Author Topic: In-Effective Land Acquistion Law Of Uttarakhand Govt. - बिक गया पहाड़  (Read 15350 times)

सुधीर चतुर्वेदी

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महराज ये पहाड़ का दुर्भाग्य है की अलग राज्य बनने के बाद भी पहाड़ो का वो विकाश नहीं हो पाया जिसका सपना हर उत्तराखंडी ने राज्य आन्दोलन के समय पर देखा था | वो चाहे राजधानी का मुद्दा हो या परिसीमन करके पहाड़ की सीटो को कम करना | आप कभी हल्द्वानी - भीमताल होते हुये यात्रा करो  तो आप को पता चल जायेगा की मुक्तेश्वर , धारी, पहाड़ पानी , पदमपुरी  और उसकी आश पाश की जगह मे जो बंगले है वो किनके है शायद वो बाहर के लोगो के है जिनको गर्मियों मे पहाड़ घूमना होगा और वहा पे  सेव  , नासपाती के बहुत पेड होते है बंगले के साथ - साथ वो भी हटते जा रहे है | एक कोशिश ऐशी होनी चाहिये की पहाड़ की सुन्दरता बरक़रार रहे और हमारा पहाड़ बचा रहे |
जय भारत ................................................ जय उत्तराखंड
   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महराज ये पहाड़ का दुर्भाग्य है की अलग राज्य बनने के बाद भी पहाड़ो का वो विकाश नहीं हो पाया जिसका सपना हर उत्तराखंडी ने राज्य आन्दोलन के समय पर देखा था | वो चाहे राजधानी का मुद्दा हो या परिसीमन करके पहाड़ की सीटो को कम करना | आप कभी हल्द्वानी - भीमताल होते हुये यात्रा करो  तो आप को पता चल जायेगा की मुक्तेश्वर , धारी, पहाड़ पानी , पदमपुरी  और उसकी आश पाश की जगह मे जो बंगले है वो किनके है शायद वो बाहर के लोगो के है जिनको गर्मियों मे पहाड़ घूमना होगा और वहा पे  सेव  , नासपाती के बहुत पेड होते है बंगले के साथ - साथ वो भी हटते जा रहे है | एक कोशिश ऐशी होनी चाहिये की पहाड़ की सुन्दरता बरक़रार रहे और हमारा पहाड़ बचा रहे |
जय भारत ................................................ जय उत्तराखंड
   

This is very True Sudhir Ji.

Same is the condition in Bhimtal, Almora, Mussorie and other parts of Uttarakhand and people from pahad are still flying from hills to plane areas.

This is really very unfortunate that State Govt is just doing nothing in this regard. 

उत्तराखंड में भू माफियाओ का राज है, तस्करों ने जंगले काट के बराबर कर दिए है! उत्तराखंड राज्य की अस्थायी राजधानी देहरादून जरुर है लेकिन असली उत्तराखंड राज्य शुरू होता है पहाडो में!

हमारे नेताओ को क्या लेना देना अपनी मिटटी से!  इनके तो करोडो के महल देहरादून एव हल्द्वानी आदि जगहों पर है!


Devbhoomi,Uttarakhand

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पहाड़ कभी बिकता नहीं है और न ही कभी बिकेगा,बिक हाय है तो वो कुकर्मी लोग जिन्गोने इस पहाड़ के साथ गद्दारी की है !

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Pahad is sold. Corruption on peak.

No proper land acqusition is there.

Mahi Mehta

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I agree. .

Nobody is there to take care of pahaad.

Thul Nantin

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Every govt makes its version of the act, not for the common man but for a select few.
Hoards of businessmen and builders from UP and other states are flocking to UK, causing steep rise in land price, making it hard for a humble pahadi to build a decent house in his own state.   
Now Congress Govt. wants its own share I believe:

"Land Acquisition Act, housing policy soon
Tribune News Service

Dehradun, July 30
To expedite land acquisition and overcome the shortage of houses in Uttarakhand, the government will soon come up with its own Land Acquisition Act and a housing policy. "The Land Acquisition Act of Uttarakhand will be framed in such a manner that it is beneficial for land owners, including farmers. We will also frame an investor-friendly policy to address the shortage of houses so that the housing needs of all sections of the society are met," said Chief Minister Vijay Bahuguna, while speaking with mediapersons today during the evaluation meeting of the Housing and Forest Department.

