Author Topic: Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली  (Read 39820 times)

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: राज्य में शिक्षा की बेहतरी के लिए प्राइमरी से माध्यमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण की सरकार की कोशिश फेल हो गई है। इस संबंध में इंदिरा गांधी मुक्त विश्र्वविद्यालय (इग्नू) का पत्र शिक्षा महकमे को आईना दिखा रहा है। 30 हजार शिक्षकों के प्रशिक्षण से जुड़े इस मसले पर एससीईआरटी, शिक्षा निदेशालय और सर्व शिक्षा अभियान में तालमेल की कमी उजागर हो रही है। बुनियादी से माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सरकार की मुहिम को करारा झटका लगा है। शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए बाकायदा इग्नू के साथ जून, वर्ष 2006 में एमओयू पर हस्ताक्षर भी किए गए। एमओयू के मुताबिक 30 हजार शिक्षक प्रशिक्षित किए जाने थे। इग्नू में अभी तक मात्र 3365 प्रशिक्षणार्थियों का सिर्फ नामांकन ही हुआ। 88 फीसदी से ज्यादा शिक्षक प्रशिक्षण से कन्नी काट रहे हैं। शिक्षकों को प्रशिक्षण को लेकर जोर-शोर से दावे करने के बावजूद शिक्षा मंत्रालय शिक्षा गुणवत्ता की जमीनी हकीकत से नजरें चुरा रहा है। आश्चर्यजनक यह है कि प्रशिक्षण मद में इगून को एक करोड़ की राशि दी जा चुकी है, लेकिन उसका नियमित प्रशिक्षण में उपयोग नहीं हो पा रहा है। यही नहीं, इग्नू में 394 शिक्षकों ने आवेदन किया, लेकिन महकमे की ओर से उनकी वैधता की पुष्टि नहीं की गई। महकमे ने इन आवेदनों को अग्रसारित नहीं किया है। प्रशिक्षण में बरती गई अनियमितता का मामला शासन के संज्ञान में है। तीन सालों में प्रशिक्षण के नाम पर 11 फीसदी शिक्षकों का महज नामांकन किया जा सका है। प्रशिक्षण माड्यूल तैयार करने के बाद शिक्षकों व प्रधानाचार्यो की बाट जोह रही इग्नू सरकार और महकमे के आला अफसरों को इस बाबत सूचित कर चुका है। शिक्षकों के प्रशिक्षण पर दैनिक जागरण में बीते माह 25 अगस्त को खबर प्रकाशित होने के बाद महकमे ने इग्नू से प्रशिक्षण की प्रगति का ब्योरा मांगा। इग्नू के रीजनल सेंटर निदेशक ने एससीईआरटी के निदेशक को जवाबी पत्र लिखा है। यह पत्र नौ दिन चले अढ़ाई कोस कहावत को सही साबित कर रहा है। प्राइमरी व अपर प्राइमरी शिक्षकों के लिए सर्टिफिकेशन कोर्स सीपीटी में जनवरी व जुलाई में प्रत्येक ब्लाक से 50 समेत कुल 4750 शिक्षकों को नामांकित करने का लक्ष्य रखा गया था। इग्नू ने महकमे के तीन अंगों में तालमेल की कमी की ओर भी इशारा किया है। प्रधानाचार्यो के प्रशिक्षण कोर्स पीजीडीएसएलएम में अंग्रेजी माध्यम से 26 व हिंदी माध्यम से 624 प्रधानाचार्यो को प्रशिक्षित करना था। इग्नू ने सभी प्रधानाचार्यो को आवेदन पत्र भेजे, लेकिन मात्र 11 आवेदन पत्र ही वापस मिले। प्रधानाचार्यो की अंग्रेजी के बजाए हिंदी में प्रशिक्षण सामग्री मुहैया कराने की मांग इग्नू स्वीकार कर चकाु है। यही नहीं, एक प्रधानाचार्य ने खुद को नामांकित कराने के बजाए कुछ शिक्षकों के नाम भेज दिए।
 

