Author Topic: Proposal For Train Till Bageshwar - टनकपुर से बागेश्वर तक रेल लाईन का प्रस्ताव  (Read 91604 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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achha hota angrej hi bana jaate isko..

सीएम ने रेल मंत्री को भेजा टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग का सर्वेFeb 26, 02:24 am

नैनीताल। मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग का सर्वे केंद्रीय रेल मंत्री लालू यादव को भेजा है। 29 फरवरी को सदन में रखे जा रहे रेल बजट के मद्देनजर मुख्यमंत्री के प्रस्ताव को प्रासंगिक माना जा रहा है। डीएसबी परिसर के भूगोल विभाग द्वारा रेल मार्ग के निर्माण को पर्वतीय क्षेत्र की भौगोलिक संरचना के अनुरूप बताया गया है। सर्वे जनवरी के दूसरे सप्ताह में मुख्यमंत्री को भेजा गया था। भूगोल विभाग के डा. जीएल साह के नेतृत्व में सर्वे को टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग के निर्माण को अपरिहार्य बताया गया। जीआईएस, रिमोट सेंसिंग व उपग्रह चित्रों की मदद से किए गए सर्वे में रेल लाइन के निर्माण को भौगोलिक व भू-गर्भीय दृष्टि से उपयुक्त पाया गया है। श्री साह ने बताया कि रेल मार्ग कुमाऊँ के आर्थिक जीवन की लाइफ लाइन बनेगा। विदित हो रेल मंत्री पूर्व में भी रेल मार्ग पर सहमति जता चुके है। उधर, रेल बजट के निकट आने के साथ-साथ टनकपुर व बागेश्वर में रेल मार्ग की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण का संकल्प पत्र विधान सभा में पेशMar 11, 02:23 am

बागेश्वर। बहुप्रतीक्षित टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण का संकल्प पत्र सोमवार को विधान सभा में पेश किया गया। सदन में इस पर विस्तृत चर्चा के बाद सदन ने माना कि यह पहाड़ के लिए कल्याणकारी योजना है। रेल लाइन की स्वीकृति के लिए एक प्रस्ताव भारत सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया।

टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण की मांग विगत कई वर्षो से की जा रही है। बागेश्वर की जनता रेल निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष गुसाई सिंह दफौटी के नेतृत्व में आंदोलनरत है। जनता की मांग को देखते हुए रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी कौसानी आगमन पर रेल लाइन निर्माण को स्वीकृति प्रदान करते हुए इसे पहाड़ के विकास के लिए जरूरी बताया। लेकिन रेल लाइन निर्माण को केंद्र सरकार ने वित्तीय स्वीकृति प्रदान नहीं की। हाल ही में पेश रेल बजट में टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण का जिक्र तक न होने से भड़की बागेश्वर की जनता ने नगर में जुलूस निकालकर विशाल प्रदर्शन किया था। गुस्सायी जनता ने प्रधानमंत्री, रेल मंत्री, यूपीए अध्यक्ष सहित दोनों सांसदों का पुतला श्मशान घाट में दहन किया था। क्षेत्रीय विधायक चंदन दास ने सोमवार को विधान सभा में रेल लाइन निर्माण का संकल्प पत्र पेश किया। विधान सभा अध्यक्ष हरवंश कपूर की स्वीकृति पर सदन ने इस पर चर्चा की। चर्चा में भाग लेते हुए विधायक चंदन दास व कांडा के विधायक बलवंत सिंह भौर्याल ने तर्क रखे कि टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का निर्माण सामरिक, पर्यटन, व्यापारिक व औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसके निर्माण से पहाड़ में विकास के द्वार खुलेंगे तथा बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। जिससे पहाड़ से युवाओं का पलायन भी रोका जा सकता है। परिवहन मंत्री वंशीधर भगत ने चर्चा के बाद कहा कि बागेश्वर के विधायकों की यह मांग लोक कल्याण से जुड़ी है। इसलिये इसका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जा सकता है। विधान सभा अध्यक्ष हरवंश कपूर के आदेश पर सदन ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण का एक प्रस्ताव भारत सरकार को भेजने का निर्णय लिया है।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Mukhyamantri ji ne bilkul sahi kaam kiya yeh rail line humare vikas ke liye bahut jaroori hai.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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दोस्तो
मेरा विचार इस विषय पर आप लोगों से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि मुझे हिमालय के पहाडी क्षेत्रो में रेलमार्ग का प्रस्ताव ही मात्र एक राजनैतिक स्टंट, अव्यवहारिक, खर्चीला, पर्यावरण के विरुद्ध और एकदम बचकाना लगता है| शायद आप मित्र लोग मेरे इस तरह के बयान से निराश, व्यथित और आक्रोशित भी हो जाएं| लेकिन मैं जो बात सर्वहिताय है वाही कह सकता हूँ|  इस विषय मैं मेरे अपने तर्क या आप अपने हिसाब से कुतर्क भी कह सकते हैं, पर अगर आप सचमुच इस पहाडी प्रदेश का भला चाहते हैं तो मेरी बातों पर कृपया गंभीरता पूर्वक विचार करें|   मेरे विचार से निम्न कारणों से प्रदेश के पहाडों में रेल का विचार अव्यवहारिक है|
१. हिमालय पर्वत सबसे नई पर्वत श्रंखला है और भोगोलिक रूप बहुत अस्थायी है, इस पर भारी निर्माण गतिविधियाँ इसकी संरचना को नुकसान पहुँचा सकती हैं|
२. जब मोटर मार्ग के निर्माण के लिए ही पहाडों पर जबरदस्त तोड़ फोड़ होती है और जिसके कारण बरसात में भू स्खलन जैसी दुर्घटनाएं पूरे प्रदेश में होती रहती हैं तो क्या रेलमार्ग का निर्माण सम्बह्व हो पायेगा|
३. बजाये टनकपुर से बागेश्वर, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग या सह्रारंपुर विकासनगर से कलसी रेलमार्ग के खयाली सुझाव या सुर्वे कराने जो मुफ्तखोर नेताओं,  एन्जिनीयेर्स और ठेकेदारों की जेबें भरने और जनता को बहलाने की कोशिश है|
४. अगर रेलमार्ग ही बनाना है तो देहरादून, काठगोदाम, रामनगर, ऋषिकेश और टनकपुर जैसे स्टेशन को बेहतर डबल लाइन से जोडा जाना जरुरी है|
५. मैं समझता हूँ की अगर इन स्टेशन को आपस जोड़कर एक रेलमार्ग देहरादून से टनकपुर तक बने तो वह ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी भी होगा क्योंकि इससे कुमाऊँ और गढ़वाल को जोड़ने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा.
६. रेलवे की आय का मुख्य श्रोत माल भाडा है, पहाड़ पर रेल जाने पर इससे किसी प्रकार का राजस्व प्राप्त होने की कोई उम्मीद नही है तथा निर्माण का खर्च वसूल होने में सालों का समय लग जाएगा|
७- रेलवे स्टेशन निर्माण के लिए काफी अधिक जमीन की आवश्यकता होती है जो पहाडों पर उपलब्ध नही हो सकती
८- रेल के संचालन से जमीन में भयंकर कम्पन पैदा होता है जो मैदानी क्षेत्रों में भी करीब १ किलोमीटर तक महसूस होता है, यह हमारे पहाडों के लिए बहुत खतरनाक है, इसलिए हमारे पहाड़ में रेल का संचालन उपयुक्त नही है|
९- जिन जगहों जैसे दार्जिलिंग, शिमला या उटी में रेल-सेवा है, वहाँ भी यह केवल प्रतीकात्मक रूप से पर्यटकों के आकर्षण लिए ही है यह कभी भी यातायात या राजस्व का जरिया नही बना है|
10- हम अन्य देशो जैसे चीन या दक्षिण अमेरिका की रेल से अपने पहाडों की तुलना नही कर सकते अमेरिका की एंडीज़ पर्वतमाला संसार के सबसे पुरानी पर्वतमाला है तथा चीन में तिब्बत के पठार में भी रेलमार्ग का निर्माण एवं संचालन आसान है|
इस्सके अलावा भी कई अन्य कारण हैं जिसके बारे में विभिन्न विशेषज्ञ अपने विचार दे चुके हैं तथा सभी का विचार है की पहाड़ पर रेल ले जाने के बजाय वर्तमान रेल ढांचे को हे अधिक उपयोगी बनाया जाना ज्यादा उपयुक्त होगा तथा इसमे भी विकास की बहुत संभावनाएं हैं|

