Poll

पहाड़ी महिलाओ के दयनीय जीवन के लिए कौन जिम्मेवार ?

Conservative Rules of Society
4 (36.4%)
Geographical Condition
3 (27.3%)
Education
3 (27.3%)
Can't say
1 (9.1%)

Total Members Voted: 7

Voting closed: January 15, 2008, 11:42:20 AM

Author Topic: Tough Life of Women In Uttarakhand - पहाड़ की नारी का कष्ट भरा जीवन  (Read 59735 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आम्मा कि कारन लागी राचा .. tumi..
« Reply #40 on: February 08, 2008, 01:36:53 PM »


The old lady collecting silver like earth balls (i believe slate). They use it to paint their houses. After drying the wall colours are really brilliant


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The people of Kumaon are strong, independent and hospitable. Many men have outmigrated for employment. Back in the villages women are constantly at work both on the land and at home.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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leaf litter

   
   
   


   
   
   
   
   
   
   
   
   
   


View nainwal's mapTaken in (See more photos here)People in the region of Uttarakhand Himalayas use leaf litter for cattles, making compost, as bed (poor ones) etc. The life is really tough especially for women folk who get down to work before dawn looking after home, food, children, fields, carrying water


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The land holdings are very small in Uttarakhand, the Himalayan State of India. Traditionally, people practice organic agriculture here and live in subsistance level. This old woman was drying chillies in the sun and was proud of this harvest. 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गोस्वामी जी का यह गाना .. दिन उना जना रया जुग - जुग बीती गया मेरो पहाडा माँ बहिना बुत दिखिया रया

यह पर सही होता है.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Little bit of changes have come in living standard of women compared to earlier but at working level there is no dramatic changes.

Gone days people were physically sound and they used work hard but now people find it hard working on the fields.




गोस्वामी जी का यह गाना .. दिन उना जना रया जुग - जुग बीती गया मेरो पहाडा माँ बहिना बुत दिखिया रया

यह पर सही होता है.



राजेश जोशी/rajesh.joshee

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मेहता जी,
मैं आपके pole रिजल्ट से सहमत हूँ की समाज की ग़लत सोच ही महिलाओं की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है.  हम महिलाओं द्वारा किए गए काम को महत्व नही देते हैं.  मेरा कहना है की अगर महिलाऐं जो काम घर पर, खेतों में, जंगल जाकर करती हैं उसको भी ऑफिस या बाहर के काम की तरह ही महत्व दिया जाएगा तो अपने आप ही असमानता दूर हो जायेगी.
हमारे देश में समाज की काम के प्रति यह सोच की ऑफिस में काम करने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण है की वजह से ही हमारा देश अभी भी पिछडे देशों की श्रेणी में आता है.  क्योंकि यहाँ पर महिलाओं ही नही मजदूर या किसान द्वारा किए गए कार्य को महत्व नही दिया जाता.  मेहनत के काम को कुर्सी के काम से कमतर अनका जाता है. किसान को, मजदूरों को या ऑफिस न जाने वाली महिलाओं को पिछड़ा समझा जाता है.  किसकी वजह से कोई पढ़ा लिखा आदमी मेहनत मजदूरी के काम से जी चुराकर बेरोजगार घूमता है और असामाजिक कार्यों में लिप्त होता है.
हमें शिक्षा के प्रसार के साथ साथ लोगों में काम के मत्वा को भी समझाना होगा, तभी समाज में हर किसी को बराबरी का दर्जा मिल पायेगा.

हेम पन्त

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राजेश दा ने बहुत उचित बात कही है.... लेकिन पहाड में महिलाओं की मानसिकता में धीरे-2 बदलाव आ रहा है.... अब पढी-लिखी महिलायें खेतों में की जाने वाली हाड-तोड मेहनत करने को इसलिये तैयार नहीं होती क्यूंकि उन्हें लगता है कि मेहनत के अनुपात में उत्पादन बहुत कम होता है... कुछ साल पहले की महिलायें इस तरह के गणित को नहीं समझती थीं...

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Bilkul sahi kaha aapne Joshi ji. Aur yeh soch jab tak nahi badlegi tab tak yeh kuritian samaaj main vyapt rahengi.

मेहता जी,
मैं आपके pole रिजल्ट से सहमत हूँ की समाज की ग़लत सोच ही महिलाओं की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है.  हम महिलाओं द्वारा किए गए काम को महत्व नही देते हैं.  मेरा कहना है की अगर महिलाऐं जो काम घर पर, खेतों में, जंगल जाकर करती हैं उसको भी ऑफिस या बाहर के काम की तरह ही महत्व दिया जाएगा तो अपने आप ही असमानता दूर हो जायेगी.
हमारे देश में समाज की काम के प्रति यह सोच की ऑफिस में काम करने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण है की वजह से ही हमारा देश अभी भी पिछडे देशों की श्रेणी में आता है.  क्योंकि यहाँ पर महिलाओं ही नही मजदूर या किसान द्वारा किए गए कार्य को महत्व नही दिया जाता.  मेहनत के काम को कुर्सी के काम से कमतर अनका जाता है. किसान को, मजदूरों को या ऑफिस न जाने वाली महिलाओं को पिछड़ा समझा जाता है.  किसकी वजह से कोई पढ़ा लिखा आदमी मेहनत मजदूरी के काम से जी चुराकर बेरोजगार घूमता है और असामाजिक कार्यों में लिप्त होता है.
हमें शिक्षा के प्रसार के साथ साथ लोगों में काम के मत्वा को भी समझाना होगा, तभी समाज में हर किसी को बराबरी का दर्जा मिल पायेगा.


 

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