पंकज सिंह महर

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 राज्य में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई कारगर कदम उठाए गए हैं। इनमें एक कदम प्राइमरी से माध्यमिक स्तर तक शिक्षकों के प्रशिक्षण से संबंधित है। शिक्षा महकमे की खुद की मशीनरी प्रशिक्षण का बंदोबस्त करने में समर्थ नहीं है, इस वजह से दो साल पहले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्र्वविद्यालय (इग्नू) से सरकार ने तीन साल की अवधि में करीब तीस हजार शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की बाबत करार किया। इनमें प्रति वर्ष प्राइमरी के 4750, साढ़े छह सौ से ज्यादा प्रधानाचार्यो व सैकड़ों माध्यमिक शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाना है। स्तरीय शिक्षा में इग्नू अपना अलग मुकाम रखता है। करार के मुताबिक इग्नू के रीजनल सेंटर ने प्रशिक्षण माडयूल बनाने का काम भी शुरू किया। साथ ही इसके लिए शिक्षा महकमे से शिक्षकों की सूची सौंपने को भी कहा। एससीईआरटी प्रशिक्षण के लिए इग्नू को एक करोड़ रुपये मुहैया करा चुका है। चिंता का विषय है कि प्रशिक्षण में शिक्षक रुचि नहीं ले रहे हैं। शिक्षा महकमा भी इस मामले में चुप्पी साधे है। दो साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बावजूद महज 11 फीसदी शिक्षकों ने इग्नू में महज नामांकन कराया है। इन शिक्षकों ने प्रशिक्षण अभी नहीं लिया है। देश के कर्णधारों का भविष्य बनाने वाले शिक्षक और उनका महकमा शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर किसकदर चिंतित है, यह असलियत प्रशिक्षण को लेकर मौजूदा हालात बयां कर रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक शिक्षा में नवाचार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। साथ ही माध्यमिक स्तर पर सीबीएसई पैटर्न अपनाया जा चुका है। वैसे भी वैश्रि्वक स्तर पर बदलाव के इस महत्वपूर्ण दौर में शिक्षा की नई दशा-दिशा की जरूरत साफ तौर पर महसूस की जा रही है। आश्चर्यजनक यह है कि गुणवत्ता के नाम पर ही शिक्षा मंत्रालय से लेकर महकमे से जुड़े तमाम जन प्रतिनिधियों, अफसरों, शिक्षकों व कर्मचारियों में अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्रवेश दिलाने की होड़ लगी है। लेकिन, अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों के बच्चों के लिए सिमट कर रह गए सरकारी और सरकारी सहायताप्राप्त स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता कायम करने की इच्छाशक्ति का अभाव साफ दिखाई पड़ रहा है। ज्ञान की ज्योत जलाने वाले शिक्षक बदले दौर के मुताबिक पढ़ाने के तौर-तरीके अपडेट करने व अपने ज्ञानवर्धन के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में उत्तराखंड राज्य के भविष्य का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।
 

पंकज सिंह महर

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नैनीताल जिले की प्राथमिक शिक्षा बंकबाज शिक्षकों के कारण रामभरोसे चल रही है। सड़क किनारे स्थित विद्यालयों में मानकों से अधिक शिक्षक हैं, वहीं दूरस्थ क्षेत्र के विद्यालय शिक्षा आचार्यो के भरोसे चल रहे हैं। प्रशासन कितना ही सख्त रुख अपनाए लेकिन प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था सुधारना किसी जंग जीतने से कम आसान नहीं है। जिले में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 970 है। मानकों के अनुसार प्रत्येक विद्यालय में 1-100 बच्चों तक दो व 100-140 पर तीन अथवा 40 बच्चों पर एक शिक्षक नियुक्त किया जाता है। नगरीय इलाकों व सड़क से लगे क्षेत्रों में तो तैनात शिक्षक समय पर स्कूलों का संचालन कर रहे हैं, लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों में पूरी व्यवस्था राम भरोसे चल रही है। यूनियन के पदाधिकारी शैक्षणिक कम आंदोलनात्मक गतिविधियों में अधिक नजर आते हैं। बीच सत्र में तबादले से कई विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण पठन-पाठन चौपट हो गया है। अपर जिला शिक्षा अधिकारी ताराचंद्र सती ने प्राथमिक शिक्षा की बदहाली को स्वीकारते हुए कहा कि शिक्षकों के साथ ही छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
 