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Anubahv jee,
Congratulation for new look in Mera Pahad, you look nice in new getup.
Thanks

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Joshi ji aapki saari baatein sahi hain lekin yeh to bataiye fir aavagaman ke liye kya kiya jaae?

दोस्तो
मेरा विचार इस विषय पर आप लोगों से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि मुझे हिमालय के पहाडी क्षेत्रो में रेलमार्ग का प्रस्ताव ही मात्र एक राजनैतिक स्टंट, अव्यवहारिक, खर्चीला, पर्यावरण के विरुद्ध और एकदम बचकाना लगता है| शायद आप मित्र लोग मेरे इस तरह के बयान से निराश, व्यथित और आक्रोशित भी हो जाएं| लेकिन मैं जो बात सर्वहिताय है वाही कह सकता हूँ|  इस विषय मैं मेरे अपने तर्क या आप अपने हिसाब से कुतर्क भी कह सकते हैं, पर अगर आप सचमुच इस पहाडी प्रदेश का भला चाहते हैं तो मेरी बातों पर कृपया गंभीरता पूर्वक विचार करें|   मेरे विचार से निम्न कारणों से प्रदेश के पहाडों में रेल का विचार अव्यवहारिक है|
१. हिमालय पर्वत सबसे नई पर्वत श्रंखला है और भोगोलिक रूप बहुत अस्थायी है, इस पर भारी निर्माण गतिविधियाँ इसकी संरचना को नुकसान पहुँचा सकती हैं|
२. जब मोटर मार्ग के निर्माण के लिए ही पहाडों पर जबरदस्त तोड़ फोड़ होती है और जिसके कारण बरसात में भू स्खलन जैसी दुर्घटनाएं पूरे प्रदेश में होती रहती हैं तो क्या रेलमार्ग का निर्माण सम्बह्व हो पायेगा|
३. बजाये टनकपुर से बागेश्वर, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग या सह्रारंपुर विकासनगर से कलसी रेलमार्ग के खयाली सुझाव या सुर्वे कराने जो मुफ्तखोर नेताओं,  एन्जिनीयेर्स और ठेकेदारों की जेबें भरने और जनता को बहलाने की कोशिश है|
४. अगर रेलमार्ग ही बनाना है तो देहरादून, काठगोदाम, रामनगर, ऋषिकेश और टनकपुर जैसे स्टेशन को बेहतर डबल लाइन से जोडा जाना जरुरी है|
५. मैं समझता हूँ की अगर इन स्टेशन को आपस जोड़कर एक रेलमार्ग देहरादून से टनकपुर तक बने तो वह ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी भी होगा क्योंकि इससे कुमाऊँ और गढ़वाल को जोड़ने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा.
६. रेलवे की आय का मुख्य श्रोत माल भाडा है, पहाड़ पर रेल जाने पर इससे किसी प्रकार का राजस्व प्राप्त होने की कोई उम्मीद नही है तथा निर्माण का खर्च वसूल होने में सालों का समय लग जाएगा|
७- रेलवे स्टेशन निर्माण के लिए काफी अधिक जमीन की आवश्यकता होती है जो पहाडों पर उपलब्ध नही हो सकती
८- रेल के संचालन से जमीन में भयंकर कम्पन पैदा होता है जो मैदानी क्षेत्रों में भी करीब १ किलोमीटर तक महसूस होता है, यह हमारे पहाडों के लिए बहुत खतरनाक है, इसलिए हमारे पहाड़ में रेल का संचालन उपयुक्त नही है|
९- जिन जगहों जैसे दार्जिलिंग, शिमला या उटी में रेल-सेवा है, वहाँ भी यह केवल प्रतीकात्मक रूप से पर्यटकों के आकर्षण लिए ही है यह कभी भी यातायात या राजस्व का जरिया नही बना है|
10- हम अन्य देशो जैसे चीन या दक्षिण अमेरिका की रेल से अपने पहाडों की तुलना नही कर सकते अमेरिका की एंडीज़ पर्वतमाला संसार के सबसे पुरानी पर्वतमाला है तथा चीन में तिब्बत के पठार में भी रेलमार्ग का निर्माण एवं संचालन आसान है|
इस्सके अलावा भी कई अन्य कारण हैं जिसके बारे में विभिन्न विशेषज्ञ अपने विचार दे चुके हैं तथा सभी का विचार है की पहाड़ पर रेल ले जाने के बजाय वर्तमान रेल ढांचे को हे अधिक उपयोगी बनाया जाना ज्यादा उपयुक्त होगा तथा इसमे भी विकास की बहुत संभावनाएं हैं|


