Author Topic: Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली  (Read 89219 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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12 more teachers suspended in Uttarakhand
« Reply #50 on: November 18, 2009, 07:46:38 AM »


This may be a right step towards improving the ducation systemin in Uttarakhadn.

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12 more teachers suspended in Uttarakhand

Dehradun, Nov 17 (PTI) Uttarakhand government has suspended 12 more teachers for remaining absent from duty without informing the authorities, taking the total number of those facing action to 300 in last two months, officials said today.

The order to suspend seven teachers from Garhwal region and five teachers from Kumaon region was issued yesterday after they were found absent during a surprise check of the schools recently, they added.

A series of surprise checks have been carried out in government schools here in the past two months on the directive of education secretary Rakesh Kumar.

The officials said the exercise is aimed at improving the standard of education in these schools.

http://www.ptinews.com/news/380665_12-more-teachers-suspended-in-Uttarakhand

Rajen

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उत्तराखंड में शिक्षा प्रणाली में गंभीर खामियौं को सरकार न जाने कब गंभीरता से लेगी?

सुधीर चतुर्वेदी

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महराज हमारी सरकार के पास सोचने के लिये तो टाइम ही नहीं है नेता लोगो को तो बस अपनी कुर्सी से मतलब है जनता जाये तेल लेने , शिक्षा पर्णाली को ठीक ठाक करने का समय कहा है ........................


उत्तराखंड में शिक्षा प्रणाली में गंभीर खामियौं को सरकार न जाने कब गंभीरता से लेगी?

Rajen

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बिलकुल सच कहा आपने सुधीर जी.  बड़े बड़े लोगों के बच्चे तो उन नामी गिरामी स्कूलों में पड़ते हैं जिनकी वजह से उत्तराखंड का नाम है जैसे कि दून.... इत्यादि.  लेकिन आम बच्चों का भविष्य क्या है?  इस बारे में कोइ बड़ा नेता या अधिकारी नहीं सोचता.  डा. कलाम ने बार-बार ग्रामीण शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने पर जोर दिया लेकिन किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. उत्तराखंड भी इसका अपवाद नहीं है.  नया राज्य बनते ही सुधार प्रक्रिया शुरू हो जाती तो आजतक हम काफी प्रगति कर चुके होते. 

"बिधि गति बाम सदा सब काहू."

Meena Rawat

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मैंने देखा है की शिक्षा प्राणी ठीक हो भी तो गाँव के लोग खुद  ही अपने बच्चो को पढने के लिए नहीं भेजते है ऐसा क्यूँ ?

Meena Rawat

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मैंने देखा है की शिक्षा प्राणी ठीक हो भी तो गाँव के लोग खुद  ही अपने बच्चो को पढने के लिए नहीं भेजते है ऐसा क्यूँ ?

Devbhoomi,Uttarakhand

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bed news

माइक्रोसॉफ्ट आईटी एकेडमी बंद


नैनीताल: कुमाऊं विश्वविद्यालय से संबद्ध माइक्रोसॉफ्ट आईटी एकेडमी अचानक बंद हो गयी है। जिससे कई दर्जन छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। संस्थान में कम्प्यूटर के पीजी डिप्लोमा व कई सर्टिफिकेट कोर्स संचालित किए जाते थे।

विवि प्रशासनिक भवन के समीप हर्मिटेज भवन में यह सभी कोर्स वर्ष 2006 से संचालित किए जा रहे थे। अब यह संस्थान दो दिन पूर्व यानी 31 दिसम्बर से अचानक बंद कर दिया गया है। इस बारे में पूछे जाने पर कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोड़ा ने बताया कि संस्थान के संचालक द्वारा विश्वविद्यालय को न तो भवन का किराया दिया जा रहा था और न ही संस्थान में अध्ययनरत छात्रों से वसूल शुल्क की राशि दी गयी।

 इस बारे में जब संस्थान के संचालक पीयूष मित्तल को पत्र भेजा गया तो उन्होंने 31 दिसम्बर से संस्थान बंद कर दिया। इस संस्थान में वर्तमान में लगभग 6 दर्जन छात्र अध्ययनरत थे। फिलहाल इन छात्रों का भविष्य अधर में है।

 इस बारे में पूछे जाने पर कुलपति प्रो.अरोड़ा ने कहा कि इस मामले की जानकारी शासन को दी जा चुकी है। संस्थान द्वारा छात्रों से वसूला गया शुल्क उन्हे लौटाने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि पीजी कोर्स को पूरा कराने के प्रयास किए जाएंगे, जबकि विभिन्न प्रकार के सर्टिफिकेट कोर्स को पूरा करना संभव नहीं हो पाएगा।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6071235.html

