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कक्षा एक की किताब नहीं पढ़ पाते 8वीं के बच्चे Aug 10, 11:32 am
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देहरादून [अनिल उपाध्याय]। उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है। स्कूलों में गुरुजी आराम फरमा रहे हैं और बच्चे मस्ती में व्यस्त हैं। हालात कितने खराब हैं कि पाचवीं से आठवीं तक के बच्चों को कक्षा एक की किताब पढ़ने में दिक्कत होती है। छात्र जोड़-घटाने में कच्चे हैं। गुणा-भाग तो दूर की बात हैं। अंग्रेजी अक्षरों का ज्ञान बहुत सीमित है।
चौंकाने वाली बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में अलग दर्जा रखने वाले सुविधा संपन्न देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर प्राथमिक शिक्षा के मामले में फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा की स्थिति का जायजा लेने वाली प्रथम नामक संस्था के असर-09 सर्वे की रिपोर्ट तो यही कही बया कर रही है। राज्य के 13 जिलों में किए गए सर्वे के तहत कक्षा तीन से कक्षा पाच के छात्रों की परख के लिए उनसे कक्षा एक के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़वाकर देखी गई। जो परिणाम आया वह किसी को भी हैरत में डाल सकता है।
राज्य में केवल 74.7 फीसदी छात्र ही इसमें सफल हो पाए। इसमें उधमसिंह नगर [58.3], हरिद्वार [64.0] और देहरादून [64.1] सबसे फिसड्डी साबित हुए। वहीं, दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ [90.3] पहले, नैनीताल [86.8] दूसरे व चंपावत [84.6] तीसरे स्थान पर रहे। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले आठवीं कक्षा के केवल 6.3 प्रतिशत और पाचवीं कक्षा के 19.5 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा एक के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ने में सक्षम हैं। गणितीय ज्ञान के मामले में भी कमोबेश यही स्थिति है।
8वीं के 16.1 फीसदी छात्र ही संख्या को घटाने में सक्षम है। पाचवी में यह आकड़ा 22.5 फीसदी है। अंग्रेजी ज्ञान की बात करें तो आठवीं के 0.8 फीसदी छात्र अक्षरों की व 1.6 फीसदी शब्दों की पहचान कर सके। 24 फीसदी को नहीं आता घटाना। पहली से आठवीं के ओवरआल परफार्मेस की बात करें तो 24 फीसदी छात्र संख्याएं घटाने में, 35 फीसदी भाग करने में, 15.8 एक से नौ तक के अंग्रेजी अंकों को पहचानने में, 19.8 प्रतिशत 11 से 99 तक के अंकों को पहचानने में, 5.1 फीसदी अंग्रेजी अक्षरों को पहचानने में, 13.6 अंग्रेजी शब्दों को पहचानने में, 17.3 प्रतिशत कक्षा एक की किताब पढ़ने में और 49.8 प्रतिशत छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ने में सफल हो पाए।
प्रथम का परिचय
प्रथम सरकारी व गैर सरकारी
संस्थानों के साथ मिलकर दुनियाभर में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा का मूल्यांकन करती है। इसे एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन इन रूरल एरियाज [एएसईआर] के नाम से जाना जाता है।
सुलगते सवाल
तमाम सुविधाओं के बावजूद क्यों नहीं सुधर रहा शिक्षा का स्तर?
इन जिलों में तबादलों के लिए मारामारी क्या सिर्फ आराम के लिए है?
आखिर कब तक देश के भविष्य से खिलवाड़ करेंगे शिक्षक?
निजी स्कूलों से कैसे मुकाबला करेंगे सरकारी स्कूलों के छात्र?
अंग्रेजी की जरूरत पर शोर तो है, असर नहीं। आखिर क्यों?
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6638798.html