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Sir jara apna no. mujhe mail karne ka ya PM karne ka kasht karen.

Anubahv jee,
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sanjupahari

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Main Rajesh Ji se bhaut had tak sahmat hu ,,,, lekin Rail sewa ke vi-paksh main bhi nai hu...parantu koi bhi planning ho in points ko madhdhenazar rakhte huwe hi hoto sayad koi vikalp nikale,,,,lekin muzhey pata hai sahi loog/ thekedar/ mafia is ko achche se ayaam denge kaati unki tizori bhar sake....God Bless you my Uttarakhand....bas yehi kamana karta hu teri prakartik sunderta hamesha bani rahe....

Risky Pathak

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Sabse Phle Rajesh Jee Dhanywaad ki aapne itni gyaan vardhak  baatein hume btaai... Me to bus abhi tak yhi sochta tha ki is rail line ka jaldi se jald nirmaan ho. Or meri tarah aise bhot se log honge, jinhe ye baatein maaloom nahi Hogi.

Asha hai Is tarah ke gyaan se log jagruk honge. Log jaagruk honge to Politician par Pressure padega. and jo bhi engineers is kaarya me lage hai wo in sab baaton ko soch samajhkar ki agla kadam uthaayenge.

Dhanywaad
दोस्तो
मेरा विचार इस विषय पर आप लोगों से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि मुझे हिमालय के पहाडी क्षेत्रो में रेलमार्ग का प्रस्ताव ही मात्र एक राजनैतिक स्टंट, अव्यवहारिक, खर्चीला, पर्यावरण के विरुद्ध और एकदम बचकाना लगता है| शायद आप मित्र लोग मेरे इस तरह के बयान से निराश, व्यथित और आक्रोशित भी हो जाएं| लेकिन मैं जो बात सर्वहिताय है वाही कह सकता हूँ|  इस विषय मैं मेरे अपने तर्क या आप अपने हिसाब से कुतर्क भी कह सकते हैं, पर अगर आप सचमुच इस पहाडी प्रदेश का भला चाहते हैं तो मेरी बातों पर कृपया गंभीरता पूर्वक विचार करें|   मेरे विचार से निम्न कारणों से प्रदेश के पहाडों में रेल का विचार अव्यवहारिक है|
१. हिमालय पर्वत सबसे नई पर्वत श्रंखला है और भोगोलिक रूप बहुत अस्थायी है, इस पर भारी निर्माण गतिविधियाँ इसकी संरचना को नुकसान पहुँचा सकती हैं|
२. जब मोटर मार्ग के निर्माण के लिए ही पहाडों पर जबरदस्त तोड़ फोड़ होती है और जिसके कारण बरसात में भू स्खलन जैसी दुर्घटनाएं पूरे प्रदेश में होती रहती हैं तो क्या रेलमार्ग का निर्माण सम्बह्व हो पायेगा|
३. बजाये टनकपुर से बागेश्वर, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग या सह्रारंपुर विकासनगर से कलसी रेलमार्ग के खयाली सुझाव या सुर्वे कराने जो मुफ्तखोर नेताओं,  एन्जिनीयेर्स और ठेकेदारों की जेबें भरने और जनता को बहलाने की कोशिश है|
४. अगर रेलमार्ग ही बनाना है तो देहरादून, काठगोदाम, रामनगर, ऋषिकेश और टनकपुर जैसे स्टेशन को बेहतर डबल लाइन से जोडा जाना जरुरी है|
५. मैं समझता हूँ की अगर इन स्टेशन को आपस जोड़कर एक रेलमार्ग देहरादून से टनकपुर तक बने तो वह ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी भी होगा क्योंकि इससे कुमाऊँ और गढ़वाल को जोड़ने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा.
६. रेलवे की आय का मुख्य श्रोत माल भाडा है, पहाड़ पर रेल जाने पर इससे किसी प्रकार का राजस्व प्राप्त होने की कोई उम्मीद नही है तथा निर्माण का खर्च वसूल होने में सालों का समय लग जाएगा|
