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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

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Yes But at later stage
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Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 349355 times)

मेरा पहाड़ / Mera Pahad

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #290 on: July 24, 2009, 04:12:45 PM »
Dear Sir, This is somewhat a unique idea and can be built on terms of Jammu and Kashmir.


हेम पन्त

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #291 on: July 24, 2009, 05:01:53 PM »
Sir,
Sorry to say but I don't support the idea of summer and winter capital. This will only dilute the intensity of Gairsain Capital movement.


Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #292 on: July 24, 2009, 05:21:12 PM »


mai bhi maffi chahta hoon, i m not in favour of 2 capitals of uk.. summar and winter...


rajdhani ho to sirf aur sirf.. gairsain.. jo uttarakhand andolan se hi naam aage laya gaya aur jo hamare pure uttarakhand ke liye sahi bhi hai...


पंकज सिंह महर

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #293 on: July 24, 2009, 06:35:18 PM »
४००० करोड़ रुपये के वर्तमान कर्ज और १६ हजार करोड़ के कर्जे में पैदा हुये इस राज्य में दो राजधानी बनाना कतई उचित नहीं है। वैसे भी दो राजधानियों वाला कान्सेप्ट अंग्रेजीयत का ही परिचायक है, जो गरीब देशों में हुकूमत कर रहे अपने अफसरों को ऐशो आराम मुहैय्या कराना ज्यादा उचित समझता था, बजाय जनता की समस्याओं के। लोकतंत्र में कभी भी इसे उचित नहीं कहा जा सकता कि कुछ भद्रजन गर्मी होते ही पहाड़ में चढें और सर्दी में नीचे ऊतर आये। जनता को सुविधा देने के लिये लोकतंत्र में शासन और प्रशासन होता है, अपनी सुविधा बढाने के लिये नहीं।
      जहां तक राजधानी का प्रश्न है, वह जनभावना के अनुरुप, इस राज्य की परिस्थिति के अनुरुप, इस राज्य के लिये अपनी जान कुर्बान होने वाले लोगों के सपने के अनुरुप गैरसैंण में ही होनी चाहिये।
    इस समय इस मुद्दे को भटकाने का नहीं, इस मुद्दे को प्रबलता देने का है, मेरा निवेदन है, विनम्र निवेदन है कि इस मुद्दे को राजनीतिक चश्मे को उतार कर अपनी अर्ताआत्मा और उन शहीदों की कुर्बानी, मुजफ्फरनगर की जलालत, आन्दोलन की भावना के नजरिये से देखना चाहिये, क्या आज हम सुख-सुविधाओं की चाह में इतने अहसान फरामोश हो गये हैं, कि इन सब चीजों का हमारे लिये कोई मोल नहीं रहा? आज जब बैठे-बिठाये हमें राज्य मिल गया, (क्योंकि संघर्ष करने वालों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।) आज जब हमें राज्य मिल गया तो हम हवाई जहाज, रेल देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में क्या हाल थे, याद नहीं है क्या?
         एक चेतावनी भी है, इस मुद्दे को भरमाने वालों के लिये कि जिस तरह यहां के राजनीतिक दलों ने बेशर्मी भरी राजनीति राज्य आन्दोलन के समय की थी, वैसा ही कुछ ये अब भी कर रहे हैं। लेकिन कुछ पागल, बेवकूफ और सिरफिरों (राज्य आन्दोलन को भरमाने वालों की नजर से) की इस बेवकूफी भरी मांग और संघर्ष का प्रतिफल है ,उत्तराखण्ड। जिसमें यह लोग खींसें निपोरकर अब विधायक बनने के लिये, लालबत्ती पाने के लिये यहां तक कि मुख्यमंत्री बनने के लिये मारा-मारी कर रहे हैं और सब यह बताने को अक्सर कोशिश करते हैं कि हम भी क्रान्तिकारी थे, हमने भी आन्दोलन में शिरकत किया था।

         यही सब गैरसैंण के लिये भी होगा, आखिरकार राजधानी जायेगी वहीं और इसे भरमाने वाले, झक मारकर, खिसियाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने बेशर्मों की तरह गैरसैंण ही आयेंगे, यह मेरा वादा है।

हुक्का बू

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #294 on: July 24, 2009, 06:40:47 PM »
NO SUMMER, NO WINTER
सिर्फ गैरसैंण जायेगी राजधानी,
जो करेगा, SUMMER-WINTER,
उसके भेल में लगाऊंगा हण्टर.

