"पर्वतीय महिलाएं"
आज भी दम तोड़ती हैं,
घास काटते हुए'
जब फिसल जाता है पैर,
पहाड़ी ढलान पर,
और गिर जाती हैं,
गहरी खाई में.
जंगलों में,
जंगली जानवरों के हमले से,
विषैले सांपों के काटने से,
पेड़ों की टहनी काटते हुए,
पेड़ से गिरने से,
कहीं पेड़ों को छूते,
बिजली के तारों द्वारा,
करंट लगने के कारण,
हो जाती है अकाल मृत्यु,
पर्वतीय महिलाओं की.
प्रसव पीड़ा में,
घायल अवस्था में,
अस्वस्थ होने पर,
उत्तराखंड सरकार की,
१०८ एम्बुलेंस सेवा,
राहत प्रदान करती है,
जो एक सार्थक प्रयास है,
पर्वतीय महिलाओं और,
सभी के लिए.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ग्राम: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल
E-mail: j_jayara@ yahoo.com
७.१२.२००९