Poll

क्या उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में वहां उपलब्ध कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगने चाहिये

हां
33 (86.8%)
नहीं
2 (5.3%)
पता नहीं
3 (7.9%)

Total Members Voted: 38

Author Topic: Industry In Hills - क्या पहाड़ों में भी उद्योग लगने चाहिये?  (Read 21506 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
साथियो,
      इस टोपिक के अन्तर्गत हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्या पहाड़ों में भी वहां उपलब्ध कच्चे माल पर आधारित एवं अन्य उद्योग खुलने चाहिये।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
बिल्कुल लगने चाहिये, पहाड़ों में कई जगहों पर कई प्रकार का कच्चा माल उपलब्ध है, उससे संबंधित उद्योग वहीं पर स्थापित किये जाने चाहिये, ताकि उस स्थान के लोगों को उस उद्योग का लाभ मिल सके। जैसे पिथौरागढ़ और बागेश्वर जनपद में खड़िया प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, लेकिन वहां से कच्चा माल बोरों में भरकर हल्द्वानी या टनकपुर की फैक्ट्रियों में भेजा जाता है, यदि उससे संबंधित टैल्कम पाऊडर या अन्य इंड्र्स्टी वहां पर स्थापित की जाये तो निश्चित रुप से वहां के स्थानीय बेरोजगारों को इसका लाभ मिलेगा और प्रदेश के राजस्व में भी इजाफा होगा, अगर हमारे यहां इंड्रस्ट्री लगेगी तो वह यहीं पैक होकर अन्य राज्यों को जायेगा, जिससे कर के रुप में उत्तराखण्ड के राजस्व में भी बढोत्तरी होगी।
     इसी प्रकार से धारचूला, मुनस्यारी और सीमान्त चमोली में वहां के स्थानीय निवासी भेड़ आदि का पालन करते हैं, वहां पर वूलन इंड्रस्ट्री लगाई जा सकती है। अगर उत्तराखण्ड में कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर उद्योग स्थापित किये जांय तो निश्चित रुप से इसी प्रदेश की जनता को रोजगार के साथ-साथ शुद्ध लाभ भी मिलेगा और राज्य के राजस्व में भी वृद्धि होगी।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पहाड़ी जिलों से उद्यमियों के कन्नी काटने को लेकर उत्तराखंड सरकार का चिंतित होना लाजिमी है। यहां औद्योगिकीकरण का सीधा ताल्लुक पलायन से जुड़ा हुआ है। पर्वतीय क्षेत्र में पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा था, वजह रोजी के अवसरों का न के बराबर होना है। ऐसे में पहाड़ों में उद्योगों को ले जाने के लिए सरकार का एक और कदम बढ़ाना निश्चित तौर पर अच्छी पहल है। अवस्थापना सुविधाएं जोड़ने के लिए बगैर किसी देरी के कार्यवाही शुरू कर सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि पहाड़ में औद्योगिकीकरण उसकी प्राथमिकता में शुमार है। ऐसा नहीं कि अभी तक सरकार बेफिक्र दिखी, लेकिन अपेक्षित प्रगति सामने नहीं आई। इस सच्चाई को स्वीकारने में सरकार को कतई संकोच नहीं होना चाहिए। तेरह जिलों वाले छोटे से उत्तराखंड में हरिद्वार और देहरादून को छोड़ दें तो बाकी जिलों में उद्योग धंधे लगभग चौपट हैं। केंद्रीय औद्योगिक पैकेज का भी यहां के पहाड़ी इलाकों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला। इसको देखते हुए गुजरे साल सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए अलग से प्रोत्साहन नीति घोषित की, लेकिन इसका भी बहुत अधिक फायदा अभी तक नहीं दिखा। कुछेक जिलों में पूंजी निवेश के प्रस्ताव सरकार के पास जरूर आए, पर उद्यमियों की बेरुखी के कारण यह कागजों से आगे नहीं सरके। असल में अवस्थापना सुविधाओं की कमी और मजबूत विपणन व्यवस्था न होना इसका बड़ा कारण रहा है। ऐसे में राज्य सरकार की इंडस्टि्रयल लैंड बैंक बनाने की पहल को सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र तथा पूंंजी निवेश के मानकों का शिथिलीकरण करने का इरादा जाहिर किया है। ऐसे में दो हेक्टेयर भूमि भी इस श्रेणी में आ सकेगी और पहाड़ों पर पांच करोड़ के प्रोजेक्ट भी मेगा प्रोजेक्ट के दायरे में आ जाएंगे। इन बैरियर के हटने से औद्योगिकीकरण की राह काफी हद तक आसान होगी। सरकार को सिर्फ नीति बनाकर पल्ला नहीं झाड़ना होगा, बल्कि निवेशकों को पहाड़ों में उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उद्योग स्थापना की औपचारिकताओं के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाने से निवेशक राहत महसूस करेंगे।
 

