देहरादून, जागरण ब्यूरो: पहाड़ी जिलों में औद्योगिक विकास को उठाए गए कदमों का कोई खास असर नहीं दिखाई दिया है। पिछले वित्तीय वर्ष में पर्वतीय क्षेत्र में महज बीस लाख रुपये का ही निवेश हो पाया, जबकि विभाग को प्रस्ताव करीब 350 करोड़ के मिले थे। तमाम रियायतों के बावजूद उद्यमी पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं हैं। अब सरकार इस मामले में फिर नई पहल पर विचार कर रही है। केंद्र से मिले औद्योगिक पैकेज का लाभ राज्य को आधा-अधूरा ही मिल पाया है। मैदानी जिलों में स्थापित उद्योगों में से अनेक पलायन करने की तैयारी में हैं, जबकि पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक घराने निवेश करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। पहाड़ी जिलों में औद्योगिक विकास को गति देने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने विशेष औद्योगिक नीति लागू की थी। इस नीति का भी अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2008-09 में महज बीस लाख रुपये का ही निवेश हो सका है। हालांकि शुरू में इस नीति के अंतर्गत निवेशकों ने करीब 350 करोड़ के प्रस्ताव भेजे पर बाद में अधिकतर निवेशक पीछे हट गए। सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने पर अवस्थापना विकास, उद्यमिता, कौशल विकास, विशेष ब्याज योजना, परिवहन छूट तथा आईएसआई प्रमाणीकरण समेत अनेक मामलों में विशेष छूट का प्रावधान किया। इतना ही नहीं, बल्कि चिन्हित उद्योगों को विद्युत बिलों में छूट देने की व्यवस्था भी की गई। सीमांत पर्वतीय जनपदों व अन्य पर्वतीय क्षेत्र को अलग-अलग श्रेणी में विभाजित करते हुए सुविधाओं को भी बढ़ाया। ए श्रेणी में शामिल जिले पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, चंपावत व रुद्रप्रयाग में उद्यम स्थापित करने वालों को अपेक्षाकृत कुछ विशेष सुविधाएं भी देने का प्रावधान किया गया। बी श्रेणी के जिलों पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर तथा देहरादून व नैनीताल के पर्वतीय विकासखंडों के लिए अलग व्यवस्था की गई। पर्वतीय जनपदों में औद्योगिक विकास की संभावनाओं, स्थापित होने वाले संभावित उद्योगों, विक्रय तथा मानव संसाधन की उपलब्धता पर भी विभाग ने होमवर्क किया। इसके बाद भी पर्वतीय जनपदों में औद्योगिक विकास को गति नहीं मिल पाई। अब सरकार फिर नई पहल करने जा रही है। इसके तहत निवेशकों को अधिक छूट देने की तैयारी है। पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक विकास को भी सरकार ने शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल किया है।