हेम पन्त

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #295 on: July 24, 2009, 06:47:22 PM »
इस समय 2 राजधानियों की बात करना तो ऐसे ही है, जैसे राज्य आन्दोलन के दौरान कुछ लोग कह रहे थे कि अगर उत्तरखण्ड केन्द्र शासित प्रदेश भी बन जाये तो हमें मन्जूर है... आखिर राज्य बना और वही लोग राज्य में कुर्सियों की दौड़ में शामिल रहे...

हलिया

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #296 on: July 24, 2009, 09:37:17 PM »
बुबू पैलाग हो.
होय, पै, क्या कुनोछा म्यार समझ मैं के नि आयो हो.  हंटर कै का लागला यो तो बताओ.  ???


NO SUMMER, NO WINTER
गैरसैंण जायेगी राजधानी, जो ऐसा करेगा,
उसके भेल में लगाऊंगा हण्टर

Lalit Mohan Pandey

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Re: Capital of Uttarakhand
« Reply #297 on: July 25, 2009, 10:37:34 AM »
Bahut se log ye question uth rahe hai ki rajdhani shift karna is an expensive affair, Bahut se logu ka ye tark hai ki naya sahar banana, nayi jagah rajdhani banana asan nahi hoga, isme bahut kharcha ayega etc etc, Per meri samajh mai nahi ata.. Jab Noida, Gurgaon jaise naye sahar basaye ja sakte hai to kyu nahi gairsain ko Rajdhani ke roop mai viksit kiya ja sakta hai iske liye sirf will power ki jarurat hai nothing else, agar koe imandari se kosis kare to. Bahut sare log kah rahe hai ki WE should think about development rather thinking about shifting of capital.. are bhai logu.. kya ye apne ap mai development nahi hai.. ek naya sahar hoga apne pahad mai ye kyu bhool jate ho....aj jab pithoragarh, almora, haldwani. nainital, dehradoon jaise sahru mai logu ko makan banane ke liye jameen tak nahi mil rahi hai.. un logu ke pass ek naya option hoga... upper likhe sahru mai jo population density itni bad gayi hai wo thoda kam hogi... Mai to sath mai ek wish or rakhta hu ki na sirf rajdhani gairsain shift honi chahiye..sath hi ek rule ban jana chahiye..jo uttarakhand ke mool niwasi hai wo hi sift gairsain mai jameen khareed sakte hai... bahar walu ne abhi jinhone jameen khareed bhi liyi hai sarkar ko land acquisition rule laga ke unse wapas le leni chahiye... 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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People want Gairsain to be the Capital of UK and no other place.
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गैरसैंण के सिवाय राजधानी कोई और मंजूर नहींJul 26, 12:55 am

चम्पावत। जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैंण को सूबे की स्थाई राजधानी बनाने की मांग को लेकर उक्रांद कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट पर धरना-प्रदर्शन करते हुए दल के स्थापना दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया। उन्होंने राज्य गठन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लोगों को फिर से चिन्हीकरण कर उन्हे राज्य आंदोलनकारी घोषित करने की मांग को लेकर प्रशासन के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन भेजा। शनिवार को जिलाध्यक्ष प्रहलाद सिंह मेहता की अगुवाई में उक्रांद कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर जोरदार नारेबाजी की और धरना दिया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने उत्तराखंड की राजधानी को जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए गैरसैंण ही बनाए जाने की वकालत की। उन्होंने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को पहाड़ विरोधी करार दिया। सभा में दल के स्थापना दिवस को उक्रांद कार्यकर्ताओं ने संकल्प दिवस के रूप में मनाते हुए राज्य की बेहतरी के लिए फिर संघर्ष की जरूरत बताई। वक्ताओं का कहना था कि अभी भी कई ऐसे लोग है जिन्होंने पृथक राज्य गठन में संषर्घ तो किया, लेकिन उन्हे वह सम्मान नही मिला है जिसके वह असली हकदार है। इसके लिए उन्होंने पुन: आंदोलनकारियों का चिन्हींकरण करने की मांग की है। सभा के बाद एक ज्ञापन एसडीएम टीएस मर्तोलिया के माध्यम से राज्यपाल को भेजा गया।