पंकज सिंह महर

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राज्य में कक्षा एक से आठवीं तक बच्चों को पाठ्य-पुस्तकों को समय पर वितरित करने के लिए स्थायी नीति बनाने की कोशिश स्वागतयोग्य है। सर्व शिक्षा अभियान में प्रारंभिक शिक्षा की बेहतरी और प्रसार के लिए उठाए गए उत्तराखंड के कई कदमों को केंद्र सरकार ने सराहा है। केंद्र और प्रदेश दोनों ही प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्तर पर अब शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। इस मुहिम के बेहतर नतीजे अभी सामने नहीं आ सके हैं। राज्य में इसकी बड़ी वजह कक्षा एक से आठवीं तक तमाम छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क पाठ्य-पुस्तकों के वितरण में लेटलतीफी भी है। स्कूली बच्चों को पुस्तकें समय पर मुहैया कराने के तमाम प्रयास बेअसर रहे हैं। सरकार ने बीते वर्ष भी सत्र शुरू होते ही पुस्तकें स्कूलों तक पहंुचाने का दावा तो किया, लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिली। पुस्तकों की छपाई में विलंब का असर वितरण व्यवस्था पर भी पड़ा। सत्र शुरू होने के करीब चार माह तक किताबों को स्कूलों तक पहंुचाने का सिलसिला चलता रहा। इससे स्कूलों में शैक्षिक माहौल बनने में भी बाधा पड़ी है। तमाम कारणों के मद्देनजर सरकार अब पाठ्य-पुस्तकों की छपाई से लेकर स्कूलों तक पहंुचाने के बारे में स्थायी नीति को अमलीजामा पहनाने जा रही है। सरकार के इस कदम का फायदा निश्चित तौर पर स्कूली बच्चों को मिलेगा। अभी तक हर साल पुस्तक नीति बनाने की परंपरा चली आ रही है। इस नीति को मंजूरी मिलने में ही आधा सत्र बीत रहा है। ऐसे में छपाई से लेकर तमाम कार्य समय पर पूरे नहीं हो रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि समयसारिणी लागू होने के बाद सत्र शुरू होने से पहले किताबें स्कूलों तक पहंुचेंगी। स्कूलों में पठन-पाठन समय पर होगा और छात्र-छात्राओं को गरमियों की छुट्टियों में पढ़ाई के लिए तरसना नहीं पड़ेगा। फिलवक्त देर से किताबें मिलने से छुट्टियों का वक्त जाया हो रहा है। छात्र-छात्राएं इस समय का सदुपयोग कर सकेंगे। शिक्षक समुदाय की ओर से भी पुस्तकें समय पर मुहैया कराने की मांग लंबे अरसे से की जा रही थी। इससे शिक्षकों को भी पाठ्यक्रम पूरा करने और उसकी पुनरावृत्ति के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा।
 

