उत्तराखंड के पास ऐसे बहुत से संसाधन ह जिनकी मदद से उत्तराखंड एक आत्मनिर्भर राज्य बन सकता है. लेकिन उसके लिए आवश्यक जन जागरूकता और राजनेतिक इच्छाशक्ति कही नज़र नहीं आती है. कुछ क्षेत्रो के लोग आत्मनिर्भर तो हो रहे ह किन्तु वह सीमित है.
जहा तक एकता का प्रश्न ह तो आज काफी हद तक पहाड़ कि जवान पीढ़ी एक दिखाई देती है. आज के समय में गढ़वाली कुमाउनी का प्रश्न नहीं रह गया है. पंडित राजपूत भी लोग नहीं कहते है. चुनावी समय में अवश्य ही नेता लोग इन मुद्दों को उठाने की कोशिश करते हैं. आज पहाड़ कि जवान पीढ़ी चाहती है कि उसे उसके गाँव में रोज़गार मिले, किन्तु जानकारी के आभाव में कुछ कर नहीं पते हैं.