राज्य में शिक्षा की दर्जनों योजनाएं चल रही हैं। इन पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। इसके बावजूद आलम यह है कि राज्य में 6 से 14 वर्ष तक के 22 हजार से अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित हैं जबकि इनसे अधिक उम्र के निरक्षरों की संख्या आठ लाख है। ईजीएस केन्द्रों के बंद होने और सरकारी तंत्र की हीलाहवाली से पूरी शिक्षा व्यवस्था गड़बड़ा गयी है। रही-सही कसर शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यक्रमों में भेज देने से पूरी हो गयी है। विश्र्व साक्षरता दिवस पर जागरण ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर नजर डाली तो यह कागजों में अव्वल और हकीकत कुछ और नजर आयी। सर्व शिक्षा अभियान के तहत ही 2007-08 में 254 करोड़ रुपये खर्च हुए। 2008-09 में 274 करोड़ रुपये और खर्च होने हैं। पिछले सात वर्षो के लिए 600 से 700 करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध हुआ था। इसके लिए मध्याह्न भोजन योजना, पहल, नींव, सतत शिक्षा कार्यक्रम, सतत् व्यापक मूल्यांकन, उपचारात्मक शिक्षण, विद्यालय कोटिकरण, समेकित शिक्षा, शिक्षक सहायक सामाग्री, स्कूल चलो अभियान, समर कैंप, विंटर कैंप, रेजिडेंसलिय ब्रिज कोर्स व नॉन रेजिडेंसियल ब्रिज कोर्स सहित दर्जनों योजनाएं चल रही हैं। साथ ही पायलट प्रोजक्ट के तहत कई और कार्यक्रम चल रहे हैं। शिक्षकों को शिक्षण की नई तकनीकी से अवगत कराने के लिए 10 दिवसीय बीआरसी व 10 दिवसीय सीआरसी स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाता है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत पहल कार्यक्रम में कान्वेंट स्कूलों से वंचित बच्चों को शिक्षा देने का प्रावधान है। इसके बाद भी राज्य में छह से 14 वर्ष के 22 हजार से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हैं। ईजीएस केन्द्र बंद होने से करीब 50 हजार बच्चों के समक्ष प्राथमिक शिक्षा हासिल करने का संकट उत्पन्न हो गया था। बावजूद इसके सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। अभी तक कुछ ही बच्चों को निकट के प्राथमिक विद्यालयों में भेजा गया है। विभाग शत प्रतिशत नामांकन करने का दावा हर वर्ष करता है। बावजूद इसके लचर व्यवस्था के चलते सफलता नहीं मिल रही है। शिक्षा विभाग के सामने नामांकित बच्चों के ठहराव भी एक जटिल समस्या है। राज्य में 15 से 35 आयु वर्ग में निरक्षरों की संख्या लगभग आठ लाख है। इसके लिए सतत् शिक्षा कार्यक्रम के तहत 319 नोडल व 3242 सतत शिक्षा केन्द्र खोले गये। इस पर स्वयं शिक्षा अधिकारी टिप्पणी करते हैं कि यह योजना करोड़ों रुपये पानी में बहाने के सिवाय कुछ नहीं है। रही-सही कसर शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य में जोत कर पूरी कर दी जाती है। बेसिक शिक्षकों को वर्ष भर जनगणना, मतगणना, पशुगणना, मतदाता पुनरीक्षण के अलावा दर्जनों अन्य कार्यो में लगाया जाता है। इस व्यवस्था से स्वयं शिक्षा निदेशक पुष्पा मानस भी चिंतित हैं। उनका कहना है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उनका सुझाव है कि शिक्षकों के अलावा अन्य विभागों के कर्मचारियों को भी इस कार्य में लगाया जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस अंधेरे के बावजूद मानस का दावा है कि राज्य शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति कर रहा है। अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।