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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 351752 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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सतपाल महराजी जी की जय हो ,लेकिन सतपाल ये वही वाली बात हो गयी की "दुसरे के बंगले को देखकर अपनी झोपडी को तोडना" हम क्यों दुसरे राज्यों को देखाका काम का रहे हैं उत्तराखंड में,हिमाचल और जम्बू काश्मीर के दो दो विधान सभा सत्र चलते हैं क्या आप भी यही चाहते हो की उत्तराखंड राज्य में भी दो दो सत्र चलें ,सतपाल महाराज जी अगर ऐसी बात है तो हो गया विकास उत्तराखंड का देहरादून राजधानी रही तो क्या उखाड़ लिया ,जो अब दो-दो विधान सभा सत्र बनाने की बात छेड़ रहे,दो-दो विधान सत्र चलाने से भी क्या उखाड़ लोगे एक से कुछ होता नहीं उत्तराखंड सरकार से !

Devbhoomi,Uttarakhand

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ये बात सच है कि गैरसैं राजधानी बनाने से विकास कि गति तेज पकड़ेगी लेकिन विकास हो गा किसका उन चोरों रिस्पत्कोरो का जो कि देहरदून में बैठकर भी अपना ही विकास कर रहे है !
और अगर राजधानी गैरसैण भी चली जाती है तो क्या उखाड़ लेगें ये सफेत चादर में लिपटे नेता और उनके चमचे,जनता बेचारी तो जहाँ थी वही रहेगी और जो वेरोजगारी आज है वो गैरसैं राजधानी जाने के बाद रहेगी और ये जरूर होगा कि चोरों पार्टी बाद जाएगी और फिर क्या जहाँ से निकले पहुँच गए वहीँ उन पहाड़ों को कोन क्या किसने क्या दिया,क्या देहरादून ने और क्या देगा गैरसैण ये वक्त ही बत्येगा कि क्या होता है कि क्या करते है उत्तराखंड कि वेबस सरकार,उत्तराखंड जैसे राज्य को मजबूर सरकार नहीं बल्कि मजबूत सरकार चाहिए तभी इस देवभूमि कहलाने वाले राज्य उत्तराखंड का विकास संभव है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखंड कि सरकार को सबसे पहले अपने मन,और इमानदारी का विकास करके ,बेमानी को त्यागकर फिर तब जाकर कहीं उत्तराखंड का विकास संभव है अन्यथा ये सब नेता उपनेता जो भी भाषण बाजी करके प्रेस में ब्यान बाजी करते हैं ये सब वेकार  हैं,मैं ये नहीं कहता हों कि दुसरे राज्यों कि सरकार में,  चोर वैमानऔर रिस्पत्खौर नहीं लेकिन दुसरे राज्यों कि सरकार २५% अपने जेब में डालती होगी तो ७५% राज्य के विकास में भी खर्च करती है,लेकिन उत्तरखंड कि सरकार को सायद ये वाली बात मालुम नहीं कि जियो और जीने दो, ये सिर्फ ये जानती है -जियो ,लेकिन कैसे उनको तो मालुम है कैसे लेकिन जनता वेचारी को नहीं ! ये लोग तो इस गर्मी में अपनी एयर कंडीसन कार में चलते हैं लेकिन जनता वेचारी ४० डिग्री  कि गर्मी में पैदल चलती है !

धनेश कोठारी

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आज एक नेता माने हैं। कल सभी को गैरसैंण का समर्थन तो करना ही पड़ेगा। वरना अपनी राजनीति भी खत्म मानिए। यों भी राजधानी पूरी ही पहाड़ में चाहिए।

पंकज सिंह महर

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महाराज की पहल का मैं स्वागत करता हूं। लेकिन मेरे एक-दो विरोध भी हैं, पहला विरोध यह है कि गैरसैंण को कुमाऊ-गढ़वाल के मध्य न बताया जाय, ऐसी क्षेत्रीय तर्क नहीं देने चाहिये। तर्क यह होना चाहिये कि गैरसैंण उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में स्थित है, वहां से पूरे उत्तराखण्ड के सभी छोरो की दूरी समान है और वह पृथक उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा को प्रदर्शित करता है।

दूसरा विरोध मेरा यह है कि गैरसैंण में विधान भवन बनाकर वहां पर सत्र आहूत करने वाली बात उत्तराखण्ड जैसे गरीब राज्य के लिये सही नहीं है। इससे होगा यह कि सरकार गर्मियों में १०-१२ दिन का सदन वहां पर आहूत कर देगी और देहरादून ही स्थाई राजधानी हो जायेगी। तब गैरसैंण के विचार को मजबूती नहीं मिलेगी। नेताओं को दीर्घकालिक सोच के साथ काम करना चाहिये। सोचने वाली बात यह है कि अगर १०-१२- दिनों के लिये राजधानी का इतना बड़ा सेटाप कहीं और ले जाया जायेगा तो उससे अतिरिक्त आर्थिक भार बढेगा और इसकी कोई सार्थकता नहीं रह पायेगी।

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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मैं पंकज दा की बात से बिलकुल सहमत हू गैरसैण मैं इतनी बर्फ नहीं पड़ती की सर्दियों मैं वहां पर रहना मुस्किल हो , गैरसैण पहाड़ी प्रदेश की स्थाई राजधानी हो यही समय की मांग है और जनता की भी, अगर राजनेता भी इस बात को समझ रहे हैं तो यह स्वागत योग्य कदम है

Ajay Tripathi (Pahari Boy)

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I don’t think that we should fight over the capital, capital should be in that place where the people can easily approach and save their time too…from my point of view it should be on a plain area whether it is Dehradun or Ramnagar or Haldwani as these are easily access able from the capital of India. At last we need to keep in our mind that we have to save the time and money.

