साथियो,
उत्तराखण्ड राज्य प्रकृति की गोद में बसा हुआ है, जिसका भरपूर लाभ और प्यार उत्तराखण्ड की जनता को सदियों से मिलता रहा है। शुद्ध हवा, पानी, जंगल, जड़ी-बूटी आदि के रुप में प्रकृति हम पर अपना प्यार लुटाती रही है।
लेकिन इसी के साथ उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थिति मध्य हिमालय में अवस्थित होने के कारण कई बार हमें दैवीय आपदाओं से भी दो-चार होना पड़ता है। मध्य हिमालय का क्षेत्र अभी ठोस चट्टान का रुप नहीं ले पाया है। भूगर्भीय हलचलों, भूकम्प जोन में अवस्थित होना, ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव, जंगलों और नदियों के अनियोजित और अनियमित दोहन और प्रकृति के मूल स्वरुप के साथ छेड़छाड़ के कारण कई बार ऐसी दुर्घटनायें होती हैं, जिसमें हमें जान और माल दोनों का नुकसान होता है।
इसके लिये आपदा प्रबन्धन विभाग भी है, लेकिन उसका विस्तार पूरी तरह हो पाया है या हो पायेगा, कहना कठिन है। क्योंकि हमारे राज्य में भूस्खलन, बादल फटना, नदियों के बहाव परिवर्तन और भूकम्प की ही घटनायें ज्यादा होती हैं और इन सब घटनाओं का पूर्वानुमान करना भी कठिन है। लेकिन इस विभाग के माध्यम से प्रभावित क्षेत्र में फौरी मदद दी जा सकती है।
इस टापिक के अन्तर्गत इस आपदाओं के विभिन्न पहलुओं पर शोध कर अपने-अपने विचार प्रस्तुत करेंगे और विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित ऐसी घटनाओं को भी संकलित करेंगे।