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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 351621 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is really dis-appointing the way Uttarakhand MLA behaved on capital issue. The state was formed in view of fast development of hilly people of Uttarakhand and Gairsain was the proposed capital since from the beginning of struggle of the state.

Now the way this crucial being diluted is really sad. Surprisingly, the MLAs from hills are just least bothered about this issue. We appreciate the single voice on this issue of Mr Pushpesh Tripathi.

Our leaders should feel shame shame shame !!

 

पंकज सिंह महर

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Re: Should Gairsain Be Capital? -गैर हुआ गैरसैंण
« Reply #501 on: March 31, 2011, 05:08:48 AM »
'गैर' हुआ गैरसैंण
सपनों की राजधानी पर स्वार्थ का ग्रहण माननीयों के दून प्रेम से सकते में आ सकता है 'पहाड़' देहरादून।- वर्षो से स्थायी राजधानी का हवा में तैरता सवाल और उसके बीच माननीयों का रवैया, उत्तराखंड की जनता को निराश करने वाला रहा है। गत दिवस विधानसभा में गैरसैंण का संकल्प लाने वाले उक्रांद विधायक को इसकी उम्मीद भी नहीं रही होगी कि गैरसैंण संकल्प का इतना बुरा हस्र हो जाएगा। दीक्षित आयोग की रपट के बाद एक बार फिर से माननीयों के रुख से राज्य की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर सकती है। पहाड़ की राजनीतिक करके देहरादून में आलीशान बंगले बना चुके विधायकों की गैरसैंण से बेरुखी तो झलकती थी, लेकिन वे अपनी जुबान पर गैरसैंण शब्द को भी नहीं लाएंगे इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था। हालांकि प्रख्यात जनकवि गिर्दा को इसका अंदाजा पहले ही था। इस बात को प्रदेश का बच्चा-बच्चा समझने लगा है कि गैरसैंण में राजधानी बनाने का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने वाला है। दून घाटी में लगातार राजधानी की सुविधाओं के विस्तार से गैरसैंण की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। बावजूद इसके पिछले लोकसभा चुनाव में पहाड़ का वोट झटकने के लिए जिस तरह से पहाड़ में गैरसैंण का राग अलापा गया, उससे इतना तो लग ही रहा था कि पहाड़ की राजनीति करने वाले विधायकगणों के दिलों में गैरसैंण के लिए 'चुनावी प्रेम' तो बचा ही होगा। शुक्रवार को विधानसभा में गैरसैंण के गुब्बारे की हवा निकालने के बाद विधायकों ही नहीं राजनीतिक दलों के लिए पहाड़ का सामना करने की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय राजधानी का मसला प्रमुखता से उठा था। तब आंदोलनकारी ताकतों ने गैरसैंण के पक्ष में अपनी सहमति जताते हुए यह भी नारा दिया था कि 'जो गैरसैंण की बात करेगा, उत्तराखंड पर राज करेगा'। संगठनों के दबाव में सभी राजनीतिक दल गैरसैंण के मसले पर एकमत भी हुए थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार द्वारा गठित एक मंत्रीमंडलीय समिति (रमा शंकर कौशिक) ने रायशुमारी के बाद गैरसैंण के पक्ष में ही रिपोर्ट दी थी। उस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गैरसैंण को 60.21 फीसद अंक मिले थे, जबकि नैनीताल को 3.40, देहरादून को 2.88, रामनगर-कालागढ़ को 9.95, श्रीनगर गढ़वाल को 3.40, अल्मोड़ा को 2.09, नरेंद्रनगर को 0.79, हल्द्वानी को 1.05, काशीपुर को 1.31, बैजनाथ-ग्वालदम को 0.79, हरिद्वार को 0.52, गौचर को 0.26, पौड़ी को 0.26, रानीखेत-द्वाराहाट को 0.52 फीसद अंक मिलने के साथ ही किसी केंद्रीय स्थल को 7.25 फीसद अन्य को 0.79 प्रतिशत ने अपनी सहमति दी थी। गैरसैंण के साथ ही केंद्रीय स्थल के नाम पर राजधानी बनाने के पक्षधर लोग 68.85 फीसद थे। 'राजधानी का मुद्दा जजबाती नहीं होना चाहिए। राजधानी की घोषणा को लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर किया जाना बेहद जरूरी है। सरकार राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। रिपोर्ट पर बहस के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए।' सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:-निर्णय सरकार को करना है। सूर्यकांत धस्माना, कांग्रेस नेता चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही पार्टियों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात पर ही चुनाव जीता है। सदन की कार्यवाही में गैरसैंण को लेकर जिस प्रकार की गतिविधि देखी गयी वह बेहद निराशाजनक है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:- केवल गैरसैंण। कमला पंत, राज्य आंदोलनकारी मैंने अभी पूरी जानकारी हासिल नहीं की है। जहां भी बने शीघ्र बने। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-पता नहीं। रविन्द्र जुगरान, राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष जनता के साथ सदन में एक बार फिर धोखा हुआ है। कांग्रेस और विधायकों ने राजधानी गैरसैण को लेकर जो रवैया अपनाया है बेहद शर्मनाक है। सवाल:- राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-निश्चित रूप से पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। प्रदीप कुकरेती, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी राजधानी का तो कोई मुद्दा ही नहीं है। जब गैरसैंण को लेकर आंदोलन हुआ इसी नाम पर ही राज्य का गठन हुआ तो अब बहस किस बात की हो रही है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां मोहन सिंह रावत, राज्य आंदोलनकारी मंच संगठन मंत्री राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। यदि यूकेडी नेता सदन में राजधानी के मुद्दे पर समर्थन चाहते थे तो उन्हें पहले वार्ता करनी चाहिए थी। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां। लालचंद शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष कांग्रेस राजधानी मुद्दे पर राय


