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ना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंणना भावर, ना सैंण, राजधानी सिर्फ गैरसैंण
Govt stand. राजधानी मामला: विलंब के लिए कांग्रेस दोषी: भाजपाNov 27, 02:09 amदेहरादून। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डा.देवेंद्र भसीन ने कहा कि राजधानी मामले में विलंब के लिए कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने कांग्रेस से पूछा कि पांच साल तक उसने राजधानी मामले में क्या किया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हरीश रावत के राजधानी मुद्दे पर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए डा.भसीन ने कहा कि कांग्रेस को पहले अपना दृष्टिकोण तय कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि पांच साल तक चुप बैठे रहने वाली कांग्रेस को इस मामले में भाजपा से कुछ भी पूछने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पूरे पंाच साल के कार्यकाल में इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं लिया। वर्तमान सरकार के रुख के चलते अप्रैल 08 में आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट देगा। उन्होंने कहा कि पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत ने राजधानी मुद्दे पर अनशन करने की धमकी दी है। उनकी इस धमकी का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि इस मामले में विलंब के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ही जिम्मेदार रही है। उन्होंने सवाल किया कि यदि श्री रावत इस मामले में इतने ही गंभीर थे तो पांच साल तक अपनी पार्टी के शासनकाल में उन्होंने इसे सक्रिय करने के लिए क्या-क्या किया। डा.भसीन ने कहा कि राजधानी स्थल चयन से बाकी प्रदेश के विकास का सीधा संबंध नहीं है।
उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए ।
नमस्कार, इस विषय पर चर्चाएं बहुत हो चुकी किंतु कोई ठोस कदम अभी तक किसी ने नहीं उठाया - चाहे वो राजनीतिक दल हों, राजनेता हों या की तथाकथित समाजसेवी. सभी ने अपने स्वार्थ साधन के अतिरिक्त कुछ नहीं किया. हमारे पहाड़ के जनमानस में भी इच्छाशक्ति का पूर्ण अभाव है. यदि जन आक्रोश किसी मुद्दे पर भड़कता है तो सारे राजनेता सचेत हो जाते हैं और फिर वोट की राजनीति के लिए ही सही, उनको जनता की इच्छा के साथ चलने के लिए बाध्य होना पङता है. जैसा कि सभी को विदित है हरीश रावत एक समय कांग्रेस के सशक्त नेता के रूप में उभरे थे किंतु अच्छे सलाहकारों के अभाव में आज भटक रहे हैं. उनके सलाहकारों की ही ग़लत सलाहों के परिणामस्वरूप वे एन डी तिवारी द्वारा राजमाता के द्वार से दूर हो गए. वरना हरीश रावत एक सफल राजनेता हो सकते थे. अभी भी उनको ग़लत सलाहकारों ने बुरी तरह घेर रखा है. वरना ऐसा मुश्किल काम तो नहीं है अपने प्रति हुए विश्वासघात को जनता के समक्ष रखना. खैर, चर्चा गैर्सैन की हो रही है. तो, हरीश रावत अगर इसी एक मुद्दे पर डटे रहें तो बहुत ज़ल्द सारी जनता के लिए वो पुराने वाले हरीश रावत होंगे क्योंकि जनता को याद है की पिछले चुनाव में जनता ने एन डी तिवारी को वोट नहीं दिया था. वो वोट तो हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने के लिए था. उस जनमत का अपहरण हुआ तो कुछ रावत जी के ग़लत सलाहकारों की कारगुजारियों के कारण और कुछ एन डी तिवारी के राजनीतिक कौशल के कारण. मेरा मानना है कि हरीश रावत अगर इस मुद्दे पर पूर्ण विरोध करें और कांग्रेस पार्टी का पल्लू त्याग दें तो न सिर्फ़ उनकी राजनीतिक विजय का मार्ग प्रशस्त होगा वरन पहाड़ कि जनता के साथ हुए विश्वासघात का निराकरण भी हो जायेगा. नमस्कार