Author Topic: Water Crisis In Uttarakhand : पानी की समस्या से जूझता उत्तराखण्ड  (Read 23850 times)

पंकज सिंह महर

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आज ही एक दुःखद घटना अखबार में पड़ी कि पौड़ी में एक वृद्ध महिला जो टैंकर से पानी लेने के लिये लाईन में खड़ी थी, टैंकर के अचानक पीछे उनके ऊपर आ जाने के उनकी मौत हो गई।

ऐसी कई घटनायें मन को उद्वेलित कर देती हैं, गंगा-यमुना का मायाअ हमारा राज्य और उसी में पानी को लेकर हाहाकार। सरकार को चाहिये कि इन सब चीजों को चुनौती रुप में स्वीकार कर हर घर को पानी मुहैया कराने के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास करे।  आंकड़ों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास न करे कि सबको पानी मिल रहा है।

हमारी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि सुबह जब हमारी मां-बहने उठे तो उन्हें पानी की चिन्ता न करनी पड़े और २-४ कि०मी० पानी लाने न जाना पड़े।

पंकज सिंह महर

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इस समाचार को देखें- दिल्ली तक पेयजल आपूर्ति करने वाले टिहरी बांध के आस-पास के लोग भी प्यासे और वह भी वे लोग जिन्होंने इस बांध के लिये अपने पुरखों की जमीन दी थी।


टिहरी में पानी का संकट, राजकुमार शर्मा
देहरादून.टिहरी बांध परियोजना में लगातार गिरते जल स्तर से किसी भी क्षण विद्युत उत्पादन ठप होने की सम्भावना बढ़ती जा रही हैं.इस बाध में अब विद्युत उत्पादन के लिए मात्र छह मीटर जल अवशेष रह गया हैं.जानकारों का मानना हैं कि अब तो सब कुछ मानसून पर ही निर्भर हैं,समय से मानसून न आने पर आने वाले दिनों में किसी भी दिन विद्युत उत्पादन ठप पड़ सकता हैं.
जल के कमी के चलते ही इन दिनों इस विद्युत परियोजना के उत्पादन में भारी कमी दर्ज की जा रही हैं. जिसके चलते पुरे उत्तराखण्ड सहित केन्द्र एंव उत्तर प्रदेश सरकार को भी विजली की भारी किल्लत उठानी पड़ रही है.इस वर्ष में हिमालयी क्षेत्र में कम बर्फ वारी के साथ वर्षा के कम होने के साथ महाकुम्भ 2010 में बांध का जल स्नान के लिए छोड़ें जाने से इस बंाध में पानी की भारी कमी दर्ज की गयी.जानकारों का मानना है कि यदि टिहरी बांध से हरिद्वार कुम्भ के लिए पर्याप्त जल न छोड़ा जाता तो आने वाले श्रद्धालूओं को पर्याप्त जल भी न मिल पाता.जानकार मानते हैं कि इस बार इस बांध ने ही गंगा मां की लाज बचाली.जानकारों का मानना है कि इस बांध में पानी के कमी का असर सीधे टिहरी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर पड़ने के साथ देश के नौ राज्यों की बिजली के आपूर्ति पर पड़ेगा.तकनीकी विभाग के लोग यह मानते हैं कि 740 मीटर पानी के स्तर पर ही टरबाइन चलती है.जिससे विद्युत का उत्पादन सम्भव हो पाता है.समाचार लिखने तक पानी का स्तर 746 मीटर पर पहुंच चुका हैं.जनकारों का मानना हैं कि यदि एक पखवारे में वर्षा नही हुयी तो विद्युत का उत्पादन भी ठप हो सकता है.साथ ही पीने के पानी का संकट भी इस बांध से जुड़े राज्यों को झेलना पड़ सकता हैं.
इस बांध में पानी की कमी कि वजह के लिए जानकार बताते है कि रोटिन में बांध से राजाना 150मीटर पानी ही छोड़ने की व्यवस्था थी जिसके सापेक्ष में रोजाना कुम्भ को देखते हुए 300मीटर पानी छोड़ा गया.इस बांध को बनाने में 75प्रतिशत केन्द्र सरकार एंव 25प्रतिशत उत्तरप्रदेश की हिस्सेदारी तै की गयी है,उत्तरप्रदेश के विभाजन में उत्तर प्रदेश के हिस्से में से 50प्रतिशत हिस्सेदारी उत्तराखण्ड को मिली है जिसके हिसाब से इस राज्य को 148मिलियन यूनिट बिजली प्र्र्र्र्राप्त होती है.जो कि अब प्रतिदिन चुकती जा रही है.ऊर्जा प्रदेश में टिहरी बांध का जल स्त सुखने से पुरे राज्य की जनता के माथे पर पसीना उकेर दिया हैं.उत्तराखण्ड में तपती गर्मी ने लोगों को परेशान कर दिया हैं इस राज्य के लोग अब चातक की तरह आकाश की ओर निहार रहे हैं.

