Author Topic: Uttarakhand In High Earth Quake Zone-उत्तराखंड अति स्वेदन भूकंप जोन में  (Read 20180 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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YAAD KARO IS TAARIKH KO,  8 अगस्त 1998

शनिवार की सुबह उत्तराखण्ड के लिए फिर से मातम लेकर आई। गहरी नींद में सो रहे पिथौरागढ़ के तीन गांवों के 43 लोग मलबे में जिंदा दब गए। मुनस्यारी तहसील के ला, पनलिया और रूनीतोला तोक में शनिवार सुबह लगभग ढाई बजे अतिवृष्टि हुई। एक बात बार-बार सुनने को मिलती रही है कि उत्तराखण्ड के आपदा प्रभावित गांवों को चिन्हित किया जाना चाहिए। एक समाचार में इस प्रकार के 97 गांवों को चिन्हित किए जाने की बात की गई है और उनके विस्थापन की मांग भी की जा रही है।

ऐसे हादसे लगातार होते रहे हैं। 18 अगस्त 1998 को माल्पापिथौरागढ़ में दो सौ से ज्यादा लोग तथा रूद्रप्रयाग जिले के उखीमठ तहसील में 103 लोग मारे गए थे, जिसमें भेंटी और पौण्डार गांव एक बड़े भूस्खलन के नीचे दब गए थे। साथ ही इससे पूर्व में 14 गांवों में भी भयंकर तबाही के साथ लोग मारे गए थे।

इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद गोपेश्वरचमोली में रचनात्मक कार्यों की संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल ने नवम्बर 1998 को बटेर गांव में उत्तराखण्ड में भूस्खलन की त्रासदी पर एक संगोष्ठी आयोजित की थी, जिसमें जमीनी वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. आर एस टोलिया और प्रधानमंत्री कार्यालय में सयुक्त सचिव अशोक सैकिया ने भी भाग लिया था।

 उस गोष्ठी में एक बात उभर कर आयी थी की हिमालय के इन क्षेत्रों का व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन कर अति संवेदनशील क्षेत्रों का चिन्हाकंन, मानचित्रीकरण करते हुए एक विस्तृत तालिका तैयार की जाय तथा वसासतों निमार्ण कार्यों, भूमि सहित समस्त प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए व्यवहारिक दिशा-निर्देश तैयार कर उन्हें व्यापक प्रचार प्रसार के साथ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराया जाय।

 मैं कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार को भी मिला। उनसे उत्तराखण्ड और हिमांचल के इस प्रकार के क्षेत्र को चिन्हित करने का अनुरोध किया था। इसमें उत्तराखण्ड के संदर्भ में यह भी कहा गया कि काली नदी से टौंस तक का मुख्य केन्द्रीय भ्रंश वाला इलाका है उसके दोनों ओर के बीस-बीस किलोमीटर का क्षेत्र चिन्हित किया जाना चाहिए।

जिसमें हाई रेजुलेशन उपग्रह के आकड़ों से इसके अंतर्गत पड़ने वाले जलागमों का सर्वेक्षण करना। साथ ही कुछ खास संवेदनशील जलागमों में पिछले दस सालों में हुए परिवर्तन का उपग्रह के ऑकड़ों से अध्ययन करना, इससे जलागमों में पड़ रहे दबावों का आकलन तथा दबाव कम करने के वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में सोचा जा सके। इस चर्चा के बाद इसरो के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन के साथ बैठक हुई थी, इस पर उन्होंनें कार्य करवाने के निर्देश भी दिए।

 लेकिन नीचे के स्तर पर मुख्य केन्द्रीय भ्रंश के बजाय ऋषिकेश से बद्रीनाथ, ऋषिकेश से गंगोत्री, रूद्रप्रयाग से केदारनाथ, टनकपुर से माल्पा मार्ग को आधार मानकर अध्ययन किया गया। जिसमें देश की बारह वैज्ञानिक संस्थाएं जुटीं थीं। जिसका 2001-02 में मानचित्र तैयार किया गया तथा उत्तराखण्ड के संबंधित अधिकारियों को सौंप दिया गया था।

Devbhoomi,Uttarakhand

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ऐसा लगा कि किसी ने उसको देखने की जरूरत ही महसूस नहीं की। इधर उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत की त्रासदी हुई। जबकि इस मानचित्र में उत्तरकाशी को चिन्हित किया गया था और प्रबंध के बारे में सुझाव दिए गए थे। लेकिन जैसा कि होता है, हमारे यहां किसी पर जिम्मेदारी सुनिश्चित नहीं की जाती है। बार-बार प्रयास करने पर 2005 में देहरादून में इस मसले पर फिर संगोष्ठी हुई। जिसमें सभी जिलाधिकारी, सीमा सड़क संगठन, सेना आदि के अधिकारी भी उपस्थित थे। इस अध्ययन में मुनस्यारी का यह क्षेत्र शामिल नहीं था।

मध्य हिमालय की अंर्तनिहित संवेदनशीलता जगजाहिर है, भू-गर्भविदों के अनुसार भारतीय भूखण्ड के उत्तरगामी दबाव ने विश्व की इन नवीनतम व उत्तुंग पर्वत श्रंखलाओं को जन्म दिया है, यह उत्तरानुवर्ती दबाव निरन्तर जारी है। जिसमें उत्पन्न उर्जा का उत्सर्जन समय-समय पर भूकंपीय झटकों के रूप में प्रकट होता है। सन 1991 के उत्तरकाशी व सन 1999 के चमोली भूकम्प इसके नवीनतम उदाहरण हैं।

इसके अलावा कई छोटे-छोटे भूकम्प इनके बाद भी आए हैं। इस भूगर्भीय प्रक्रिया के कारण विगत 100 वर्षों में आये असंख्य भूकंपीय झटकों ने इस क्षेत्र को अत्यन्त संवेदनशील बना दिया है। प्राकृतिक अस्थिरता के साथ-साथ हमारे दोषपूर्ण विकास योजनाओं, सड़क तंत्र के विस्तार तथा नदियों के जलदोहन की विभिन्न योजनाओं के अलावा वनों के अंधाधुंध व्यापारिक दोहन ने हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह गड़बड़ा दिया है।

 यद्यपि संपूर्ण हिमालयी श्रंखलाओं में भूस्खलन का खतरा बना हुआ है, परन्तु जिन क्षेत्रों से होकर मुख्य भ्रंश गुजरते हैं उन क्षेत्रों में यह स्थिति और भी बदतर हो जाती है। इसी तरह का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, मुख्य केन्द्रीय भ्रंश जो लघु हिमालय को वृहद हिमालय से अलग करता है।

संयोगवश यह भ्रंश अत्यन्त घने बसे लघु हिमालय व अत्यन्त विरल जनघनत्व वाले वृहद हिमालय के बीच में स्थित है, जो एक जनसंख्या सीमा का भी कार्य करता है। वर्षों से यह अनुभव किया गया है कि सभी भूकंपों का केन्द्र मुख्य केन्द्रीय भ्रंश के आस-पास ही रहता है।


http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-67473.html

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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There should be active Disaster Management System so that it plays active role in hour of need.

People must be educated about the measures to be taken in case of earthquake.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Please go through the news.. This is one of the factor.


पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा है भूगर्भीय हलचल


बागेश्वर। रविवार की सुबह आये भूकंप से हालांकि जान माल का नुकसान नहीं हुआ हो लेकिन इसने पर्यावरण विशेषज्ञों को सोचने को मजबूर कर दिया है। जोन 5 में स्थित बागेश्वर जिले में अवैध खड़िया खनन लघु जल विद्युत परियोजनाएं भी भूगर्भीय हलचल के लिए कम जिम्मेदार नहीं है।

रविवार की तड़के 4.06 बजे आये भूकंप से लोगों में हड़कंप मच गया। लगभग 6 सेकेंड तक आये भूकंप का केंद्र भी बागेश्वर ही था। बागेश्वर के कपकोट, रीमा, कांडा आदि स्थानों में खड़िया का खुदान किया जा रहा है। अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे खड़िया खनन मालिकों पर प्रकृति से छेड़छाड़ करने के आरोप लगते रहते है। हालांकि खान मालिकों की ऊंची पहुंच के कारण प्रशासन भी उन पर कार्यवाही नहीं कर पाता है। कपकोट में पन बिजली परियोजनाओं के नाम पर कई किमी सुरगों का निर्माण किया जा रहा है। पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा है कि कपकोट व बागेश्वर में आये दिन भूकंप के हल्के झटके आते रहते है। यह हल्के झटके किसी बड़ी आपदा का संकेत हो सकते है। आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष हीरा धपोला ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बागेश्वर जिले में अवैज्ञानिक व अवैधानिक तरीके से खनन हो रहा है। कपकोट में लघु जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए कई किमी लंबी सुरंग खोदी जा रही है। जिसमें विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रकृति से इस तरह की छेड़छाड़ लोगों को मौत के मुहाने पर ले जा रही है। उन्होंने इस बीच खड़िया की खान स्वीकृत करने पर भी नाराजी व्यक्त करते हुए कहा कि पहले से ही संकट से जूझ रहे बागेश्वर को विनाश की ओर ले जाने के प्रयास को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने नई स्वीकृतियों पर तुरंत रोक लगाने का सुझाव प्रदेश सरकार को दिया है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6381988.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भूकंप के झटकों ने खोली लोगों की नींद

