Poll

पहाड़ी महिलाओ के दयनीय जीवन के लिए कौन जिम्मेवार ?

Conservative Rules of Society
4 (36.4%)
Geographical Condition
3 (27.3%)
Education
3 (27.3%)
Can't say
1 (9.1%)

Total Members Voted: 7

Voting closed: January 15, 2008, 11:42:20 AM

Author Topic: Tough Life of Women In Uttarakhand - पहाड़ की नारी का कष्ट भरा जीवन  (Read 61210 times)

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #10 on: November 01, 2007, 10:41:05 AM »
मेहता जी
मेरा यह भी कहना है की गाँव में महिलाओं की समस्याओं के साथ ही उनके द्वारा किए गए श्रम को काम की श्रेणी में क्यों नही रखा जाता है.  महिलाऐं जो जंगल जाती हैं, खेतों में काम करती है, घर पर काम करती हैं उस काम का हमारी अर्थव्यवस्था मैं कोई योगदान नही है? क्या उन महिलाओं का योगदान एक ऑफिस मैं काम करने वाली महिला से कम है? क्या इस सम्बन्ध में समाज की सोच को बदलने की जरुरत नही है? अगर सभी पढी लिखी महिलाऐं केवल ऑफिस के काम को ही काम समझेंगी तो फ़िर इस समाज का क्या होगा.  जो महिलाऐं घर पर, खेतों पर, जंगल जाकर काम कर रही हैं उन महिलाओं को केवल दीन हीन के रूप मैं पहचाने जाने वाली मानसिकता को भी रोकना होगा.   हमारे समाज में पता नही क्यों शारीरिक श्रम को महत्व नही दिया जाता, जिसका योगदान समाज के लिए सबसे ज्यादा है.   
मेरे दृष्टिकोण से उनके द्वारा किया जा रहा कार्य समाज के लिए किसी महिला द्वारा अन्य क्षेत्रों में किए कार्य से किसी भी प्रकार कम नही है.  इसलिए उन महिलाओं के उत्थान के लिए, किए जाने वाले कार्यों के साथ साथ   उनके द्वारा किए जा रही कार्य को भी महत्व दिया जन जरुरी है.   शारीरक श्रम को महत्व दिए जाने की बजाय  उसे छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाना समाज का विकास नही कर सकता, यह केवल मनुष्य को कर्महीन बनाएगा.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #11 on: November 01, 2007, 10:44:58 AM »
Bilkul sahi kaha aapne Joshi ji.

मेहता जी
मेरा यह भी कहना है की गाँव में महिलाओं की समस्याओं के साथ ही उनके द्वारा किए गए श्रम को काम की श्रेणी में क्यों नही रखा जाता है.  महिलाऐं जो जंगल जाती हैं, खेतों में काम करती है, घर पर काम करती हैं उस काम का हमारी अर्थव्यवस्था मैं कोई योगदान नही है? क्या उन महिलाओं का योगदान एक ऑफिस मैं काम करने वाली महिला से कम है? क्या इस सम्बन्ध में समाज की सोच को बदलने की जरुरत नही है? अगर सभी पढी लिखी महिलाऐं केवल ऑफिस के काम को ही काम समझेंगी तो फ़िर इस समाज का क्या होगा.  जो महिलाऐं घर पर, खेतों पर, जंगल जाकर काम कर रही हैं उन महिलाओं को केवल दीन हीन के रूप मैं पहचाने जाने वाली मानसिकता को भी रोकना होगा.   हमारे समाज में पता नही क्यों शारीरिक श्रम को महत्व नही दिया जाता, जिसका योगदान समाज के लिए सबसे ज्यादा है.   
मेरे दृष्टिकोण से उनके द्वारा किया जा रहा कार्य समाज के लिए किसी महिला द्वारा अन्य क्षेत्रों में किए कार्य से किसी भी प्रकार कम नही है.  इसलिए उन महिलाओं के उत्थान के लिए, किए जाने वाले कार्यों के साथ साथ   उनके द्वारा किए जा रही कार्य को भी महत्व दिया जन जरुरी है.   शारीरक श्रम को महत्व दिए जाने की बजाय  उसे छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाना समाज का विकास नही कर सकता, यह केवल मनुष्य को कर्महीन बनाएगा.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #12 on: November 01, 2007, 11:13:00 AM »


Rajesh Ji,

Thanx for your views on this issue.

