सैक बनाएगा वाटर रिसोर्स एटलस
SOURCE DAINIK JAGRAN
उत्तराखंड के ग्लेशियरों से देश की प्रमुख नदियां तो निकलती ही हैं। ये देश में साफ पीने के पानी के सबसे बड़े स्रोत हैं। हिमालय रहेगा तो पानी रहेगा, लेकिन जल संसाधनों का तभी सही उपयोग व संरक्षण हो सकता है जब उनकी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी हो। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने उत्तराखंड के जल संसाधनों पर आधारित जल संसाधन एटलस बनाने का बीड़ा उठाया है।
जीआईएस, जीपीएस और सैटेलाइट आंकड़ों का मदद से बन रहे इस डिजिटल एटलस से प्रदेश में ग्लेशियरों, नदियों, झीलों, सरोवरों, तालाबों, चाल, खालों आदि की वर्तमान स्थिति के बारे में तो जाना ही जा सकेगा। यह भी पता लग सकेगा कि उत्तराखंड में भू-जल की क्या स्थिति है
और कौन से ऐसे इलाके हैं जहां पानी का बेहतर संग्रहण किया जा सकता है। एटलस से यूसैक के निदेशक डॉ. एमएम किमोठी का कहना है कि उत्तराखंड का लगभग एक चौथाई भाग बर्फ व हिमनदों से ढका है। यहां के हिमनद ही राज्य में बहने वाली सभी सदानीरा नदियों गंगा, यमुना, रामगंगा, टौंस, काली, गोरी के उद्गम स्थल हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन से हिमनदों के अस्तित्व पर संकट है।
जिसका सीधा असर पेयजल और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। इसी के आकलन के लिए बर्फ व हिमनदों का 1:50,000 के पैमाने पर मानचित्रण किया जाएगा ताकि इस समस्या से निपटा जा सके। सैटेलाइट आंकड़ों से उनकी पूर्व की स्थिति, सिकुड़ने की गति, आयतन और उपलब्ध जल भंडार का भी आकलन किया जाएगा।
इस अध्ययन से राज्य के समृद्ध जलसंसाधनों के बेहतर प्रबंधन, नियोजन में तो मदद मिलेगी ही। राज्य की जल विद्युत परियोजनाओं के आकलन में भी मदद मिलेगी। एटलस के लिए राज्य की सभी नदियों का मानचित्र तैयार किया जा चुका है। इसी क्रम में हरिद्वार, उत्तरकाशी और देहरादून के भू-जल संभावित क्षेत्रों का भी चिह्निकरण किया गया है।
इतना ही नहीं प्रदेश के जलाभाव वाले क्षेत्रों की चिह्नित कर वैकल्पिक जलापूर्ति व पारंपरिक जलसंरक्षण तकनीकों द्वारा जल संरक्षण कार्ययोजना पर भी काम जारी है। इतना ही नहींप्रदेश के जलग्राही क्षेत्रों का मानचित्रीकरण भी किया जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किन क्षेत्रों में जल का संग्रहण किया जा सकता है यानी कहां जलाशय बनाने की संभावनाएं हैं। डॉ. डिमरी का कहना है कि यह एटलस प्रदेश में जलसंकट से निपटने, जलस्रोतों के संरक्षण और जल प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा।