उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल
सतपाल महाराज के भाजपा में शामिल होने के साथ ही उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. कांग्रेसी खुद मान रहे हैं कि कांग्रेस आलाकमान द्वारा उत्तराखंड को लेकर लिए गए निर्णय इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं. सतपाल महाराज के यूं अचानक भाजपा का दामन थाम लेने के बाद उत्तराखंड में राजनैतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं.
सतपाल महाराज व उनके समर्थक पिछले लम्बे अर्से से खुद को कांग्रेस में अपमानित महसूस कर रहे थे. कांग्रेस ने कई ऐसे काम किये जिससे सतपाल महाराज को समर्थकों के बीच अपमान का घूंट पीना पड़ा. पहले सतपाल महाराज को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के संकेत दिए, महराज ने बधाइयां भी स्वीकार कर लीं. लेकिन आलाकमान ने अपने कदम पीछे खींच लिए. रही सही कसर कांग्रेस आला कमान ने उत्तराखण्ड की बाग़डोर महाराज के धुर विरोधी हरीश रावत को सौंप कर पूरी कर दी.
जिस दिन रावत को राज्य कि कमान सौंपने का दिल्ली में निर्णय हुआ उसी दिन राज्य में कांग्रेस नीत सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी, जिसकी परिणति सतपाल महराज की कांग्रेस से रुखसती के रूप में हुई.
उत्तराखंड के भाजपा नेता सतपाल महाराज के इस कदम से खासे प्रसन्न हैं, वे भाजपा में महाराज के आने को खुद की मजबूती मान रहे हैं. सतपाल महाराज के समर्थन में आधा दर्जन से ज्यादा विधायक हैं जिसके चलते सबकी निगाहें महाराज कि पत्नी अमृता रावत और उनके समर्थक विधायकों पर टिकी है क्योंकि यदि इन्होंने महराज का अनुसरण किया तो हरीश रावत सरकार कि विदाई तय है.
सतपाल महाराज के भाजपा में शामिल होने से उत्तराखंड के कांग्रेसी सदमे में हैं. वे इन हालात के लिए कांग्रेस आला कमान कि नीतियो को जिम्मेदार मानते हैं जिन्होंने सतपाल महाराज जैसे कद्दावर नेताओं की ना केवल अनदेखी की बल्कि ऐसे निर्णय भी लिए जिससे कांग्रेस का पर्याय बन गए नेताओं ने खुद को अपमानित महसूस किया. वहीं जब भाजपा के वरिष्ठ नेता खंडूरी से बात की तो उन्होंने महाराज किआ साथ ही कहा कि पार्टी ने अगर कोई फैसला लिया है तो वो सही होगा ,
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