There is need to reconize the works of women but so far as their condition is concerned, no major changes have been taken place.

May i reqeust you to kindly give your views as to who you mainly held responsible for the pathic conditon of women in pahad. 

मेहता जी
मेरा यह भी कहना है की गाँव में महिलाओं की समस्याओं के साथ ही उनके द्वारा किए गए श्रम को काम की श्रेणी में क्यों नही रखा जाता है.  महिलाऐं जो जंगल जाती हैं, खेतों में काम करती है, घर पर काम करती हैं उस काम का हमारी अर्थव्यवस्था मैं कोई योगदान नही है? क्या उन महिलाओं का योगदान एक ऑफिस मैं काम करने वाली महिला से कम है? क्या इस सम्बन्ध में समाज की सोच को बदलने की जरुरत नही है? अगर सभी पढी लिखी महिलाऐं केवल ऑफिस के काम को ही काम समझेंगी तो फ़िर इस समाज का क्या होगा.  जो महिलाऐं घर पर, खेतों पर, जंगल जाकर काम कर रही हैं उन महिलाओं को केवल दीन हीन के रूप मैं पहचाने जाने वाली मानसिकता को भी रोकना होगा.   हमारे समाज में पता नही क्यों शारीरिक श्रम को महत्व नही दिया जाता, जिसका योगदान समाज के लिए सबसे ज्यादा है.   
मेरे दृष्टिकोण से उनके द्वारा किया जा रहा कार्य समाज के लिए किसी महिला द्वारा अन्य क्षेत्रों में किए कार्य से किसी भी प्रकार कम नही है.  इसलिए उन महिलाओं के उत्थान के लिए, किए जाने वाले कार्यों के साथ साथ   उनके द्वारा किए जा रही कार्य को भी महत्व दिया जन जरुरी है.   शारीरक श्रम को महत्व दिए जाने की बजाय  उसे छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाना समाज का विकास नही कर सकता, यह केवल मनुष्य को कर्महीन बनाएगा.


Uttaranchali Nauni

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #13 on: November 01, 2007, 06:31:40 PM »
waise life miserable hain coz... unke pass koi opton bhi to nahi ..agar pyass hain to gadna ma jaan padlu..agar bhukh hain to chulha jalane k lakdi bhi chaiye ..aur agar ......khana hain to ...kheti bhi karni hogi ..na srf ladkiyan balki waha k ladke bhi utna hi struggle karte hain ... ( jungle mn jane se , kheti karne tak ) ...agr hum rozi roti ka samadhan dhondte hain to automatically burden kam ho jayega ....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #14 on: November 02, 2007, 09:38:47 AM »

Well said Vedika Ji.

See some revelent news also.

कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष करें महिलाएंNov 01, 02:43 am

नौगांव (उत्तरकाशी)। वी कैन मुमकिन है अभियान के तहत महिलाओं के प्रति हर हिंसा का अंत विषय पर आयोजित कार्यशाला में वक्ताओं ने कहा कि समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ महिलाओं को संघर्ष करना चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि बिना तर्क की परंपराएं विकास में बाधक होती हैं।