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
अगर पहाड़ों में वहां पर उपलब्ध संसाधन आधारित उद्योग लग जांय तो निश्चित रुप से पलायन, जो आज उत्तराखण्ड की प्रमुख समस्या और दर्द है, वह भी रुकेगा। क्योंकि जो आदमी काम की तलाश में मुंबई और दिल्ली में भटकता है और अक्सर भांडमजुवा बनकर अपनी आजीविका चला रहा है, जब उसे अपने ही घर में रोजगार मिल जायेगा,. तो वह भटकने क्यों जायेगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Mahar da,

This will be a welcome step if some kinds of small industries are set-up there. This can be very useful in stopping mirgration and would definitely generate some kinds of employment.

But we must be cautious on our environment also. Anyway this is thought, the dream of this projects seems to be very far..

अगर पहाड़ों में वहां पर उपलब्ध संसाधन आधारित उद्योग लग जांय तो निश्चित रुप से पलायन, जो आज उत्तराखण्ड की प्रमुख समस्या और दर्द है, वह भी रुकेगा। क्योंकि जो आदमी काम की तलाश में मुंबई और दिल्ली में भटकता है और अक्सर भांडमजुवा बनकर अपनी आजीविका चला रहा है, जब उसे अपने ही घर में रोजगार मिल जायेगा,. तो वह भटकने क्यों जायेगा।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
इसके अलावा बागेश्वर जनपद में ताम्र उद्योग पहले से ही लगा है, अगर आज उसको वर्तमान की टेक्नोलाजी से जोड़कर और विकसित किया जाय तो अच्छे परिणाम ही सामने आयेंगे।
    इसके अतिरिक्त पहाड़ में बांस, रिंगाल तथा अन्य पेडों से उपलब्ध लकड़ी से काष्ठ आधारित उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं। यह ध्यान रखा जाय कि पहाड़ों में स्थानीय कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगाये जांय, ऎसा भी नहीं कि हम टाटा, ब्रिटानिया को बागेश्वर, पिथौरागढ़ में बुलाये और सब्सिडी लेने के बाद वह अधर में हमें छोड़ दें। लघु उद्योग लगाये जांय, स्थानीय कच्चे माल का प्रोडक्ट बनाकर ही राज्य से बाहर जाय, इस सोच से उद्योग लगाये जाने चाहिये।

