आजादी के बाद नारी को हाशिए में डाला: मैत्रेयीOct 31, 02:20 am
नैनीताल। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में स्त्रियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था, लेकिन आजादी मिलने के बाद महिलाओं को हाशिए में डाल दिया गया। जागरण से विशेष वार्ता में उक्त विचार चर्चित उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा ने व्यक्त किये।
नैनीताल क्लब में आयोजित साहित्यिक उपक्रम संगमन में शामिल होने आई मैत्रेयी ने कहा कि स्त्रियों का असली संग्राम अब शुरू हुआ है। चाक, अल्मा कबूतरी व कस्तूरी कुंडली बसे जैसे लोकप्रिय उपन्यासों की लेखिका ने कहा कि समय आ गया है औरतों के आंसुओं की बरसात रुकनी चाहिए। 80 के दशक के बाद महिलाओें का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हस्तक्षेप बड़ा है। जिसकी धमक साहित्य में भी दिखाई पड़ती है। आज की औरत भाई या पति के रूप में अंगरक्षक नहीं, अपना सहयोगी तलाश रही है। मैत्रेयी ने कहा कि औरतें वास्तव में तब तक आजाद नहीं हो सकती, जब तक वह आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर रहेगी। मोबाइल, गर्भ निरोधक और रसोई गैस को उन्होंने महिला मुक्ति के उपकरण बताया। उन्होंने कहा कि महानगरों में ऐसी लड़कियों की तादात बहुत हैं जो टोपी लगाकर, पेंट पहनकर पेट्रोल बेच रही है, वह पुरुषों के ताने सुनती हैं, लेकिन अपनी कमाई पर गर्व करती है। विभिन्न लेखकों द्वारा स्वयं में लगाए आरोप कि मैं पुरुष विरोधी हूं, का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि मैं सहयोगी पुरुष चाहती हूं। जहां पुरुष महिलाओं की समानता की बात अपनाते है, वहां मुझे खुशी होती है। महिला लेखन की सीमाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो औरतें अपने शोषण व उत्पीड़न की बात कहती हैं, उन्हे घर में नहीं रहने दिया जाता। दूसरी कमजोरी पर्याप्त होम वर्क न करने की है। नई लेखिकाएं धूल में नहीं पैर रखना चाहती, गांव में नहीं जाना चाहती बल्कि एक प्रतिबद्ध लेखक को एक्टीविस्ट की भूमिका में भी उतरना पड़ता है।