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Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Mahi Singh Mehta
April 12 at 1:41pm ·

Plight of education system in uttarakhand...

The fresh coat of cream yellow paint on the double-storey building is spotless, walls are devoid of doodles and scribbles, desks and benches are sturdy with glossy varnish, the playground is tidy and the corridors are silent. The kempt look shows there is something terribly wrong with the school.

This high school in Bhitain village, hardly 4km away from the hilly Pauri region of Uttarakhand, has just enough students and teachers to fill a sports utility vehicle.

It has just six students on admission rolls, spread across classes 6, 7 and 8. Class 9 is empty and the lone girl student of class 10 hasn't turned up after admission.

Children are not present because there only three teachers available against the sanctioned strength of seven in the school which got a new building in 2013 complete with library and laboratory.

There is no teacher for Mathematics since 2010, the Science teacher hasn't turned up since 2011 and no English teacher for the past two years. Three teachers of Hindi, arts and general science are the jack of all subjects, taking turns to teach other subjects beyond their competency.

The school was supposed to cater to 300 families of Masaun, Bhitain, Revri, Dhandri, Amkoti and Chamari villages. But children now trek 4km, negotiating steep climbs to attend government and private schools in Pauri.

The situation is grim in Pauri, too. There are 127 high schools, 175 intermediate schools and 1,616 primary schools in Pauri district. Around 18 primary schools in Pauri district are closing down due to zero admission.

And most of the schools and colleges in Pauri district are headless. 111 posts of principals in government inter-colleges and 36 posts of headmasters in high schools are vacant in Pauri. The district is short of 543 lecturers and 516 teachers.

Bhitain is emblematic of the crisis faced by government schools in the hills. The education department is the biggest department in the state in terms of staff strength. But they are not able to find teachers for schools in the hills. Recently, the government had sacked teachers for being absent for more than a year without leave from schools in the hill district.

But why are teachers bunking schools in the hills?

Teachers allege they have to make many sacrifices while serving in the underdeveloped hilly areas of the state compared to the plains that can sustain modern life.

"Many well-paid government teachers prefer to serve in cities or towns not only for the comfortable life but also to educate their children in good private schools," said Umacharan Barthwal, the former member Pauri Zila panchayat.

Many teachers work their political contacts, pay bribes or outsource the job to stay in town.

Kuldeep Gairola, the Chief Education Officer of Pauri, said the department had identified 259 surplus teachers in various schools of Pauri district and they would be transferred to the schools that need them the most. The department was also planning to recruit guest teachers on fixed honorarium to improve the situation, he said.

To improve the dwindling number of students in government schools, the education department has begun a campaign to meet parents and convince them about the facilities in the government schools.

Deepa Devi of Bhitain sends their children to schools in Pauri. She said officials were trying to convince them to send children to the government school in the village. "But what good can the building and infrastructure do for our children if there are no teachers to teach them," said Devi.

http://www.hindustantimes.com/…/this-…/article1-1336272.aspx

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

There is no improvement in this front also.

