Author Topic: Uttarakhand Kranti Dal-उत्तराखंड क्रांति दल के पतन का मूल्याकन  (Read 36057 times)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Bubu ji yaha par kuch hadd tak mai apki baton se sahmat hu ki jaise धरना, प्रदर्शन आदि तो यह कर सकते हैं, लेकिन किसी आन्दोलन को जगाकर या किसी आन्दोलन को हाईजैक कर उसे अपने वोटों में परिवर्तित कर देने की कला इस पार्टी के लोगों को नहीं आती है....

lekin apne ek baat aur kahi hai ki छोटे राज्यों का हित क्षेत्रीय दलों की सरकार बनने में ही है....to mujhe nahi lagta hai ki Uttarakhand ke vikash ke liye UTTRAKHAND ki satta UKD jaise kamzor chhetriya party ke hath me honi chahiye....aur jo jaruri bhi nahi lagta hai......iska Udaharan aap Himanchal pradesh me bhi dekh sakte hain jahan par koi bhi chhetriya party satta me nahi hoti hai lekin fir bhi VIKAS ho raha hai......

Rahi baat UTTARAKHAND RAJYA NIRMAAN ki to usme kewal UKD kaa hee yogdaan nahi thaa balki wo UTTARAKHAND ke sabhi logo ki maang thi jisme sabhi log meel joolkar aage aaye thay.....haan ye baat alag hai ki UKD ko uss samay chhetriya dal hone ke karan uska fayda jarur meela...

अब आते हैं मुद्दे पर-
पहले बात तो यह है कि जिस अवधारणा और संकल्प के साथ उक्रांद का गठन किया गया था, उस पर वह काफी हद तक खरी उतरी। १९७९ से २००० तक इस पार्टी ने काफी अच्छा काम किया, हकीकत की बात तो यह है कि उक्रांद की बढ़ती राजनैतिक ताकत ने ही राष्ट्रीय दलों को इस बात के लिये मजबूर किया कि वे भी उत्तराखण्ड राज्य की मांग करे।
१९८० में जब इस पार्टी का एक विधायक और ८६ में २ विधायक बने तो राष्ट्रीय पार्टियों में हलचल मची कि यह उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर दो विधायक बन गये हैं, तो हमें भी मनन करना चाहिये। मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने-अपने आकाओं को अपनी इस चिन्ता से अवगत कराया तो भाजपा ने इसे पृथकतावादी मांग कहकर यहां के नेताओं को हड़का दिया और कांग्रेस ने हमेशा की तरह न हां कहा न ना कहा, जब समय आयेगा देखेंगे कहकर पुचकार दिया। यही इस पार्टी का चरित्र भी है।
लेकिन उक्रांद का जनाधार लगातार बढ़ता रहा, एक समय ऐसा आया कि १७ विधाऩसभाओं में उक्रांद ने इन सबको कड़ी टक्कर दी और इसके सभी प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। यहीं से खलबली मची कि भई, ये तो बहुत ऊपर तक आ गये हैं, लोगों की भावना इनके साथ है। इसके बाद केन्द्र शासित प्रदेश, हिल कौंसिल और उत्तरांचल जैसे छद्म नाम हमारे सामने आये।

उक्रांद की सबसे बड़ी कमी उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता  रही है। १९९३ के जिस चुनाव में उत्तराखण्ड की जनता ने यह मन बना लिया कि इस बार पूरी सीटों से हम उक्रांद को ही जितायेंगे, इसके नेतृत्व ने एक भावुक निर्णय ले लिया कि जिस व्यवस्था में हमारी बात नहीं सुनी जाती है, हम उस व्यवस्था का अंग नहीं बनेंगे। इन्होंने चुनाव लड़ने से ही इन्कार कर दिया। यह निर्णय गलत था या सही, लेकिन इससे उक्रांद की राजनैतिक अपरिपक्वता झलकी, क्योंकि किसी भी राजनैतिक दल को भावनाओं से ऊपर उठकर राजनीति करनी चाहिये, जो इनके बस का न तब था, न अब है। क्योंकि ये लोग जनवादी है, जनसरोकारों के लिये धरना, प्रदर्शन आदि तो यह कर सकते हैं, लेकिन किसी आन्दोलन को जगाकर या किसी आन्दोलन को हाईजैक कर उसे अपने वोटों में परिवर्तित कर देने की कला इस पार्टी के लोगों को नहीं आती है। उसी की परिणिति यह हुई कि उत्तराखण्ड आन्दोलन में तन-मन-धन लगा देने वाली पार्टी आज हाशिये पर पड़ी है और इस आन्दोलन पर अंतिम समय तक कोई राय न देने वाले लोग इसके तारणहार बने बैठे हैं।

