खडिया खनन का एक भयानक रुप भी हमारे सामने आया, जो उत्तराखण्ड के किसी भी क्षेत्र के लिये ठीक नहीं है। वह रुप अनियंत्रित खनन के रुप में हमारे सामने आया। यह ठीक है कि इस खनिज को निकालना ही चाहिये, यदि यह जमीन में रहेगा तो स्लिप जोन बनने का खतरा बना रहता है, लेकिन इसे तकनीक और मानकों के साथ ही निकालना चाहिये, जब कि दूरस्थ क्षेत्रों में इसे अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे शत प्रतिशत भू-स्खलन की समस्या आ रही है। होना यह चाहिये कि जिस स्थान से इसका खनन हो, वहां पर बाद में मिट्टी भरान कर देना चाहिये और पेड़ आदि लगा देने चाहिये, लेकिन ऎसा आमतौर पर होता नहीं है और बरसात के बाद भू-स्खलन होता ही है।
एक और दुःखद पहलू कि इससे दूरस्थ इलाकों में माफियावाद पनप रहा है, दबंगई के बल पर लोग जबरन गरीब और निराश्रित लोगों की जमीन से खनन करवा रहे हैं। लोगों को शराब पिलवाकर जमीन का एग्रीमेंट करवा लिया जाता है और जब तक उसका नशा उतरता है, तब तक उसका खेत .......स्वाहा। इससे लोगों में झगड़े भी बढे है, आप लोग सभी जानते हैं कि पहाड़ों में सीढीदार खेत होते हैं,,,, नीचे के खेत वाले ने बिना दीवाल दिये खड़िया का खड्डा खोदा, नुकसान तो ऊपर वाले का भी होता है, ऊपर वाले का खेत गिर गया, नीचे खेत वाला कहता है, मैने तेरा खेत थोड़े ही खोदा है, मैंने तो अपना खेत खोदा...जो करना है कर ले। क्या करें