उत्तराखण्ड में खडिया के अलावा भी अन्य खनिज व धातुओं की प्रचुरता है... किसी समय तांबा उद्योग पहाडों में भारी मात्रा में लोगों को रोजगार सुलभ करता था.
जब तक खनिज संपदा दोहन को स्थानीय लोगों के उत्थान के लिये प्रयोग नहीं किया जायेगा, यह पहाड को गर्त में ले जाने का काम ही करेगा. पंकज दा ने देवलथल का उदाहरण दिया है... मैं भी देवलथल की स्थिति जानता हूं. लोगों ने अपने खेतों को खोद कर खडिया बेच दी, या फिर उन्हें बाहर के लोगों को औने-पौने दामों पर बेच दिया. खेतों की जगह गड्डे रह गये हैं. यही लोग अब खडिया माफिया की खदानों में मजदूर की हैसियत से काम करने को मजबूर हैं.
स्थिति बहुत नाजुक है. पर्यावरण को जो नुकसान हुआ उस पर भी लम्बी-चौडी चर्चा की जा सकती है.
यह कहा जा सकता है कि लोगों को अपने और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोच-विचार करके, अपने हकों को समझ कर सुनियोजित तरीके से खडिया खदान को रोजगार के रूप में अपनाना चाहिये. मेरे ख्याल से सहकारिता के द्वारा इस काम को बेहतर तरीके से किया जा सकता है.