[justify]'पहाड़ में कुछ नहीं' कहने वालों के लिए एक जवाब और हमारे बेरोजगार युवाओं के लिए एक जीवंत प्रेरक प्रसंग-
हौसले और मेहनत से सफलता चरण चूमती है, यह बात पनौरा कपकोट के गंगा सिंह कपकोटी ‘गंग दा’ के लिए सटीक बैठती है। कड़ी मेहनत से उनके खेत सोना उगल रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने गाय और भैंसें भी पाल रखी हैं। इस कारोबार से उन्हें साल में लगभग सवा चार लाख रुपये की आमदनी हो रही है।
पनौरा गांव के दिवंगत दलीप सिंह के 52 वर्षीय बेटे गंगा सिंह कपकोटी बचपन से ही मेहनती रहे हैं। कृषि, बागवानी, शाकभाजी और पशुपालन का कार्य उन्हें विरासत में मिला है। पहले खेतों में अपने खाने भर का होता था। हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद वह कृषि के कार्य में जमकर जुट गए। उनके खेत में इस समय आम के डेढ़ सौ, माल्टा के 30, अमरूद के 20, केले के 400, कागजी नीबू के 20 और अखरोट के पांच पेड़ फल दे रहे हैं। इनकी बिक्री से साल भर में डेढ़ लाख की आमदनी हो रही है। 20 नाली के खेतों में फूल गोभी, बंद गोभी, प्याज, मूली, लाही, लहसुन, अदरक, हल्दी और मटर लहलहा रही है। सब्जी की बिक्री से भी साल भर में डेढ़ लाख रुपये की आय हो रही है। इसी तरह उनके पास तीन दुधारू भैंस और पांच थन वाली एक जर्सी गाय है। दूध और घी की बिक्री से उन्हें साल मेें सवा लाख रुपये की आय हो रही है। गंग दा सुबह चार बजे जागकर नित्यकर्म के बाद खेतों में जुट जाते हैं जबकि पत्नी हेमा देवी घर के काम निपटाकर उनका सहयोग करती हैं। बड़े बेटे मनोज ने भी इंटर के बाद इसी कार्य को अपना लिया है। गंग दा कहते हैं कि रोजगार के लिए पलायन से अच्छा तो शाकभाजी और पशुपालन के काम करना चाहिए।
कई बार सम्मानित हुए हैं गंग दा
बागेश्वर। पनौरा गांव के उद्यमी गंगा सिंह कपकोटी की मेहनत देखते हुए उन्हें उत्तरायणी मेला समिति बागेश्वर ने 2007, 08, कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में उन्हें 2009 में नेहरू युवा ग्राम विकास समिति हरिद्वार, हॉल्टीकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन ने 2007 और इंडो हॉल्टीकल्चर टेक्नोलॉजी के प्रबंधक ने 2012 में प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
दही और मट्ठा पीने को देते हैं गंग दा
बागेश्वर। पनौरा गांव के गंग दा के घर जो कोई भी जाता है, उसे चाय की जगह दही या मट्ठा पीने को मिलता है। घर जाते समय शाम के खाने भर शब्जी अवश्य दी जाती है। इसे वह अपना सौभाग्य मानते हैं।
साभार - गणेश उपाध्याय (अमर उजाला बागेश्वर)