Author Topic: उत्तराखंड के मांझीः पहाड़ काट बनाई सड़क उत्तराखंड के कर्णप्रयाग जिले में  (Read 8943 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

There are many such exemplary people in the society who challenge Govt on various development related work. Here is an example.

उत्तराखंड के मांझीः पहाड़ काट बनाई सड़क

वन अधिकारियों द्वारा पहाड़ के लिए प्रस्ताविक एक सड़क योजना को पास करने में काफी देर हो रही थी। इस देर से थककर उत्तराखंड के कर्णप्रयाग जिले के आसपास के गांवों के लगभग 300 ग्रामीणों ने माउंटेन मैन दशरथ मांझी के नक्शेकदम पर चलने का फैसला किया। जिस तरह मांझी ने अकेले ही 22 साल तक पहाड़ काटकर सड़क बना दी, वैसे ही इन ग्रामीणों ने पहाड़ पर बसे 2 गांवों को आपस में जोड़ने के लिए 10 दिन की अपनी मेहनत से 3 किलोमीटर लंबी एक सड़क बनाई। (source Navbharatimes).

M S Mehta



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 इन ग्रामीणों ने 10 दिन तक हर रोज 8-9 घंटे मिलकर काम किया। उनका कहना है कि इस सड़क को बनाने के लिए उन्होंने एक भी पेड़ नहीं काटा। दिलचस्प यह है कि वन अधिकारी अरसे से इस सड़क परियोजना को मंजूरी इसलिए नहीं दे रहे थे कि उन्हें डर था कि सड़क बनाने के लिए पेड़ काटने पड़ेंगे।

56 साल के कुंवर सिंह पहले नौकरी में थे। इस सड़क को बनाने में उन्होंने भी अपनी मेहनत का योगदान किया है। वह बताते हैं, 'हम पर्यावरण की रक्षा में पुख्ता यकीन रखते हैं। हम सबने तय किया था कि सड़क बनाने के लिए हम एक भी पेड़ नहीं काटेंगे। भाग्यवश उस रास्ते में ज्यादा पेड़ नहीं थे।'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 इस सड़क को बनाने वालों में से ज्यादातर ग्रामीण भटक्वली, चोरासैन और बैनोली गांव के हैं। यह सारे गांव राजधानी देहरादून से लगभग 200 किलोमीटर दूर हैं। इन गांवों की ऊंचाई समुद्रतल से 5,000 से 7,000 फुट है। यहां एक गांव से दूसरे गांव जाने में काफी मुश्किलें पेश आती हैं। लोगों को काफी घूमकर जाना पड़ता है। ये ग्रामीण काफी समय से इस सड़क के बनने का इंतजार कर रहे थे। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत बनने वाली यह सड़क इन ग्रामीणों की जिंदगी को आसान बनाने वाली थी।

ऐसे में वन विभाग की ओर से सिग्नल नहीं मिलना ग्रामीणों के लिए बड़ा झटका था। पुष्पा देवी इसी गांव की रहने वाली हैं। वह बताती हैं, 'हमने एक सभा की और तय किया कि हम खुद ही सड़क बनाएंगे। हमने अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए सर्वे योजना के मुताबिक काम किया। सड़क निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सभी सामग्री प्राकृतिक थी। पत्थरों और पहाड़ के किनारों से मिलने वाली मिट्टी का इस्तेमाल सड़क के दोनों ओर पत्थर की दीवार को बनाने में किया गया। ग्रामीणों ने अपना समय और श्रम दिया और सड़क निर्माण में ज्यादा खर्च नहीं हुआ।'

http://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttarakhand/dehradun/a-hamlet-in-uttarakhand-works-together-to-build-a-long-awaited-road/articleshow/49524312.cms

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी इस काम में सक्रिय भागीदारी की। संघर्ष समिति में ज्यादातर महिलाएं ही थीं। भटकावली गांव की महिला मंगल दल की सदस्य महेश्वरी देवी कहती हैं कि महिलाएं इस योजना में शामिल होने के लिए उत्साहित थीं क्योंकि उन्हें पता था कि सड़क के अभाव में उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं, 'हम में से हर कोई हमारे गांव का अन्य गांवों के साथ सड़क संपर्क स्थापित होने को लेकर बेहद उत्साहित था ताकि हमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा के मौके मिल सकें। हमें लगा कि खुद सड़क बनाना अधिकारियों की ओर से दिखाई जा रही उदासीनता का माकूल जवाब साबित होगा।'

इस सड़क का निर्माण 15 अक्टूबर को पूरा हो गया, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई है। गोपेश्वर स्थित आधिकारिक दफ्तर के एक अधिकारी ने बताया कि उनका विभाग जल्द ही एक सर्वे कर पता करेगा कि क्या ग्रामीणों के दावे के मुताबिक सच में ही किसी पेड़ को नहीं काटा गया। http://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttarakhand/dehradun/a-hamlet-in-uttarakhand-works-together-to-build-a-long-awaited-road/articleshow/49524312.cms


 

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