Uttarakhand is facing a shortage of around 1 lakh-8 lakh houses. The housing policy will be discussed on September 15."


Why can't article 370 in parts be applied to uttarakhand as it is applied in Himanchal Pradesh and some north eastern  states.
That may be because our Netas never pressed for it as it will hamper their own Developement.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड सरकार के जमीन खरीद कानून को हरी झंडी

जमीन खरीद की सीमा तय करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को बड़ी राहत प्रदान की है।

राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार कर दिया है, जिसमें भूमि खरीदने की सीमा तय करने के कानून को निरस्त कर दिया गया था।

राज्य सरकार ने उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी उन्मूलन अधिनियम में धारा-154 (3,4,5), 129(ब), 152(अ) को शामिल किया था। इसमें यह साफ किया गया था कि 12 सितंबर, 2003 तक जिन लोगों के पास राज्य में जमीन है, वह 12.5 एकड़ तक जमीन खरीद सकते हैं।

मगर जिनके पास जमीन नहीं है, वह इस तिथि के बाद 250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते हैं।

इससे ज्यादा जमीन खरीदने के लिए राज्य सरकार से इजाजत लेने का प्रावधान किया गया है। हाईकोर्ट ने इसी प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जिसे अब सर्वोच्च अदालत ने हरी झंडी प्रदान कर दी।

जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता रचना श्रीवास्तव की दलीलों से सहमति जताते हुए राज्य सरकार की ओर से बनाए गए कानून को निरस्त करने वाले नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया।

अधिवक्ता ने तर्क दिया कि कृषि भूमि की कमी के चलते प्रदेश सरकार ने किसी भी बिल्डर, व्यवसायी या उद्योगपति को असीमित जमीन की खरीद पर रोक लगाने के लिए अधिनियम में संशोधन किया था।

इसी वजह से राज्य सरकार की ओर से अधिनियम में संशोधन कर जमीन खरीदने की सीमा तय कर दी गई थी। मगर हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार के उन पक्षों का ध्यान नहीं रखा, जो सुरक्षा और कृषि भूमि को बचाने के लिए उठाए गए।

याद रहे कि राज्य सरकार की याचिका पर गत वर्ष अक्टूबर में शीर्षस्थ अदालत ने प्रतिपक्ष सर्वेश शर्मा व अन्य को नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।

सर्वोच्च अदालत ने राज्य की अधिवक्ता के उस तर्क से भी सहमति जताई, जिसमें कहा गया कि प्रदेश में 12 प्रतिशत ही कृषि भूमि है, जिसकी अनैतिक खरीद को रोकने के लिए यह कानून लाया गया था। राज्य की सीमाएं चीन और नेपाल से मिलती हैं।

अधिनियम में वर्ष 2003 में संशोधन करने का एक प्रायोजन यह भी था कि देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा अनैतिक तरीके से खरीदी जा रही कृषि भूमि से प्रभावित न हो क्योंकि चीन या नेपाल के किसी नागरिक की ओर से किसी तरीके से असीमित तौर पर जमीनी खरीदी जाती है तो सीमा के असुरक्षित होने की संभावना भी बढ़ जाती है। लेकिन हाईकोर्ट ने इन आधारों और तथ्यों पर गौर नहीं किया।

हाईकोर्ट ने सर्वेश व अन्य की ओर से दायर याचिका पर राज्य सरकार की ओर से अधिनियम में किए गए संशोधन को समानता के अधिकार (अनुच्छेद-14) के उल्लंघन के आधार पर निरस्त किया था।

हाईकोर्ट का कहना था कि जिसके पास राज्य में जमीन है, उसे 12.5 एकड़ जमीन खरीदने की इजाजत है और जिसके पास जमीन नहीं उसे महज 250 स्क्वायर मीटर जमीन खरीदने का ही हक है। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।http://www.amarujala.com/news/samachar/national/uttarakhand-government-land-purchase-act-approval/

 

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