इसका उदाहरण भी दे दूं, जब १९९४ में उत्तराखण्ड आन्दोलन शुरु हुआ तो उक्रांद ने ही इसकी शुरुआत की थी, लेकिन ये लोग हुये सीधे-सरल-भावुक पहाड़ी, इन्होंने कह दिया कि सभी राजनैतिक ताकतों को एक मंच पर आना चाहिये और सर्वदलीय समिति बना दी। जिसमें बड़े-बड़े नेता आ गये और अपने-अपने हिसाब से राजनीति करने लगे, जिसका प्रतिफल क्या हुआ, वह सबने देखा।

मेरा तो अपना यह मानना है कि छोटे राज्यों का हित क्षेत्रीय दलों की सरकार बनने में ही है, क्योंकि इनका अस्तित्व उत्तराखण्ड तक ही सीमित है, इनका रिमोट कंट्रोल उत्तराखण्ड में ही होगा, दिल्ली या नागपुर या कहीं और नहीं।

हुक्का बू

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मैने यह नहीं कहा कि उक्रांद का ही योगदान था, मैने कहा कि उक्रांद के राजनैतिक उत्थान और अपार जन समर्थन ने राष्टीय दलों को उत्तराखण्ड के बारे में सीरियसली सोचने पर मजबूर किया।

जहां तक आपने हिमांचल की बात की तो राज्य गठन के बाद श्री यशवन्त सिंह परमार जी जैसा मुख्यमंत्री उस राज्य को मिला, उन्होंने वहां पर ऐसी नीतियां बनाई कि किसी के कुछ गड़बड़ कर सकने की गुंजाइश ही नहीं बचती है।

मैं इस बात पर जरुर जोर देकर कहना चाहूंगा कि छोटे और उत्तराखण्ड जैसे विकट भौगोलिक परिस्थिति वाले राज्य के हित में यही होगा कि किसी क्षेत्रीय दल की सरकार यहां पर हो। वह उक्रांद ही हो, मैं नहीं कहता, क्यों कि यह अधिकार जनता को है, वह जो निर्णय करेगी, वही होगा।

 क्योंकि इस राज्य की अवधारणा पर्वतीय प्रदेश की थी, लेकिन आज १० साल बाद ही वह पहाड़ अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगा है। राष्ट्रीय दलों के राष्ट्रीय एजेंडे भी होते हैं, अभी हमारे मुख्यमंत्री जी औद्योगिक पैकेज के लिये कह रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले जब टाटा ने नैनो के लिये १००० एकड़ जमीन मांगी तो सरकार ने कह दिया कि हमारे पास इतनी जमीन नहीं है, जब जमीन ही नहीं है तो पैकेज क्यों? यह इसलिये हुआ कि गुजरात में लोकसभा की अधिक सीटें है और भाजपा को वहां से इस प्लांट के लगने के बाद अपार जनसमर्थन की आस थी।

ऐसे ही उ०प्र० के साथ परिसम्पत्तियों का ममला हो या कार्मिकों को राष्ट्रीय पार्टियां जब तक रहेंगी, यह मामले टलते रहेंगे, अगर आज सिंचाई की सम्पत्ति उत्तराखण्ड को मिल जाती है तो कल के दिन इनकी विरोधी पार्टी वहां यह प्रचार कर देगी कि फलां पार्टी ने तुम्हारी नहरें रुकवा दी। लेकिन जब क्षेत्रीय पार्टी होगी तो इसके मकसद और मतलब दोनों क्षेत्रीय तक ही निहित होंगे।

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Bubu apki baten padkar mujhe apni Amma ki kuch baten yaad aa gai hain jo hamesha kahti thi ki.....
 
KUCH LOG MEELKAR BAHUT LOGO KO KUCH SAMAY TAK BEWKOOF BANA SAKTE HAIN...
 
 
AUR BAHUT SAARE LOG MEELKAR KUCH LOGO KO LAMBE SAMAY TAK BEWKUF BANA SAKTE HAIN...............
 
LEKIN BAHUT SAARE LOG BAHUT SAARE LOGO KO LAMBE SAMAY TAK KABHI BHI BEWKUL NAHI BANA SAKTE HAIN.........
 
 
Ishi liye mene pahle bhi kaha tha ki UTTRAKHAND Ki janta samajhdaar hai...

