पिछले दिनों उत्तराखण्ड विधान सभा का सत्र हुआ, इसमें कई मुद्दे उठाये गये, उनमें राज्य की अस्मिता, अस्तित्व, परिकल्पना और ४२ शहीदों तथा लाखों उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों के सपने और भावनाओं से जुड़े एक विषय पर चर्चा भी हुई। यह मुद्दा था उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी गैरसैंण में बनाये जाने को लेकर, इस मुद्दे को सदन में एक असरकारी संकल्प के रुप में उठाया उक्रांद के युवा विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने। हालांकि त्रिपाठी जी ने २७ फरवरी, २००९ को ही यह संकल्प सदन के सामने रख दिया था। लेकिन सरकार बार-बार इस चर्चा को टालती रही और २७ मार्च, २०११ को ही इस पर सदन में चर्चा कराई गई। जब इस मुद्दे पर चर्चा हुई तो ७१ विधायकों की संख्या वाले इन सदन में मात्र एक विधायक काजी निजामुद्दीन ने इसका समर्थन किया। अपने आपको इस प्रदेश का सच्चा हितचिन्तक बताने और जताने वाले हमारे १० पर्वतीय जिलों के प्रतिनिधि के प्रतिनिधि इस विषय पर अगर खामोश रहकर ही सुनते तो और बात थी। लेकिन जब इस प्रदेश के इतने संवेदनशील और ज्वलंत विषय पर चर्चा हो रही थी तो हमारे ये जनप्रतिनिधि सदन में चर्चा से बचते नजर आये।
होना यह चाहिये था कि पार्टी लाईन को किनारे रखते हुए इस विषय पर इन सबको भागीदारी करनी चाहिये थी, इसमें से अधिकांश ऐसे सदस्य भी थे, जो उत्तराखण्ड आन्दोलन से ही नेता बने थे। ऐसे ही मसूरे के विधायक और प्रमुख आन्दोलनकारी जोत सिंह जी तो देहरादून में नया विधान भवन बनाने के लिये संकल्प तक लगा दिया है, इससे पहले श्रीमती अमृता रावत जी ने प्रश्न लगाया था कि केन्द्र से जो पैसा मिला है, क्या उस पैसे से गैरसैंण में भी विधान सभा बनायेगी। जहां इस मामले में सभी विधायक चुप्पी साधे रहे, वहीं देहरादून में नया विधान सभा भवन बनाने के लिये सभी विधायक मुखर हो गये, मात्र पुष्पेश त्रिपाठी ही इसके विरोध में वेल तक आ गये थे। लेकिन अकेला चना क्या भाड़ फोड़ता जनभावनाओं को नजरअंदाज करते हुये एक सात सदस्यीय समिति बना दी गई है, जो दो महीने में रिपोर्ट देगी कि देहरादून में कहां पर विधान सभा भवन बनाया जायेगा। यह समझ में नहीं आया कि जिस विधानसभा भवन में २००० से सदन सुचारु रुप से चल रहा था और २००२ में से लेकर ७१ विधायकों के संख्या पर भी यहीं से सदन चलता रहा तो आज यह छोटा कैसे हो रहा है, जब कि विधायकों की संख्या भी नहीं बढ़ी है। जब राज्य की राजधानी अस्थाई है तो विधान सभा भवन भी कामचलाऊ तो है ही, अच्छा होता कि सरकार भविष्य को देखते हुये गैरसैंण में भवन बनवा देती।
जब प्रदेश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था में ही जनभावनाओं की कोई कद्र न हो और हमारी बात कहने के लिये जिनको हमने वहां भेजा है, वह हमारी बात कहने से कतराते हों तो क्या करें। खैर जनता सब जानती है, मुझे उम्मीद है कि संघर्ष होगा और हम सब साथ होंगे और जैसे उत्तराखण्ड बनाया, वैसे ही इससा नवनिर्माण भी करेंगे और गैरसैंण भी राजधानी बनायेंगे।