देहरादून। खुले मैदान में बैठकर मैले-कुचले कपड़ों से लिपटे करीब 30-35 बच्चों को रोजाना पढ़ाते हैं एक पब्लिक स्कूल के यूनीफॉर्म में सजे-धजे बच्चे। यह अनूठा स्कूल लगता है राजपुर रोड के एक स्कूल के मैदान में। इस ‘खुले स्कूल’ में पढ़ने वालों में ज्यादातर हैं कूड़ा बीनने वाले गरीब बच्चे जिन्हें अक्षर ज्ञान कराने का जिम्मा स्कूली बच्चों ने उठाया है। बच्चों की मेहनत रंग भी ला रही है। उनके इस स्कूल में हर माह एक-दो बच्चे नए जुड़ रहे हैं।
राजपुर रोड स्थित पूर्व माध्यमिक देहरा विघालय के मैदान चलने वाले इस अनूठे विघालय की शुरूआत पिछले 18 अक्टूबर से हुई। स्कॉलर्स होम के 11वीं के छात्र गुड़ाकेश उनियाल और उनके साथी रोजाना दोपहर एक बजे से तीन बजे तक इन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाई के बाद इनके साथ खेलते है। उनसे घुलमिल कर प्रेम और अपनेपन के अहसास से भरते हैं। शरारत पर उन्हें डांटते नहीं बल्कि दुलारते है। इतना ही नहीं पढ़ाई के बाद बच्चों को भोजन भी कराया जाता है। अमीर-गरीब, जात-पात जैसे सामाजिक जंजीरों से दूर यह स्कूल एक अनूठी मिसाल है। गुड़ाकेश बताते हैं, ‘सड़क चलते जब भी उनकी नजर भीख मांगते और कूड़ा बीनते गरीब बच्चों पर पड़ती तो उनके मन में ख्याल आता कि कैसे इन बच्चों के लिए कुछ किया जाए। इस ख्याल को उन्होंने अपने कुछ मित्रों के सामने रखा। वे भी इस कार्य में जुटने के लिए तैयार हो गए। फिर क्या था गुढ़ाकेश और उनकी मित्रमंडली परेड मैदान में रहने वाले गरीब बच्चों के माता-पिता से मिले और बच्चों को पढ़ाने की बात कही। परिजनों के हामी भरने पर बच्चों को एकत्रित कर उन्हें पढ़ाना शुरू किया गया।’
बह बताते हैं कि शुरू में यह कार्यक्रम परेड मैदान और गांधी पार्क में चलाया लेकिन बाद में स्कूल के प्राचार्य से अनुमति मिलने के बाद बच्चों को स्कूल मे मैदान में पढ़ाना शुरू कर दिया। वे पहले केवल रविवार को ही बच्चों को पढ़ाते थे लेकिन इन दिनों स्कूल में अवकाश होने की वजह से दोपहर एक बजे से तीन बजे तक रोजाना क्लास लग रही है। सारे दोस्त मिलने वाली पॉकेट मनी से बच्चों को खाना खिलाते हैं। गुड़ाकेश ने बताया कि इस काम में उनके परिवार और मित्रों की अहम भूमिका है। उनके मित्रों में स्कॉलर्स होम के अमर मिश्रा, डेविड, सान्या राजपूत, कल्पना भंडारी, आयूष सती, कार्तिकेय शर्मा, नवनीत, सेंट जोसेफ स्कूल के कार्तिक पंत, निशांत, सीऐएम की ऐश्वर्य सहित केवी के छात्र-छात्राएं रोजाना आकर इन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। गुड़ाकेश के पिता और स्कूल के प्राचार्य हुकूम सिंह उनियाल कहते हैं कि जब पहली बार गुड़ाकेश ने यह विचार उनके सामने रखा तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि वह इतनी गहराई से चीजों के बारे में सोचता है। गुड़ाकेश के विचारों का सम्मान करते हुए उन्होंने इसकी इजाजत दे दी। श्री उनियाल कहते हैं कि यह केवल गुड़ाकेश ही नहीं बल्कि उसके सारे मित्रों का ही की अनूठी पहल है। इतनी कम उम्र में ऐसी सोच रखना दर्शाता है कि ये बच्चे आगे चलकर देश के श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे।