Author Topic: Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली  (Read 88960 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is a welcome step by Uttarakhand High Court towards improving the education standard of Uttarakhand.

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हाईकोर्ट: उत्तराखंड बोर्ड पर जुर्मानाJul 20, 11:24 pmबताएं
Twitter Delicious Facebook - छात्रा के भविष्य से खिलवाड़ पर हाईकोर्ट सख्त

नैनीताल: हाईकोर्ट ने बोर्ड परीक्षार्थी एक छात्रा के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के मामले में विद्यालयी शिक्षा परिषद पर 50 हजार का जुर्माना ठोंकते हुए उक्त धनराशि याचिकाकर्ता प्रतिभा गिरि गोस्वामी को प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही उसका परीक्षाफल घोषित करने को कहा।

याचिकाकर्ता प्रतिभा गिरि गोस्वामी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर गया कि उसने वर्ष 2009-10 में इंटरमीडिएट बोर्ड की परीक्षा दी थी, लेकिन विद्यालयी शिक्षा परिषद द्वारा उसका परीक्षाफल घोषित नहीं किया। याची के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उक्त छात्रा द्वारा कई बार विद्यालयी शिक्षा परिषद को इस संबंध में प्रत्यावेदन भी दिए गए, लेकिन बोर्ड द्वारा उसके प्रत्यावेदनों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने बताया कि विद्यालयी शिक्षा परिषद की लापरवाही के कारण उसका एक वर्ष बर्बाद हो गया। उन्होंने बोर्ड पर याची के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। वरिष्ठ न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद विद्यालयी शिक्षा बोर्ड को दो सप्ताह के भीतर याचिका कर्ता का परीक्षाफल घोषित करने के निर्देश दिए। अदालत ने बोर्ड पर 50 हजार का जुर्माना भी ठोंका और जुर्माने की राशि को याचिका कर्ता को प्रदान करने के निर्देश दिए।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8045111.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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10वीं पास खजान दास हैं निशंक के  नये शिक्षा मंत्री!
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उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता हरक सिंह की इस टिप्पणी से कोई भी असहमत नहीं हो सकता है कि मात्र 10वीं पास व्यक्ति को प्रदेश के शिक्षा विभाग की कमान नहीं सौंपी जानी चाहिए थी। इस टिप्पणी को भाजपा भले ही राजनीतिक बयान मान ले, लेकिन कोई भी समझदार व्यक्ति इस बयान की गंभीरता को समझ सकता है।
 सवाल यह है कि कई किताबें लिख चुके डा. रमेश पोखरियाल निशंक को आखिरकार कम पढ़ा लिखा खजानदास की शिक्षा विभाग संभालने को क्यों मिला।


क्या भाजपा में योग्य विधायकों की कमी हो गई है। निशंक के समर्थक दलील द  सकते हैं कि पांचवीं पास जैल सिंह तो राष्ट्रपति बन गये थे और लोकतंत्र में यह चलता है।

 इसका जवाब यह है कि  जो गलती दूसरों ने की ,क्या आज हम भी वही गलती करें। आज जब पूरी दुनिया में ज्ञान के वर्चश्व को लेकर संघर्ष चल रहा है। आज वही समाज आगे बढ़ पाएगा जो ज्ञान में सबसे आगे होगा। इसके लिए हमारी शिक्षा प्रणाली का आमूल चूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

 यह काम कोई विजनरी व शिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है। उत्तराखंड के स्कूलों का पाठ्यक्रम आज भी उत्तर प्रदेश क पैटर्न पर चल रहा है। जबकि आज जरूरत सीबीएसई बोर्ड की है। हमें अपने बच्चों का अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ाना होगा। आज दक्षिण के राज्य इसलिए तरक्की कर रहे हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी में आगे हैं।

 जबकि उत्तर प्रदेश के साथ रहने से पहले से पिछड़ चुका उत्तराखंड के नेता आज भी इसे आगे बढ़ाने की कोशिश करते नहीं दिख रहे हैं। नतीजतन, उत्तराखंड पहले की तरह लगातार पिछड़ रहा है। कैबिनेट मंत्री खजानदास को देखकर भला क्या उम्मीदें पाल सकते हैं।

 इससे पहले हरक सिंह ने कहा था कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग का जिम्मा हाईस्कूल पास मंत्री को दिए जाने से साफ हो गया है कि निशंक सरकार  प्रदेश को कैसा शिक्षा हब बनाने का सपना देख रही है।

 रावत ने कहा कि कितनी विडम्बना है कि एक हाईस्कूल पास मंत्री पढे लिखे शिक्षकों व अफसरों की कलास लेगा। उन्होने कहा कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग को हाईस्कूल शिक्षा मंत्री को सौपना राज्य के लिए दुर्भाग्य है क्योंकि एक अशिक्षित कैसे शिक्षा विभाग चला पाएगा।

