Poll

क्या खडिया के खान उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रो मे रोज़गार पैदा कर सकते है ?

Yes
19 (67.9%)
No
9 (32.1%)

Total Members Voted: 28

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Khadia Mines In Uttarakhand - खडिया के खान  (Read 45798 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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CAN SMALL INDUSTRIES BE SET-UP ON RAW MATERIAL LIKE KHADIA IN PAHAD ?दोस्तों,

जैसे के आपको ज्ञात है उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रो मे रोज़गार मे अभी भी एक बहुत बड़ी समस्या है ! रोजगार के आभाव मे लोगो को अभी भी हमेशा की तरह एनी राज्यों  मे पलायन करना पड़ता है !

पहाडो मे प्राकर्तिक संसाधनों की कमी नही है परन्तु इनका उपयोग ठीक ढंग से कभी नही जिससे रोजगार के कई अवसर लोगो को मिल सकते है ! पहाडो मे अभी खडिया के खान काफ़ी जगह पर है जिनका की बाहर निर्यात किया जा रहा है !  जो की निम्न जगहों पर है :-

        -   बागेश्वर जिला के रीमा, दोफार, चिदग आदि जगहों पर
    -   बागेश्वर जिला के कांडा, विजयपुर आदि जगहों पर
    -  चमोली गडवाल मे कई जगहों पार
    -  वही पिथोरागड जिले के कई हिस्सों मे खडिया के कई खाने है

जैसे की उत्तराखंड के प्रमुख उर्जा प्रदेश है, अगर खडिया का प्रोडक्ट कही कही पहाड़ मे बनाया जाय  हो कहाँ के लोगो के रोजगार के अवसर खुल सकते है !  अभी पहाड़ के ट्रुको के हिसाब खडिया कलकत्ता और अन्य शहरो के कारखानों मे जा रही है !

उत्तराखंड सरकार को इस विषय पर ध्यान देना चाहिए !

इस विषय पर आपलोगो की क्या राय है ?

एम् एस मेहता [/color] [/size]

See some of the photos provided by Mr Keshav Bhatt, journalist from bageshwar.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I am sure you people would give your valuable views on this issue. My suggestion to UK Govt is that Govt must explore possibilities on setting up small industries of raw material like this. 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I would like to share my personal views on this on the situation i have seen in UK. I belong to Reema Area of Uttarakhand. In a big part, there are Khadia's mines, a lot of people have sold their lands in order to sell the Khadia. The entire area now looks like as if there is some major construction work is going on there. At least 20 trucks of khaida is going Haldwani everyday. The work of Khadia Mine has been going on there since more one decade. 

There are types of Khadia which have different rates. Like Superfine, No1, No 2, No3 etc. It is said that superfine Khaida one truck is sold Rs 30,000 to Rs 40,000/- and other types of have less rates.  People have khadia lease there for about even 40 yrs.  Once even DP Yadav, former UP Minister had khadia lease there.

People are selling khadia on Rs 20,000/- per truck or depending upon its quality. But it is said from Halwani one truck is sold on 80,0000 /- or more than that. So you can see, the contractor are getting 5-6 times double money from the people.

In race of earning fast money, people have allowed these lease holder to dig out khadia from their Khet too and they are now setlleing in other areas Like haldwani etc.

Uttarakhand Govt attention is required on this issue.

पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
        मेरा गांव भी खड़िया बाहुल्य क्षेत्र में पड़ता है, खडि़या खनन का वास्तविक रुप मैंने देखा है। पहली बात कि इसमें ज्यादा रोजगार की संभावनायें नहीं हैं, क्योंकि यह कार्य सिर्फ खड़िया खोदकर पैकिंग तक ही सीमित है।  हां यह हो सकता है कि खड़िया आधारित उद्योग यहां पर लगें। मेरे कस्बे देवलथल में लगभग ५० ट्रक खड़िया का रोज दोहन होता है। दोहन शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिये किया कि खड़िया खनन का पट्टा बड़े उद्योगपतियों के हाथ में है, आम आदमी को कुछ भी नहीं मिल पाता। आम काश्तकार जिसके खेतों से खड़िया निकाली जा रही है, उसकी स्थिति आज भी वही है लेकिन जो लीजधारक हैं, वे कहां के कहां पहुंच गये, मैंने खुद देखा है।
      इसका एक दुःखद पहलू यह भी है कि स्थानीय लोग इस क्षेत्र में मजदूरी नहीं करना चाहते और सारा काम नेपाली या थारु श्रमिक ही करते हैं, मतलब मुद्रा विदेश जा रही है। दूसरा पहलू यह है कि हमारे यहां अब सामान्य कार्य के लिये मजदूर नहीं मिल पाता, क्योंकि २५० रु ८ घंटे में कमाने वाला ७० रु० में मजदूरी क्यों करेगा।...........

पंकज सिंह महर

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खडिया खनन का एक भयानक रुप भी हमारे सामने आया, जो उत्तराखण्ड के किसी भी क्षेत्र के लिये ठीक नहीं है। वह रुप अनियंत्रित खनन के रुप में हमारे सामने आया। यह ठीक है कि इस खनिज को निकालना ही चाहिये, यदि यह जमीन में रहेगा तो स्लिप जोन बनने का खतरा बना रहता है, लेकिन इसे तकनीक और मानकों के साथ ही निकालना चाहिये, जब कि दूरस्थ क्षेत्रों में इसे अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे शत प्रतिशत भू-स्खलन की समस्या आ रही है। होना यह चाहिये कि जिस स्थान से इसका खनन हो, वहां पर बाद में मिट्टी भरान कर देना चाहिये और पेड़ आदि लगा देने चाहिये, लेकिन ऎसा आमतौर पर होता नहीं है और बरसात के बाद भू-स्खलन होता ही है।
        एक और दुःखद पहलू कि इससे दूरस्थ इलाकों में माफियावाद पनप रहा है, दबंगई के बल पर लोग जबरन गरीब और निराश्रित लोगों की जमीन से खनन करवा रहे हैं। लोगों को शराब पिलवाकर जमीन का एग्रीमेंट करवा लिया जाता है और जब तक उसका नशा उतरता है, तब तक उसका खेत .......स्वाहा। इससे लोगों में झगड़े भी बढे है, आप लोग सभी जानते हैं कि पहाड़ों में सीढीदार खेत होते हैं,,,, नीचे के खेत वाले ने बिना दीवाल दिये खड़िया का खड्डा खोदा, नुकसान तो ऊपर वाले का भी होता है, ऊपर वाले का खेत गिर गया, नीचे खेत वाला कहता है, मैने तेरा खेत थोड़े ही खोदा है, मैंने तो अपना खेत खोदा...जो करना है कर ले। क्या करें

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar JI,

I agree with your views on “ the local people not working mines” But there is possibility of setting up some small industries which may include Khadia Grinding etc. I have seen one such small factor being set up in Kapkot area of Bageshwar. One Lease Holder had tried to set-up a grinding factory but work of this company has gone into fire due to some personal legal case of the Lease Holder. We have sufficient electricity in UK and many more hydro projects are coming-up. If the Govt  or Pvt firms think over this possibilities, I am sure a lot of job opportunities will arise there.


मेहता जी,
        मेरा गांव भी खड़िया बाहुल्य क्षेत्र में पड़ता है, खडि़या खनन का वास्तविक रुप मैंने देखा है। पहली बात कि इसमें ज्यादा रोजगार की संभावनायें नहीं हैं, क्योंकि यह कार्य सिर्फ खड़िया खोदकर पैकिंग तक ही सीमित है।  हां यह हो सकता है कि खड़िया आधारित उद्योग यहां पर लगें। मेरे कस्बे देवलथल में लगभग ५० ट्रक खड़िया का रोज दोहन होता है। दोहन शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिये किया कि खड़िया खनन का पट्टा बड़े उद्योगपतियों के हाथ में है, आम आदमी को कुछ भी नहीं मिल पाता। आम काश्तकार जिसके खेतों से खड़िया निकाली जा रही है, उसकी स्थिति आज भी वही है लेकिन जो लीजधारक हैं, वे कहां के कहां पहुंच गये, मैंने खुद देखा है।
      इसका एक दुःखद पहलू यह भी है कि स्थानीय लोग इस क्षेत्र में मजदूरी नहीं करना चाहते और सारा काम नेपाली या थारु श्रमिक ही करते हैं, मतलब मुद्रा विदेश जा रही है। दूसरा पहलू यह है कि हमारे यहां अब सामान्य कार्य के लिये मजदूर नहीं मिल पाता, क्योंकि २५० रु ८ घंटे में कमाने वाला ७० रु० में मजदूरी क्यों करेगा।...........


