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यह योजना अंग्रेजों द्वारा प्रथम विश्व युद्द के बाद इस क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के अलावा यहां की प्रचुर वन सम्पदा व सैनिकों के सरल प्रवाह के निमित्त टनकपुर से बागेश्वर तक रेलवे लाईन का सर्वेक्षण प्रारम्भ किया गया। यह योजना द्वितीय विश्व युद्द होने के कारण धीरे-धीरे ठण्डे बस्ते में चली गई। १९६० में पद्म श्री स्व० देवकी नन्दन पाण्डे ने इस रेलवे लाईन के दोबारा सर्वेक्षण कराये जाने की मांग रखी, १९८० में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी बागेश्वर आईं तो "बागेश्वर-टनकपुर रेलवे लाईन संघर्ष समिति" ने उन्हें ग्यापन दिया, जिसके फलस्वरुप १९८४ में इस लाईन के सर्वेक्षण हेतु बजट का प्रावधान किया, लेकिन सर्वेक्षण का कार्य नहीं हो पाया।
वर्तमान में प्रस्तावित रेलवे लाईन के मार्ग में धौलीगंगा, टनकपुर और पंचेश्वर जैसी वृहद योजनायें चल रही हैं, और पहाड़ों में जो खनिज है यथा मैग्नेसाइट, खडिया, तांबा, जिप्सम आदि का उचित और सुगम दोहन हो सकेगा। इसके अतिरिक्त इस मार्ग में पड़्ने वाले अतयन्त दुर्गम और पिछड़े इलाके यथा बागेश्वर के कत्यूर, दानपुर, कमस्यार, खरही अल्मोड़ा के रीठागाड़ और चौगर्खा, पिथौरागढ के गणाई और गंगोल और चम्पावत के गुमदेश की लगभग १० लाख जनता इस सुगम और महत्वपूर्ण परिवहन से जुड़ सकेंगे।
टनकपुर से बागेश्वर तक की इस प्रस्तावित योजना की लम्बाई १३७ किलोमीटर है, जिसमें से ६७ कि०मी० लाईन अंतराष्ट्रीय सीमा (भारत-नेपाल) के समानान्तर है और पंचेश्वर से यह योजना सरयू नदी के समानान्तर है। इस कारण इस योजना में कोई सामाजिक विस्थापन भी नहीं होना है, क्योंकि महाकाली और सरयू नदी दोनों भ्रंश घाटियों में बहती हैं। यह घाटियां भौगोलिक स्थिति से काफी मजबूत हैं, इसके अतिरिक्त इस प्रस्तावित योजना में चार बड़े रेल पुलों का निर्माण होना है और इनकी चौड़ाई भी मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अत्यन्त कम होगी।
पर्वतीय योजनाओं में मुख्य रुप से तकनीकी पक्ष मात्र ऊंचाई ही है, लेकिन इस लाईन को टनकपुर (समुद्र तल से ऊंचाई ८०० मीटर) से बागेश्वर तक पहुंचने में ६१० मीटर की ऊंचाई को पार करना होगा। अन्य पर्वतीय रेल योजनाओं की ऊंचाई की तुलना की जाय तो कालका से शिमला तक से ९८ कि०मी० की दूरी तय करने में १४३३ मीटर की ऊंचाई पार करनी पड़्ती है जब कि इस योजना में १३७ कि०मी० में मात्र ६१० मीटर की ही ऊंचाई को पार करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त कांगड़ा और कश्मीर की तुलना में और ऊंचाई पार करनी पड़्ती है।