भूकंप के झटकों पर भारी पड़ सकती है लापरवाही
भवन निर्माण में मानकों की हो रही है अनदेखी
ड्ड इसे लेकर आमजन में भी है जागरूकता का अभाव
ड्ड बायलॉज के अनुसार भवनों का भूकंपरोधी जरूरी
ड्ड ९० प्रतिशत से अधिक निर्माणों में अनुपालन नहीं
ड्ड पांच से अधिक का भूकंप हो सकता है विनाशकारी
रुड़की। शहर और आसपास के क्षेत्रों में मानकों की अनदेखी कर अंधाधुंध भवन निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इसे लेकर जहां आमजन में जागरूकता का अभाव है। वहीं मानकों के अनुपालन में प्रशासन की ओर से भी हीलाहवाली की जा रही है। नतीजतन भूकंप के झटकों पर प्रशासन की यह लापरवाही भारी पड़ सकती है। आईआईटी वैज्ञानिकों की मानें तो ९० प्रतिशत से अधिक भवनों में मानकों की अनदेखी की जा रही है, जो भविष्य में खतरनाक साबित हो सकती है।
जापान में भूकंप और सुनामी से हुई तबाही के बाद अपने देश में भी अर्थक्वेक वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही है। बीते रोज चमोली से लगभग ५० किमी. पश्चिम में तीन से अधिक तीव्रता के आए भूकंप ने प्रदेश सरकार के साथ आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन, मानकों की अनदेखी कर बेतरतीब भवन निर्माण के आगे आईआईटी वैज्ञानिक भी बेबस नजर आ रहे हैं। आईआईटी वैज्ञानिकों के अनुसार देश में भी आठ मैग्रीट्यूड से अधिक तीव्रता के भूकंप कई बार आए हैं, लेकिन उस दौरान इतनी क्षति नहीं हुई। पर आज उसकी आधी की तीव्रता भी खतरनाक साबित हो सकती है।
आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष प्रो. एचआर वासन और अर्थक्वेक साइंस के प्रो. आर.बालागन के अनुसार भारत में ९० प्रतिशत से अधिक भवनों में भूकंपरोधी तकनीक का उपयोग नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि भुज में आए भूकंप के बाद सरकार ने इस दिशा में पहल की। साथ ही सभी राज्यों में भवन निर्माण से पहले नक्शा पास कराने और उसे अर्थक्वेक साइंटिस्ट यानी सिविल इंजीनियर से अप्रूव्ड कराने पर बल दिया।
लेकिन, इसके बाद भी आमजन में जागरूकता की कमी और प्रशासन की हीलाहवाली इस पर भारी पड़ रही है और आज भी बिना अर्थक्वेक रेजिडेंस के ही भवन निर्माण किए जा रहे हैं, जो पांच तीव्रता के भूकंप झटके भी सहन नहीं कर सकते।
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