      पहाड़ों में जो अरबो टन माल्टा, नारंगी और दाड़िम आदि फल सड़ जाता है या बन्दरों के हाथ लगता है, उसे प्रिजर्व कर जूस बनाकर मार्केट में उतारा जाय, इसके लिये सरकार ग्रामीणों को प्रशिक्षित कर उन्हें उद्योग लगाने के लिये मशीनें लोन पर सब्सिडी देकर उपलब्ध कराये और इससे प्राप्त आय का एक हिस्सा गांव के विकास के लिये भी रखा जाय। इससे हम गांवों को स्वालंबी, आत्मनिर्भर और आर्थिक रुप से संपन्न बना पायेंगे। जिस दिन हमारे गांव मजबूत हो जायेंगे, उस दिन राज्य अपने आप ही मजबूत हो जायेगा और जब राज्य मजबूत होगा तो देश भी कहीं न कहीं मजबूत होगा।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
आज हमारे पहाड़ों पर चीड़ के लाखों पेड़ लगे है लेकिन उनसे निकलने वाले लीसे का उचित दोहन नहीं हो पाता है। लीसे पर आधारित उद्योग जगह_जगह लगाये जांय और राज्य की निर्माणदायी संस्थायें यथा- लोक निर्माण विभाग आदि, जो डामरीकरण का कार्य करते हैं, उनके लिये यह प्रोविजन कर दिया जाय कि वे इसी कम्पनी से डामर खरीदें। लीसे पर आधारित डामर बनाने और तारपीन तेल के कई उद्योग लगाये जा सकते हैं।
       इसमें भी सहकारिता के माध्यम से गांवों को जोड़ा जाय, जिसमें ग्रामवासी लीसा कलेक्ट कर कम्पनी तक पहुंचाये और इससे भी उनकी आमदनी होगी।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पर्यटन उद्योग को भी सहकारिता के माध्यम से गांवों को जोड़ा जाय, सरकार सब्सिडी देकर गांवों में रिसोर्ट खुलवा दे और ग्रामवासी आपसी साझेदारी से उसे चलायें, कुमाऊ और गढ़वाल मंडल विकास निगम को यह जिम्मा दे दिया जाय कि वह पर्यटकों को इन रिसोर्ट तक लाये.......इससे गांव के लोगों को गांव में ही काम मिल जायेगा।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
नहीं मिला पहाड़ पर बड़े उद्योग का प्रस्ताव

देहरादून, जागरण ब्यूरो: उद्यम विस्तार की दृष्टि से विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति-08 अभी बड़े व मध्यम उद्योगों में आकर्षण कायम नहीं कर सकी है। नौ महीनों में राज्य को मिले 194 प्रस्तावों में से बड़ा उद्यम एक भी नहीं है। राज्य में औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े पर्वतीय जिले में विशेष औद्योगिक नीति लागू की गई। इसके तहत दूरवर्ती पर्वतीय जिले पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग,चमोलीव चंपावत को ए श्रेणी में रखा गया है। ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहराून व नैनीताल के मैदानी क्षेत्र को छोड़कर छह जिले बी श्रेणी में रखे गए हैं। ए श्रेणी के मुकाबले बी श्रेणी के जिले में उत्तराखंड मूल के उद्यमियों के लिए अतिरिक्त छूट व वित्तीय प्रोत्साहन की सुविधाएं हैं। मैन्युफैक्चरिंग की अधिकतम 25 लाख तक पूंजी निवेश वाली इकाई को माइक्रो, इससे ऊपर पांच करोड़ तक लघु और 10 करोड़ तक की इकाई को मध्यम उद्यम का दर्जा दिया गया है। सर्विस क्षेत्र की इकाई को माइक्रो, लघु व मध्यम में निवेश की सीमा क्रमश: 10 लाख, दो करोड़ व पांच करोड़ है। विभाग को 31 दिसंबर तक मिले 194 प्रस्तावों में 113 मैन्युफैक्चरिंग व 81 सर्विस सेक्टर के हैं। तीन प्रस्ताव मध्यम उद्यम के हैं पर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट नहीं कोई नहीं है। तीनों होटल के प्रस्ताव हैं। होटल के अलावा इन प्रस्तावों में रेस्टोरेंट, अनाज पिसाई, मिल्क, जूस प्रोसेसिंग, ब्रेकरी, स्टोन क्रशर, गार्मेट, आफसेट प्रिंटिंग, इको टुरिज्म, इलेक्ट्रानिक, इंजीनियरिंग, आयुर्वेद आदि से संबंधित हैं। 113 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में से 86 माइक्रो व 27 लघु हैं। इन सभी में आरंभिक पूंजी निवेश आंकलन 22.18 करोड़ का है। इनमें उत्पादन होने पर 1100 को सीधे और परोक्ष रोजगार मिलने की संभावना है। सर्विस क्षेत्र के 81 प्रस्तावों में तीन मध्यम, 57 माइक्रो व 21 लघु इकाइयां हैं। इनमें 30.07 करोड़ के निवेश और 619 को रोजगार मिलने की संभावना है।
[/i]
 

shailesh

  • MeraPahad Team
  • Jr. Member
  • *****
  • Posts: 51
  • Karma: +5/-0
It is inevitable truth that migration can not be stopped . it is increasing more and more, not only in uttarakhand but also other parts of  india. more and more people are migrating from rural areas to cities which has good infrastructure, employment opportunities, health and medical facilities etc...