Rajen

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आठवीं बाद स्कूल छोड़ना मजबूरी
(Source : Jagran)

 गोपेश्वर (चमोली)। विकासखंड घाट के कनोल गांव के नौनिहालों की जूनियर हाईस्कूल के बाद शिक्षा छोड़ना मजबूरी है। क्षेत्र में इससे आगे की शिक्षा के लिए बच्चों को बीस किमी दूर पहाड़ी और जंगलों से होकर जाना पड़ता है।

विकासखंड घाट स्थित सुदूरवर्ती ग्राम कनोल में वर्ष 1984-85 में जूनियर हाईस्कूल की स्थापना की गई थी। इसके बाद से ग्रामीण इस विद्यालय के उच्चीकरण की मांग करते आ रहे है, लेकिन इस दिशा में आज दिन तक कोई कदम नहीं उठाए गए है। ग्राम प्रधान महेशी देवी व क्षेत्र पंचायत सदस्य उमराव सिंह नेगी, ग्राम प्रधान बूरा हीरा सिंह ने बताया कि विकासखड मुख्यालय घाट से 32 किलामीटर दूर कनोल के समीप कोई भी हाईस्कूल नहीं है, जिसके चलते नौनिहालों को सितेल जाना पड़ता है। सितेल हाईस्कूल तक पहुंचने के लिए नौनिहालों को कच्ची पगड़ंडियों व घने जंगलों के बीच से गुजरना पड़ता है।

जिलाधिकारी के माध्यम से सीएम को भेजे ज्ञापन में ग्रामीणों ने एक सप्ताह में मांग पूरी न किए जाने की स्थिति में 15 अप्रैल से जिला मुख्यालय पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू करने की चेतावनी दी है। ज्ञापन में क्षेत्र पंचायत सदस्य घूणी कुंवर राम, महिला मंगल दल अध्यक्षा जानकी देवी, प्रधान पडेर गांव हिम्मत सिंह, क्षेत्र पंचायत सदस्य नौना बनाला रमेश नौटियाल, कमलेश गौड़, मोहन सिंह रावत, नरेन्द्र सिंह, रूप सिंह, कमला देवी, बलवंत राम आदि के हस्ताक्षर है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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See the standard of education in Uttarakhand. This is one of the major reasons why people are flying from hills.


क्षा एक की किताब नहीं पढ़ पाते 8वीं के बच्चे                                                                                                     Aug 10, 11:32 am                                                                                                             बताएं                                                                                               
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 चौंकाने वाली बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में अलग दर्जा रखने वाले   सुविधा संपन्न देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर प्राथमिक शिक्षा के मामले   में फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा की स्थिति का जायजा लेने   वाली प्रथम नामक संस्था के असर-09 सर्वे की रिपोर्ट तो यही कही बया कर रही   है। राज्य के 13 जिलों में किए गए सर्वे के तहत कक्षा तीन से कक्षा पाच के   छात्रों की परख के लिए उनसे कक्षा एक के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़वाकर   देखी गई। जो परिणाम आया वह किसी को भी हैरत में डाल सकता है।
 राज्य में केवल 74.7 फीसदी छात्र ही इसमें सफल हो पाए। इसमें उधमसिंह   नगर [58.3], हरिद्वार [64.0] और देहरादून [64.1] सबसे फिसड्डी साबित हुए।   वहीं, दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ [90.3] पहले, नैनीताल [86.8] दूसरे व चंपावत   [84.6] तीसरे स्थान पर रहे। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले आठवीं कक्षा   के केवल 6.3 प्रतिशत और पाचवीं कक्षा के 19.5 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा एक के   स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ने में सक्षम हैं। गणितीय ज्ञान के मामले में भी   कमोबेश यही स्थिति है।
 8वीं के 16.1 फीसदी छात्र ही संख्या को घटाने में सक्षम है। पाचवी में   यह आकड़ा 22.5 फीसदी है। अंग्रेजी ज्ञान की बात करें तो आठवीं के 0.8 फीसदी   छात्र अक्षरों की व 1.6 फीसदी शब्दों की पहचान कर सके। 24 फीसदी को नहीं   आता घटाना। पहली से आठवीं के ओवरआल परफार्मेस की बात करें तो 24 फीसदी   छात्र संख्याएं घटाने में, 35 फीसदी भाग करने में, 15.8 एक से नौ तक के   अंग्रेजी अंकों को पहचानने में, 19.8 प्रतिशत 11 से 99 तक के अंकों को   पहचानने में, 5.1 फीसदी अंग्रेजी अक्षरों को पहचानने में, 13.6 अंग्रेजी   शब्दों को पहचानने में, 17.3 प्रतिशत कक्षा एक की किताब पढ़ने में और 49.8   प्रतिशत छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ने में सफल हो पाए।
 प्रथम का परिचय
 प्रथम सरकारी व गैर सरकारी 
  संस्थानों के साथ मिलकर दुनियाभर में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा का   मूल्यांकन करती है। इसे एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन इन रूरल एरियाज [एएसईआर]   के नाम से जाना जाता है।
  सुलगते सवाल
तमाम सुविधाओं के बावजूद क्यों नहीं सुधर रहा शिक्षा का स्तर?
 इन जिलों में तबादलों के लिए मारामारी क्या सिर्फ आराम के लिए है?
 आखिर कब तक देश के भविष्य से खिलवाड़ करेंगे शिक्षक?
 निजी स्कूलों से कैसे मुकाबला करेंगे  सरकारी स्कूलों के छात्र?
 अंग्रेजी की जरूरत पर शोर तो है, असर नहीं। आखिर क्यों?
   