हुक्का बू

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गैरसैंण, उत्तराखण्ड के चमोली और अल्मोड़ा जनपद की सीमा में बसा हुआ एक छोटा सा कस्बा, जिसे उत्तराखण्ड आन्दोलन के आन्दोलनकारियों ने अपने प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया था। लम्बे संघर्ष, ५२ शहादतों, कई जलालतों के बाद आखिरकार प्रदेश बना, अपनी सरकारें बननी लगी, नेताओं को अस्थाई राजधानी देहरादून ज्यादा रास आने लगा। अब ये हुआ कि गैरसैंण का क्या किया जाय सो, ये मुद्दा कहीं गले न पड़ जाये, हल यह निकला कि एक आयोग बना दिया जाय, जिससे यह कुछ दिन के लिये टल जाये। एक रिटायर्ड जज साहब को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई कि हमारे प्रदेश की राजधानी कहां होनी चाहिये, आप बता दें।

      सरकारें बदलती रहीं, निजाम बदले, वजीर बदले और इस आयोग का कार्यकाल आठ बार बढ़ाया गया, लाखों रुपये खर्च हो गये।  २००० में गठित हुये इस आयोग की रिपोर्ट २००९ में इसी महीने प्रदेश के सर्वोच्च सदन उत्तराखण्ड विधान सभा में भी पेश हो गई, लोगों में उत्सुकता थी कि इस रिपोर्ट में है क्या, बुद्धिजीवियों को आशा थी कि अब इस रिपोर्ट पर सदन में चर्चा होगी और हमारे प्रतिनिधि विधायक सब मिलकर एक आम राय बनायेंगे। लेकिन उक्रांद के मात्र एक विधायक ने आक्रोश स्वरुप विधानसभा में ही इसकी प्रति फाड़ दी औरों ने जम्हाई आंखों से इन्हें देखा और बैठ गये। कितने शर्म की बात है कि राज्य के एक ज्वलंत सवाल पर हमारे प्रतिनिधियों ने चर्चा की ही मांग नहीं की।

      होना तो यह चाहिये था कि सदन में इस पर विस्तृत चर्चा की जाती, राजधानी घोषित करने के लिये १५-२० दिन का एक विशेष सत्र बुलाया जाता, क्योंकि विधानसभा लोकतंत्र की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था होती है और इससे बड़ी पंचायत प्रदेश में कुछ और होती नहीं और यह संस्था जब प्रदेश के लिये कानून बना सकती है तो स्थाई राजधानी पर भी निर्णय ले सकती है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, एक परम्परा, एक सामान्य कर्मचारी की तरह काम निपटाने सब विधायक आये और गये। और तो और जो पार्टी इस प्रदेश के लोगों की सर्वाधिक हितैषी और जन सरोकारों से जुड़े रहने का दावा करती है, उसके मंत्री और विधायकों की इस मुद्दे पर उदासीनता बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह गई। जब कि इस पार्टी के कार्यकर्ता इसी विधानसभा के बाहर इस मुद्दे पर आत्मदाह का प्रयास कर रहे थे?  अफसोस जनक तो यह है कि उत्तराखण्ड के हितों, भावनाऒं के घोषित पहरेदार ७० विधायकों में से किसी एक ने भी इस प्रदेश के सबसे अविलम्बनीय, लोक महत्व, जनभावना के इस सवाल पर सदन में चर्चा की मांग ही नहीं की।

तभी मुझे यह ख्याल आया कि -

गैर तो गैर हुये, तमाशा ये क्या हुआ? पूछते हैं लोग यारो, गैरसैंण का क्या हुआ?


 

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