कार्यशाला का उद्घाटन मुख्य अतिथि गढ़वाल विकास केंद्र टिहरी की मीरा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। उन्होंने कहा कि चेंजमेकर्स उन प्रेरित लोगों का प्रगतिशील समुदाय हैं जिन्होंने महिलाओं के प्रति सभी प्रकार की हिंसा का समाप्त करने का बीड़ा उठाया हैं। जिला समन्वयक आनंदी राणा ने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य उद्ेश्य घरेलू हिंसा को रोकना है। जिसके लिए आने वाले समय में कम से कम दस लोगों को महिलाओं पर हिंसा और उनके प्रति भेदभाव नहीं करने के लिये प्रेरित किया जाएगा। उन्होंने जानकारी दी कि 2005 में इस अभियान को शुरू किया गया था। इस अवसर पर 25 नए चेंज मेकर्स बनाए जाने का भी निर्णय लिया गया। कार्यक्रम में शिरकत करते हुए प्रधान संघ अध्यक्ष जगेंद्र सिंह राणा एवं देवराना घाटी फल एवं सब्जी उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष जयेंद्र राणा ने महिला पुरूषों की बराबर की भागीदारी के साथ भ्रूण हत्या, यौन शोषण, छेड़छाड़, बलात्कार, देह व्यापार, घरेलू हिंसा और दहेज प्रथा के प्रति जागरूकता बढ़ाने की बात कही। कार्यशाला को समृद्धि संस्था के जगदीप रावत, रवांई बहुउद्देशीय स्वायत्त समिति की अध्यक्षा बीना बंधानी, हार्क की अमिता काला, राइंका एनसीसी प्रभारी केंद्र सिंह असवाल ने भी संबोधित किया।



waise life miserable hain coz... unke pass koi opton bhi to nahi ..agar pyass hain to gadna ma jaan padlu..agar bhukh hain to chulha jalane k lakdi bhi chaiye ..aur agar ......khana hain to ...kheti bhi karni hogi ..na srf ladkiyan balki waha k ladke bhi utna hi struggle karte hain ... ( jungle mn jane se , kheti karne tak ) ...agr hum rozi roti ka samadhan dhondte hain to automatically burden kam ho jayega ....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #15 on: November 06, 2007, 09:51:09 AM »
पहाड़ी से गिरकर युवती की मौतNov 06, 02:35 am

देवप्रयाग (टिहरी गढ़वाल)। घास काटने गई युवती की पहाड़ी से गिरकर दर्दनाक मौत हो गई। तुणगी गांव निवासी उक्त युवती मुनेठ में निर्माणाधीन बांध स्थल के समीप घास लेने के लिए गई थी।

देवप्रयाग के समीपवर्ती गांव तुणगी निवासी 19 वर्षीय सुशीला पुत्री संतू सिंह की मुनेठ में पहाड़ी से फिसलकर दर्दनाक मौत हो गई। जानकारी के अनुसार युवती अन्य महिलाओं के साथ यहां घास लेने गई थी। लेकिन जब वह एक कच्चे रास्ते पर घास निकालने का प्रयास कर रही थी तो अचानक उसका पांव फिसल गया। इससे युवती कई सौ फीट नीचे भागीरथी तट पर जा गिरी। गिरते ही उसकी मौत हो गई। यहां काम कर रहे एनएचपीसी कामगार युवती का शव निकालकर सड़क तक लाए। गांव में यह खबर पहुंचते ही शोक की लहर दौड़ गई।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #16 on: November 08, 2007, 01:40:55 PM »
फिर की गई महिलाओं की उपेक्षा
 
विनोद वर्मा  बीबीसी हिंदी संवाददाता, उत्तराखंड से
 
 

महिलाओं के जिम्मे सारे घरेलू कामकाज का बोझ है और अब तक वह सिर्फ़ वोट है
उत्तराखंड के सामान्य जीवन में महिलाओं की उपस्थिति किसी दूसरे प्रदेश की तुलना में कुछ अधिक दिखती है.
और यह अधिक उपस्थिति सामान्य जीवन से ऊपर उठकर राजनीतिक जीवन में भी दिखती है.

ख़ासकर तब, जब यह आँकड़ा मिलता है कि उत्तराखंड के आधे विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है.

लेकिन यह उपस्थिति राजनीतिक दलों की उम्मीदवारों की सूची से बिलकुल नहीं झलकती. वहाँ स्थिति बिल्कुल दूसरी है.

किसी भी राजनीतिक दल ने टिकट बाँटने में महिलाओं को प्राथमिकता सूची में नहीं रखा है.

