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महिला आरक्षण बिल, उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में :Women Reservation Bill,Uttarakhand

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पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड जैसे नव विकासशील राज्य के संदर्भ में यदि कहा जाय तो विधायिका में ३३% आरक्षण किया जाना एक जल्दबाज कदम ही साबित होगा। उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो मातृ शक्ति की भूमिका का अदम्य उदाहरण कहीं नहीं देखा जा सकता है। हर आन्दोलन में महिला शक्ति ने जो सम्बल आन्दोलन को प्रदान किया वह काबिले गौर है। लेकिन जहां त नेतृत्व की बात है तो महिलाओं में अशिक्षा का अभाव सबसे बड़ा कारक होगा, जो इस मामले में उन्हें कमजोर कर देगा। पहले महिला समाज शिक्षित हो जाय, क्योंकि अभी त उत्तराखण्ड में ग्रामीण इलाकों की लड़कियां औसतन कक्षा ५ और कस्बों में हाईस्कूल तक की ही शिक्षा ग्रहण कर पातीं है।
महिला आरक्षण का जो मौजूदा स्वरुप है, उसके अनुसार उत्तराखण्ड में कुल २३ सीटें आरक्षित होंगी और प्रत्येक तीसरी विधान सभा सीट महिलाओं के लिये आरक्षित होगी। जिस तरह से पंचायतों में ५० % आरक्षण का प्रतिफल हमने देखा उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि अभी ये सब करना जल्दबाजी ही होगी।

हेम पन्त:
पंकज दा की उपर्युक्त बात से मैं कुछ हद तक सहमत हूँ. हमारे प्रदेश में पंचायतों में 50% महिला आरक्षण होने के बावजूद महिला प्रतिनिधि अपने पति या अन्य पुरुष परिजनों के ऊपर पूरी तरह निर्भर होकर ही काम करती हैं. इस तरह महिला आरक्षण का सीधा फायदा महिलाओं को या समाज को पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है.

कांग्रेस सरकार द्वारा पारित कराये जा रहे इस बिल के पीछे सरकार की एक अच्छी सोच है, लेकिन सरकार को चाहिये कि वह इसे लागू करने से पहले समाज के हर तबके और देश के सभी इलाकों की सामाजिक और आर्थिक संरचना को पूरी तरह ध्यान में रखे, तभी इस बिल को पारित कराने का उद्देश्य सफल हो पायेगा.

फोरम के अन्य सदस्यों से भी अनुरोध है कि इस मसले पर वह अपने विचार रखें.

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