साभार-http://pahar1.blogspot.com/2011/03/blog-post_31.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बिलकुल सही.... गैर हुवा अब गैरसैंन

हमें तो अपनों (निशंक.. हरक और आदि तमाम) ने लूटा गैरो में कहाँ दम था!

एसे जैसे पहाड़ के हितो की बात करने वाले कुकर्मी नेताओ को आज गैरसैंन बेगाना लगता है ! शर्म करो शर्म करो..



'गैर' हुआ गैरसैंण
सपनों की राजधानी पर स्वार्थ का ग्रहण माननीयों के दून प्रेम से सकते में आ सकता है 'पहाड़' देहरादून।- वर्षो से स्थायी राजधानी का हवा में तैरता सवाल और उसके बीच माननीयों का रवैया, उत्तराखंड की जनता को निराश करने वाला रहा है। गत दिवस विधानसभा में गैरसैंण का संकल्प लाने वाले उक्रांद विधायक को इसकी उम्मीद भी नहीं रही होगी कि गैरसैंण संकल्प का इतना बुरा हस्र हो जाएगा। दीक्षित आयोग की रपट के बाद एक बार फिर से माननीयों के रुख से राज्य की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर सकती है। पहाड़ की राजनीतिक करके देहरादून में आलीशान बंगले बना चुके विधायकों की गैरसैंण से बेरुखी तो झलकती थी, लेकिन वे अपनी जुबान पर गैरसैंण शब्द को भी नहीं लाएंगे इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था। हालांकि प्रख्यात जनकवि गिर्दा को इसका अंदाजा पहले ही था। इस बात को प्रदेश का बच्चा-बच्चा समझने लगा है कि गैरसैंण में राजधानी बनाने का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने वाला है। दून घाटी में लगातार राजधानी की सुविधाओं के विस्तार से गैरसैंण की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। बावजूद इसके पिछले लोकसभा चुनाव में पहाड़ का वोट झटकने के लिए जिस तरह से पहाड़ में गैरसैंण का राग अलापा गया, उससे इतना तो लग ही रहा था कि पहाड़ की राजनीति करने वाले विधायकगणों के दिलों में गैरसैंण के लिए 'चुनावी प्रेम' तो बचा ही होगा। शुक्रवार को विधानसभा में गैरसैंण के गुब्बारे की हवा निकालने के बाद विधायकों ही नहीं राजनीतिक दलों के लिए पहाड़ का सामना करने की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय राजधानी का मसला प्रमुखता से उठा था। तब आंदोलनकारी ताकतों ने गैरसैंण के पक्ष में अपनी सहमति जताते हुए यह भी नारा दिया था कि 'जो गैरसैंण की बात करेगा, उत्तराखंड पर राज करेगा'। संगठनों के दबाव में सभी राजनीतिक दल गैरसैंण के मसले पर एकमत भी हुए थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार द्वारा गठित एक मंत्रीमंडलीय समिति (रमा शंकर कौशिक) ने रायशुमारी के बाद गैरसैंण के पक्ष में ही रिपोर्ट दी थी। उस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गैरसैंण को 60.21 फीसद अंक मिले थे, जबकि नैनीताल को 3.40, देहरादून को 2.88, रामनगर-कालागढ़ को 9.95, श्रीनगर गढ़वाल को 3.40, अल्मोड़ा को 2.09, नरेंद्रनगर को 0.79, हल्द्वानी को 1.05, काशीपुर को 1.31, बैजनाथ-ग्वालदम को 0.79, हरिद्वार को 0.52, गौचर को 0.26, पौड़ी को 0.26, रानीखेत-द्वाराहाट को 0.52 फीसद अंक मिलने के साथ ही किसी केंद्रीय स्थल को 7.25 फीसद अन्य को 0.79 प्रतिशत ने अपनी सहमति दी थी। गैरसैंण के साथ ही केंद्रीय स्थल के नाम पर राजधानी बनाने के पक्षधर लोग 68.85 फीसद थे। 'राजधानी का मुद्दा जजबाती नहीं होना चाहिए। राजधानी की घोषणा को लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर किया जाना बेहद जरूरी है। सरकार राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। रिपोर्ट पर बहस के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए।' सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:-निर्णय सरकार को करना है। सूर्यकांत धस्माना, कांग्रेस नेता चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही पार्टियों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात पर ही चुनाव जीता है। सदन की कार्यवाही में गैरसैंण को लेकर जिस प्रकार की गतिविधि देखी गयी वह बेहद निराशाजनक है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:- केवल गैरसैंण। कमला पंत, राज्य आंदोलनकारी मैंने अभी पूरी जानकारी हासिल नहीं की है। जहां भी बने शीघ्र बने। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-पता नहीं। रविन्द्र जुगरान, राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष जनता के साथ सदन में एक बार फिर धोखा हुआ है। कांग्रेस और विधायकों ने राजधानी गैरसैण को लेकर जो रवैया अपनाया है बेहद शर्मनाक है। सवाल:- राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-निश्चित रूप से पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। प्रदीप कुकरेती, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी राजधानी का तो कोई मुद्दा ही नहीं है। जब गैरसैंण को लेकर आंदोलन हुआ इसी नाम पर ही राज्य का गठन हुआ तो अब बहस किस बात की हो रही है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां मोहन सिंह रावत, राज्य आंदोलनकारी मंच संगठन मंत्री राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। यदि यूकेडी नेता सदन में राजधानी के मुद्दे पर समर्थन चाहते थे तो उन्हें पहले वार्ता करनी चाहिए थी। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां। लालचंद शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष कांग्रेस राजधानी मुद्दे पर राय