Bhishma Kukreti:
भारतीय राष्ट्रीय मिलिट्री कालेज:इतिहास क पन्नो से

-   किशन सिंह

सन 1921-22 तक बिट्रिश सरकार ल  अंग्रेज फौज म भारतीय अफसरू थैं भी शामिल कना की कोशिश काय येसे पैली भारतीय अफसर ना क बराबर छायाछ। अफसरू की ट्रैनिंग रायल मिलिट्री कालेज सैंडह्रस्ट म हुंदि छाई अर भिडिं  खै भारतीय नौना प्रवेश परीक्षा मै फेल ह्वै जादां छाया।  अंग्रेजू की  समझम  आय कि भारतीय नौनौ कि पव्लिक स्कूल की पढैं जरूरी च, ताकि वो मिलिट्री कू  कठोर व अनुशासनत्मक जीवन जिणू सीख सकीं। यालें  शुरू म रजवाड़ों का नौनौ खुण अर  बाद म सबी भारतीय नौनियलू की  सैंडह्रस्ट कालेज  की तैयरि खुण,   बिट्रिश राजकुमार प्रिंस वेल्स ल सन 1922 म प्रिसं आफ वेल्स रायल मिलिट्री  इंडियन मिलिट्री कालेज,  की स्थापना  देहरादून म भी गांव म इम्पिरियल कैडेट कार्पस (जै खुद राजवाडा़ कैंप ( वख राजकुमारू की अपडी़ अपडी़ रियासत म अफसर बणणा कि ट्रेनिइ हुंदि छाई) बुल्दा छाई  जै जै कि बाद म बिट्रिश राजा सर एडवर्ड (आठों) ल भी अपनी स्वीकृत दे द्यया।
आज ये कालेज कू नाम राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कालेज च, जो कि लगभग  137 एकड़ क्षेत्रफल म फैल्यूं च। ये विद्यालय का पैला कमांडेंट छाया सिख रेजिमेंट का ले०कर्नल०एच.एल.रॉउटन,  जौन  22 फरवरी 1922 को अधिभार ग्रहण काई, उकं दगड़ कुछ अंग्रेज अर भारतीय अफसर भी ट्रैनिंग अर पढाण क खातिर चुने गिन। हीरा लाल अटल,  सबसे पैला कैडेट कप्तान छाया जो आजादी क बाद  भारतीय संघ का एजंडेण्ट जनरल भी नियुक्त करे गिन। यख  कै विद्यार्थी मेज.जन.हीरा लाल जी न भारत कू सबसे बडू लडै़ कू पुरूस्कार  परम वीर चक्र बी अभिकल्पित काई छाय। शुरू शुरू का बिद्यार्थीयूं  मदे छाया  के.एस.थिमैया, असगर खान, आदि  जौंल बड़ा बड़ा पदू  फर रै कि देश कि सेवा कार। देश की आजादी के बाद बी ये विद्यालय न अपणी  शिक्षा परंपरा जारी राखी, अर अब यख भारतीय सेना खुण  युवाओं कू शिक्षण और प्रशिक्षण हुंद। फर्क बस इतग च  कि सैंडहस्रट कालेज क जगा अब यख का छात्र  एन.डी.ए. म जंदिन, जो कि भारतीय सेनों खुण अफसर तैयार करद ।
ये विद्यालय मा एक समै  फर  250 कैडेट्स शिक्षा लिंदिन, कालेज म प्रवेश  खुण सर्या  देश का स्तर फर  एक परीक्षा हुंद, जो नौनियाल पास हुंदिन उं कि मेडिकल जांच बी हुदं। हर साल साढ़े ग्यारा भटे  तेरा साल का बच्चा ही द्वी दौ  जनवरी अर जून का मैना 25-25 छात्र  ही प्रवेश पंदिन अर जो भग्यान यख पौछिं जंदन वो बस तब अफसर बणी ही अपण घौर जंदिन।
 ये संस्थान म अलग-अलग विषयों खुण  अलग-अलग भवन बण्या छिन, अर ये सभी ट्यूडर स्थापत्य शैली म बण्या छिन। सबी भवनू का डिजाइन  बी लगभग  एक जन छिन । यूं  भवनू कि  कुछ खास विशेषता छिन जन,  उबु खुण उठीं  अर राफ्टर, वेंटीलेटरू क  दगड़  द्वी तरफौं खुण झुकीं भुजा , उंक समणी निकली छत, लकड़ी का दरवजा अर खिड़की,  भवन क तैल्या   तल फर अर्धचंद्राकार स्तम्भ बण्या छिन जै खुण आर्क कोलोनेड ब्वलदिन। भुंयम फर्श फर लकडी का तख्‍ता लग्या छिन अर  भवन क भीतर सजावट खुण छत क मुड लकड़ी  की छद्म छत (फॉल्‍स सीलिंग) का उपयोग हुयुंच ।
आर आई एम सी पूरा देश म अपण तरै कू यक्लू विद्यालय  च अर हमथै उत्तराखंडी हुण का नाता ये फर गर्व च, हैरी  भैरी  सुंदर  शांत वातावरण वली या जगा दय्खण लैक च ।

