Poll

पहाड़ी महिलाओ के दयनीय जीवन के लिए कौन जिम्मेवार ?

Conservative Rules of Society
4 (36.4%)
Geographical Condition
3 (27.3%)
Education
3 (27.3%)
Can't say
1 (9.1%)

Total Members Voted: 7

Voting closed: January 15, 2008, 11:42:20 AM

Author Topic: Tough Life of Women In Uttarakhand - पहाड़ की नारी का कष्ट भरा जीवन  (Read 59746 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Who is not aware about the touch life of women of Pahad. Even after the 58 yrs of indpendence, there has not no major changes in the leaving standard of women.

Who do you think responsible for this. Kindly share your views.

M S Mehta

हेम पन्त

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Re: WHO IS RESPONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #1 on: October 17, 2007, 12:21:39 PM »
Mehta ji.....Aap ne ek baar fir ek behtareen topic shuru kiya hai.........
Mere khyal se pichhli kuchh generation se mahilao ki saamajik sthiti mein kuchh sudhaar huaa hai......Yeh baat bahut Interior ke ilaako ke liye galat bhi ho sakti hai......

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: HOW IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #2 on: October 17, 2007, 12:30:53 PM »
Bilkul sahi kah rahe ho Hem bhai.

Mehta ji.....Aap ne ek baar fir ek behtareen topic shuru kiya hai.........
Mere khyal se pichhli kuchh generation se mahilao ki saamajik sthiti mein kuchh sudhaar huaa hai......Yeh baat bahut Interior ke ilaako ke liye galat bhi ho sakti hai......

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: HOW IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #3 on: October 17, 2007, 12:46:35 PM »
Pant Ji,

Thanx for appreciating the topic.

Whenever I go to my village, I observe that there has no major changes come in life style of women particulary on day to day working . However,  we can not deny the fact a few changes have come in their living standards. Earlier, women used to in hope of letter from their husbands and kit & kins but now mobile phone has reached even in remoate areas of hill which has defenitly brought some changes.

As far as the plight of women is concerned, I held the geographical condition maily responsible for this. We know that we can’t make hill plains for this but we should explore some ways and means to make the life easier for women working on field etc. Other factors are also somewhat responsible for this.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #4 on: October 17, 2007, 04:08:58 PM »

What would you like to suggest to make the condition of women better in hill areas ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #5 on: October 17, 2007, 04:44:26 PM »

See this seedi numa khet... where the women had to work..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #6 on: October 18, 2007, 01:59:23 PM »

Like other states, our women have rigid social boundation for women.  Only needs is that some ways and means have to be explored to make their life better.


See this seedi numa khet... where the women had to work..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #7 on: October 21, 2007, 01:00:03 PM »

See the photo of our UK's women.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #8 on: October 24, 2007, 10:47:03 AM »

This is somewhat a good initiative..

सामूहिक सहभागिता से कम होगा कामकाजी महिलाओं का बोझOct 24, 02:41 am

डीडीहाट(पिथोरागढ़)। इन्द्रा महिला समेकित विकास परियोजना के अ‌र्न्तगत हिमालयन सेवा समिति धारापानी और महिला सशक्तीकरण व बाल विकास विभाग द्वारा कनालीछीना विकासखण्ड की विभिन्न ग्राम सभाओं में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। इन कार्यशालाओं में समिति के विशेषज्ञों द्वारा ग्रामीण महिलाओं की काम की अधिकता को कम करने के उपायों पर चर्चा की गई। विकासखण्ड के पत्थरकोट, उड़मा, तल्ला उड़मा, बाराकोट और मझेड़ा गांवों में आयोजित कार्यशालाओं में समिति के विशेषज्ञ किशोर पंत ने कहा कि महिलाओं को कम उम्र में अधिक बोझ ढोने से शारीरिक विकास में कमी आ जाती है। महिलाओं के इस बोझ में कमी लाने के उपायों पर चर्चाएं की गई। इसके अतिरिक्त चाराघास निर्माण, वर्मी कम्पोस्ट निर्माण और सामुदायिक सहभागिता से मिलने वाले लाभों से परिचित कराया गया। वक्ताओं ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं की पंचायत स्तर पर सहभागिता होने के बावजूद कामकाजी महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं आया है। इसे चिंता का विषय बताते हुए सभी कमियों को दूर किये जाने पर विचार किया गया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: WHO IS RESONSIBLE FOR MISERABLE LIFE OF PAHADI WOMEN ?
« Reply #9 on: October 31, 2007, 09:37:47 AM »
आजादी के बाद नारी को हाशिए में डाला: मैत्रेयीOct 31, 02:20 am

नैनीताल। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में स्त्रियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था, लेकिन आजादी मिलने के बाद महिलाओं को हाशिए में डाल दिया गया। जागरण से विशेष वार्ता में उक्त विचार चर्चित उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा ने व्यक्त किये।

नैनीताल क्लब में आयोजित साहित्यिक उपक्रम संगमन में शामिल होने आई मैत्रेयी ने कहा कि स्त्रियों का असली संग्राम अब शुरू हुआ है। चाक, अल्मा कबूतरी व कस्तूरी कुंडली बसे जैसे लोकप्रिय उपन्यासों की लेखिका ने कहा कि समय आ गया है औरतों के आंसुओं की बरसात रुकनी चाहिए। 80 के दशक के बाद महिलाओें का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हस्तक्षेप बड़ा है। जिसकी धमक साहित्य में भी दिखाई पड़ती है। आज की औरत भाई या पति के रूप में अंगरक्षक नहीं, अपना सहयोगी तलाश रही है। मैत्रेयी ने कहा कि औरतें वास्तव में तब तक आजाद नहीं हो सकती, जब तक वह आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर रहेगी। मोबाइल, गर्भ निरोधक और रसोई गैस को उन्होंने महिला मुक्ति के उपकरण बताया। उन्होंने कहा कि महानगरों में ऐसी लड़कियों की तादात बहुत हैं जो टोपी लगाकर, पेंट पहनकर पेट्रोल बेच रही है, वह पुरुषों के ताने सुनती हैं, लेकिन अपनी कमाई पर गर्व करती है। विभिन्न लेखकों द्वारा स्वयं में लगाए आरोप कि मैं पुरुष विरोधी हूं, का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि मैं सहयोगी पुरुष चाहती हूं। जहां पुरुष महिलाओं की समानता की बात अपनाते है, वहां मुझे खुशी होती है। महिला लेखन की सीमाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो औरतें अपने शोषण व उत्पीड़न की बात कहती हैं, उन्हे घर में नहीं रहने दिया जाता। दूसरी कमजोरी पर्याप्त होम वर्क न करने की है। नई लेखिकाएं धूल में नहीं पैर रखना चाहती, गांव में नहीं जाना चाहती बल्कि एक प्रतिबद्ध लेखक को एक्टीविस्ट की भूमिका में भी उतरना पड़ता है।

 

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