पंकज सिंह महर

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देहरादून। खुले मैदान में बैठकर मैले-कुचले कपड़ों से लिपटे करीब 30-35 बच्चों को रोजाना पढ़ाते हैं एक पब्लिक स्कूल के यूनीफॉर्म में सजे-धजे बच्चे। यह अनूठा स्कूल लगता है राजपुर रोड के एक स्कूल के मैदान में। इस ‘खुले स्कूल’ में पढ़ने वालों में ज्यादातर हैं कूड़ा बीनने वाले गरीब बच्चे जिन्हें अक्षर ज्ञान कराने का जिम्मा स्कूली बच्चों ने उठाया है। बच्चों की मेहनत रंग भी ला रही है। उनके इस स्कूल में हर माह एक-दो बच्चे नए जुड़ रहे हैं।
राजपुर रोड स्थित पूर्व माध्यमिक देहरा विघालय के मैदान चलने वाले इस अनूठे विघालय की शुरूआत पिछले 18 अक्टूबर से हुई। स्कॉलर्स होम के 11वीं के छात्र गुड़ाकेश उनियाल और उनके साथी रोजाना दोपहर एक बजे से तीन बजे तक इन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाई के बाद इनके साथ खेलते है। उनसे घुलमिल कर प्रेम और अपनेपन के अहसास से भरते हैं। शरारत पर उन्हें डांटते नहीं बल्कि दुलारते है। इतना ही नहीं पढ़ाई के बाद बच्चों को भोजन भी कराया जाता है। अमीर-गरीब, जात-पात जैसे सामाजिक जंजीरों से दूर यह स्कूल एक अनूठी मिसाल है। गुड़ाकेश बताते हैं, ‘सड़क चलते जब भी उनकी नजर भीख मांगते और कूड़ा बीनते गरीब बच्चों पर पड़ती तो उनके मन में ख्याल आता कि कैसे इन बच्चों के लिए कुछ किया जाए। इस ख्याल को उन्होंने अपने कुछ मित्रों के सामने रखा। वे भी इस कार्य में जुटने के लिए तैयार हो गए। फिर क्या था गुढ़ाकेश और उनकी मित्रमंडली परेड मैदान में रहने वाले गरीब बच्चों के माता-पिता से मिले और बच्चों को पढ़ाने की बात कही। परिजनों के हामी भरने पर बच्चों को एकत्रित कर उन्हें पढ़ाना शुरू किया गया।’
बह बताते हैं कि शुरू में यह कार्यक्रम परेड मैदान और गांधी पार्क में चलाया लेकिन बाद में स्कूल के प्राचार्य से अनुमति मिलने के बाद बच्चों को स्कूल मे मैदान में पढ़ाना शुरू कर दिया। वे पहले केवल रविवार को ही बच्चों को पढ़ाते थे लेकिन इन दिनों स्कूल में अवकाश होने की वजह से दोपहर एक बजे से तीन बजे तक रोजाना क्लास लग रही है। सारे दोस्त मिलने वाली पॉकेट मनी से बच्चों को खाना खिलाते हैं। गुड़ाकेश ने बताया कि इस काम में उनके परिवार और मित्रों की अहम भूमिका है। उनके मित्रों में स्कॉलर्स होम के अमर मिश्रा, डेविड, सान्या राजपूत, कल्पना भंडारी, आयूष सती, कार्तिकेय शर्मा, नवनीत, सेंट जोसेफ स्कूल के कार्तिक पंत, निशांत, सीऐएम की ऐश्वर्य सहित केवी के छात्र-छात्राएं रोजाना आकर इन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। गुड़ाकेश के पिता और स्कूल के प्राचार्य हुकूम सिंह उनियाल कहते हैं कि जब पहली बार गुड़ाकेश ने यह विचार उनके सामने रखा तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि वह इतनी गहराई से चीजों के बारे में सोचता है। गुड़ाकेश के विचारों का सम्मान करते हुए उन्होंने इसकी इजाजत दे दी। श्री उनियाल कहते हैं कि यह केवल गुड़ाकेश ही नहीं बल्कि उसके सारे मित्रों का ही की अनूठी पहल है। इतनी कम उम्र में ऐसी सोच रखना दर्शाता है कि ये बच्चे आगे चलकर देश के श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे।