७- रेलवे स्टेशन निर्माण के लिए काफी अधिक जमीन की आवश्यकता होती है जो पहाडों पर उपलब्ध नही हो सकती
८- रेल के संचालन से जमीन में भयंकर कम्पन पैदा होता है जो मैदानी क्षेत्रों में भी करीब १ किलोमीटर तक महसूस होता है, यह हमारे पहाडों के लिए बहुत खतरनाक है, इसलिए हमारे पहाड़ में रेल का संचालन उपयुक्त नही है|
९- जिन जगहों जैसे दार्जिलिंग, शिमला या उटी में रेल-सेवा है, वहाँ भी यह केवल प्रतीकात्मक रूप से पर्यटकों के आकर्षण लिए ही है यह कभी भी यातायात या राजस्व का जरिया नही बना है|
10- हम अन्य देशो जैसे चीन या दक्षिण अमेरिका की रेल से अपने पहाडों की तुलना नही कर सकते अमेरिका की एंडीज़ पर्वतमाला संसार के सबसे पुरानी पर्वतमाला है तथा चीन में तिब्बत के पठार में भी रेलमार्ग का निर्माण एवं संचालन आसान है|
इस्सके अलावा भी कई अन्य कारण हैं जिसके बारे में विभिन्न विशेषज्ञ अपने विचार दे चुके हैं तथा सभी का विचार है की पहाड़ पर रेल ले जाने के बजाय वर्तमान रेल ढांचे को हे अधिक उपयोगी बनाया जाना ज्यादा उपयुक्त होगा तथा इसमे भी विकास की बहुत संभावनाएं हैं|


राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Friends
Our country is a still a poor country, our economical resources are very limited and we just not wast hard earned money of the poor people (mind it, it is not the money of the so called tax payers, it is hard earned money of our poor farmers, factory workers, which ultimately paid by the tax payer after taking their sufficient share from it).  I want a solution which is cheper, physibal, less time consuming, more viable, more useful, beneficial to the large public and practically possible, instead of polytical stunt. 
All three proposal of railway in hill reason are suggested by three different people Rishikesh to Rudraprayag by Satpal Maharaj, Bageshwar to Tanakpur by present BJP and now we heard a new proposal by the central govt i.e. Dehradun/Vikasnagar/Kalsi. 
These al proposals are just a polytical stunt and joke with Pahadi people, as I always heard whenever I pass through Dehradun or Kathgodam Staion buswala make a joke like "Train dekhne wale utar jao", actually the person who have not seen train is supposed to be backward.  This is the one reason that a slogan of "Rail in the hills" imotionally attracts the Pahadi public and they feel it as realisation of their dreams.
It is more practical that our present railway stations in plains are given better connectivity to the nearby railway junctions (i.e. Bareilley, Moradabad and Saharanpur) and we have one railway sub Zone for better coordination and have a intra-state rail connectivity from Dehradun to Tanakpur. 
After the completion of above railway connectivity we may think about the connecting our hill areas with trains.  It may attract tourists coming in our state and also a realisation of dreams of Pahadi public. 
But I am still strict to my previous stand that any activity of wasting hard earned money at cost of polytical stunt, imotions of the public, environment, economical physibility can not be tolerated.
 

 

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