पहाड़ को रेल से जोड़ने के बाद ही खुलेंगे विकास के द्वारJan 23, 02:43 am
बागेश्वर। पहाड़ में रेल मार्ग का निर्माण असंभव कार्य नहीं है। इसके निर्माण के बाद पहाड़ के लोगों की तकदीर बदल सकती है। यह सामरिक व पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ साथ व्यापारिक व औद्योगिक दृष्टि से भी मील का पत्थर साबित होगा। रेल मंत्रालय द्वारा रेल मार्गो के निर्माण पर सहमति जताने के बाद से पहाड़ के लोगों को इसके निर्माण की उम्मीद जागी है।
प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व अंग्रेजी शासकों ने चीन, तिब्बत तथा नेपाल से सटे इस पर्वतीय क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक प्रगति तथा प्रचुर वन संपदा का दोहन व सैनिकों के सरल प्रवाह को ध्यान में रखते हुए टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण का कार्य शुरू किया था। लेकिन किन्हीं कारणों से यह योजना ठंडे बस्ते में चली गयी। वर्ष 1960-70 के दश में पद्मश्री देवकी नंदन पांडे ने रेल लाइन निर्माण का कार्य शुरू करने की मांग की। वर्ष 1980 में जब इंदिरा गांधी बागेश्वर आयी तो लोगों ने इसके निर्माण की मांग उनसे की। लेकिन बात प्रभावशाली तरीके से नहीं उठायी गयी। वर्ष 2004 में संघर्ष शील नेता गुसाई सिंह दफौटी के नेतृत्व में टनकपुर-बागेश्वर, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग, रामनगर-चौखुटिया व टनकपुर-जौलजीबी मार्गो के निर्माण की मांग उठायी गयी। इस आंदोलन का असर यह रहा कि रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने कौसानी प्रवास के दौरान टनकपुर-बागेश्वर व ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्गो के सर्वेक्षण का आदेश दिया। भूगोल सूचना तंत्रकुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के डा जीएल साह ने टनकपुर से बागेश्वर तक तीन माह के अथक परिश्रम के बाद भूगर्भीय सर्वेक्षण करते हुए एक रिपोर्ट रेल मंत्रालय को भेजी है। इस सर्वे में कंप्यूटर, उपग्रह चित्र व भौतिक सर्वेक्षणों को आधार बनाया गया है। पेश है रिपोर्ट के अंश:
पहाड़ी नगरों में रेल संपर्क-
1-नीलगिरि पर्वत खिलौना रेल गाड़ी: यह नीलगिरि पहाड़ी पर स्थित दक्षिण भारत के सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थल ऊंटी को 46 किमी लंबे घुमावदार यात्रा पथ द्वारा समीपवर्ती पर्वतीय कस्बे मैटपलाईम को जोड़ती है।
2- मथेरान लाइट रेलवे: जो कि लगभग 86 वर्ष पुरानी है। मुंबई के समीप से निराल से एक छोटे पहाड़ी पर्यटक स्थल मथेरान को जोड़ती है।
3-कालका-शिमला खिलौना रेल: यह योजना तत्कालीन बेमिसाल इंजीनियरिंग का अनूठा उदाहरण था। 1903 में बनकर तैयार यह रेल लाइन 98 किमी लंबी थी। इसे 102 सुरंगों से गुजरना पड़ता है।
4-दार्जिलिंग हिमालयन खिलौना रेल: सिलीगुड़ी से 80 किमी दूर हिमालय में दार्जिलिंग को जोड़ने वाली यह रेलगाड़ी दुनिया की सबसे कम दो फिट चौड़ी पटरियों वाले रेल पथ पर चलती है। यह रेल पथ 1881 में बनकर पूर्ण हुई।
वर्ष 1889 में नैनीताल को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए रानीबाग-ज्योलीकोट-वल्दियाखान से होते हुए नैनीताल को जोड़ने का प्रयास किया गया। लेकिन प्रारंभिक सर्वेक्षण में नैनीताल के कमजोर भूगर्भिक बनावट, मुख्य भ्रंस की उपस्थिति तथा धरातलीय उच्चावचनों की तीव्र प्रवणताजनित अवरोधों के फलस्वरूप अंततोगोत्वा यह योजना काल कलवित हो गयी।
टनकपुर-बागेश्वर रेल पथ निर्माण: प्राथमिक तथ्य(137 किमी लंबा)
चरण 1- टनकपुर से पोथ
2-चूका(पोथ) से मदुवा
3-मदुवा से पंचेश्वर
4-पंचेश्वर से घाट
5- घाट से भैसियाछाना
6-भैसियाछाना से बिलौना (बागेश्वर)तक निर्माण किया जाएगा।
मूल्यांकन व निष्कर्ष:
137 किमी लंबे टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग उत्तराखंड के विकास में मील का पत्थर साबित होगी। उत्तरी सीमा पर सैन्य दृष्टिकोण तथा नेपाल के साथ राजनैतिक व व्यापारिक संबंधों को सुदृढ़ करने, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन, पंचेश्वर व धौलीगंगा सरीखे बड़े व लघु जल विद्युत परियोजनाओं सहित लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ ही सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस योजना के निर्माण से पहाड़ में विकास के द्वार खुल जाएंगे। सामान्यतया पर्वतीय क्षेत्र में ऊंचाई के तीव्र विपर्यास रेलवे निर्माण के लिए मुख्य अवरोधक साबित होते है। लेकिन टनकपुर जो कि समुद्र सतह से 800 मीटर ऊंचाई पर स्थित है से बागेश्वर बिलौना तक 137 किमी दूरी में 610 मीटर का उतार चढ़ाव होगा। जबकि कालका-शिमला के मध्य 98 किमी दूरी तय करने में रेल को 1433 मीटर की ऊंचाई तय करनी होती है। रुद्रपुर-काठगोदाम के मध्य मात्र 44 किमी में यह ऊंचाई 342 मीटर होगी। इसी प्रकार भू गर्भिक संरचना के संबंध में एक सामान्य तथ्य कहा जा सकता है कि सरयू व महाकाली नदियां अपने समुचे पथ में भ्रंश घाटियों में प्रवाहित नहीं होती। इसी प्रकार रेल मार्ग के निर्माण में किसी भी प्रकार के सामाजिक विस्थापन का प्रश्न ही नहीं है। इस मार्ग में मात्र चार पुलों का निर्माण होगा। यहां यह तथ्य समीचीन होगा कि इन प्रस्तावित पुलों की चौड़ाई मैदानी तथा भाबर के नदियों के विशाल चौड़ाई की तुलना में अत्यंत कम होगी। संघर्ष समिति के अध्यक्ष गुसाई सिंह दफौटी ने इस रिपोर्ट को रेल मंत्रालय व प्रधानमंत्री को भेज दी है।