंकिंग के जरिए राजी कर लिया है। प्रबंध निदेशक जगमोहन लाल ने बताया कि जनवरी माह में मार्निग पीक आवर्स को छोड़कर बाकी समय पंजाब से 75 मेगावाट बिजली मिल सकेगी, जिससे राज्यवासियों को काफी राहत मिलने की उम्मीद है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6018786.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Again there is oppose for Hydro Project.
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रायशुमारी के साथ ही पंचेश्वर बांध का विरोध शुरू
Jan 25, 11:06 pm


झूलाघाट(पिथौरागढ़): पंचेश्वर बांध की रायशुमारी के बीच विरोध के स्वर भी मुखर होने लगे हैं। झूलाघाट कस्बे के लोगों ने सोमवार को बांध के विरोध में जोरदार प्रदर्शन किया और बांध किसी भी सूरत में नहीं बनने देने की घोषणा की। कस्बे के लोगों ने शीघ्र ही नेपाल के प्रभावितों के साथ मिलकर संयुक्त संघर्ष समिति गठित करने का निर्णय लिया है। मालूम हो भारत और नेपाल संयुक्त रुप से काली नदी में पंचेश्वर बांध बनाने की कार्रवाई कर रहे हैं। नेपाल ने प्रभावित होने वाले गांवों में रायशुमारी कर दी है। रायशुमारी शुरू होने की भनक लगते ही बांध निर्माण का विरोध भी शुरू हो गया है। सोमवार को झूलाघाट कस्बे के लोगों ने क्षेत्रीय युवक समिति के शंकर खड़ायत की अगुवाई में रैली निकालकर बांध के विरोध में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने एक सभा की जिसमें वक्ताओं ने कहा संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में इतने बड़े बांध का कोई औचित्य नहीं है। इस बांध के बनने से सैकड़ों गांव जलमग्न हो जायेंगे और हजारों लोग प्रभावित होंगे। वक्ताओं ने कहा कि सरकार बांध बनाने की जगह रोजगार के अवसर लोगों को मुहैया कराये। प्रदर्शनकारियों ने पंचेश्वर बांध को किसी भी हालत में न बनने देने की घोषणा की। बांध समर्थकों की प्रदर्शनकारियों ने कड़ी निन्दा की। प्रदर्शन के दौरान ही तय किया गया कि शीघ्र ही नेपाल के प्रभावितों के साथ बैठक कर बांध के विरोध के लिए एक संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया जायेगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6132604.html

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U'khand faces power shortage - IS uttarakhand Really a Power State.
« Reply #78 on: February 02, 2010, 10:37:25 AM »
Just go through this news. This is the situation winter and we are facing acute power shortage in UK what will be the scenario inSummer.

One way, there is spate of hydro projects being constructed in UK and some are functioning and in another hand situation is like this.

God save.

U'khand faces power shortage

Uttarakhand may have identified huge power potential (30,000-40,000 Mw) in the hill state. But during the winter season, the prospects of producing power look bleak, thanks to rapidly falling discharge in major rivers like the Yamuna, Tons and Sharda.

Except Ganga at Rishikesh, the discharge in most of the rivers has fallen rapidly by 30 to 50 per cent this year, creating a big shortfall of electricity in the state.

According to an official estimate, Uttarakhand is currently experiencing 10 million units of shortage, forcing the hill state to buy electricity from outside.

After the rapid fall in Yamuna, Tons and Sharda during the past two months, it is now the turn of Bhilangana river, a tributary of the Bhagirathi, to virtually disappear at Dhattu and other areas of Tehri district. Officials here said the river had now almost become a small stream, reducing the power capacity of two private projects – Bhilangana (22 Mw) and Bal Ganga (4 Mw) by 60 to 70 per cent.

Officials here said the water level in rivers had receded due to scanty rainfall as well as less snowfall. Environmentalists like Chipko leader Sunderlal Bahuguna blame global warming for the falling discharge.

The current discharge in the Yamuna at Vikasnagar is 7 to 8 cumax, which is 50 per cent less as compared with last year. Water in Tons has also reduced to 27 cumax from 36 cumax last year.

Similarly, Bhagirathi at Joshiyara in Uttarkashi district has receded by 30-35 per cent. Owing to various factors including various affects of the prolonged dry spell last year, power generation took a plunge, falling by 20 per cent compared with last year.

The power generation from Uttarakhand Jal Vidyut Nigam Limited (UJVNL), having installed capacity of 1,304 Mw, after touching 18 to 20 million units during the monsoon, is now hovering around 6 to 8 million units, mainly due to the dry season.

The Uttarakhand Power Corporation Limited (UPCL) has already urged the Centre to provide an additional 100 to 200 Mw power to meet the growing demand, especially in the wake of the ‘mahakumbh mela’ at Haridwar.

The demand of power in Uttarakhand has gone up to 25-26 million units from 17 million units per day this year due to rapid industrialisation, urbanisation and other such factors.

Source :http://www.business-standard.com/india/news/u%5Ckhand-faces-power-shortage/384310

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand Assembly adjourned following uproar over projects
« Reply #79 on: March 10, 2010, 10:21:28 AM »

But this oppose is for diferent issue. Something is fishy there.
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Uttarakhand Assembly adjourned following uproar over projects

Dehradun: The Uttarakhand assembly was adjourned on Tuesday following an uproar over the issue of allotment of 56 hydel projects to new companies with the Congress seeking a CBI probe.

 
Soon after Question Hour, Congress along with BSP members trooped into the well of the House raising slogans against the government over the issue.

Opposition members led by Leader of Opposition Harak Singh Rawat alleged widespread irregularities in the allotment process and sought CBI probe to unravel the truth. "Let there be a CBI inquiry to unearth the whole truth," Rawat said.

The uproar in the House took place despite Uttarakhand Chief Minister Ramesh Pokhariyal Nishank asserting there were no irregularities in the allotment process which was done in a transparent manner.

 Later, at a press conference, Rawat alleged "eight companies, whose credentials are not well known, are headed by five persons only. All these five persons managed to get projects worth 377 Mw of power which is very strange."

http://www.zeenews.com/news609807.html

 

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