साभार- www.janadesh.in

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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During my recent visit to my native place, i saw actute shortage of water.

There is need to look into the root cause as natural resources are getting dried.

sanjay juyal

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A photograph was depicted in Hindustan Times may be three or four days back regarding water scarcity in the Garhwal Hills. Three little girls were shown going for water collection with plastic water cans in their hands. what was surprising was to note that all three were barefooted and were reportedly going to trek two to three kilometers to fetch water in the hot son. My heart really went out for them.

sanjay juyal

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A photograph was depicted in Hindustan Times may be three or four days back regarding water scarcity in the Garhwal Hills. Three little girls were shown going for water collection with plastic water cans in their hands. what was surprising was to note that all three were barefooted and were reportedly going to trek two to three kilometers to fetch water in the hot sun. My heart really went out for them.

हेम पन्त

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Dear Juyal ji,
I also noticed that Photo in HT. It is very disheartening to know that people from source points of Ganga-Yamuna are facing lake of drinkable water.

Leave apart the villages, district headquartes like - Alomra, Pauri, Pithoragarh etc. are getting half amount of water for their daily use.

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand is really facing acute shortage of water. I was just taking our Senior Member D N Badola ji at Ranikhet. He was saying in three days only once water supply is available and people have to store the water.

The situation is bad to worse.

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Water Crisis Affects Villages in Uttarakhand, India



Villages in India's northern state of Uttarakhand are faced with limited water supplies.

Its forced residents to tread for miles to fetch a pot of water.

People have to travel for hours to fetch water.

[Mahendra Singh, Bhatt Village Resident]:
"People come from far off places to fill their vessels and it requires two to two-and-a-half hours of walking up and down. Waiting in queues used to take so long, which meant other domestic chores could not be done."

There are some hand pumps in the villages but they aren’t able to bring up enough water.

[Bharat Singh Chaudhary, Gholtir Village Resident]:
"Several rivers flow from Uttarakhand state which have the capacity to quench the thirst of the entire country, and yet it is ironic that the people of the same state are reeling under a water crisis. The hand pumps you see dry up if used continuously for one hour, and it requires 8 to 10 hours to recharge with water."

Residents say officials aren’t listening to their pleas for help.

But the government of Uttarakhand says it is working to solve the problem.

http://english.ntdtv.com/ntdtv_en/ns_asia/2010-06-04/654349425414.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There is huge water crisis in many parts of Uttarahkand.
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पानी को ग्रामीण क्षेत्रों में   मचा हाहाकार

चम्पावत। तापमान बढ़ने के साथ ही जनपद में पेयजल संकट फिर गहराने लगा   है। नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में पानी को लेकर हाहाकार मचा है। हैंडपंपों   के जवाब देने और प्राकृतिक स्रोतों का जलस्तर कम होने से किल्लत में   लगातार इजाफा हो रहा है।
दो रोज पूर्व हुई वर्षा से राहत मिलने की उम्मीद थी मगर तपिश से पेयजल   संकट कम नहीं हो पाया। अधिकांश स्थानों पर कई नलों में हफ्तों से पानी की   बूंद तक नहीं टपकी है और वह शोपीस बनकर रह गए हैं। हैंडपंपों में भी काफी   मशक्कत के बाद पानी मिल रहा है। जल संस्थान द्वारा पिकअप व टैंकरों के जरिए   की जा रही पानी की आपूर्ति भी लोगों की प्यास बुझाने में असमर्थ हो रही   है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्रोतों का डिस्चार्ज कम होने के कारण जबरदस्त   पेयजल देखने को मिल रहा है। ग्रामीणों को मजबूरन अब गाड़ गधेरों की शरण में   जाना पड़ रहा है। पानी न मिलने के कारण जहां कई लोगों की दिनचर्या पानी के   जुगाड़ में बीत रही है वहीं स्कूली बच्चों भी पढ़ाई छोड़ पानी की व्यवस्था   में जुटे पडे़ हैं