यह एक दक्ष सवाल बन गया है उन्होने कहा कि चुनाव आचार संहिता से मात्र चार माह पूर्व मंत्रियोके विभाग बदलने से राज्य में कौन सी क्रांति आ जायेगी। यह एक बडा सवाल है उन्होने कहा कि जो मंत्री पूर्व मे ही अपने पुराने विभाग कैसे चलाने मे फेल हो गए वह नए विभाग कैसे चला पाएंगे।


http://www.himalayilog.com

Rajen

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ताकुला के 38 विद्यालय एकल शिक्षक के सहारे Nov 24, 10:23 pm
 
(जागरण समाचार) निप्र, सोमेश्वर (अल्मोड़ा): विकासखंड ताकुला में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त होने से एकल शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या बढ़ रही है। निरंतर वृद्धि के चलते बुनियादी शिक्षा के केंद्रों की स्थिति भी निरंतर बदतर होती जा रही है। हालात यह हैं कि यहां के 83 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से तीन दर्जन से अधिक 38 विद्यालय मात्र एक-एक शिक्षकों के जिम्मे संचालित हैं। गत 4 वर्षो में एकल शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या में जो बेतहाशा वृद्धि हुई है, उससे राज्य गठन के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में राजकीय शिक्षा की बदहाल हो रही तस्वीर सामने आती है। वर्ष 2007 में विकासखंड के अंतर्गत 13 विद्यालय एकल शिक्षक पर चल रहे थे। वर्ष 2008 में यह संख्या 17 तक पहुंची एवं वर्ष 2009 में 23, वर्ष 2010 में 33 तथा पूर्व खंड शिक्षाधिकारी केएस नयाल के अनुसार वर्तमान में विकासखंड के अंतर्गत एकल शिक्षक वाले विद्यालयों का आंकड़ा तीन दर्जन को भी पार कर गया है।

शासन-प्रशासन जहां एक ओर शिक्षण, शैक्षिक उन्नयन एवं गुणात्मक शिक्षा का लाभ आम नौनिहाल तक पहुंचाने एवं शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन के दावे करता है, वहीं दूसरी ओर राज्य गठन के बाद पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी शिक्षण संस्थानों की दशा दयनीय बनती जा रही है। इसका खामियाजा अक्सर गरीब वर्ग के बच्चों को भुगतना पड़ता है एवं विद्यालयों की इस दशा के कारण बढ़ती जनसंख्या के बावजूद राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या भी निरंतर घटती जा रही है। इसी स्थिति के चलते विभाग को मझेड़ामाफी के प्राथमिक विद्यालय को बंद करना पड़ा है। चूंकि वहां छात्र संख्या मात्र 2 रह गई थी क्षेत्र की अनेक शिक्षा समितियों व अभिभावकों ने शासन-प्रशासन से प्राथमिक विद्यालयों की बदहाली पर नजर डालने की मांग की है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Daju,

You are right. This is exact picture of our education system. There are thousands of educated youth in hill areas who are un-employed but Govt any paid any attention towards filling-up the vacancies.

Poor education system is leading high rate of migration from hills..

But who cares ?

ताकुला के 38 विद्यालय एकल शिक्षक के सहारे Nov 24, 10:23 pm
 
(जागरण समाचार) निप्र, सोमेश्वर (अल्मोड़ा): विकासखंड ताकुला में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त होने से एकल शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या बढ़ रही है। निरंतर वृद्धि के चलते बुनियादी शिक्षा के केंद्रों की स्थिति भी निरंतर बदतर होती जा रही है। हालात यह हैं कि यहां के 83 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से तीन दर्जन से अधिक 38 विद्यालय मात्र एक-एक शिक्षकों के जिम्मे संचालित हैं। गत 4 वर्षो में एकल शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या में जो बेतहाशा वृद्धि हुई है, उससे राज्य गठन के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में राजकीय शिक्षा की बदहाल हो रही तस्वीर सामने आती है। वर्ष 2007 में विकासखंड के अंतर्गत 13 विद्यालय एकल शिक्षक पर चल रहे थे। वर्ष 2008 में यह संख्या 17 तक पहुंची एवं वर्ष 2009 में 23, वर्ष 2010 में 33 तथा पूर्व खंड शिक्षाधिकारी केएस नयाल के अनुसार वर्तमान में विकासखंड के अंतर्गत एकल शिक्षक वाले विद्यालयों का आंकड़ा तीन दर्जन को भी पार कर गया है।