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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To kyon naa ham bhi UTTRAKHAND ke VIKAS ke liye kishi party visesh ki baaten naa karke Shri Yashwant singh Parmaar jaise chief minister ki baat karen....mere khayal se to UTTARAKHAND ke heet me bhi wahi jyada badiya rahega.....

मैने यह नहीं कहा कि उक्रांद का ही योगदान था, मैने कहा कि उक्रांद के राजनैतिक उत्थान ने राष्टीय दलों को उत्तराखण्ड के बारे में सीरियसली सोचने पर मजबूर किया।

जहां तक आपने हिमांचल की बात की तो राज्य गठन के बाद श्री यशवन्त सिंह परमार जी जैसा मुख्यमंत्री उस राज्य को मिला, उन्होंने वहां पर ऐसी नीतियां बनाई कि किसी के कुछ गड़बड़ कर सकने की गुंजाइश ही नहीं बचती है।

मैं इस बात पर जरुर जोर देकर कहना चाहूंगा कि छोटे और उत्तराखण्ड जैसे विकट भौगोलिक परिस्थिति वाले राज्य के हित में यही होगा कि किसी क्षेत्रीय दल की सरकार यहां पर हो। वह उक्रांद ही हो, मैं नहीं कहता। क्योंकि इस राज्य की अवधारणा पर्वतीय प्रदेश की थी, लेकिन आज १० साल बाद ही वह पहाड़ अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगा है।


हुक्का बू

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आप उक्रांद की बात कर रहे हैं, यह टापिक भी उसी के लिये है, मैने क्षेत्रीय दल को सत्ता सौपने के लिये कहा है। मेरा तो आपसे अनुरोध है कि आप जैसे समझदार, अनुभवी, युवा आकर राजनैतिक कमान संभाले और उत्तराखण्ड का नवनिर्माण करें, जिसकी जरुरत है।

रही बात उक्रांद की तो कोई कुछ भी कहे, लेकिन उक्रांद के योगदान को कोई भुला नहीं सकता। राज्य बनने के बाद जहां तमाम राजनीतिक दलों के लोग अपने आप को आन्दोलनकारी साबित करवाने में लगे रहे और कामयाब भी हुये, मेरे पास सरकार द्वारा जारी वह लिस्ट भी है, जिसमें आन्दोलन का दुष्प्रचार करने वाले लोगों को आन्दोलनकारी घोषित किया गया है और सहायता राशि दी गई है। लेकिन आपको बताता चलूं कि आन्दोलन को राह दिखाने वाले स्व० इन्द्रमणि बड़ोनी, गुरुजन सिंह गुंज्याल, काशी सिंह ऐरी, स्व० विपिन त्रिपाठी जैसे सर्वमान्य नेताओं के नाम उस लिस्ट में कहीं नहीं है।

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Bubu ji aap jin logo ke naam le rahe hain स्व० इन्द्रमणि बड़ोनी, गुरुजन सिंह गुंज्याल, काशी सिंह ऐरी, स्व० विपिन त्रिपाठी जैसे सर्वमान्य नेताओं ke to aap ye bhi shayad bhali bhaati jalte honge ki ye log agar UKD me nahi bhi hote to tab bhi ishi tarah se RAJYA ke liye apni ladai ladate......Inhone jo bhi kiya ek sache UTTARAKHANDY hone ke naate kiya aur ishi liye ye log aaj jaane bhi jaate hain....

Fir isme UKD ne kya kiya alag se? Kuch logo ke kaaryo ko lekar aaj UKD ke neta jish tarah se RAJNEETI karne ki soch rahe hain yahi unki dasha kaa asal karan hai....

आप उक्रांद की बात कर रहे हैं, यह टापिक भी उसी के लिये है, मैने क्षेत्रीय दल को सत्ता सौपने के लिये कहा है। मेरा तो आपसे अनुरोध है कि आप जैसे समझदार, अनुभवी, युवा आकर राजनैतिक कमान संभाले और उत्तराखण्ड का नवनिर्माण करें, जिसकी जरुरत है।

रही बात उक्रांद की तो कोई कुछ भी कहे, लेकिन उक्रांद के योगदान को कोई भुला नहीं सकता। राज्य बनने के बाद जहां तमाम राजनीतिक दलों के लोग अपने आप को आन्दोलनकारी साबित करवाने में लगे रहे और कामयाब भी हुये, मेरे पास सरकार द्वारा जारी वह लिस्ट भी है, जिसमें आन्दोलन का दुष्प्रचार करने वाले लोगों को आन्दोलनकारी घोषित किया गया है और सहायता राशि दी गई है। लेकिन आपको बताता चलूं कि आन्दोलन को राह दिखाने वाले स्व० इन्द्रमणि बड़ोनी, गुरुजन सिंह गुंज्याल, काशी सिंह ऐरी, स्व० विपिन त्रिपाठी जैसे सर्वमान्य नेताओं के नाम उस लिस्ट में कहीं नहीं है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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i would request our members to kindly give the suggestions from your side to UKD. What they should do to get the public faith back and come in a position in the state to form the Govt. However, before that you can highlight the facts where they made mistake due to which had to lose mandate in the state. 