 गढ़वाल। रविवार तड़के गोपेश्वर, रुद्रप्रयाग और श्रीनगर समेत आसपास के इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर 4.6 तीव्रता वाले झटकों से करीब पांच सेकेंड तक धरती कांपती रही। भूकंप का केंद्र कुमाऊं के बागेश्वर जिले में बताया जा रहा है।

गोपेश्वर: रविवार सुबह चार बजकर छह मिनट पर आये भूकंप के झटकों से लोगों की आंख खुल गई और वे हड़बड़ाकर घरों से बाहर निकल आए। इससे जिले के पिण्डर घाटी क्षेत्र मकानों पर दरारें पड़ने की सूचना है। कर्णप्रयाग के नगर क्षेत्र सहित नैनीसैंण, नौटी, चांदपुर पट्टी के आदिबदरी, सिमली में भी भूकंप के झटके महसूस किये गये। इसी तरह गौचर नगर क्षेत्र सहित समीपवर्ती सिदोली, भट्टनगर, रावलनगर व पनाई में भी प्रात:काल आये भूकंप के झटकों ने लोगों की नींद में खलल डाला।

थराली। नारायणबगड़ के माल, बुडजोला, सोलपट्टी, ग्वालदम, तलवाड़ी, चेपडों, हरमनी, कुलसारी, लोल्टी में भूकंप के झटकों से लोग घरों से बाहर निकल आए। प्राथमिक विद्यालय रेई के जर्जर भवन में दरार आ गयी। पूर्व प्रधान उदय सिंह पंवार ने बताया कि इसकी सूचना प्रशासन को दे दी गई है। जबरकोट में भी कुछ कच्चे मकानों में दरारें आने की सूचना है। नारायणबगड़ के माल में चैतराम व शिवचरण, कमलानंद तथा हंसकोटी में गोपालराम की कच्ची मकानों व गोशाला में भी दरारें आ गयी है। वहीं देवाल के मुंदौली, बोरागाड़, मेलखेत में भी झटके महसूस किए गए।

श्रीनगर से प्राप्त समाचार के अनुसार तड़के लगभग चार बजे श्रीनगर में भकंप का हलका झटका महसूस किया गया ।

रुद्रप्रयाग। रविवार तड़के लगभग चार बजे जिला मुख्यालय के साथ ही अगस्त्यमुनि, गुप्तकाशी, फाटा, तिलवाड़ा सहित सभी क्षेत्रों में लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए। इसके बाद दहशत का माहौल बन गया। कई जगह तो लोग डर के मारे अपने घरों से भी बाहर निकल गए। इस घटना के बाद अब लोग काफी सहमे हुए हैं।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Again there quake.
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लगातार दूसरे दिन भूकंप के झटकों से सहमा उत्तराखंड

नई टिहरी/उत्तारकाशी, जागरण संवाददाता: राज्य के उत्तारकाशी, टिहरी और देहरादून के ऋषिकेश क्षेत्र में देर रात को भूकंप के झटके महसूस किये गए। भूकंप के झटके आने से लोग घरों से निकलकर बाहर आ गए।

सोमवार को देर रात करीब 10 बजकर 37 मिनट पर जनपद टिहरी और उत्तारकाशी शहर के अलावा अन्य हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। रविवार की सुबह और फिर आज सोमवार की रात फिर भूकंप आने से लोग डरे हुए हैं। देहरादून के ऋषिकेश क्षेत्र में भी भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। समाचार लिखे जाने तक कहीं से भी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6386822.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  जिस तरह से दो तीन दिनों से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रो में भूकंप के झटके महसूश किये गए है यह एक अच्छा संकेत नहीं है! दूसरी तरफ उत्तराखंड के कई भागो में खड़िया एव जगह -२ बड़े बड़े जल विधुत परियोजनाओ का कार्य चल रहे रहा है उसके कही नि कही जमीन  के अन्दर हलचल है! हिट्स गवाह रहा है, उत्तराखंड में कितनी त्रासदी देखि है भूकंप से! समय रहते हुए कुछ करना होगा, प्रकर्ति के साथ बहुत ज्यादे छेड़-छाड़ अच्छा नहीं ! 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mild tremors felt in parts of Uttarakhand

Dehra Dun, Jun 23 (PTI) A mild intensity earthquake measuring 4.5 on the Richter Scale shook Almora, Pithoragarh and adjoining areas of Uttarakhand in the wee hours today driving panic-stricken residents out of their houses.

However, no loss of life or property was reported from anywhere, official sources said.