साभार-http://pahar1.blogspot.com/2011/03/blog-post_31.html

हलिया

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यार भाई लोगो, गैरसैण के मामले में कुछ करना ही पडेगा हो.  ये लातों ले भूत बातों से नहीं मानने वाले हैं.   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अब सिर्फ एक ही इलाज है!

जन आन्दोलन.... पहाडो में अपने लोगो गुमराह कर रहे पहाड़ी नेताओ का भूत भागना पड़ेगा !

ये नेताओ ने पहाडो को बेच डाला.  सिर्फ विकास के नाम पर राजनीति है ! पहाड़ की विकास की उपलब्धि की बात करने वाले मुख्यमंत्री ही पहाड़ में नहीं जाना चाहते और अब तो चुनाव भी देहरादून से लड़ने की तैयारी !

झूठे दावे करने वाले ..... और विकास ने नाम पर सिर्फ शिलानाश करने वाले ... चोरो को अब नहीं छोड़ना है !

आज नहीं कल राजधानी. सिर्फ gairsain ही hogee !


Bhopal Singh Mehta

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We need capital gairsain at any cost.

let us continue our fight.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I had a word with Kashi Sigh Aeri Ji yesterday and tried to know his views and UKD objective on this crucial issue.

He tried that his party is going to organize rallies at different places in Uttarakhand and will not let down the issue at all.

I think.. coming above the political interest people must support this.


Jitendra Singh Mehta

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sarkaar ko
gairsain hi uttarakhand ki rajdhani banani hogi...

dosto aap ka kya kehna hai

Jitendra Singh Mehta

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I think this is one issue which has been put under carpet by ruling and opposition parties in Uttrakhand...they have changed the name , but have done little to the cause of its Capital, strongly support Gairsain

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahipal Singh Mehta Why Uttarakhand Govt is silent on its capital issue

http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/should-gairsain-be-capital/ Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए? www.merapahadforum.comShould Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?12 hours ago · Like ·  · Share
  • Pankaj Rawat पंकज रावत, Anubhav Upadhyay, Pankaj Singh Mahar and 3 others like this.
    • Devender Bisht I think this is one issue which has been put under carpet by ruling and opposition parties in Uttrakhand...they have changed the name , but have done little to the cause of its Capital, strongly support Gairsain !as Captipt8 hours ago · Like ·  1 person
    • Devender Bisht Thanks Mr Pant7 hours ago · Like
    • Mahipal Singh Mehta I second your views Bisht ji.. It is very sad to see only Mr Puspesh Tripathi raised this issue.. Pahad ke hito kee bat karne waale .. saare chore netwao ne is mudde par apne juban par tala lagaya.. i am very upset... Mr Nishank .. Harak Singh Rawat.. ... all these Leaders should feel shame.. shame shame!a few seconds ago · Like

 

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