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Daju, Jab wo kuch karana suru kar denge to khud pe khud faith develop ho jayega....


i would request our members to kindly give the suggestions from your side to UKD. What they should do to get the public faith back and come in a position in the state to form the Govt. However, before that you can highlight the facts where they made mistake due to which had to lose mandate in the state. 


dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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कैलाश जी पता नहीं जनता समजदार है या लाचार है क्युकी पिछले चुनाव मैं सत्ता हथियाने के लिए जिस तरह से शराब और नोटों का इस्तेमाल हुवा उससे तो मुझे जनता की लाचारी ही नजर आती है UKD  संगठन है जो इसके मेम्बर है वो चाहे कोई भी हो संगठन मैं रह कर ही उन्होंने काम किया इसलिए UKD का नाम ही आना चाहिए जहाँ तक मेरी जानकारी है UKD ने कभी भी जनहित के खिलाफ कोई काम नहीं किया उसने शराब के विरोध मैं काम किया न की लोगो को Vote के बदले शराब नहीं दिया , उन्होंने जंगल बछाने के लिए काम किया और भी बहुत से काम किये जो जनता के हित मैं हैं उत्तराखंड का दुर्भाग्य है की पड़े लिखे समजदार जिनको अच्छे बुरे की समझ है वो तो पलायन कर रहे हैं जो बचा मॉस वहां पर है उसको अपना वर्तमान के लिए संघर्ष करना है future की वो सोचता ही नहीं इसलिए शराब के एक addhe मैं ही बिक जाता है यही शायद राष्ट्रिय पार्टी चाहती भी हुंगी नहीं तो ये काम नहीं कराती
 
Ishi liye mene pahle bhi kaha tha ki UTTRAKHAND Ki janta samajhdaar hai...

jagmohan singh jayara

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उत्तराखंड क्रांति दल का राज्य प्राप्ति के लिए महान योगदान रहा है.   रही बात उत्तराखंड में  उसकी राजनैतिक  हैसियत की, जनता ही उनको ये ताकत प्रदान कर सकती है.  उनको अपना राजनितिक  जनाधार उत्तराखंड में, जनमुद्दों पर  जनता के साथ खड़े होकर प्राप्त हो सकता है.

 क्या पहाड़ से पलायन रुक गया है?  अगर हाँ ?.... तो....बड़े बाँध बनाकर विस्थापित(पलायन) किया जा रहा है....बदचलन बिजली के लिए....जो पहाड़ से दूर किसी और  का विकास करेगी....पहाड़ का नहीं.

चारधाम यात्रा जारी है....पहाड़ की बसें यात्रियों  को ले जा रही हैं.....प्रवासी और स्थानीय  पहाड़ी घाम ताप रहे हैं बस के बिना...शादी में जा रहे हैं...या पहाड़ प्रेम के वश होकर गाँव जा रहे हैं ..टैक्सी वाले उत्तराखंडी ड्राईवर भाई....तीन चार गुना पैसा वसूल किये बिना जाने को तैयार नहीं.  उत्तराखंड बनाकर ऐसा होना था तो....

                   "जननायक....महान कवि...सत्ता सुख  भोग रहे हैं" क्या जाने फिर न मिले ....जनता जाये भाड़ में....रहना नहीं पाड़ में....हंस चुगेगा दाना...कौव्वा मोती खायेगा....यथार्थ है किसी कवि की रचना......

 राज्य बना लोग आज उसी हाल में हैं.  बुजर्ग कहते हैं अंग्रेजों का राज अच्छा था...न्याय होता था....भ्रस्टाचार  नहीं था.  आपना उत्तराखंड बन चुका है.  बिना नकद नारैण दिए बिना किसी भी विभाग में आपका काम नहीं हो सकता. इससे तो बढ़िया यू. पी. राज था.....तब भी पैसा देना पड़ता होगा....पर कम......जनता तो कहती है कदम कदम पर ठगे गए हम...अपने उत्तराखंडी सरकारी भाई बन्ध तो....तनख्वाह बचाते हैं और मुफ्त का खाते हैं.   

 

 

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