देहरादून/उज्जैन।। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में सियासी उठापटक तेजी होती जा रही है। मुख्यमंत्री बहुगुणा के लिए बहुमत साबित करना लगातार कठिन होता जा रहा है। वहीं, अपने विधायकों को 'बिकने' से बचाने के लिए बीजेपी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। गुरुवार को गुपचुप तरीके से बीजेपी के 30 विधायकों को महाकाल की नगरी उज्जैन लाया गया है। बीजेपी का दावा है कि उनके विधायकों के साथ 2 निर्दलीय विधायक भी हैं। बीजेपी इतनी डरी हुई है कि विधायकों को मोबाइल पर बात करने की छूट भी नहीं दी गई है। बीजेपी विधायकों की निगरानी के लिए मध्यप्रदेश बीजेपी अध्यक्ष प्रभात झा और प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन तैनात हैं।
उत्तराखंड के पूर्व मंत्री और प्रदेश बीजेपी विधायक अजय भट्ट के नेतृत्व में विधायक पहले इंदौर पहुंचे। फिर, इंदौर एयरपोर्ट से बस से उज्जैन पहंचे। उज्जैन में विधायकों के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था तैनात की गई है।
उत्तराखंड का सियासी गणित उत्तराखंड में बीजेपी के 31, कांग्रेस के 32, बीएसपी के 3, यूकेडी के 1 और निर्दलीय 3 विधायक चुने गए हैं। कांग्रेस को सरकार बचाने के लिए 36 विधायक चाहिए। बीजेपी को डर है कि विधायकों टूट गए, तो पार्टी की फजीहत हो जाएगी। उधर, 2 निर्दलीय विधायकों के उज्जैन पहुंचने की खबर से कांग्रेस में भी खलबली मची हुई है।
माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी खतरा नहीं लेना चाह रही है। उसकी इच्छा है कि सीएम बहुगुणा के लिए बीजेपी का ही कोई विधायक सीट छोड़े और उसे बहुगुणा के संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशित बनाया जाए। गौरतलब है कि पिछली बार बीजेपी के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने यही फॉर्म्यूला अपनाया था।
दिल्ली भी पहुंचे थे बीजेपी विधायक इसके पहले सोमवार को बीजेपी के विधायकों को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने नई दिल्ली तलब किया था। इस दौरान एक बीजेपी विधायक की गैरमौजूदगी से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी सकते में आ गए थे।
पहले भी एमपी आ चुके हैं बाहरी विधायक इससे पहले भी मध्यप्रदेश में विभिन्न राज्यों के विधायक खजुराहो और भोपाल में डेरा डाल चुके हैं। विधायकों को एक स्थान पर लाकर सरकार पर दबाव बनाने या नेतृत्व परिवर्तन की कहानी की शुरुआत खजुराहो से हुई थी। 1994 में गुजरात में जब बीजेपी सरकार थी और केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे, तब अंसतुष्ट नेता शंकरसिंह बघेला अपने समर्थक विधायकों को लेकर खजुराहो आ गए थे। उस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन के लिए बघेला ने मध्यप्रदेश में बैठकर ही बीजेपी नेतृत्व से सौदेबाजी की थी। इसके बाद 26 मई 2003 को यूपी से आरएलडी के विधायक भोपाल आकर एक होटल में रुके थे। खुद लोकदल नेता चौधरी अजीत सिंह इन विधायकों के साथ भोपाल आए थे। उस वक्त भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी।
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