विकास सिंह39 minutes ago
उत्तराखण्ड के जंगलों में आग से हर साल बेशकीमती पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियां, वन- सम्पदा और जीव-जंतु आग की भेट चढ़ रहें हैं और उत्तराखंड सरकार कुम्भकरण की नींद सो रही हैं। जंगलो की सुरक्षा और आग से रक्षा के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपये सरकार खर्च करती है। वहीं वन विभाग अपनी लापर वाही से बाज नहीं आ रहा है। यहीं यदा-कदा इसका असर पानी के स्रोतों पर भी पड़ रहा है। ‘जल-जंगल-जमीन’ उत्तराखण्ड की धरोहर हैं। देश की इस अनुपम धरोहर को अग्नि में इस तरह स्वाह होने से जीव-जन्तु मात्र ही नहीं अपितु वन-सम्पदा भी खाक होती जा रही हैअब आपदाओं से निपटने के लिये सरकार की ओर से बाकायदा एक आपदा प्रबंधन विभाग भी खोला गया है। वन विभागों को हाईटेक करने की बात कही गई है ताकि आपदा के समय त्वरित कार्रवाई की जा सके। संरक्षण तथा संवर्धन के लिये बाकायदा ग्रामीण स्तर पर वन पंचायतें भी बनायी गयी हैं। इन्हें समय-समय पर आर्थिक सहायता भी दी जाती है, जिससे वे वन पंचायत क्षेत्र के अधीन वृक्षारोपण के साथ-साथ, संरक्षण में अहम भूमिका निभाएं। लेकिन इसके बावजूद सरकारी उपक्रम और प्रयास ठीक-ठाक नहीं दिखते। जंगलों की आग सच बयान कर देते हैं कि सरकार इन आपदाओं से निपटने के लिये कागजी घोड़े पर सवार होकर आग से जंग जीतना चाहती है पर जमीनी हकीकत ठीक इसके विपरीत है। दरअसल विभागों में आवश्यक संसाधन की कमी साफ दिखाई देती है। जिलों में आग पर काबू के लिए एकाध फायर ब्रिगेड की गाड़ियां ही मौजूद हैं जिनमें फायर सीजन शुरू होने से पूर्व ही पेयजल की किल्लत अहम है! हाल ही में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ‘ग्रीन इंडिया’ कार्यक्रम करने का ऐलान किया है। इस कार्यक्रम के तहत वन संरक्षण एवं सुदृढ़ीकरण को बढ़ावा दिये जाने की बात कही। प्रदेश सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए आपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। प्रदेश सरकार ने इस प्रोजेक्ट को ‘कैंपा’ नाम दिया है। केन्द्र ने प्रदेश में वनाग्नि की गंभीरता को देखते हुए आठ सौ सैंतीस करोड़ रुपये जारी कर दिये हैं। ‘कैंपा’ प्रोजेक्ट के तहत इस राशि से प्रदेश सरकार वनाग्नि सुरक्षा उपकरणों की खरीद, कॉरीडोर का विकास, प्रदेश में बांज क्षेत्रों का विकास, वन पंचायतों के सुदृढ़ी करण एवं सीमांकन जैसे कार्य करेगी। यह राशि वन भूमि हस्तांतरण एवं एनपीवी के अलावा अन्य माध्यमों से एकत्रित धन का कुछ हिस्सा मात्र है। पहले से ही वनाग्नि में झुलस रहे प्रदेश के जंगल को इससे कितनी निजात मिलेगी, यह देखना अभी बाकी है। — with