पंकज सिंह महर

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खडिया आधारित उद्योग वहीं पर लगने चाहिये जहां से उसका खनन हो रहा है, यह भी सच्चाई है कि बड़े उत्पादक उद्योग नहीं लग सकते जैसे A ग्रेड की खडिया का प्रयोग दवाईयों में होता है, तो दवा के उद्योग तो सिर्फ एक कच्चे माल के लिये नहीं लग सकते, लेकिन जो दूसरे सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद हैं, उनपर आधारित उद्योग तो लग ही सकते हैं, क्योंकि उनमें खूशबू और कुछ केमिकल के अलावा शत-प्रतिशत खडि़या ही होती है। लेकिन हर चीज को सरकार पर डाल देना भी ठीक नहीं है, मेरा मत है कि स्थानीय लोगों को अपनी चीज का महत्व समझते हुये स्वयं पहल करनी चाहिये। सरकार से वह मदद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त खडिया से जो मूर्तियां बनती हैं, उनमें और संगमरमर की मूर्तियों में विभेद कर पाना भी आसान नहीं होता, केवल वजन का ही अंतर होता है। लेकिन लोग सोये हैं और पंजाब के बनिया इनकी खड़िया निकाल कर ले जा रहे हैं हल्द्वानी।  सामाजिक चेतना बहुत जरुरी है, हमारी चीज की कीमत हमें खुद समझनी चाहिये।
     कई बार मैंने स्थानीय युवाओं से कहा कि तुम लोग भर्ती की लाइन में लग-लग के थकने की बजाय अपने आस-पास नजरें डालो, सरकार की स्वरोजगार की कई योजनायें हैं, उनका लाभ लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय शुरु करो, लेकिन.........???

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

Khaida Mine work was never stopped there and it will continue in further as people are already having lease for even 40 yrs or so. As far as the law order and other problems are concerned, it is the responsibility of state govt to ensure peace in these areas.


खडिया खनन का एक भयानक रुप भी हमारे सामने आया, जो उत्तराखण्ड के किसी भी क्षेत्र के लिये ठीक नहीं है। वह रुप अनियंत्रित खनन के रुप में हमारे सामने आया। यह ठीक है कि इस खनिज को निकालना ही चाहिये, यदि यह जमीन में रहेगा तो स्लिप जोन बनने का खतरा बना रहता है, लेकिन इसे तकनीक और मानकों के साथ ही निकालना चाहिये, जब कि दूरस्थ क्षेत्रों में इसे अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे शत प्रतिशत भू-स्खलन की समस्या आ रही है। होना यह चाहिये कि जिस स्थान से इसका खनन हो, वहां पर बाद में मिट्टी भरान कर देना चाहिये और पेड़ आदि लगा देने चाहिये, लेकिन ऎसा आमतौर पर होता नहीं है और बरसात के बाद भू-स्खलन होता ही है।
        एक और दुःखद पहलू कि इससे दूरस्थ इलाकों में माफियावाद पनप रहा है, दबंगई के बल पर लोग जबरन गरीब और निराश्रित लोगों की जमीन से खनन करवा रहे हैं। लोगों को शराब पिलवाकर जमीन का एग्रीमेंट करवा लिया जाता है और जब तक उसका नशा उतरता है, तब तक उसका खेत .......स्वाहा। इससे लोगों में झगड़े भी बढे है, आप लोग सभी जानते हैं कि पहाड़ों में सीढीदार खेत होते हैं,,,, नीचे के खेत वाले ने बिना दीवाल दिये खड़िया का खड्डा खोदा, नुकसान तो ऊपर वाले का भी होता है, ऊपर वाले का खेत गिर गया, नीचे खेत वाला कहता है, मैने तेरा खेत थोड़े ही खोदा है, मैंने तो अपना खेत खोदा...जो करना है कर ले। क्या करें