शासन-प्रशासन जहां एक ओर शिक्षण, शैक्षिक उन्नयन एवं गुणात्मक शिक्षा का लाभ आम नौनिहाल तक पहुंचाने एवं शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन के दावे करता है, वहीं दूसरी ओर राज्य गठन के बाद पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी शिक्षण संस्थानों की दशा दयनीय बनती जा रही है। इसका खामियाजा अक्सर गरीब वर्ग के बच्चों को भुगतना पड़ता है एवं विद्यालयों की इस दशा के कारण बढ़ती जनसंख्या के बावजूद राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या भी निरंतर घटती जा रही है। इसी स्थिति के चलते विभाग को मझेड़ामाफी के प्राथमिक विद्यालय को बंद करना पड़ा है। चूंकि वहां छात्र संख्या मात्र 2 रह गई थी क्षेत्र की अनेक शिक्षा समितियों व अभिभावकों ने शासन-प्रशासन से प्राथमिक विद्यालयों की बदहाली पर नजर डालने की मांग की है।



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Seating arrangements u can see.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is our education system.

C.S.Mehta

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इस टोपिक को देख कर मुझे एक दिन की बात याद आ गई
नवम्बर का महिना था मै अपने ही  गांव (रातिर केठी ) के एक स्कूल में किसी काम के लिए गया था उस दिन की बात है वहां पर सभी अध्यापक बच्चो को पढाने  के लिए कक्षाओ में गए हुए थे और एक अध्यापक जिसका नाम है अरविन्द सिंह पवार  पोड़ी गडवाल के रहने वाले है  वो भी अपने कक्षा के  बच्चो को पढाने के लिए कक्षा में तो थे लेकिन बात ये है की बच्चे कमरे में थे और ये गुरु जी बाहर थे क्योकि इनको कमरे में ठण्ड लग रही थी और ये बाहर लगभग कक्ष से 8 मीटर दूर से बच्चो को पढ़ा रहे थे
मै भी वही पर गुरु पवार जी के सामने ही बैठा था और पवार जी सामाजिक बिज्ञान के तथा हिंदी के अध्यापक है उन्होंने अपने कक्षा के बच्चो की कापी जाँच करनी सुरु कर दी
काफी बच्चो की कापी जाँच करने के बाद एक लड़का आया जिसका नाम है दिप्पीन
और उसके पास कापी ही नहीं है
गुरु जी ने पुछा- तुम्हारी कापी कहाँ है ..?
लड़का बोला - जी घर भूल आया
गुरु जी बोला - कल सभी को बताया भी था कापी लाने के लिए फिर भी क्यों भुला ..?
लड़का बोला -जी याद नहीं रहा
गुरु जी -   इसके लिए मै तुम्हे दंड दूंगा ..एक जगह बताते हुए बोला वहां से लास्ट तक मुर्गा बन के चलो
लड़का काफी देर खड़ा रहा वह मुर्गा बनाने के लिए राजी नहीं रहा
कुछ समय बाद लड़के को खड़े देख के गुरु जी ने चिल्लाते हुए कहा -मुर्गा बन जल्दी सुना नहीं तुने
इतने मे लड़का बोला - सर छोड़ दो कल आलू ले के आऊंगा
गुरु जी ने मेरे ओर देखा और फिर बच्चे की तरफ देख के बोला नही चाहिए तेरे आलू जो बोल रहा हूँ वो कर
और बच्चा चुप चाप से दंड लेने को तयार हो गया
तो दोस्तों मुझे उस दिन यह आभास हुआ और इन स्कूल के बच्चो के प्रति बड़ा दुःख हुआ  की पहले भी कभी यह अन्याय इन बच्चो के साथ होता होगा  की गुरु जी को सब्जी दे दो और स्कूल की गलती माफ़ कर दो तभी  तो उस कक्षा ७ के बच्चे दिप्पीन ने यह सब्जी दो और स्कूल की गलती माफ़ कर दो की मांग दुबारा रखी होगी
अब आप ही सोचिए इस तरह की शिक्षा लेकर बच्चा अपने भविष्य को कितना सुधार पायेगा

विनोद सिंह गढ़िया

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ये हैं कपकोट इंटर कॉलेज के रसायन विज्ञान के प्रवक्ता श्री आनन्द सिंह शाही जी। जिन्होंने मुझे क्लास 11th और 12th के रसायन विज्ञान पढ़ाया था। जैसा कि आप इस चित्र में देख रहे हैं वे अपने विद्यार्थियों को प्रयोगशाला के उपकरणों,रसायनों इत्यादि साधनों के अभाव में भी रसायन विज्ञान के प्रयोग (परीक्षण) करा रहे हैं। इसी तरह वे हमें भी रसायन विज्ञान के प्रयोग कराते थे। लेकिन क्या यही है उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था.......? क्या उत्तराखंड अभी उत्तर प्रदेश के कदमों पर चल रहा है क्योंकि जब यह विद्यालय उत्तर प्रदेश सरकार के समय था उस वक्त भी यही व्यवस्था थी शिक्षा की।