          
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6638798.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 One way claims to have improved the quality of education in Uttarakhand,  in others hand there is news like this are coming. In fact in remote areas, there needs a lot improvement in education system. Some issues are related to infrastructure, shortage of teaching staff etc.

Govt must pay heed towards improving the education standards of Uttarakhand.



See the standard of education in Uttarakhand. This is one of the major reasons why people are flying from hills.


क्षा एक की किताब नहीं पढ़ पाते 8वीं के बच्चे                                                                                                     Aug 10, 11:32 am                                                                                                             बताएं                                                                                               
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 चौंकाने वाली बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में अलग दर्जा रखने वाले   सुविधा संपन्न देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर प्राथमिक शिक्षा के मामले   में फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा की स्थिति का जायजा लेने   वाली प्रथम नामक संस्था के असर-09 सर्वे की रिपोर्ट तो यही कही बया कर रही   है। राज्य के 13 जिलों में किए गए सर्वे के तहत कक्षा तीन से कक्षा पाच के   छात्रों की परख के लिए उनसे कक्षा एक के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़वाकर   देखी गई। जो परिणाम आया वह किसी को भी हैरत में डाल सकता है।
 राज्य में केवल 74.7 फीसदी छात्र ही इसमें सफल हो पाए। इसमें उधमसिंह   नगर [58.3], हरिद्वार [64.0] और देहरादून [64.1] सबसे फिसड्डी साबित हुए।   वहीं, दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ [90.3] पहले, नैनीताल [86.8] दूसरे व चंपावत   [84.6] तीसरे स्थान पर रहे। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले आठवीं कक्षा   के केवल 6.3 प्रतिशत और पाचवीं कक्षा के 19.5 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा एक के   स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ने में सक्षम हैं। गणितीय ज्ञान के मामले में भी   कमोबेश यही स्थिति है।
 8वीं के 16.1 फीसदी छात्र ही संख्या को घटाने में सक्षम है। पाचवी में   यह आकड़ा 22.5 फीसदी है। अंग्रेजी ज्ञान की बात करें तो आठवीं के 0.8 फीसदी   छात्र अक्षरों की व 1.6 फीसदी शब्दों की पहचान कर सके। 24 फीसदी को नहीं   आता घटाना। पहली से आठवीं के ओवरआल परफार्मेस की बात करें तो 24 फीसदी   छात्र संख्याएं घटाने में, 35 फीसदी भाग करने में, 15.8 एक से नौ तक के   अंग्रेजी अंकों को पहचानने में, 19.8 प्रतिशत 11 से 99 तक के अंकों को   पहचानने में, 5.1 फीसदी अंग्रेजी अक्षरों को पहचानने में, 13.6 अंग्रेजी   शब्दों को पहचानने में, 17.3 प्रतिशत कक्षा एक की किताब पढ़ने में और 49.8   प्रतिशत छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ने में सफल हो पाए।
 प्रथम का परिचय
 प्रथम सरकारी व गैर सरकारी 
  संस्थानों के साथ मिलकर दुनियाभर में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा का   मूल्यांकन करती है। इसे एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन इन रूरल एरियाज [एएसईआर]   के नाम से जाना जाता है।
  सुलगते सवाल
तमाम सुविधाओं के बावजूद क्यों नहीं सुधर रहा शिक्षा का स्तर?
 इन जिलों में तबादलों के लिए मारामारी क्या सिर्फ आराम के लिए है?
 आखिर कब तक देश के भविष्य से खिलवाड़ करेंगे शिक्षक?
 निजी स्कूलों से कैसे मुकाबला करेंगे  सरकारी स्कूलों के छात्र?
 अंग्रेजी की जरूरत पर शोर तो है, असर नहीं। आखिर क्यों?
   
          
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6638798.html

 

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