हेम पन्त

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साभार : दैनिक जागरण

श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। शिक्षा महकमे की कार्यप्रणाली भी अजीबोगरीब है। तैनाती के हिसाब से विद्यालयों का वर्गीकरण करने में विभाग ने ऐसी महारत हासिल की है कि एक ही परिसर में मौजूद एक विद्यालय दुर्गम तो दूसरा सुगम श्रेणी में रख दिया। जूनियर हाईस्कूल (पूर्व माध्यमिक) शिक्षक संघ की कोट ब्लाक शाखा के अध्यक्ष महेश गिरी ने बताया कि जूनियर हाईस्कूल मुछियाली को तो सुगम श्रेणी में रखा गया है, जबकि उसी परिसर में स्थित हाईस्कूल को दुर्गम श्रेणी रखा गया है। इसके अलावा मसाण गांव में इंटर कालेज को दुर्गम श्रेणी में रखा गया है, जबकि उसी परिसर में स्थित जूनियर हाईस्कूल को सुगम श्रेणी में रखा गया है। ऐसे ही कई अन्य स्कूल हैं जो एक ही परिसर में होने के बावजूद अलग-अलग श्रेणियों में रखे गए हैं। उन्होंने कहा कि विद्यालयों के सुगम और दुर्गम निर्धारण के लिए शासन द्वारा जो मानक तय किए गए उन पर अमल नहीं किया गया। संगठन ने विसंगतियों को दूर करने और सर्व शिक्षा के विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को वेतन भुगतान करने की भी मांग की है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The trailing post and news related to education system of Uttarakhand shows the failure of Govt towards improving the eduction system in UK.

This is one of the reasons people are mirgrating from pahad.

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464 प्रधानाचार्य व 1600 लेक्चरर पदों पर प्रोन्नति


Oct 24, 01:52 am

देहरादून। राज्य की नौवीं वर्षगांठ के मौके पर प्रधानाचार्यो के 464 पदों पर प्रधानाध्यापकोंव लेक्चरर के 1600 पदों पर एलटी शिक्षकों को पदोन्नति का तोहफा मिलेगा।

सरकार ने चालू सत्र को शिक्षा सुधारों को समर्पित करने के साथ ही शिक्षकों व प्रधानाचार्यो को पदोन्नति का लाभ देने की तैयारी की है। राजकीय इंटर कालेजों को जल्द ही नियमित प्रधानाचार्य मिलेंगे। रिक्त पदों का बतौर कार्यवाहक जिम्मा प्रधानाध्यापकों को सौंपा गया है। सरकार प्रधानाध्यापकों को पांच साल की सेवा में दो साल की छूट देकर उन्हें नियमित करने की तैयारी में है। वहीं, लेक्चरर के 1600 पदों को पदोन्नति से भरने को इन्हें आयोग के दायरे से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

शिक्षा राज्यमंत्री गोविंद सिंह बिष्ट ने कहा कि बेसिक शिक्षा में शिक्षकों के तीन हजार पद सरप्लस होने की स्थिति सामने आई है। इसके बावजूद इस वर्ष रिक्त 5429 पदों पर रोजगार दिया जाएगा। 1404 प्रवक्ताओं की आयोग के जरिए व 1300 बीटीसी के पदों पर परीक्षा के जरिए नियुक्ति की जा रही है। साथ ही 325 नियमित बीटीसी के पदों पर दोबारा चयन प्रक्रिया शुरू की जाएगी। सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों में 2400 पदों पर नियुक्ति शुरू करने को सरकार हरी झंडी दे चुकी है। 681 जूनियर हाईस्कूल शिक्षकों को एलटी वेतनक्रम में पदोन्नति दी गई है।