The epicentre of the quake that occurred at around 0444 IST was at 29.6 degree North latitude and 79.7 degree East longitude in Pithoragarh district, Director Met department said here.
http://www.ptinews.com/news/736459_Mild-tremors-felt-in-parts-of-Uttarakhand

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आधे घंटे के भीतर तीन बार डोली कनार की धरती
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पिथौरागढ़: मध्य हिमालय की प्रसिद्ध छिपलाकेदार पर्वतमाला में आठ से नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अंतिम गांव कनार में तीन माह बाद एक बार फिर भूकंप के झटके महसूस किए गए। गुरुवार की प्रात: तीस मिनट के अंतराल में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किये गये। भूकंप के झटके हल्के थे लेकिन भूमि के भीतर की गरज से ग्रामीण खौफजदा हैं।

अति दूरस्थ कनार गांव से मिली सूचना के अनुसार गुरुवार की प्रात: ठीक साढ़े चार बजे पहली बार भूकंप का झटका महसूस किया गया। ग्रामीणों के अनुसार पहले झटके से ही पूरे गांव के लोग जग गये थे। उनके अनुसार भूमि में कंपन हल्की थी परन्तु भूमि के भीतर गड़गड़ाहट की आवाज काफी तीव्र थी। अभी पहले झटके से लोग उबरे ही नहीं थे कि ठीक पन्द्रह मिनट बाद फिर भूकंप का झटका आ गया। इस बार भी भूमि के अंदर से तेज आवाज आ रही थी। इसके ठीक पन्द्रह मिनट बाद पांच बजे के आसपास तीसरा झटका महसूस किया गया। तीसरा झटका आते ही गांव में खलबली मच गयी। लोग घरों से बाहर निकल गये।

ग्राम प्रधान बाला सिंह परिहार सहित विद्यालयों में तैनात शिक्षकों ने बताया कि भूकंप के झटके आने के बाद कुछ देर तक भूमि के अंदर गर्जना हो रही थी।

मालूम हो कि जुलाई माह में लगातार पच्चीस दिनों तक इस क्षेत्र में भूकंप आया था। जिससे कई मकान और सम्पर्क मार्ग ध्वस्त हो गये थे। क्षेत्र में आ रहे लगातार भूकंप के चलते भू वैज्ञानिक यहां पहुंचे थे। भू-वैज्ञानिकों ने क्षेत्र का निरीक्षण करने के बाद यहां पर कम गहराई वाला भूकंप का केन्द्र बताया था। भू वैज्ञानिकों का कहना था मात्र आठ दस किमी के दायरे में भूमि के अंदर बने केन्द्र के चलते भूकंप का सिलसिला जारी है। कुछ दिनों बात भूकंप आने बंद हो गये। जिससे यह प्रकरण शांत हो गया। इधर तीन माह के बाद एक बार फिर क्षेत्र में भूकंप आने से लोगों में दहशत व्याप्त है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6837246.html

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Uttarakhand Govt. starts disaster management training program
« Reply #19 on: December 13, 2010, 08:18:51 AM »
Uttarakhand Govt. starts disaster management training program 
 
Haldwani (Uttarakhand), Dec.12 (ANI): The Uttarakhand government with disaster management committee has started a disaster management-training program to combat natural calamities in the state.

Around 10,000 people including home guards, police and rapid action force personnel will be trained.

The training program started on December 1 and will go on till April 2011.

To mitigate any natural calamity, the home guards are undergoing disaster prevention and management training like rock climbing, rappelling, river rafting.

S.S Martolia, the coordinator of disaster management committee, said every person should have the knowledge about how to deal with difficult situations.

"The main motive of this training
  is that we want every person from child to adult to senior citizen to be aware of forthcoming disasters. They should have knowledge about it so that in disastrous situation they can help the injured person," said Martolia.

The training program has boosted up the confidence and moral of home guards and also brought positive change in their thinking about humanity.

"We are learning that if we are able to save someone's life then we would think we have learnt something. Here we are learning rappelling, rock climbing etc. Suppose some accident occurred so how to bring injured person from ditch to highway and how to save lives during flood, have been taught to us," said Om Prakash, trainee home guard.

According to Deepak Martolia, an instructor, management committee will prepare a data of all home guards so that they can be immediately informed about the problem.

"Our Uttarakhand comes under sensitive earthquake zone and it is calamity prone State. It comes under zone 4 and 5. Here the chances of flood are also very high, so keeping all these factors in mind we are preparing a data of our trainees to look out who is living in which district. So that we can inform them on phone about the disaster and they can immediately reach the disastrous area and help people of that area," said Martolia. (ANI)
 
http://news.oneindia.in/2010/12/12/uttarakhandgovt-starts-disaster-management-trainingprogra.html

 

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