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

I fully agree with your views that some small industries related to this product can be set-up there provided Industrialist show interest and some concession may be given to my state Govt. Secondly, some Social work should be made compulsory to the Lease Holder in that area for the Villagers.

Pahad uzad raha hai lekin pahadi iske bare mae chintit nahi .  Some public awareness  is must there.


खडिया आधारित उद्योग वहीं पर लगने चाहिये जहां से उसका खनन हो रहा है, यह भी सच्चाई है कि बड़े उत्पादक उद्योग नहीं लग सकते जैसे A ग्रेड की खडिया का प्रयोग दवाईयों में होता है, तो दवा के उद्योग तो सिर्फ एक कच्चे माल के लिये नहीं लग सकते, लेकिन जो दूसरे सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद हैं, उनपर आधारित उद्योग तो लग ही सकते हैं, क्योंकि उनमें खूशबू और कुछ केमिकल के अलावा शत-प्रतिशत खडि़या ही होती है। लेकिन हर चीज को सरकार पर डाल देना भी ठीक नहीं है, मेरा मत है कि स्थानीय लोगों को अपनी चीज का महत्व समझते हुये स्वयं पहल करनी चाहिये। सरकार से वह मदद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त खडिया से जो मूर्तियां बनती हैं, उनमें और संगमरमर की मूर्तियों में विभेद कर पाना भी आसान नहीं होता, केवल वजन का ही अंतर होता है। लेकिन लोग सोये हैं और पंजाब के बनिया इनकी खड़िया निकाल कर ले जा रहे हैं हल्द्वानी।  सामाजिक चेतना बहुत जरुरी है, हमारी चीज की कीमत हमें खुद समझनी चाहिये।
     कई बार मैंने स्थानीय युवाओं से कहा कि तुम लोग भर्ती की लाइन में लग-लग के थकने की बजाय अपने आस-पास नजरें डालो, सरकार की स्वरोजगार की कई योजनायें हैं, उनका लाभ लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय शुरु करो, लेकिन.........???


पंकज सिंह महर

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बहरहाल! मुद्दा यह है कि क्या खड़िया खनन एक उद्योग बन सकता है।

बिल्कुल बन सकता है, स्थानीय बेरोजगारों के लिये इस पर आधारित उद्योग बनाये जा सकते हैं। सौंदर्य प्रसाधन के जितने भी उत्पाद हैं, वे सब खड़िया से ही बनते हैं, इसकी मूर्तिया बन सकती है, चाक (स्कूल में प्रयुक्त होने वाली) का उद्योग लगाया जा सकता है। मेडीसिनल खड़िया के प्रसंस्करण का उद्योग लगाया जा सकता है। क्योंकि जब हमारे खेत से खडिया हजारों कि०मी० दूर मुंबई और दिल्ली में उत्पाद बना सकती है तो यहां क्यों नहीं बना सकती?
         लेकिन आज तक का अनुभव रहा है कि खड़िया का भी आम आदमी की तरह मात्र शोषण ही हुआ है, उसके दाम हल्द्वानी में मात्र पिसने के बाद ४००-५०० रु० क्विंटल हो जाता है, जब कि काश्तकार इसे ८०-९० रु० क्विंटल बेचता है। खड़िया एक ऎसा खनिज है जो स्थानीय लोगों की नियति को बदल सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब स्थानीय लोग इसकी पहल करें और मांग करें तथा सरकार और शासन-प्रशासन दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुये सार्थक पहल करें।

 

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