Bhishma Kukreti:
D.A.v  कालेज देहरादून कु इतिहास,
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सरोज शर्मा ( मूल शोधार्थी)
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आध्यात्मिक पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती चांदा छाई कि देश मा इन शिक्षापधति विकसित ह्वा जु भारतीय और पश्चिमी समाज कु आपस मा जुणन कु कार्य कार, इलै ऊं न वर्ष 1885 से 1887 क बीच पंजाब मा दयानंद एगंलो वैदिक संस्था कि स्थापना कैर,
वै दौर मा अन्य क्षेत्र का लोग भि बनि बनि का प्रयोग कना छा, देहरादून मा प्रमुख समाज सेवी ठाकुर पूर्ण सिंह नेगी व बाबू ज्योति स्वरूप शामिल छा,
ठाकुर पूर्ण सिंह नेगी न आज क डीएवी पीजी कि शुरुआत वर्ष 1902 मा एक संस्कृत विधालय क रूप मा कैर, साथ ही मौजूदा जमीन व पीली इमारत वल भवन आर्य समाज देहरादून थैं धर्म कार्य खुण दान मा दे दयाई, मेरठ निवासी बाबू ज्योति स्वरूप तब देहरादून मा वकालत करदा छा, पूर्ण सिंह नेगी ऊं का मुवक्किल छा, और मेरठ मा स्कूल चलांद छा, बाद मा वू देहरादून मा रैण लगीं, वर्ष 1904 म ऊं न मेरठ वला स्कूल थैं भि संस्कृत वल विधालय मा मिला दयाई, तब यै क नाम डी ए वी मिडिल स्कूल प्वाड़,
वर्ष 1906 मा ठाकुर पूर्ण सिंह जी न डी ए वी कालेज देहरादून थैं दुबरा जमीन दान दयाई, इतगा ही ना बल्की 1911 मा 1 लाख रुपया नगद और सरया जायदाद दान कैरिक यै थैं डी ए वी कालेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी कानपुर ( उत्तर प्रदेश) क नाम कैर दयाई,,तब बटिक यू कालेज लगातार प्रगति कनू रै और देहरादून क प्रमुख शिक्षा केंद्र बण ग्या, डी ए वी 1910 तक मिडिल स्कूल रै, वर्ष 1911 मा हाईस्कूल और वर्ष 1922 मा इंटरमीडिएट कालेज वर्ष य1946 मा डिग्री कालेज और वर्ष 1948 मा पोस्ट ग्रेजुएट कालेज बण गया,आज डी ए वी प्रदेश कू सबसे बढ़ महा विधालय हूण का
का साथ छात्र राजनीति क भी प्रमुख केंद्र च।