दोस्तों यह फोटो उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को इंगित कर रहा है। कपकोट में स्थित यह इंटर कॉलेज आजादी से पूर्व का है, इसकी स्थापना सर्वप्रथम सोल्वे मिडिल स्कूल के रूप में हुई थी, फिर इस विद्यालय को कपकोट इंटर कॉलेज के नाम जाना जाता था। स्थानीय लोगों के प्रयास के वर्ष 2005 में यह विद्यालय राजकीय हुआ। लेकिन राजकीय होने के पश्च्यात इस विद्यालय की दुर्गति हो चुकी है। यह विद्यालय अध्यापकों/प्रवक्ताओं की कमी से जूझ रहा है। जब विद्यालय अशासकीय था तब यहाँ व्यावसायिक विषयों को भी पढ़ाया जाता था, कंप्यूटर विज्ञान भी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता था लेकिन अब यहाँ न तो व्यावसायिक विषय की शिक्षा दी जाती है और न ही कंप्यूटर विज्ञान पढ़ाया जाता है। यह विद्यालय कपकोट इलाके का एकमात्र ऐसा विद्यालय है जहाँ विद्यार्थी विज्ञान संकाय ले सकते हैं लेकिन यहाँ गणित, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों के प्रवक्ताओं के पद रिक्त हैं।

न जाने उत्तराखंड में और कितने होंगे ऐसे विद्यालय जो अध्यापकों एवं प्रवक्ताओं की कमी से जूझ रहे होंगे। क्या ऐसे ही बनेगा उत्तराखंड का भविष्य .......?


धन्यवाद

विनोद सिंह गढ़िया

पूर्व छात्र कपकोट इंटर कॉलेज कपकोट बागेश्वर-उत्तराखंड
(अब यह विद्यालय राजकीय इंटर कॉलेज कपकोट के नाम से जाना जाता है)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Govt is not paying any attention towards improving standard of education. Poor education standard is one of the reason of people migrating from hills.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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---------- Forwarded message ----------
From: Balbir Singh Rawat <dr.bsrawat28@gmail.com>
Date: Fri, Nov 23, 2012 at 8:34 AM
Subject: Re: FW: [PGGroup] Education System in Uttarakhand (Notes; Dr Rawat)
To: Ramesh Patwal <patwalr@hotmail.com>


Thanks for the information. You too can join in my compaign to get establish an education system that trains a large number of youth to start self employment by way of setting up units to utilise the raw material potential of Uttarakhand (UK) and produce marketable commodities in hugely large quantities that  can provide them a desired level of income that assures  good life  to the families in UK itself.
This is the only way to curtail excessive migration resulting in drastic reduction in the number of able bodied capable manpower. VOICE  has taken up the first step,training teachers to teach the traditional subjects is one thing and changing the syllabi to vocational courses and creating a B.Ed. (Technical) College is another.
I very much appreciate the efforts of VOICE and have a suggestion : Please incorporate a talk in the teacher's training imparted by UANA+VOICE on spreading awareness among the children about importance of self employment. Once the children see the benefits, they will find ways to get trained. At present, I understand, these courses are aimed at increasing the performance efficiency of the already employed. (This benefit needs to be measured by a follow up prgramme). My proposal is to generate self-employment for the unemployed. These two streams can, at a later stage, become complimentary and supplementary to each other.
In case you agree, we can cooperate further. I am here at Dehradun.
I guess you are based in US,
With Best of Wishes,  BS Rawat

 
On Thu, Nov 22, 2012 at 7:27 PM, Ramesh Patwal <patwalr@hotmail.com> wrote:


    Dear Dr. Rawatji -

    UANA(Uttaranchal Association of North America) in partnership with VOICE has undertaken multiple Educational Initiatives Across Uttarakhand.

     Below list few details what we are doing in 2012-2013..


    Currently UANA(www.uttaranchal.org)  major focus is Education. We are doing 20 Camps across Uttarakhand in partnership with VOICE(www.voice4girls.org).

    In Winter we have:

    3 Days Counselor/Teacher Training at Dehradoon followed with 6 - 1 Week Coed Camps.

    6 Days Counselor/Teacher Training at Pithoragarh followed with 4 - 3 Weeks Girls Camps.

    This will followed by Summer camps.

    Also we have sponsored 1 Week Training Program for 15 Mid Wives at Uttarkashi.

    attach are few docs which explains our program. If you need any additional information please feel free to reach us.

    Wishing You and Family Happy Holidays.


    Thanks
    Ramesh Patwal
    1732 438 6993

 

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