नियम तो काफी सख्त बनाये गये हैं, लेकिन इनका इमप्लीमेंट नहीं हो पा रहा है। आप किसी भी हिल-स्टेशन को देखिये वहां पर जो आलीशान कोठियां हैं, वे सब बाहरी पूंजीपतियों की हैं। देहरादून और मसूरी में ही देखा जाय तो देश के बड़े-बडे़ पूंजीपतियों के यहां पर फार्म हाउस हैं। नियम और कानून तो मैं समझता हूं कि हाड़-तोड़ मेहनत कर १ बीघा या ७-८ बिसवा जमीन लेने वाले के लिये ही रह गये। क्योंकि इस एक्ट के लागू होने के बाद भी फेक्ट यही है कि आज भी बाहरी पूंजीपति ५०-६० बीघा जमीन खरीद रहा है। जब कि एक्ट में प्रावधान है कि २५० वर्ग मीटर से अधिक कृषि योग्य भूमि वही खरीद सकता है, जिसके पास उत्तराखण्ड में पहले से कृषि योग्य भूमि हो और वह मूल निवासी हो।