Bhishma Kukreti:
गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार उत्तराखंड इतिहास
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 किशन सिंह , देहरादून
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  गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत म स्थित एक सार्वजनिक केंद्रीय डीम्ड विश्वविद्यालय च। यो हरिद्वार से लगभग 6 किमी और नई दिल्ली से लगभग 200 किमी दूर गंगा तट क पास स्थित च। 19वी सदी आंद आंद हमर देश म द्वी तरै कि शिक्षा पद्धति चलन म छाई एक छै बिट्रिश सरकार की आधुनिक शिक्षा प्रणाली जै मा पश्चिम क सभ्यता थैं भौत ज्यादा प्रचारित प्रसारित करेगे अर इन मनेगे कि ये ढंग से सिर्फ नौकर बणे सकद विद्वान न। दूसरी तरफ पंडित मण्डली की पुरातन पाठशाला जै मा नया युग क ज्ञान विज्ञान खुण कखी क्वी जगा नी छै। ये अन्धकारमय समै मा भारत म जौं महानुभावुं न जागृति की ज्योति जगाई उंमा ऋषि दयानन्द सरस्वती जी कू सन्देश बहुत व्यापक छाई । जौन शिक्षा, राजनीति, समाजिक आदि सबी क्षेत्रों म नया विचारूं कू संदेश दिनी । ऊ न प्रचलित द्वी शिक्षा-पद्धति म भौत दोष अनुभव करिन अर प्राचीन आर्य शिक्षा-प्रणाली की प्रतिपादन काय ।
             ऋषि जी न वै थै 'गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली' कू नाम द्याई। ऋषि दयानन्द जी का एक प्रमुख शिष्य महात्मा मुन्शी राम (जो बाद म सन्यास लेखै स्वामी श्रद्धानन्द क नाम से प्रसिद्ध हुईं) न 1897 में गुरुकुल थैं शुरू करणै का कारण इन बथैं : १. वेद आर्य जाति कु प्राण च। संस्कृत साहित्य कू मूल स्रोत वेद ही च। अर संस्कृत कु अध्ययन तब थै पूर्ण न ह्वै सकदू जब थैं अंगों अर उपांगों का दगड़ वेद कू अध्ययन न करें जाव । यालें इन शिक्षण संस्थानों की जरूरत च, जख संस्कृत साहित्य क दगड़ - दगड़ वैदिक साहित्य कू भी अध्ययन ह्वाऊ। २. हम थैं विदेशी ज्ञान-विज्ञान थैं पढ़णा क दगड़ अपणी राष्ट्रीयता की रक्षा भी करण । ३. 'ब्रह्मचर्य ' , शिक्षा कु मुख्य आधार च। हमरी संस्था इन होण चैणी छिन जो नगरों कू दूषित प्रभावों से दूर हो और जख ब्रह्मचर्य क नियमों कू पालन ह्वै साकु। ४. जाति और छुआ-छूत क भेदभाव क बिना गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत् अध्यापकू अर विद्यार्थियोयूं क बीचा निरन्तर घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित कैरि कि , छात्र-छात्राओं थैं प्राचीन एवं आधुनिक विषयों की शिक्षा देणू अर उंकु मानसिक और शारीरिक विकास कैरि कि चरित्रवान आदर्श नागरिक बणाण ।
   30 अक्टूबर 1898 को महात्मा मुंशीराम जी न यांक बार म विस्तृत योजना केंद्रीय संगठन आर्य प्रतिनिधि सभा म रखी, अर नवंबर, 1898 ई. में पंजाब क आर्यसमाज न गुरुकुल खोलणा कु प्रस्ताव स्वीकार काय और महात्मा मुंशीराम न 16 मई 1900 म पंजाब क गुजराँवाला स्थान म एक वैदिक पाठशाला क दगड़ गुरुकुल की स्थापना करि देई। पर महात्मा मुंशीराम थैं य जगा भली नि लगी । वो शुक्ल यजुर्वेद क एक मंत्र (26.15) "उपह्वरे गिरीणां संगमे च नदीनां धिया विप्रो अजायत " क अनुसार नदी अर पर्वत का नजदिक की जगा चाणा छाया। ऐई समै नजीबाबाद क धर्मनिष्ठ रईस मुंशी अमनसिंह जी न ये काम खुण महात्मा मुंशीराम जी थै 1,200 बीघा कू अपणु कांगड़ी गांव दान दें द्या। हिमालय की उपत्यका म गंगा क तट फर सघन रमणीक वणों से घिरी कांगड़ी की जमीन गुरुकुल खुण आदर्श छाई। यख का घैणा जंगल साफ कैर कि कुछ छप्पर बणये गें अर होली क दिन सोमवार, 4 मार्च 1902 खुण गुरुकुल , गुजराँवाला भटे कांगड़ी लिये ग्या, तब भटि यो गुरूकुल कांगड़ी का नाम से प्रसिद्ध ह्वै ग्या। गुरुकुल कि शुरूवात 34 विद्यार्थियूं क दगड़ कुछ फूस की झोपड़ियूं म करे ग्या।1907 ई. म ये कू महाविद्यालय विभाग शुरू ह्वाई । 1912 ई. में गुरुकुल कांगड़ी म शिक्षा समाप्त कै खै निकलण वला स्नातकू कू पैलूं दीक्षान्त समारोह ह्वा। सन १९१६ में गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी की स्थापना ह्वा ।
