"अगर उत्तराखंड का मुख्यमंत्री होता"
स्वपन में देखा मैंने,
बन गया उत्तराखंड का मुख्यमंत्री,
चारों ओर मुझे घेरे हुए थे,
प्रिय मित्र, मंत्री और संत्री.
कहा मैंने सुनो तुम,
उत्तराखंड के घर गाँव में जाओ,
पूछो लोगों से क्या कस्ट हैं आपके,
सही तस्वीर उकेरकर लाओ.
अफसरों को कहा मैंने,
जहाँ पोस्टिंग है वहीँ रहना,
दूर करो परेशानी जनता की,
ये आदेश है फिर मत कहना.
क्योंकि अफसर गाड़ी घुमाकर,
जिल्ला मुख्यालय से दून हैं आते,
मौज मनाकर पांच दिन के लिए,
फिर ड्यूटी पर लौट हैं जाते.
जनता को भी कहा मैंने,
अपने इलाके में चल रहे कार्यों पर,
पैनी नजर जरूर रखना,
दिखे कहीं दाल में काला,
मन में बिलकुल मत सहना.
सूचना दो और लो सरकार से,
आपका ही है सारा पैसा,
सही विकास हो आप सबका,
मेरा है सोचना ऐसा.
फल, फूल खूब उगाकर,
आप अपनी आय बढाओ,
वृक्ष लगाकर फैलाओ हरियाली,
समृधि का मूल मंत्र अपनाओ.
होगा भागीरथ प्रयास मेरा,
पहाड़ का पानी और जवानी,
पलायन करके नहीं जाये,
विकास ऐसा करना चाहता हूँ,
सभी प्रवासी उत्तराखंडी,
अपनी जड़ जमीन की तरफ लौट,
विकास का लाभ,
देवभूमि उत्तराखंड जन्मभूमि में पाए.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:१६.९.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ और पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)