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6494989.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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योजनाएं ध्वस्त होने से गांवों में पेयजल संकट
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अतिवृष्टि से द्वाराहाट विकासखण्ड की लगभग 28 पेयजल योजनाएं बाधित हुई हैं। योजनाओं के ध्वस्त होने से ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट गहरा गया है। ग्रामीणों का कहना है कि पीने के लिए नदी-नालों से पानी की व्यवस्था करनी पड़ रही है। दूषित पानी के सेवन से संक्रामक रोगों की आशंका बनी है। अतिवृष्टि के कारण मल्यालगांव पेयजल योजना के ध्वस्त होने से क्षेत्र के लगभग दर्जन भर गांवों में पेयजल आपूर्ति बाधित चल रही है। पूर्व बीडीसी सदस्य जगत सिंह ने बताया कि इस योजना से मल्यायगांव, बूंगा, गुमोड़ी, नैणी, लिलाड़ी सहित दर्जनों गांवों को पानी मिलता है। अतिवृष्टि से योजना के लगभग 10 से 12 पाईप टूट गए हैं। ग्रामीणों ने विभाग से योजना को दुरुस्त कर पेयजल संकट से निजात दिलाने की मांग की है।

इधर जल संस्थान के सहायक अभियंता केएस खाती ने बताया कि विकास खण्ड द्वाराहाट में कुल 28 पेयजल योजनाएं बाधित हुई हैं। उन्होंने बताया कि 10 पेयजल योजनाओं को ठीक कर दिया गया है शेष योजनाओं पर कार्य चल रहा है। श्री खाती ने पेयजल उपभोक्ताओं से सहयोग की अपील की है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6776640.html

विनोद सिंह गढ़िया

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बूंद-बूंद पानी
« Reply #39 on: November 20, 2010, 12:01:52 PM »
बूंद-बूंद पानी

उत्तराखंड के चंपावत जिले से 45 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, तोली। जौलाड़ी ग्रामसभा के इस गांव में करीब 24 परिवारों का बसेरा है। आज से दो दशक पहले यहां पानी की बहुत किल्लत थी। लोगों को बहुत दूर से पानी ढोना पड़ता था। लेकिन आज ऐसा नहीं है। अब हर आंगन में पानी पहुंच चुका है। गांव वालों को यह सुविधा किसी सरकारी योजना से नहीं, बल्कि इसी गांव के निवासी कृष्णानंद गहतोड़ी और पीतांबर गहतोड़ी की सूझबूझ और प्रयासों से मिली है। असल में, गांव की ऊपरी दिशा में बहने वाले कुछ बरसाती गधेरों (नालों) में बरसात को छोड़कर अन्य मौसम में पानी कम मात्रा में ही कहीं-कहीं पर बहता दिखाई देता था। लिहाजा इसी कीमती पानी का इस्तेमाल कर गहतोड़ी बंधुओं ने अपनी तकनीक के जरिये लोगों तक पहुंचा दिया। अब गांव वालों को न केवल पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि सब्जियों की सिंचाई व मछली पालन में भी उसका बखूबी उपयोग हो रहा है।
प्लास्टिक पाइपों के जरिये पहुंच रहे इस पानी का गांव वाले सार्वजनिक उपयोग करते हैं। यह सामूहिक जल प्रबंधन की एक नई मिसाल भी है। प्रत्येक परिवार द्वारा अपने घर में छोटे-छोटे टैंक बनाए गए हैं। अगल-बगल रहने वाले तीन-चार परिवार बारी-बारी से इस पानी को अपने टैंकों में जमा कर लेते हैं। सभी परिवारों द्वारा टैंकों में पानी भर लेने के बाद बचे अतिरिक्त पानी की निकासी बडे़ तालाब में कर दी जाती है। वर्तमान में गांव के करीब सात-आठ परिवारों ने इस तरह के तालाब बनाए हैं। अमूमन 100 से 250 वर्गमीटर आकार वाले ये तालाब इन परिवारों की आय का साधन भी बने हुए हैं। तालाब में एकत्रित पानी का उपयोग सब्जियों की सिंचाई व मछली पालन में किया जाता है। इतना ही नहीं, चूंकि इन तालाबों के कच्चा होने के कारण पानी रिसकर जमीन में जाता है, इसलिए ये तालाब जमीन में नमी बनाए रखने और जल स्रोतों को अक्षुण्ण रखने में भी सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
अल्मोड़ा के उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान के मार्गदर्शन और आर्थिक सहयोग से संचालित पर्यावरण संरक्षण समिति के माध्यम से गहतोड़ी बंधुओं ने उत्तराखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में जल संरक्षण का यह कार्य किया है। इसके अलावा पर्यावरण, बालवाड़ी व स्वच्छ शौचालय के प्रति भी वे लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। प्लास्टिक पाइपों के जरिये बूंद-बूंद पानी के उपयोग के इस सफल प्रयोग से सीख लेकर आसपास के जौलाड़ी, बरौला, रौलामेल, बूंगा, कमलेख, पंतोला, सिमलखेत जैसे गांवों में भी लोगों ने 57 से अधिक तालाब बनाए हैं। इन तालाबों का उपयोग भी सब्जी व मछली उत्पादन में किया जाता है।

चंद्रशेखर तिवारी : http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

 

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