 शिक्षकों के रिक्त पदों पर जल्द भर्ती के लिए शिक्षा चयन आयोग के गठन की कसरत शुरू की जा रही है। यह तय किया गया है कि शिक्षकों को प्रशिक्षण गरमियों की छुट्टियों में दिया जाएगा। बीआरसी व सीआरसी की बैठकों में शिक्षक शिरकत नहीं करेंगे। इससे स्कूलों में पढ़ाई बाधित नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि शिक्षकों का ब्लाक कैडर होने के बाद दूरदराज में शिक्षकों की तैनाती की समस्या खत्म हो सकेगी। इस दिशा में जल्द कदम उठाए जा रहे हैं। बीपीएल बालिकाओं को कक्षा नौ में प्रवेश लेने पर एक हजार व कक्षा दस में प्रवेश लेने पर दो हजार रुपये तेजस्वी छात्रवृत्तिदी जाएगी।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5883880.html

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हहा इन शिक्षको को देखो पढाने के नाम पर जीरो हैं और पुरूस्कार लेने के लिए आग के दरिया में कूदने  के लिए तैयार हैं
एक खबर ये भी हैं


राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार की तमन्ना रखने वाले गुरुजी को सम्मान के लिए कड़े मानकों के 'आग के दरिया' से गुजरना होगा। राज्य पुरस्कारों की तर्ज पर ही राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए भी मानक तय किए जाएंगे।

शिक्षा के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने की दौड़ का रास्ता अब शायद ही 'सिर्फ' सत्ता के गलियारों से होकर जाए। सरकार जो मानक तैयार कर रही है, उसके अनुसार तमाम रास्ते स्कूल और बच्चे के पास होकर ही गुजरेंगे। अभी तक इन पुरस्कारों के पीछे नौकरी के लिए 'दो वर्ष' ज्यादा मिलने का गणित काम करता रहा है।

लिहाजा, पुरस्कार के लिए गुरुजी कामकाज को बेहतर बनाने से ज्यादा ऊर्जा शासन और सत्ता प्रतिष्ठानों के भीतर पैठ मजबूत बनाने में लगा रहे हैं। शिक्षा सचिव डा. राकेश कुमार स्वीकार करते हैं कि पुरस्कारों के लिए भेजी जाने वाली नामों की सूची इस रवैये की पुष्टि करती है। बीते वर्ष इस मामले में 12 अफसरों को प्रतिकूल प्रविष्टि मिली। ऐसे शिक्षकों के नाम ऐनवक्त पर सूची से हटाने पड़ें, जिनके खिलाफ गंभीर शिकायतों के मामले प्रकाश में आए।

राज्य शैक्षिक पुरस्कारों के लिए सरकार ने 23 सूत्रीय मानक तय किए हैं, उनके आधार पर स्कूल व छात्र के प्रति जिम्मेदारी निभाए बगैर गुरुजी तमन्ना पूरी नहीं कर सकेंगे। शिक्षा सचिव डा. राकेश कुमार ने बताया कि हर वर्ष राज्य के तकरीबन आठ या नौ शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा रहे हैं। इन शिक्षकों के चयन के लिए राज्य पुरस्कारों की तर्ज पर मानक तय किए जाएंगे। इन मानकों पर खरा उतरने वालों के नाम ही राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भेजे जाएंगे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5893179.html

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vidhayak sahab ab khuli kyaa apki neend, abhi tak kyaa ap log jhak maar rahe the ya neend ki goli khakar so rahe the,

dekho in bhuskhoron ko ab pta chlaa ki uttarakhand ki shiksha prnaali bigad rahi hai,ab sudhar karne ki baat karte hai jaise hi inka jaib khali hota hai,waisse he ye kog vikash karne ki baaten karke phir apni khali jebaen bharne ke liye vikas ki baaten karten hain



उत्पीड़न नहीं,शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास: रावत

पुरोला (उत्तरकाशी)। गंगोत्री क्षेत्र के विधायक एंव संसदीय सचिव गोपाल सिहं रावत ने कहा कि विद्यालयों में चलाये जा रहे छापामार अभियान शिक्षकों का उत्पीड़न नहीं बल्कि शिक्षा की बिगड़ती स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा, ताकि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में अध्यापकों की नियमित उपस्थिति से शैक्षणिक माहौल को सुधारा जा सके।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5908693.html

 

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