            1921 ई. में आर्य प्रतिनिधि सभा न यांकु विस्तार करण क खातिर वेद, आयुर्वेद, कृषि अर साधारण (आर्ट्‌स) महाविद्यालय बणाणा कु निश्चय काय। 24 सितंबर 1924 ई. खुण गुरुकुल फर भीषण दैवीय विपत्ति आई। गंगा जी की असाधारण बाढ़ न गंगातट फर बणी इमारतों कु भार नुकसान कारि। भविष्य म बाढ़ का प्रकोप से बचण का वास्ता 1 मई 1930 ई. खुण गुरुकुल गंगा क पूर्वी तट से हटै कि पश्चिमी तट फर गंगा की नहर फर हरिद्वार क नजदीक वर्तमान जगा म ल्यये ग्या। जून 1962 म भारत सरकार न ईं शिक्षण संस्था कू राष्ट्रीय स्वरूप अर शिक्षा क क्षेत्र म ये का अप्रतिम् योगदान थैं नजर म राखि कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का एक्ट 1956 की धारा 3 का अन्तर्गत् समविश्वविद्यालय (डीम्ड यूनिवर्सिटी) की मान्यता प्रदान कैरि अर वैदिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, दर्शन, हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी, मनोविज्ञान, गणित तथा प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विषयों म स्नातकोत्तर अध्ययन की व्यवस्था कैरि। यूं विषयों क अतिरिक्त भी वर्तमान समै मा विश्वविद्यालय म भौतिकी, रसायन विज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान, अभियांत्रिकी, आयुर्विज्ञान व प्रबन्धन क अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था च।
       विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्थापित स्वायत्तशासी संस्थान ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद्’ (NACC) ल बी मई 2002 में विश्वविद्यालय थै चार सितारों (**) से अलंकृत काय, परिषद् क सदस्यों न विश्वविद्यालय की संस्तुति यख का परिवेश, शैक्षिक वातावरण, शुद्ध पर्यावरण, बृहत् पुस्तकालय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय आदि से प्रभावित ह्वैखै कै छाई । विश्वविद्यालय की सभी उपाधियां भारत सरकार/विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्य छिन । यो विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालय संघ (A.I.U.) तथा कामनवैल्थ विश्वविद्यालय संघ कू सदस्य बी च । परिसर - विश्वविद्यालय म पुरुषों और महिलाओं खुण अलग-अलग परिसर छिन। • मुख्य परिसर, गुरुकुल कांगड़ी (विश्वविद्यालय मनै जांद), हरिद्वार (पुरुष) • कन्या परिसर, हरिद्वार (महिला) • कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, देहरादून (महिला) • इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संकाय, हरिद्वार (पुरुष) यह गुरुकुल भटि निकल्यां स्नातक हिन्दी का प्रथम श्रेणी क लेखकये गुरुकुल भटि निकल्यां स्नातक हिन्दी का प्रथम श्रेणी क लेखक सिद्ध ह्वीन अर उन हिन्दी थैं महामूल्यवान साहित्य द्याई। यूं म प्रमुख रैन, इन्द्र विद्यावाचस्पति, प्राणनाथ विद्यालंकार, सत्यकेतु विद्यालंकार, जयदेव शर्मा विद्यालंकार, जयचन्द विद्यालंकार, चन्द्रगुप्त वेदालंकार तथा आचार्य रामदेव।

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उत्तराखंड म शिक्षा पराली , उत्तराखंड का  प्रसिद्ध  शिक्ष्ण संसथान , गुरुकुल कांगड़ी , आयुर्वेद कौलेज गुरुकुल

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