मजे की बात तो यह है कि यह बांध हैं किस चीज के, पानी के या पैसे के। मुझे तो लगता है कि कुछ पूंजीपतियों और कुछ राजनेताओं के लिये यह पैसे के बांध हैं। जिनका उत्तराखण्ड और उसके सरोकारों से कुछ लेना-देना नहीं है।
बिजली बनाने के और भी कई स्रोत हैं, उन पर भी विचार किया जाना चाहिये, भूकम्प की दृष्टि से पूरा उत्तराखण्ड संवेदनशील है। राजधानी गैरसैंण ले जाने की बात आई तो कहा जाता है, वहां भूकम्प आ जायेगा, लेकिन इन बांधों के जरिये पानी रोक, सुरंग बनाने के लिये विस्फोट कर पहाड़ों की जड़ो को हिलाया जा रहा है, बांधों में पानी भरकर कच्चे पहाड़ॊं को पानी पिलाया जा रहा है। बांध की दीवार ही तो आप भूकम्परोधी बना पाओगे, बांध के नीचे की जमीन और किनारों की जमीन जो कच्ची है (मध्य हिमालय होने के कारण उत्तराखण्ड के पहाड़ अभी प्रारम्भिक अवस्था में हैं) उसे पानी पिला कर कच्चा किया जा रहा है। एक छोटा सा भूकम्प भी इनको भरभरा कर गिरने से क्या रोक पायेगा?
एक और महत्वपूर्ण चीज, भगवान न करे कि कभी ऐसा हो, अगर किसी दिन इन बांधों से कोई आपदा आ गई तो उसकी प्रतिपूर्ति के लिये क्या बांध निर्माण कम्पनियों की जिम्मेदारी फिक्स की गई है या नही?