Devbhoomi,Uttarakhand

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                    गैरसैण से भी संचालित हो विघानसभा: महाराज
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गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों का विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि गैरसैंण से भी विधानसभा संचालित न हो। उन्होंने प्रदेश सरकार पर वित्तीय पैकेज के नाम पर जनता को गुमराह करने का भी आरोप लगाया।

यहां आयोजित पत्रकार वार्ता में सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि जम्मू व हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी देहरादून व गैरसैण में विधानसभा संचालित हो। उन्होंने संसद में भी इस बात को उठाया व केंद्र से गैरसैण में विधानसभा भवन निर्माण के लिए सहयोग की अपेक्षा की। उन्होंने सभी दलों से इस मामले में एकजुट होने की अपील की।

उन्होंने बताया कि उनकी ओर से पैरामिलिट्री फोर्सेज व सेना के शहीदों के परिजनों को मिलने वाली सहायता के समान मानक लागू करने, सहायता राशि का हिस्सा शहीद के माता-पिता व पत्‍‌नी में बराबर वितरित करने की भी पैरवी की गई।

इसके अलावा दावानल को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की भी सिफारिश केंद्र से की है। सतपाल महाराज ने प्रदेश सरकार पर विशेष वित्तीय पैकेज के नाम पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हकीकत तो यह है कि उत्तराखंड राज्य सरकार ने केंद्र से किसी वित्तीय पैकेज की मांग ही नहीं की है। लोकसभा में उठाए गए एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में इसका खुलासा हुआ।

 वार्ता के दौरान कांग्रेस के कार्यवाहक जिलाध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री माधवी रावत, क्षेत्र पंचायत प्रमुख गीता नेगी, युकां जिलाध्यक्ष प्रमोद राणा, प्रवेश रावत, अनिल खंतवाल सहित कई अन्य मौजूद रहे।



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I do agree with the news of Dr Bisht
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पर्वतीय राज्य की अवधारणा   समाप्त हो रही है: डा.बिष्ट
                अल्मोड़ा। गैरसैंण स्थाई राजधानी स्थापित किए जाने की मांग को लेकर   उत्तराखण्ड लोकवाहिनी ने जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन   प्रेषित किया। ज्ञापन उलोवा के केन्द्रीय अध्यक्ष डा.शमशेर सिंह बिष्ट की   अगुवाई में सौंपा गया।
 मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा है कि स्वयं डा.रमेश पोखरियाल   निशंक राज्य आंदोलन के सिपाही रहे हैं। ऐसी स्थिति में राज्य आंदोलन के समय   उत्तराखण्ड की जनता ने भावी उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी स्थाई रूप से   गैरसैंण घोषित कर दी थी। उत्तराखण्ड राज्य की मूल अवधारणा ही पहाड़ी राज्य   की थी। उत्तर प्रदेश से अलग होने के लिए सबसे प्रबल तर्क यही था कि मैदानी   क्षेत्र के लिए बनी नीतियों को ही पहाड़ी क्षेत्रों में लागू कर देती है।   जिस कारण क्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए अलग पर्वतीय राज्य का   गठन किया जाए। इसी नीति के आधार पर राज्य का गठन किया गया। राज्य बनते समय   तत्कालीन कार्य के लिए अस्थाई राजधानी देहरादून घोषित कर दी गई।
 राज्य की जनता यह मान चुकी थी कि स्थाई राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में ही   होनी चाहिए। लेकिन पिछले 10 वर्षो में उत्तराखण्ड राज्य का मूल पहाड़ी   स्वरूप नष्ट करने के लिए नियम, कानून बनते रहे। यहां तक कि पहाड़ों के नाम   से मिले अनुदान को भी पहाड़ों में खर्च नहीं किया गया। इसका एक महत्वपूर्ण   कारक यह है कि उत्तराखण्ड राज्य का जिन शक्तियों ने आंदोलन के समय विरोध   किया था आज वही नेता व नौकरशाह राज्य में शक्तिशाली हो गए हैं। ये लोग अपनी   शक्तियां लगातार पहाड़ की अवधारणा को नष्ट करने के लिए सक्रिय हैं।
 डा.बिष्ट ने कहा है कि यदि पहाड़ की इसी प्रकार उपेक्षा की गई कि वह दिन   दूर नहीं जब राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के लोग बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे।   उलोवा ने शीघ्र ही गैरसैंण राजधानी घोषित करने की मांग की है।
   source : Dainik Jagran

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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मैं भी इस बात से सहमत हु, हमें एक बार फिर से चुनाव से पाहिले निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी, इसके लिए सारे उत्तराखंडी समुदाय को एक होना चाहिए

 

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