In the process of urbanization we have to understand the pseudo urbanisation also (like cities without proper opportunities, industrial set up, employment, and infrastructure . our district headquarters like almora, pauri.... haldwani. and planes of uttarakhand are developing as a big cities but without proper job opportunities, infrastructure and planning...)

The only way to stop migration in hills is to increase urbanisation in hills. Establishing Capital in Gairsain can be a good step for the urbanisation in hills. The recent report presented in world economic forum, 2009 in Davos , which i have pasted below give a insight about migration and urbanisation. they have also highlighted the point "The next 20 years will see the greatest rural-urban migration in history: it is time to learn from global best practice and put the lessons to work." . it was true in past also the urban places in uttarakhand developed by kings, britishers.. were more developed than other places and also had more opportunities than other places.

we can also get more and more economic and industrial issues from this site http://www.weforum.org/en and put here for discussion in context of uttarakhand.

Urbanization: The Unstoppable Global Trend

• Steve Dobbs • Laila Iskandar • Wolfgang Lehmacher
• Mauricio Macri • Toshiko Mori
Moderated by • Lawrence Bloom
Friday 30 January

More than half the world’s population now lives in cities. The consensus among participants was that the urbanization trend is indeed unstoppable. From an economic perspective, cities are very efficient and generate a disproportionate amount of GDP. But the downside is growing pressure on the urban environment and infrastructure. The main points addressed include setting policy priorities, engaging communities, harnessing public-private partnerships and using the environment as an entry point for urban policy.

• Urban planning must focus on ensuring a sustainable quality of life for urban dwellers.

• One city government takes a two-pronged approach: making the city economically vibrant by encouraging new knowledge industries, while ensuring greater balance through improved transportation and environmental stewardship. Efficient transportation is essential to prevent cars making further incursions into limited urban space. To this end, there are plans to extend the reach of the subway system by integrating it with overland transport (which is much cheaper to build). It also plans to reduce the numbers of people moving in and out each day by building new communities on the outskirts of the city and offering tax incentives to people who walk to work.

• One panellist stated that efforts in France to decongest Paris have not worked, as people remain drawn to what they think are better services, greater opportunities and “more buzz”. Germany, in contrast, does not have the same level of urban concentration (with its attendant problems).

• Official statistics, according to another panellist, understate the size of cities because they do not capture daily commuters or many migrants. The panellist recommended addressing urban policy through the lens of young people, who make up the vast majority of most cities in the developing world and a significant proportion in industrialized countries.

• A paradigm shift towards “education infrastructure” was proposed; focusing on youth and education would provide a long-term pay-off for cities and their managers.

• In addition to knowledge, community engagement was seen as a key driver of urban policy. One of the panellists said that the biggest pay-off would come from capacitating people to play a bigger role in determining the shape of the cities of tomorrow.

• Poor people are the majority in all developing world cities and have tremendous knowledge that must be harnessed by involving their representatives in a negotiating process with city authorities. They must be seen as both consumers of public services and producers of goods and services.

• If conditions in cities improve, they will become increasingly attractive to people living in peripheral or rural areas – giving rise to even greater pressures.

• Environmental degradation in cities has triggered a number of replicable initiatives designed to serve cities better while cutting down on pollution and congestion. These include the public bicycle scheme introduced in Paris that provides urban transportation while paying for itself through ads on the bikes. This is an example of a public-private partnership that can be emulated in many sectors and locations. However, developing country participants said that opportunities for such partnerships are limited by poor and corrupt government in many places.

• Online shopping reduces the number of people on the roads, and smart delivery (delivery accounts for 20% of traffic in cities) reduces pollution and costs. “Smart” approaches include de-speeding (for those not in a hurry) and night-time bulk delivery with onward passage by foot or by electric vehicles.

• The next 20 years will see the greatest rural-urban migration in history: it is time to learn from global best practice and put the lessons to work.

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22