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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mahender_sundriyal

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नमस्कार,
इस विषय पर एक पुरानी बात याद आ रही है.  मैं एक शादी में सम्मिलित होने के लिए पहाड़ गया हुआ था.  वहीं पर इस विषय पर बातचीत हो रही थी.  तभी बातचीत में दखल देते हुए एक वृद्ध सज्जन बोले "अरे तुम शहरी लोग क्या बोलोगे.  हम पहाड़ में सारे साल में सिर्फ़ चार दिन हल चलाते हैं और फिर सारे साल ऐश करते हैं.  सारा काम औरतें ही करती हैं.  जबकि तुम शहरी लोगों का हिसाब किताब उलटा है.  तुम रोज़ दफ्टर काम काज के लिए चले जाते हो, सारे दिन काम करते हो, शाम को थक हार कर घर आते हो.  और तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारे घर से निकलते ही आराम करना शुरू कर देती हैं और शाम तुम्हारे आने तक आराम फरमाती हैं.  बताओ किस कि गति ज़्यादा अच्छी है?"  मैं उस समाज की मानसिकता पर स्तब्ध रह गया. 

I am sorry to say but most of the Pahaadis are still, what should I say, MCPs.  I did not want to use this dirty word but that seems to be the most appropriate phrase to describe this oppressive mentality.  They do not take pity on the overburdened ladies.  Till the last day of pregnancy she works in the fields and brings ghaas-lakari for the household, she is the last person to eat whatever is left for her, even if she is having some health problems nobody comes forward to take her to the hospital. 

But notice the change in the attitude and behaviour of these very pahadis living in our cities.  A majority of these very people either cook at home or help their wives.  Here they are the ideal husbands personified and that is why the girls from the plains are after our boys.  I have talked to a cross-section of these girls and they consider the pahaadis most genteel, considerate and caring husband-material!!!

So, in my view the plight of our women changes with the change in the society around them.  If they are in pahaad, their husbands do not care out of fear of their elders around and when they are in the cities, as their elders are not around them they are most caring husbands.

Anyone differing?

नमस्कार,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sundriyal Ji,

Such kind of tendency is very common in our people. I have had faced such things several times.

Secondly u have well defined the pathetic condition of women. I also feel that socieity rules and conservatives thoughts are also some reasons behind such condition of women in pahad. I thing by educating people, such kinds of feelings will eliminate.


नमस्कार,
इस विषय पर एक पुरानी बात याद आ रही है.  मैं एक शादी में सम्मिलित होने के लिए पहाड़ गया हुआ था.  वहीं पर इस विषय पर बातचीत हो रही थी.  तभी बातचीत में दखल देते हुए एक वृद्ध सज्जन बोले "अरे तुम शहरी लोग क्या बोलोगे.  हम पहाड़ में सारे साल में सिर्फ़ चार दिन हल चलाते हैं और फिर सारे साल ऐश करते हैं.  सारा काम औरतें ही करती हैं.  जबकि तुम शहरी लोगों का हिसाब किताब उलटा है.  तुम रोज़ दफ्टर काम काज के लिए चले जाते हो, सारे दिन काम करते हो, शाम को थक हार कर घर आते हो.  और तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारे घर से निकलते ही आराम करना शुरू कर देती हैं और शाम तुम्हारे आने तक आराम फरमाती हैं.  बताओ किस कि गति ज़्यादा अच्छी है?"  मैं उस समाज की मानसिकता पर स्तब्ध रह गया. 

I am sorry to say but most of the Pahaadis are still, what should I say, MCPs.  I did not want to use this dirty word but that seems to be the most appropriate phrase to describe this oppressive mentality.  They do not take pity on the overburdened ladies.  Till the last day of pregnancy she works in the fields and brings ghaas-lakari for the household, she is the last person to eat whatever is left for her, even if she is having some health problems nobody comes forward to take her to the hospital. 

But notice the change in the attitude and behaviour of these very pahadis living in our cities.  A majority of these very people either cook at home or help their wives.  Here they are the ideal husbands personified and that is why the girls from the plains are after our boys.  I have talked to a cross-section of these girls and they consider the pahaadis most genteel, considerate and caring husband-material!!!

So, in my view the plight of our women changes with the change in the society around them.  If they are in pahaad, their husbands do not care out of fear of their elders around and when they are in the cities, as their elders are not around them they are most caring husbands.

Anyone differing?

नमस्कार,


 

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